नई दिल्ली: देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, आज देश को आजाद हुए 75 साल पूरे हो गए. इस मौके पर केंद्र सरकार ने झंडा रोहण को लेकर कई परिवर्तन किए और फ्लैग कोड में भी संशोधन कर दिए. फ्लैग कोड संशोधन के खिलाफ कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्ता संघ (केकेजीएसएस) की रविवार को पदयात्रा खत्म हो गई. हालांकि संघ का कहना है कि फ्लैग कोड में किए गए बदलाव के खिलाफ उनका विरोध-प्रदर्शन भविष्य में जारी रहेगा.
दरअसल, फ्लैग कोड में हालिया संशोधनों का विरोध करते हुए संघ ने 29 जुलाई से 14 अगस्त तक पदयात्रा की योजना बनाई थी. यह ‘सत्याग्रह’ मैसूर में शुरू हुई थी जिसे बेंगलुरु में खत्म कर दिया गया.
संशोधन के खिलाफ कांग्रेस के साथ केकेजीएसएस ने 27 जुलाई से अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया था.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने दिसंबर 2021 में ध्वज संहिता में संशोधन किया था जिसमें मशीन से बने पॉलिएस्टर तिरंगे के निर्माण की अनुमति दी गई थी. कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्ता संघ की कई यूनिट इस फैसले का लगातार विरोध कर रही है. उनका कहना है कि इससे खादी की मांग कम होगी.
केकेजीएसएस के सचिव शिवानंद माथापट्टी ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘फ्लैग कोड को लेकर हम विरोध कर रहे हैं. अगर आगे भी यही कोड लागू रहा तो खादी की मांग कम होगी और पॉलिएस्टर की बढ़ेगी क्योंकि खादी महंगा होता है इसीलिए सभी पॉलिएस्टर के ही झंडे खरीदेंगे.’
संघ को इस साल लगभग 2.5 करोड़ रुपए के झंडे का ऑर्डर दिया गया था. लगभग 5 करोड़ रुपए का कच्चा माल अभी भी गोदामों में पड़ा हुआ है. पिछले साल अप्रैल के महीने में केवीआईसी अध्यक्ष ने संघ के हुबली कार्यालय में एक बैठक की थी. उन्होंने सभी खादी संस्थानों को बुलाकर खादी का उत्पादन बढ़ाने के निर्देश दिए था. उनके निर्देशानुसार सभी संस्थाओं ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए खादी का कपड़ा तैयार किया है. यह खादी जिससे राष्ट्रीय ध्वज के लिए इस्तेमाल किया जाता है उसकी कीमत 320 रुपए प्रति मीटर है.
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बेरोजगार होने का डर
केकेजीएस की विभिन्न इकाइयों में काम कर रहे 45 हजार लोगों को छंटनी का डर सता रहा है.
शिवानंद कहते हैं कि खादी हमारे राष्ट्रीय धवज की अस्मिता और गौरव का प्रतीक है. उनका मानना है कि केंद्र सरकार के इस संशोधन के कारण खादी क्षेत्र में काम कर रहे हजारों लोगों की नौकरियां जा सकती हैं.
शिवानंद ने कहा, ‘धारवाड़ तालुक में सभी खादी के लिए कटाई और बुनाई करने का काम करते हैं अगर खादी की मांग में कमी आई तो उन सब की नौकरी चली जाएगी. हम सब बेरोजगार हो जाएंगे. इसीलिए हमने केंद्र सरकार से इस कोड को वापस लेने की मांग की है. हम लोग पूरे कर्नाटक में प्रदर्शन कर रहे हैं.’
खादी ग्राम उद्योग वस्त्रधर और खादी ग्रामोद्योग एम्पोरियम के मैनेजर वी.पी संगमिश्वर मठ का कहना है कि खादी सेक्टर पर ग्रामीण इलाके और महिलाएं रोजगार के लिए निर्भर हैं और केंद्र सरकार का फैसला इनके लिए संकट पैदा कर सकता है.
उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण शुरू में हमारे राष्ट्रीय पिता महात्मा गांधी का सपना था वो खादी ग्राम उद्योग के क्षेत्र का विकास चाहते थे. सरकार के निर्णय से ग्रामीण क्षेत्र, इसके कामकाज में लगी महिलाएं प्रभावित होंगी. ग्रामीण भारत इसपर पूरी तरह से निर्भर है.’
वो दिप्रिंट से कहते हैं कि पिछले साल दिसंबर में केंद्र की तरफ से लिया गया फैसला ग्राम उद्योग के लिए सबसे दुखद है.
केकेजीएसएस की यूनिट में ज्यादातर महिलाएं हैं जो बुनकर, कातने और दर्जी का काम करती हैं. वो दिहाड़ी मजदूर हैं और प्रतिदिन लगभग 500-600 रुपए कमाती हैं.
शिवानंद कहते हैं कि सरकार खादी से अच्छा पॉलिस्टर को दिखाया जा रहा है लेकिन यह स्वास्थय और वातावरण के लिए ठीक नहीं है. अगर खादी की मांग कम हो जाएगी तो इस क्षेत्र को बंद करने की नौबत आ जाएगी.
‘जारी रहेगा विरोध’
इस कदम का कड़ा विरोध करते हुए केकेजीएसएस ने, जो कि बीआईएस-अनुमोदित झंडा बनाने वाली इकाई है, ने प्रधानमंत्री पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखा था. संघ ने खादी के मूल सिद्धांत पर हमला बताते हुए केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी से भी इस मुद्दे को केंद्र के साथ उठाने का आग्रह किया था.
14 अगस्त को पदयात्रा खत्म होने पर संगमिश्वर ने कहा कि वो कोड के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे. उन्होंने कहा, ‘हम स्वत्रंता दिवस मनाएंगे क्योंकि यह हमारा राष्ट्रीय त्यौहार है लेकिन हम इस संशोधन के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे सरकार की तरफ से इस पर क्या रुख आता है उस पर भी निर्भर करेगा. आगे की रणनीति हमारी संस्था तय करेगी जिसपर हम जल्द ही बैठक कर के फैसला लेंगे.’
उधर, धारवाड़ तालुका के गरग गांव ने फ्लैग कोड के विरोध में ध्वज का उत्पादन बंद कर दिया है. साथ ही ग्रामीणों ने मोदी सरकार की महत्वकांक्षी ‘हर घर तिरंगा’ में भी हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है. गांव वालों का मानना है कि वो खादी के अलावा किसी और सामग्री से बने राष्ट्रीय ध्वज को इसका अपमान मानते हैं.
हालांकि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने आश्वासन दिया था कि केकेजीएसएस को झंडे के निर्माण के लिए अधिक से अधिक ऑर्डर मिलेंगे लेकिन उनका यह आश्वासन संघ की आशंकाओं को दूर करने में असफल रहा.
संगमिश्वर ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे सीएम केंद्र सरकार के लिए काम करते हैं उनका इस फैसले और संशोधन से कुछ लेना देना ही नहीं है.’
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क्या कहता है फ्लैग कोड
देश में राष्ट्रीय ध्वज का उपयोग, प्रदर्शन और फहराने के सही तरीकों का एक व्यापक निर्देश होता है जिसे ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 2002’ कहा जाता है.
केंद्र सरकार ने पिछले साल दिसंबर में फ्लैग कोड में संशोधन किया था, जिससे पॉलिस्टर को रेशम, खादी, ऊन और कपास के अलावा हाथ से बुने और मशीन से बने झंडे बनाने की अनुमति दी गई थी.
भारतीय ध्वज संहिता, 2002 के भाग-I के पैराग्राफ 1.2 में कहा गया है कि ‘राष्ट्रीय ध्वज हाथ से काते और हाथ से बुने हुए या मशीन से बने, कपास/पॉलिस्टर/ऊन/रेशम खादी से बना होगा.’
पहले मशीन से बने या फिर पॉलिस्टर के झंडे का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं थी.
20 जुलाई, 2022 को लाए गए एक अन्य संशोधन में केंद्र ने राष्ट्रीय ध्वज को दिन के साथ-साथ रात में भी फहराने की अनुमति दी है. पहले के नियमों के तहत, तिरंगा केवल सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच ही फहराया जा सकता था.
संघ का आरोप है कि सरकार पॉलिएस्टर से बने ध्वज चीन से आयात करने की अनुमति देता है.
बता दें कि चीन वैश्विक स्तर पर पॉलिएस्टर फाइबर की आपूर्ति में 70 फीसदी का योगदान देता है. चीन सिंथेटिक फाइबर का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है. चीन वर्तमान में पॉलिएस्टर उत्पादन के मामले में पहले स्थान पर है.
केकेजीएसएस की स्थापना
गांधीवादियों ने केकेजीएसएस को खादी और अन्य ग्रामोद्योगों के विकास की आवश्यकता को पूरा करने के मकसद से 1 नवंबर 1957 को एक संघ बनाने के लक्ष्य के साथ इसे स्थापित किया था. संघ का एक और उद्देश्य खादी क्षेत्र में ग्रामीण युवाओं को रोजगार देना था.
इस संघ के अंतरगत में राज्य भर के लगभग 58 संस्थानों को लाया गया था. इसका हेडक्वार्टर हुबली में स्थित है जो 17 एकड़ में फैला हुआ है.
यहां खादी का उत्पादन 1982 में शुरू हुआ था. केकेजीएसएस मुख्य तौर पर भारतीय ध्वज बनाता है. यह भारत में इकलौती इकाई है जो भारतीय ध्वज के निर्माण और आपूर्ति के लिए अधिकृत है. इसके अलावा, यह खादी के कपड़े, कालीन, बैग, टोपी, चादरें, साबुन और शहद भी बनाती हैं.
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