नई दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को पार्टी छोड़ दी और गांधी परिवार के करीबी लोगों का जिक्र करते हुए पार्टी को ‘अनुभवहीन चाटुकारों की मंडली’ बताया. आजाद ने आरोप लगाया कि पार्टी के अहम फैसले राहुल गांधी के ‘पीए और सिक्योरिटी गार्ड’ वाली मंंडली ले रही है.
आजाद के कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा सौंपने से दो दिन पहले, एक अन्य कांग्रेसी नेता ने भी अपना इस्तीफा देते समय कुछ ऐसा ही कहा था.
पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं में से एक जयवीर शेरगिल ने बुधवार को अपने पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी छोड़ने की घोषणा की. उन्होंने अपने इस्तीफे के बाद दिप्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि पार्टी को ‘पीए और ओएसडी और कुछ चुनिंदा नेता’ चला रहे हैं. शेरगिल ने यह भी कहा कि एक साल से ज्यादा समय तक कोशिश करने के बावजूद वह राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी से मिलने का समय हासिल नहीं कर पाए.
आजाद और शेरगिल पहले ऐसे नेता नहीं हैं जो पार्टी से बाहर हो गए हैं और जिन्होंने इस ‘मंडली’ के बारे में बात की है. अन्य कुछ कांग्रेसी नेताओं ने भी निजी तौर पर इस ‘मंडली’ के पास निर्णय लेने की शक्तियां होने की बात को स्वीकार किया है. उन्होंने इस बारे में भी बात की है कि कैसे ‘मंडली’ तीनों गांधी तक पहुंच बनाने से रोकती है.
आखिर इस ‘मंडली’ में कौन लोग शामिल है? दिप्रिंट इस पर विचार कर रहा है-
के.बी. बायजू
जब आजाद ने ‘सुरक्षा गार्ड’ के बारे में बात की, तो सबसे ज्यादा संभावना है कि वह राहुल गांधी के विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी) के पूर्व सदस्य के.बी. बायजू का जिक्र कर रहे थे. कांग्रेस पदाधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया.
2007 में जब राहुल ने पार्टी महासचिव का पद संभाला, तब बायजू राहुल की टीम का हिस्सा बने थे. लेकिन वह कांग्रेस के आधिकारिक सदस्य नहीं हैं. पार्टी सूत्रों ने कहा कि वास्तव में बायजू का राहुल के साथ जुड़ाव 1991 से है, जब उन्हें पहली बार राहुल की सुरक्षा का काम सौंपा गया था.
उन्होंने कहा कि बायजू राहुल गांधी के सभी दौरों, मूवमेंट और सुरक्षा व्यवस्था के प्रभारी हैं, जो उन्हें पार्टी के पूर्व अध्यक्ष का एक भरोसेमंद व्यक्ति बनाता है.
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अलंकार सवाई
आईसीआईसीआई बैंक के एक पूर्व एग्जीक्यूटिव अलंकार सवाई राहुल गांधी के निजी स्टाफ के सदस्य हैं और उनके दिन-प्रतिदिन के मामलों को देखने का जिम्मा उन्हीं का है. वह कुछ समय के लिए गांधी के सोशल मीडिया खातों के प्रभारी भी रहे थे. पार्टी सूत्रों का कहना है कि सवाई के शामिल होने के बाद, जब से गांधी की टीम का विस्तार हुआ है, तब से वह ‘चीफ ऑफ स्टाफ’ बने हुए हैं.
कांग्रेस के हलकों में उन्हें एक ऐसे शख्स के तौर पर जाना जाता है जो राहुल गांधी तक आसानी से पहुंच नहीं बनाने देते हैं. मीडिया के साथ राहुल के संपर्क की जिम्मेदारी उन्हीं की है. अगर एक-दो प्रेस कॉन्फ्रेंस को छोड़ दें, तो मीडिया के साथ गांधी की बातचीत काफी हद तक प्रतिबंधित है. सवाई आमतौर पर राहुल के साथ उनके सभी राजनीतिक दौरों में साथ होते हैं.
संदीप सिंह
राहुल के लिए जो सवाई है, वही प्रियंका गांधी के लिए संदीप सिंह हैं. उनकी कहानी कुछ इस तरह की है. जेएनयू में आइसा (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) के एक पूर्व छात्र कार्यकर्ता संदीप सिंह ने कथित तौर पर मनमोहन सिंह के लिए काले झंडे उठाए थे. उस समय पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विश्वविद्यालय परिसर का दौरा कर रहे थे. उन्होंने कांग्रेस के साथ जुड़ने से पहले भाकपा (माले) के साथ काम किया था.
जब 2018 में प्रियंका ने उत्तर प्रदेश पार्टी महासचिव के रूप में कार्यभार संभाला तो वह उनकी टीम में शामिल हो गए. लेकिन उससे पहले, सिंह राहुल गांधी के साथ काम करते थे. फिलहाल वह प्रियंका की टीम का नेतृत्व करते हैं और उन्हें राजनीतिक मामलों में सलाह देते हैं.
सिंह ने कथित तौर पर इस साल की शुरुआत में यूपी चुनावों के दौरान टिकट वितरण और पार्टी की रणनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यूपी के कुछ कांग्रेस नेताओं ने कथित तौर पर आरोप भी लगाया था कि उन्हें टिकट पाने के लिए सिंह की गुड बुक में आने की जरूरत होती है. और वह प्रियंका गांधी तक पहुंच नहीं बनाने देते.
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कनिष्क सिंह
कांग्रेस के सूत्र कनिष्क सिंह को राहुल गांधी का ‘दोस्त’ बताते हैं. वह पहले न्यूयॉर्क स्थित मर्चेंट बैंकिंग फर्म लैजार्ड फ्रेरेस एंड कंपनी के साथ जुड़े थे. नौकरी छोड़ने के बाद 2003 में उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया. कनिष्क ने व्हार्टन बिजनेस स्कूल से एमबीए किया है.
जब उन्होंने कांग्रेस के साथ शुरुआत की, तब वह शीला दीक्षित के साथ काम कर रहे थे. उसके बाद 2004 में उन्होंने एक लेख लिखा. उसमें उन्होंने सोनिया गांधी की तुलना जॉन केरी से की और दोनों के लिए जीत की भविष्यवाणी करने के बाद गांधी परिवार ने उन्हें नोटिस किया.
वह 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से परिवार, खासकर राहुल के साथ काम कर रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि वह नेतृत्व के ‘महत्वपूर्ण मामलों’ खासकर कानून, सुरक्षा आदि से संबंधित मामलों को संभालते हैं.
सचिन राव
कनिष्क जैसी पृष्ठभूमि से आने वाले सचिन राव, मिशिगन बिजनेस स्कूल से कॉर्पोरेट रणनीति और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एमबीए स्नातक हैं. फिलहाल राव ने पर्सनल ट्रेनिंग और आईएनसी संदेश के प्रभारी हैं. उन्होंने पहले भारतीय युवा कांग्रेस (IYC) और NSUI (भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ) के प्रबंधन का कामकाज भी संभाला है.
2007 में, जब राहुल ने एआईसीसी महासचिव के रूप में पदभार संभाला, तो उन्होंने राव के साथ मिलकर आईवाईसी और एनएसयूआई को फिर से खड़ा करने पर काम किया था. तब इसे पार्टी में नए महासचिव का पहला कार्यभार माना गया था.
सूत्रों का कहना है कि राहुल के कार्यकाल के दौरान 2007-2009 के बीच पहली बार दोनों निकायों के लिए आंतरिक चुनाव कराने का विचार राव का था. राव कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य भी हैं, जो पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है.
के. राजू
1981 बैच के आईएएस अधिकारी के. राजू ने 2009 में कांग्रेस के साथ काम करना शुरू किया था. उन्हें वाईएस राजशेखर रेड्डी कांग्रेस के पाले में लेकर आए थे. मौजूदा समय में वह राहुल गांधी की टीम का हिस्सा हैं और अल्पसंख्यक और कास्ट पॉलिटिक्स, सामाजिक कल्याण आदि से संबंधित मामलों को संभालते हैं.
प्रवीण चक्रवर्ती
इस समय चक्रवर्ती कांग्रेस के डेटा और एनालिटिक्स विंग के अध्यक्ष हैं और आर्थिक नीतियों से संबंधित सभी मामलों में राहुल गांधी के लिए एक महत्वपूर्ण साउंडिंग बोर्ड भी. चक्रवर्ती की टीम पार्टी के लिए सर्वे और डेटा-आधारित तकनीकी पहल के कामकाज को संभालती है.
हाल ही में उन्होंने कांग्रेस के डिजिटल सदस्यता अभियान का नेतृत्व किया. व्हार्टन से एमबीए चक्रवर्ती ने पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के साथ बहुप्रचारित NYAY न्यूनतम वेतन गारंटी योजना पर काम किया. राहुल ने 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले इस योजना को लाने और गरीबी व बेरोजगारी के लिए कांग्रेस पार्टी के रामबाण के रूप में पेश किया था. हालांकि, NYAY मतदाताओं को लुभाने में विफल रहा था.
‘कुछ चुनिंदा’ नेता
‘मंडली’ में नेताओं का यह ग्रुप काफी हद तक लचीला है. इसमें कुछ तो काफी लंबे समय से टिके हुए हैं तो वहीं कुछ का आना-जाना लगा रहता है.
सबसे लंबे समय से टिके हुए इस मंडली के दो सदस्य के.सी. वेणुगोपाल और रणदीप सुरजेवाला हैं. वेणुगोपाल संगठन के प्रभारी महासचिव हैं, जबकि सुरजेवाला ने हाल तक, संचार और कर्नाटक राज्य का कार्यभार संभाला हुआ था. पार्टी के सहयोगी जयराम रमेश के इस साल जून में संचार विभाग संभालने के बाद वह मौजूदा समय में कर्नाटक के प्रभारी महासचिव हैं.
राहुल गांधी के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभालने के बाद 2017 में कर्नाटक के प्रभारी महासचिव बनाए गए, वेणुगोपाल को 2019 में उनकी वर्तमान भूमिका में नियुक्त किया गया था. केरल के एक पूर्व लोकसभा सांसद वेणुगोपाल अब राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं.
रणदीप सुरजेवाला को 2017 में महासचिव और उसके दो साल पहले 2015 में मीडिया विभाग का प्रभारी बनाया गया था. हालांकि विभाग के प्रमुख के रूप में उनका कार्यकाल आलोचनाओं से भरा रहा. कई लोगों ने उन पर पहुंच से बाहर होने के कारण राष्ट्रीय मीडिया को अलग-थलग करने का आरोप लगाया.
चुनावी राजनीति में देखा जाए तो सुरजेवाला पिछले दो चुनाव हार गए थे. दोनों चुनाव उन्होंने अपने गृह राज्य हरियाणा से लड़े थे. मौजूदा समय में वह राजस्थान से राज्यसभा सदस्य हैं.
इसके अलावा एक अन्य नेता जो अपनी राजनीतिक सलाह के चलते राहुल गांधी के काफी निकट बने हुए हैं, वह हैं मनिकम टैगोर. तमिलनाडु से लोकसभा सांसद टैगोर वर्तमान में तेलंगाना के प्रभारी सचिव हैं. पूर्व टीडीपी नेता और एबीवीपी कार्यकर्ता रेवंत रेड्डी को तेलंगाना कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनाने में टैगोर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
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