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Sunday, 5 May, 2024
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खौल रहा है लंका, राष्ट्रपति फरार- भारत की पड़ोसी देशों से ‘तुलना’ पर क्या कहता है उर्दू प्रेस

दिप्रिंट का राउण्ड-अप कि उर्दू मीडिया ने पिछले हफ्ते की घटनाओं को कैसे कवर किया, और उनमें से कुछ ने क्या संपादकीय रुख़ इख़्तियार किया.

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नई दिल्ली: श्रीलंका में अभूतपूर्व अशांति, एक भगोड़े लीडर, और भारत के लिए ऐसी ही नियति की आशंका ने उर्दू अख़बारों को व्यस्त रखा. लेकिन एक नई असंसदीय शब्दावली पर विपक्ष की आपत्तियों, और कथित चीनी घुसपैठ की चिंताओं ने भी उनके पहले पन्नों पर जगह बनाई.

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट, जिसमें कहा गया कि 2023 में भारत सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा, और उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस बारे में ‘लोगों के एक वर्ग’ की आबादी के उल्लेख ने भी- जो कथित रूप से मुसलमानों की ओर इशारा था- उर्दू मीडिया में जगह बनाई.

दिप्रिंट आपके लिए लाया है इस हफ्ते उर्दू अख़बारों की सुर्ख़ियों और उनके संपादकीयों का एक जायज़ा.

श्रीलंका संकट

पड़ोसी श्रीलंका में जन विद्रोह जिसने अपने राष्ट्रपति को देश छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया, पूरे हफ्ते सबसे अधिक फोकस में रहा. 10 जुलाई को रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा  ने अपने पहले पन्ने पर ऐलान किया, कि राष्ट्रपति गोटाबाया रापजक्षे ग़ायब हैं और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे इस्तीफा देने को राज़ी हो गए हैं.

14 जुलाई को, तीनों अख़बारों- रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा, सियासत, और इनक़लाब  ने अपने पहले पन्ने पर ख़बर दी, कि श्रीलंका में आपात स्थिति लागू कर दी गई है.सियासत  ने ख़बर दी कि राष्ट्रपति राजपक्षे भागकर मालदीव पहुंच गए हैं.इनक़लाब  ने भी इनसेट में पूर्व श्रीलंकाई क्रिकेट स्टार सनत जयसूर्या का बयान छापा, कि राष्ट्रपति से इस्तीफा देने के लिए कहा गया था, देश छोड़ने के लिए नहीं.

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14 जुलाई को अपने एक संपादकीय में इनक़लाब ने लिखा, कि श्रीलंका की सियासी उथल-पुथल की जड़ें उसकी आर्थिक मुश्किलों में हैं, और चूंकि भारत की अर्थव्यवस्था को भी पिछले कुछ सालों में काफी मुश्किलें पेश आ रही हैं, इसलिए दोनों की तुलना हो रही है और सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या हमारे देश में भी इसी तरह की स्थिति पैदा हो सकती है. अख़बार का तर्क था कि भारत के पास एक बड़ा देश होने का फायदा है, इसलिए अगर कुछ सूबों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, तो दूसरे सूबे उन कमियों की भरपाई कर सकते हैं.

उसी दिन अपने संपादकीय में सियासत  ने लिखा, कि पहली और सबसे अहम ज़रूरत ये है कि हालात को बेहतर करने के लिए श्रीलंका की सभी संस्थाएं साथ मिलकर काम करें. उसने कहा कि सामान्य व्यवस्था के थोड़ा बहाल होने के बाद ही, मुल्क अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मदद की अपील कर सकता है.

घटनाओं को एक विद्रोह क़रार देते हुए, 14 जुलाई को सहारा  के संपादकीय में लिखा गया, कि श्रीलंकाई लोगों का अपनी मुसीबतों के लिए राजपक्षे परिवार को ज़िम्मेवार ठहराना ग़लत नहीं है, चूंकि परिवार इतने सालों से सत्ता में बना रहा है. अख़बार ने लिखा कि सरकार ने अशांति को ख़त्म करने की ठानी हुई है, इसलिए समय ही बताएगा कि क्या प्रदर्शनकारी अपने मक़सद में कामयाब हो पाएंगे.

15 जुलाई को, सियासत में पहले पन्ने की एक लीड में ऐलान किया गया, कि प्रदर्शनकारियों ने आख़िरकार सरकारी दफ्तरों को ख़ाली करना शुरू कर दिया है.


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विपक्ष और संसद

विपक्ष के ग़ुस्से को भी- पहले भारतीय इलाक़े में कथित चीनी घुसपैठ, और फिर असंसदीय शब्दों की एक नई हैण्डबुक पर- हफ्ते में कई बार पहले पन्ने पर जगह मिली.

12 जुलाई को,इनक़लाब  ने पहले पन्ने की अपनी लीड के तौर पर, कांग्रेस सांसदों जयराम रमेश और गौरव गोगोई की तस्वीरों के साथ एक लेख छापा, कि किस तरह कथित घुसपैठ को लेकर सरकार आलोचनाओं में घिरी है. उसने कांग्रेस नेताओं का ये कहते हुए हवाला दिया, कि अपनी ख़ुद की छवि को बचाने के लिए पीएम ने इस मामले पर ख़ामोशी इख़्तियार की हुई है.

12 जुलाई को सहारा  ने अपने पहले पन्ने पर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की ख़बर छापी, कि शिवसेना विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिका को तुरंत ख़ारिज नहीं किया जाना चाहिए. उसी दिन इनक़लाब  ने लिखा कि शीर्ष अदालत ने उद्धव ठाकरे ख़ेमे को राहत दी है.

13 जुलाई को अपने पहले पन्ने पर एक छोटे से लेख में सियासत  ने ख़बर दी, कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक निजी दौरे पर यूरोप रवाना हो गए थे.

15 जुलाई को इनक़लाब की लीड हेडलाइन ने कहा गया, कि विपक्ष इस बात से नाराज़ है कि ‘जुमला-जीवी’ और ‘भ्रष्टाचार’ जैसे शब्दों को उस सूची में शामिल कर दिया गया है, जिन्हें यदि संसद में इस्तेमाल किया जाए तो उन्हें रिकॉर्ड से हटा दिया जाता है.

एक इनसेट में अख़बार ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, और आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह की टिप्पणियां छापीं, कि उन्हें ये सूची क्यों मंज़ूर नहीं है.

लोकसभा सचिवालय की ओर से जारी हैण्डबुक को सहारा  के पहले पन्ने पर भी जगह दी गई. अख़बार ने लिखा कि गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को याद दिलाया था, कि संसदीय हस्तक्षेपों के दौरान उन्होंने ख़ुद ऐसे शब्द इस्तेमाल किए थे.

विपक्ष की भूमिका पर 15 जुलाई को अपने संपादकीय में इनक़लाब ने लिखा, कि लोकतंत्र में ‘नियंत्रण और संतुलन’ का एक खेल होता है, और इसलिए ज़िम्मेदारी और जवाबदेही बहुत अहम हो जाती हैं. यही वजह है कि लोकतंत्र में विपक्ष को एक दुश्मन के तौर पर नहीं दिखाया जाना चाहिए- लेकिन उसने कहा कि इन दिनों ऐसा ही नज़र आ रहा है. अख़बार की दलील थी कि अगर ऐसा नहीं है, तो विपक्ष को ख़त्म करने की मंशा क्यों है.


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आबादी पर तकरार

12 जुलाई को सियासत  ने अपने पहले पन्ने पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को जगह दी, जिसमें भविष्यवाणी की गई थी कि 2023 में चीन को पीछे छोड़ते हुए, भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा.

इस रिपोर्ट पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान को भी पहले पन्नों और संपादकीयों में जगह मिली, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘लोगों के एक वर्ग की आबादी बढ़नी नहीं चाहिए’- जो कथित रूप से मुसलमानों की ओर इशारा था.

12 जुलाई को इनक़लाब  ने एक ख़बर छापी जिसका शीर्षक था ‘मुल्क की आबादी में इज़ाफे के लिए मुसलमान ज़िम्मेवार नहीं हैं’, और जिसमें आदित्यनाथ के बयान की आलोचना की गई थी. अख़बार ने कहा कि ये समझना मुश्किल नहीं था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री क्या कहना चाह रहे थे.

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि ये कोई नई बात नहीं है कि मुसलमानों की आबादी को लेकर मुल्क में ख़ौफ पैदा करने की कोशिश की जा रही है. आदित्यनाथ की बात काटने के लिए अख़बार ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) की रिपोर्ट का भी हवाला दिया.

13 जुलाई को रोज़नामा  संपादकीय ने इस ओर ध्यान आकृष्ट किया, कि आज़ादी के बाद से मुसलमानों की आबादी उतनी नहीं बढ़ी, जितनी हिंदुओं की बढ़ी है.

भारत की मौजूदा आबादी 140 करोड़ से ज़्यादा है. 1947 में आज़ादी के समय हिंदुओं की कुल आबादी क़रीब 20 करोड़ थी, जो अब बढ़कर 100 करोड़ से अधिक हो गई है, यानी 75 सालों में हिंदुओं की आबादी पांच गुना बढ़ गई है. संपादकीय में कहा गया कि 1951 से 2020 तक, हिंदू आबादी में हर साल औसतन 1.14 करोड़ का इज़ाफा हुआ है.

उसी दिन,रोज़नामा  ने अपने पहले पन्ने पर एक मुस्लिम युवक की ख़बर छापी, जिसे उत्तर प्रदेश के मथुरा में धर्मपुरा नहर के पास कुछ युवकों ने कथित रूप से पकड़ लिया, और उससे ज़बर्दस्तीभारत माता की जय  औरजय हिंद  के नारे लगवाए. ख़बर में आगे कहा गया कि राजस्थान के उदयपुर में एक टेलर की हत्या की पृष्ठभूमि में, हमलावरों ने युवक को ‘ग़द्दार’ क़रार दे दिया.

मिशन तेलंगाना

12 जुलाई को सियासत  के संपादकीय में, 2023 के तेलंगाना असेम्बली चुनावों से पहले, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) प्रमुख के चंद्रशेखर राव, और भारतीय जनता पार्टी (बाजेपी) की प्रतिद्वंदिता के बारे में विस्तार से लिखा गया.

संपादकीय में लिखा गया कि जहां तक सियासी हलक़ों का ताल्लुक़ है, एक आम धारणा ये है कि केसीआर बीजेपी के साथ एक सीधी चुनावी टक्कर में हैं.

उसमें लिखा गया कि केसीआर लोगों को ये दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, कि असल मुक़ाबला उनकी पार्टी और बीजेपी के बीच है, और कांग्रेस मुक़ाबले में कहीं नहीं है. संपादकीय में एक पुरानी घटना का भी उदाहरण दिया गया, जिसमें केसीआर, बीजेपी पर हमला करने के लिए कथित रूप से पीएम नरेंद्र मोदी की एक पुरानी वीडियो दिखा रहे हैं.

13 जुलाई को रोज़नामा  ने अपने पहले पन्ने पर प्रमुखता से ख़बर छापी, कि मोदी ने झारखंड में 16,800 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाएं लॉन्च की हैं. उसने पूर्व हिमाचल प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष खीमी राम के कांग्रेस में शामिल होने की ख़बर को भी पहले पन्ने पर जगह दी, और इसे बीजेपी के लिए एक ‘बड़ा झटका’ क़रार दिया.

मोहम्मद ज़ुबैर पर मुक़दमा

ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर चल रहे मुक़दमे पर भी उर्दू प्रेस ने क़रीबी नज़र रखी. 12 जुलाई को इनक़लाब ने उसकी रिमाड को 14 दिन बढ़ाए जाने की छोटी सी ख़बर को अपने पहले पन्ने पर जगह दी.

अगले दिन, सहारा  ने ख़बर दी कि सीतापुर में ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज मामले में, उत्तर प्रदेश सरकार को जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है, और सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में ज़ुबैर की अंतरिम ज़मानत बढ़ा दी है. अख़बार ने कहा कि 2018 की एक ट्वीट को लेकर दिल्ली की अदालत में चल रही सुनवाई के बीच, ज़मानत बढ़ाया जाना तथ्य-चेकर के लिए एक राहत थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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