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Wednesday, 27 March, 2024
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SC से छत्तीसगढ़ के ‘फर्जी एनकाउंटर’ की जांच अपील खारिज होने पर हिमांशु कुमार ने कहा- जुर्माना नहीं, जेल भरेंगे

हिमांशु ने कहा कि आदिवासी इस फैसले को लेकर काफी गुस्से में हैं. गोम्पाड़ गांव के आदिवासियों का एक प्रतिनिधितव मंडल इसको लेकर दिल्ली में एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मु से मुलाकात करेगा.

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नई दिल्ली: गांधीवादी कार्यकर्ता और याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार का कहना है कि उन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए पांच लाख रुपए जुर्माने को वह नहीं भरेंगे.

हिमांशु ने कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट के छत्तीसगढ़ में सुकमा जिले के गोम्पाड़ में कथित ‘फर्जी एनकाउंटर’ मामले की जांच करने की अपील को खारिज करने के आदेश को नहीं मानेंगे और खुशी-खुशी जेल जाना पसंद करेंगे.

दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं इस फैसले को नहीं मानता हूं. मैं पांच लाख रूपए का जुर्माना नहीं दूंगा और खुशी से जेल जाना पसंद करूंगा.’

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने गुरुवार को गोम्पाड़ में 17 आदिवासियों के मारे जाने के मामले की जांच करने की अपील को खारिज कर दिया था. साथ ही अदालत ने हिमांशु कुमार पर पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाते  हुए छत्तीसगढ़ राज्य सरकार और सीबीआई को उनके खिलाफ ‘कानून के अनुसार उचित कदम’ उठाने का निर्देश भी दिया.

जस्टिस एएम खानविलकर और जे बी पारदीवाला की बेंच ने इस मामले में झूठे आरोप लगाने की राज्य सरकार की दलील पर आईपीसी की धारा 211  (क्षति करने के आशय से अपराध का झूठा आरोप) का हवाला देते हुए कार्रवाई करने का निर्णय सरकार पर छोड़ दिया है.

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‘इंसाफ मांगना जुर्म है तो हम इसे बार-बार करेंगे’

हिमांशु ने कहा कि ऐसे फैसले मानने का मतलब है कि हम यह मान रहे हैं कि हमसे गलती हो गई है. इंसाफ मांगना, अन्याय को नामंजूर करना हर भारतीय का पहला फर्ज है.

हिमांशु ने कहा, ‘अगर इंसाफ मांगना जुर्म है तो हम इसे बार-बार करेंगे.’

उन्होंने इस आदेश को आदिवासियों, दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बताया है. उन्होंने कहा, ‘अदालत इस तरह के फैसले देकर इंसाफ देने का रास्ता बंद कर रही है.’

वह कहते हैं, ‘इनमें से एक जज ने इसी तरह का एक फैसला कुछ दिन पहले दिया था जिसके बाद तीस्ता सीतलवाड़ और आरबी श्रीकुमार को जेल में डाल दिया गया. ऐसा ही फैसला इन्होंने मेरे मामले में दिया है. इस तरह के आदेश कहते हैं कि तुम्हारा इंसाफ मांगना ही जुर्म है. अगर कोर्ट यह कह रहा है तो इसका मतलब हुआ कि वो कहने की कोशिश कर रहा है कि न्याय लेने के लिए अदालत मत आओ. यह न्यायिक प्रक्रिया पर हमला है.’

बता दें कि 2002 में गुजरात दंगों में साजिश की जांच की मांग करने वाली जाकिया जाफरी द्वारा दायर एक याचिका को जस्टिस एएम खानविलकर ने 24 जून को खारिज कर दिया था.


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‘जजों की नहीं जनता की मिलकियत है सुप्रीम कोर्ट’

हिमांशु ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जजों की नहीं जनता की मिलकियत है. इसकी सुरक्षा जनता करेगी.

उन्होंने बताया कि आदिवासी इस फैसले को लेकर काफी गुस्से में हैं. उन्होंने कहा कि गोम्पाड़ गांव के आदिवासियों का एक प्रतिनिधि मंडल इसको लेकर दिल्ली में एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करेगा. हालांकि यह अभी तय नहीं हुआ है कि वो कब दिल्ली आने वाले हैं.

उन्होंने कहा कि हम महात्मा गांधी जी के रास्ते पर चलते हुए जेल भरो आंदोलन शुरू करेंगे.

हिमांशु ने कहा, ‘यह मामला न्यायिक प्रक्रिया का नहीं बल्कि राजनीति से प्ररित था. न्यायिक प्रक्रिया तो तब होती है जब कोर्ट इस मामले में जांच के आदेश दे देता.’

उन्होंने कहा, ‘एससी ने हमारे आरोपों को फर्जी बता दिया. अदालत को जांच किए बगैर कैसे पता चल गया कि हम झूठ बोल रहे हैं. क्या उन्हें कोई सपना आया है?’

उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से ना सिर्फ राजनीतिक मामला है बल्कि सियासी पार्टियों को जो बड़ी-बड़ी कंपनी चंदा देती हैं उनको फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार आदिवासियों की जमीन कॉर्पोरेट को सौंपना चाहती है.

हिमांशु ने ‘फर्जी एनकाउंटर’ के खिलाफ अपना अभियान एक दशक पहले तब शुरू किया था जब यूपीए सरकार ने छत्तीसगढ़ में विवादास्पद सलवा जुडूम की शुरुआत की थी. हिमांशु ने ‘फर्जी एनकाउंटर’ की पड़ताल करने के लिए कई ‘फेक्ट फाइंडिंग मिशन’ चलाए हैं.  बता दें कि साल 2009 में छत्तीसगढ़ में नक्सल अभियान के खिलाफ सलवा जुडूम नाम से एक अभियान चलाया गया था.

साल 2011 में उन्होंने ‘फर्जी मुठभेड़ों’ के 519 मामलों की लिस्ट के साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

हिमांशु ने कई बार पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार करने का भी डर जाहिर किया है. साथ ही उन्होंने छत्तीसगढ़ पुलिस पर आरोप लगाया है कि उनका नाम लगभग ‘100 चार्जशीट’ में लिखा गया है.

हिमांशु ने दिप्रिंट से कहा कि उनके द्वारा उठाया गया यह कोई पहला मामला नहीं है. उनके एक मामले में एनएचआरसी की रिपोर्ट उनके हक में आ चुकी है जिसमें माना गया था कि सुरक्षा बलों ने आदिवासी महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न किया था. वहीं सरकेगुडा ‘फर्जी’ मुठभेड़ मामले में न्यायिक जांच रिपोर्ट में पाया गया कि मारे गए लोग ‘आदिवासी’ थे.

वह कहते हैं, ‘यह सब मामले मैंने ही उठाए थे. कोई केस गलत साबित नहीं हुआ है. एससी कैसे कह सकता है कि हम झूठ बोल रहे हैं?’

जानकारी के लिए बता दें कि  राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने 2015 में राज्य पुलिस द्वारा 16 आदिवासी महिलाओं के साथ कथित बलात्कार, यौन और शारीरिक हमले को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी किया था.

एनएचआरसी ने 2015 की एक न्यूज रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही की थी जिसमें कहा गया था कि पांच गांवों की महिलाओं ने राज्य पुलिस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था.


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क्या है मामला

छत्तीसगढ़ राज्य के दंतेवाड़ा जिले में स्थित गछनपल्ली, गोम्पाड और बेलपोचा गांवों में 17 सितंबर 2009 और 1 अक्टूबर 2009 को हुए एक कथित मुठभेड़ की स्वतंत्र जांच की मांग करते हुए याचिका दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि मुठभेड़ में मारे गए नक्सली नहीं बल्कि निर्दोष आदिवासी थे.

याचिकाकर्ताओं और गोम्पाड के निवासियों ने आरोप लगाया था कि विशेष पुलिस अधिकारियों और नियमित सुरक्षा बल को 1 अक्टूबर, 2009 की तड़के गांव के बाहरी इलाके में देखा गया था.

याचिकाकर्ताओं ने इसके लिए छत्तीसगढ़ पुलिस, विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ), सलवा जुडूम के कार्यकर्ता,  सीआरपीएफ और कोबरा बटालियन वाले अर्धसैनिक बलों को इसके लिए जिम्मेदार बताया था.

एक मीडिया रिपोर्ट में गवाह के हवाले से कहा गया, ‘जब हमने बल को देखा तो हम भाग गए. जब हम लौटे तो हमें वहां शव मिले.’ गवाह के हवाले से आगे कहा गया कि जले हुए घर के सामने लाश पड़ी थी जिसे तलवार से काटकर सीने में गोली मारी गई थी. वहीं एक 12 वर्षीय लड़की का शव एक पेड़ के नीचे मिलने की बात कही गई थी.

इस मामले में 12 सह-याचिकाकर्ता आदिवासी और मृतकों के रिश्तेदार हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सह-याचिकाकर्ताओं को यह कहते हुए हटा दिया था कि ‘वे अनपढ़ और देहाती हैं और उन्हें जनहित याचिका की सामग्री के बारे में कोई जानकारी नहीं है.’

केंद्र सरकार ने न केवल याचिका का विरोध किया था बल्कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ झूठी गवाही की कार्यवाही की मांग करते हुए एक आवेदन भी दायर किया था. इसमें आरोप लगाया गया था कि नक्सलियों द्वारा अंजाम दिए गए नरसंहार को सुरक्षा बलों की तरफ से किए जाने के तौर पर चित्रित किया जा रहा है.

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया था कि राज्य पुलिस ने 2009 की घटनाओं के संबंध में प्राथमिकी दर्ज की थी और कई मामलों में आरोपपत्र दायर किए गए हैं. चार्जशीट में नामजद सभी आरोपी फरार बताए गए हैं. मेहता ने यह भी आरोप लगाया कि हिमांशु वनवासी चेतना आश्रम नाम से एक एनजीओ चलाते हैं जिसका एफसीआरए लाइसेंस विदेशी फंड का हिसाब नहीं देने की वजह से निलंबित कर दिया गया था.

फरवरी 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज को हिमांशु की उपस्थिति में 12 आदिवासी याचिकाकर्ताओं के बयान दर्ज करने के लिए निर्देश दिया था.

अदालत ने यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी घटना की वीडियोग्राफी करने का भी निर्देश दिया कि गवाहों को किसी भी तरह के दबाव या धमकी ना मिले.  साथ ही उनके लिए सुरक्षा का भी आदेश दिया गया है. डिस्ट्रिक्ट जज ने गवाहों के बयानों पर अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी.

केंद्र के अनुसार, इस रिपोर्ट से पता चला कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष शिकायतकर्ताओं ने डिस्ट्रिक्ट जज के सामने गवाही दी कि कुछ अज्ञात व्यक्ति जंगल से आए और ग्रामीणों की हत्या कर दी.  याचिका में कहा गया है कि उनमें से किसी ने भी सुरक्षाबलों के सदस्यों के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया है.

केंद्र ने कहा कि उनमें से कोई भी मौका-ए-वारदात पर मौजूद नहीं था क्योंकि वे सभी फायरिंग की आवाज सुनकर जंगल में भाग गए थे.

केंद्र ने कहा कि रिपोर्ट में कुमार और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा सुरक्षा बलों को बदनाम करके अदालत को गुमराह करने की कोशिश की गई है.

केंद्र ने अदालत से केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) को आपराधिक मामला दर्ज करने और हिंसक माओवादी से संबंधित मुकदमेबाजी में शामिल लोगों और संगठनों की पहचान करने के लिए जांच करने का निर्देश देने का आग्रह किया है.


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