मध्य प्रदेश के तीन बार के सीएम शिवराज खुद को और पार्टी को किस नए जामे में पेश करें, ये बड़ी चुनौती है. हालांकि, चुनावी तैयारियों में भाजपा विपक्षी कांग्रेस से कोसों आगे दिख रही है.
नई दिल्ली: आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी का चेहरा कार्यकर्ता होगा, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के इस एक छोटे से वक्तव्य में मध्य प्रदेश के लिए बड़ा इशारा था. 15 साल से राज्य में सत्तासीन पार्टी को एंटी इन्कंबेंसी के गंभीर मसले से निकालने का गुरुमंत्र दे दिया गया था.
और भाजपा के मोदी काल की स्टाइल के अनुरूप ये काम चुनावों की घोषणा के बहुत पहले कर दिया गया. इस साल मई महीने में चुनावी तैयारियों को लेकर भोपाल के जंबूरी मैदान में भाजपा ने कार्यकर्ता महाकुंभ के आयोजन में एक तरह से अमित शाह ने विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी रणनीतियों का खुलासा कर दिया था.
उन्होंने कहा,‘आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी का चेहरा कार्यकर्ता होगा. आने वाला चुनाव कुशाभाऊ ठाकरे और राजमाता सिंधिया को समर्पित होगा. इसे संगठन के आधार पर लड़ा जाएगा. कार्यकर्ता इसका संकल्प लें. मप्र में 65 लाख कार्यकर्ताओं का डाटा है, ये पांच दिन भी प्रचार कर जनता तक पहुंच जाए तो कोई नहीं हरा सकता. सिर्फ जीत नहीं, विजय का मार्जिन इतना हो कि दुश्मन को चक्कर आ जाए.’
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साथ ही उन्होंने कहा कि भाजपा की सरकारों में एंटी इनकंबेंसी नहीं होती. हम सत्ता के लिए नहीं, सेवा के लिए आते हैं. वर्ष 2013 और 2018 में भी लोगों ने बोला था. 2023 में भी यही बोलेंगे कि एंटी इनकंबेंसी है. इससे कुछ नहीं होगा.
उन्होंने यह भी कहा कि मध्य प्रदेश में भाजपा अंगद के पैर की तरह है. दूरबीन से देखने पर भी कांग्रेस नहीं दिखाई देती. कांग्रेस के जो लोग राजा-महाराजा के साथ मैदान में उतर रहे हैं, उनसे डरने की जरूरत नहीं, भाजपा में बूथ का कार्यकर्ता ही उन्हें हरा देगा.
राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपने इस भाषण में एक तीर से कई निशाने साधे थे. सबसे पहले चुनाव में उन्होंने शिवराज की भूमिका बता दी. गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में भाजपा पिछला तीन चुनाव चेहरे (2003 उमा भारती और 2008 व 2013 शिवराज) के आधार पर लड़ रही थी लेकिन अमित शाह ने यह चुनाव किस आधार पर लड़ा जाएगा, साफ कर दिया. साथ ही विरोधियों के एंटी इनकंबेसी की बात को सिरे से खारिज कर दिया और यह भी बता दिया कि कार्यकर्ता ही इस चुनाव का हीरो होगा. आपको बता दें कि कार्यकर्ता को चुनावी चेहरा बताने का सफल फार्मूला भाजपा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश समेत दूसरे विधानसभा चुनावों में आजमा चुकी है.
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के इस वक्त 165 सदस्य हैं, राज्य में इस बार 28 नवंबर को मतदान है. इससे पहले के चुनावों 2008 में पार्टी के 143 और 2003 में 173 विधायक थे.
क्या है इस बार की चुनावी तैयारी?
इस बार भी पार्टी चुनाव तैयारियों में जोर-शोर से लगी हुई है. तीन बार से लगातार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज शिवराज सिंह चौहान जुलाई महीने से ही ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ कर रहे हैं. शुरुआती कार्यक्रम के हिसाब से मुख्यमंत्री 55 दिन राज्य में घूमकर 700 सभाओं के जरिए 230 विधानसभा सीटों में जनता से संपर्क कायम करना था. इसके लिए करीब ढाई करोड़ रुपये की लागत से दो स्पेशल गाड़ियां तैयार की गईं. लेकिन यह यात्रा अभी भी चल रही है और इसके जरिये मुख्यमंत्री जनता से संवाद कर रहे हैं.
इसके बाद भाजपा ने 21 अक्टूबर से एलईडी स्क्रीन, साउंड सिस्टम और अन्य उपकरणों से सुसज्जित 50 रथ रवाना करके ‘समृद्ध मध्य प्रदेश अभियान’ की शुरुआत की है. इस अभियान के अंतर्गत भाजपा रथों को पूरे राज्य में ले जाएगी और जनता से मध्य प्रदेश को समृद्ध बनाने के लिए सुझाव लेगी. इसके अलावा भाजपा अपने 15 साल के कार्यकाल के दौरान किए गए विकास कार्यों का प्रचार प्रसार भी करेगी. ये रथ कॉलेज परिसरों और सार्वजनिक स्थानों तक पहुंचेंगे. इसके अलावा, इच्छुक व्यक्ति फोन, एसएमएस और वाट्सएप के माध्यम से भी सुझाव दे सकते हैं. वहीं, प्रत्येक विधानसभा में सुझाव पेटी भी लगेगी. प्रत्येक विधानसभा में ‘एक चाय-एक राय’ संगोष्ठी आयोजित करके इसके माध्यम से समृद्ध मध्य प्रदेश पर चर्चा करके सुझाव लिए जाएंगे.
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इसके अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मध्य प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में कार्यकर्ताओं से लगातार संवाद कर रहे हैं. अमित शाह ने हाल के दिनों में भोपाल-होशंगाबाद संभाग के कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में हिस्सा लिया, रीवा, सतना, ग्वालियर व जबलपुर में सभाएं की.
भाजपा की चुनावी तैयारियों को लेकर पार्टी के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं,‘हमारा फोकस बूथ प्रबंधन को लेकर है. हर बूथ पर हमारे कार्यकर्ताओं की टीम है. बूथ के लेवल पर मतदाता सूची को लेकर पन्ना प्रमुखों की नियक्ति की गई है. साथ ही सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सऐप पर भी हम सक्रिय हैं. इन जगहों पर हमारी आधिकारिक उपस्थिति विपक्षी कांग्रेस की तुलना में कई गुना ज्यादा है. इसके अलावा मध्य प्रदेश में 65 हजार बूथों को हमने व्हाट्सऐप नेटवर्क के जरिए जोड़ रखा है.’
वहीं, भाजपा की तैयारियों को लेकर मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक गिरिजा शंकर कहते हैं,‘अगर हम मुख्य विपक्षी कांग्रेस और सत्ताधारी भाजपा के चुनावी तैयारियों को देखें तो भाजपा भारी पड़ती दिख रही है. कांग्रेस और भाजपा में बुनियादी फर्क यह है कि जहां भाजपा पांच साल चुनावी मोड में दिखती है वहीं कांग्रेस पांच महीने में ठीक ढंग से अपना चुनावी प्रचार बरकरार नहीं रख पाती है.’
एंटी इनकंबेंसी फैक्टर और आंतरिक कलह
मध्य प्रदेश की सत्ता पर भाजपा पिछले 15 सालों से काबिज है. लिहाजा स्वाभाविक तौर पर इस बार के चुनाव में उसे तीखे सत्ताविरोधी रुझान का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि पार्टी के नेता आधिकारिक तौर पर इससे इनकार कर रहे हैं लेकिन अंदरखाने इससे निपटने की रणनीति भी बना रहे हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स की एक खबर के अनुसार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने सभी विधायकों के कामकाज का आंतरिक सर्वे कराया है. जिसमें पाया गया है कि जनता ही नहीं, पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी लगभग 40 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ़ नाराज़गी है. अगर पार्टी इन्हें दोबारा टिकट देती है तो इनकी जीतने की संभावना कम ही है. खबर में पार्टी के शीर्ष नेताओं के हवाले से बताया गया है कि इस बार लगभग आधे मौजूदा विधायकों के टिकट काटे या उनके क्षेत्र बदले जा सकते हैं.
भाजपा ने इस रणनीति के तहत छत्तीसगढ़ में भी टिकट बांटे हैं. वहां भी भाजपा ने 90 विधानसभा सीटों में से 77 पर उम्मीदवार घोषित किए हैं. इनमें से 14 मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिया गया है.
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एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को लेकर राजनीतिक विश्लेषक लोकेंद्र सिंह कहते हैं,‘अभी चुनावी तैयारियों और प्रचार को लेकर भाजपा कांग्रेस पर भारी पड़ती दिख रही है लेकिन उसकी जीत इस बात से सुनिश्चित होगी कि वह एंटी इनकंबेंसी के असर को कितना और कैसे बेअसर कर पाती है. आजकल पांच साल शासन करने वाले दलों को सत्ताविरोधी लहर का शिकार होना पड़ता है, भाजपा तो मध्य प्रदेश की सत्ता पर 15 साल से कब्जा जमाए हुए है. तो इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि सत्ता विरोधी रुझान नहीं हैं. इस रुझान की चर्चा 2013 के विधानसभा चुनावों में भी थी. उस समय भाजपा ने बड़ी चालाकी से विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटकर इसको बेअसर कर दिया था क्योंकि लोगों की मुख्य नाराजगी स्थानीय नेताओं और विधायकों से होती है. इस बार अभी टिकट वितरण नहीं हुआ है तो कहा नहीं जा सकता है कि इससे निपटने की भाजपा की रणनीति क्या है. फिलहाल भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती एंटी इनकंबेंसी है.’
वहीं, भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल एंटी इनकंबेंसी और विधायकों के टिकट काटे जाने की खबरों से इनकार करते हैं. वे कहते हैं,‘मध्य प्रदेश में एंटी इनकंबेंसी नहीं है. मुख्यमंत्री के नाते शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता बरकरार है. वहीं टिकट बंटवारे के लिए सबसे पहले संगठन के अपने आंकलन हैं. इसके अलावा मध्य प्रदेश में कार्यकर्ताओं से विधिवत रायशुमारी की गई है. कार्यकर्ताओं ने प्रत्येक विधानसभा सीट के लिए तीन नाम सुझाए हैं. जिनमें से सबसे मजबूत उम्मीदवार का चयन किया जाएगा. तीसरा थर्ड पार्टी सर्वे और जनता के फीडबैक के आधार पर भी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की जाएगी.’
जहां तक बात आंतरिक कलह की है तो मध्य प्रदेश भाजपा में यह बड़े लेवल पर अभी तक खुलकर सामने नहीं आई है. जानकारों का कहना है कि इसका कारण मध्य प्रदेश के चुनावी अभियान में केंद्रीय नेतृत्व का हस्तक्षेप है. उनका कहना है कि जो भी नेता नाराज बताया जाता है उससे अमित शाह या दूसरे संगठन के नेता तुंरत मुलाकात कर मामले को सुलझा ले रहे हैं. अमित शाह के अलावा जैसे नेता इस काम में लगे हुए हैं.
हालांकि टिकट बंटवारे के बाद इसके खुलकर सामने आने की बात कही जा रही है. क्योंकि अभी से जिन विधायकों के टिकट कटने की आशंका है उनके समर्थकों ने विरोध की आवाज बुलंद करनी शुरू कर ही दी है.
क्या हैं भाजपा की मुश्किलें?
हाल ही में जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान करोड़ों के रथ पर सवार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जब सीधी जिले में एक सभा को संबोधित करना शुरू करते हैं तभी एक चप्पल उन पर फेंकी जाती है जो उनके बाजू में खड़े सुरक्षाकर्मी को लगती है. इस बीच भीड़ में ‘मुख्यमंत्री वापस जाओ’ और ‘शिवराज सिंह मुर्दाबाद’ के नारे भी लगते हैं.
चप्पल फेंकने वाले प्रदर्शनकारी अगस्त महीने में संसद द्वारा पारित किए गए अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम संशोधन विधेयक पर भाजपा के रुख का विरोध कर रहे थे. गौरतलब है कि एससी/एसटी एक्ट में हुए संशोधन का विरोध देश के कई हिस्सों में हुआ लेकिन चुनावी मुहाने पर खड़े मध्य प्रदेश में इसकी व्यापकता अधिक रही.
इसी तरह मध्य प्रदेश के मंदसौर में पिछले साल 6 जून, 2017 को हुए किसान आंदोलन में नीमच मंदसौर जिले के 6 किसान मारे गए थे. इसी के खिलाफ विरोध के रूप में किसानों ने इस साल भी एक से लेकर 10 जून तक दस दिन का आंदोलन किया. जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत दूसरे कई बड़े नेता भी शामिल हुए.
हम अगर मध्य प्रदेश में भाजपा की मुश्किलों की चर्चा करें तो ऐसे कई बड़े मसले सामने आते हैं. हालांकि भाजपा समर्थक इससे पूरी तरह इनकार करते हैं. वो कहते हैं कि एससी एसटी एक्ट का विरोध पूरे देश मे सवर्णों द्वारा किया गया था और इसमें सिर्फ भाजपा को नहीं बाकी सभी दलों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है. तो वहीं किसान आंदोलन को लेकर उनका तर्क है कि विपक्ष की लाख कोशिशों के बावजूद प्रदेश के एक हिस्से के अलावा कही और नहीं फैल पाया.
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वहीं जानकारों का कहना है कि केंद्र में मोदी सरकार होने का नुकसान भी मध्य प्रदेश में भाजपा को उठाना पड़ रहा है क्योंकि अब वह किसी ‘मनमोहन सिंह’ को राज्य के साथ भेदभाव करने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा पा रही है. किसानों के लिए राहत देने की बात हो या एससी एसटी एक्ट को लेकर जो भी फैसला लिया गया उसमें केंद्र की बड़ी भूमिका रहती है. तो भाजपा को इन तमाम दिक्कतों के साथ चुनाव में जाना है.
वहीं, मध्य प्रदेश में भाजपा की मुश्किलों पर वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं, ‘मध्य प्रदेश में सबसे पहले भाजपा के सामने मज़बूरी यह है कि उन्हें पूरा दांव शिवराज सिंह पर ही खेलना है. दरअसल मध्य प्रदेश में भाजपा पिछले 15 सालों से सत्ता में है. पिछले 13 सालों से शिवराज गद्दी पर बैठे हुए हैं. ऐसे में जनता के बीच में वादे करने का समय तो है नहीं. उसे पिछले तीन कार्यकालों में जो प्रदर्शन रहा है उसी के आधार पर वोट मांगना है. पिछले दिनों जिन भी राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए वहां मामला मोदी बनाम विपक्षी दल किया गया, लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसा करना संभव नहीं है. इसके चलते भाजपा को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.’
हालांकि जानकारों का कहना है कि शिवराज सिंह ने बहुत सारी योजनाएं चला रखी हैं. जीवन से मृत्यु तक के 16 हिंदू संस्कारों को लेकर उन्होंने योजनाएं बना रखी हैं. लेकिन उनका सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो रहा है. साथ ही राज्य में व्यवसाय नहीं है. ढेर सारे एमओयू साइन होने के बाद भी औद्योगिक क्षेत्र में बेहतरी के संकेत नहीं मिल रहे हैं. युवाओं के पास नौकरियां नहीं हैं. जातीय संघर्ष और महिलाओं के उत्पीड़न की खबरें आम हैं. वहीं कांग्रेस भी इस बार भाजपा के परंपरागत सॉफ्ट हिंदुत्व का फॉर्मूला आजमा रही है. मध्य प्रदेश में सरकार बनने पर कांग्रेस ने 23 हज़ार पंचायतों में गोशाला निर्माण की घोषणा की है. राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान मंदिर जा रहे हैं. समर्थक उन्हें कभी राम भक्त तो कभी शिवभक्त बता रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं, ‘इस बार कांग्रेस ने भी भाजपा को आसान मौके नहीं दिए हैं. सबसे पहले तो भाजपा ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं घोषित किया है जिससे भाजपा तीखे हमले नहीं कर पा रही है. जैसे अगर दिग्विजय सिंह उम्मीदवार होते तो भाजपा का नारा होता, भागो भागो राजा आया या श्रीमान बंटाधार. ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी लेकर भाजपा पैलेस वर्सेस पीपुल का नारा देती थी और कहती है कि कांग्रेस राजा महाराजाओं की पार्टी है. या फिर कमलनाथ जिन्हें वो धनवान लोगों का प्रतिनिधि बताती है. लेकिन ऐसा इस बार नहीं हो पा रहा है. साथ ही राहुल गांधी ने धर्म का कार्ड खेलकर उनको चुनौती ही दी है. मध्य प्रदेश में हिंदू बहुसंख्यक हैं और लोग धार्मिक रूप से संवेदनशील हैं. ऐसे में रामभक्त या शिवभक्त राहुल का मज़ाक भी नहीं उड़ाया जा सकता है. तो यहां भी भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ रही हैं.’
15 साल शासन में रहने के बाद लोगों को अपने लिए वोट देने के लिए अपने को और पार्टी को किस नए जामे में पेश करें ये अपने आप मे एक बड़ी चुनौती है.