नई दिल्ली: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ सोमवार की बैठक राज्य के राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गई है. महाराष्ट्र के बाद अब गठबंधन सरकार द्वारा शासित एक और राज्य राजनीतिक उथल-पुथल के बीच फंसा नजर आ रहा है.
मुख्यमंत्री सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं. वह अपने खिलाफ लगाए गए भाजपा के आरोपों की वजह से ऑफिस फॉर प्रोफिट मामले में मंगलवार को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के समक्ष पेश होने के लिए दिल्ली में थे.
भाजपा का कहना है कि आधिकारिक तौर पर शाह और सोरेन के बीच की मुलाकात सामान्य नहीं थी.
हालांकि यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब झामुमो इस बात को लेकर असमंजस में है कि क्या उसे भाजपा के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन करना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ राज्य में कांग्रेस के साथ उसके गठबंधन में दरार आने की चर्चाओं का बाजार भी गर्म है.
विपक्षी दलों के एक ग्रुप ने संयुक्त रूप से झारखंड से आने वाले पूर्व केंद्रीय वित्त और विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है. लेकिन भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के एक आदिवासी उम्मीदवार, झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को मैदान में उतारने के फैसले ने झामुमो को उसके आदिवासी समर्थन आधार को देखते हुए मुश्किल में डाल दिया है.
भाजपा के लिए झारखंड के आदिवासी समुदायों के समर्थन की कमी के कारण 2019 के विधानसभा चुनाव में हार के रूप में देखा जाता है. वह अब अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के लिए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार मुर्मू पर फोकस कर रही है. साथ ही साथ सोरेन सरकार के कथित भ्रष्टाचार को लोगों के सामने लाकर उनके आदिवासी समर्थक रुख को एक दिखावा के रूप में ‘उजागर’ करने में लगी है.
झारखंड में झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने 2019 में आदिवासी बेल्ट में 28 में से 25 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा दो सीटों पर दावा करने में सफल रही. झारखंड में 81 विधानसभा सीट हैं जिसमें से झामुमो के 30, कांग्रेस के 16 और भाजपा के 25 विधायक हैं.
झारखंड के बीजेपी प्रवक्ता प्रतुल शाह देव ने दिप्रिंट को बताया, ‘जहां तक उनके आदिवासी समर्थक रुख का सवाल है, झामुमो का पर्दाफाश हो चुका है.’
वह कहते हैं, ‘उनकी पूरी राजनीति आदिवासी मुद्दों के इर्द-गिर्द है. जब देश अपना पहला आदिवासी राष्ट्रपति बनाने जा रहा है, तो उनका समर्थन अनायास ही आना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ऐसा लगता है कि झामुमो की आदिवासी और उनके उत्थान की परिभाषा सोरेन परिवार तक ही सीमित है. जहां तक गृह मंत्री से मुलाकात का सवाल है, यह अक्सर होता रहता है और इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं सोचा जाना चाहिए…. अगर वे भाजपा के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन करते हैं, तो भी झामुमो बेनकाब हो जाता है’
दिप्रिंट से बात करते हुए झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि शाह के साथ सीएम की बैठक को लेकर अनावश्यक रूप से बहुत से कयास लगाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘चूंकि सीएम चुनाव आयोग के समक्ष पेश होने के लिए दिल्ली में हैं, इसलिए उन्हें अमित शाह जी से मिलने का मौका मिल गया. चुनाव आयोग और उच्च न्यायालय का मामला कानूनी मसले हैं. इन मामलों में गृह मंत्रालय क्या करेगा?’
भाजपा विधायकों ने फरवरी में सोरेन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा था कि सीएम ने पद पर रहते हुए रांची के अंगारा ब्लॉक में खुद को खनन लाइसेंस जारी किया था. भाजपा के पूर्व मंत्री राज्यपाल रमेश बैस ने इस मामले को चुनाव आयोग के पास भेजा था. चुनाव आयोग की सिफारिश के आधार पर सोरेन की अयोग्यता पर फैसला किया जाएगा. झारखंड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की गई जिसमें खनन आवंटन में कथित अनियमितताओं के मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों से जांच कराने की मांग की गई है.
भट्टाचार्य ने कहा, ‘(बैठक के दौरान) झारखंड के सीएम ने गृहमंत्री से अगली जनगणना में सरना कोड को धर्म कॉलम में शामिल करने का भी अनुरोध किया. लंबे समय से हमारी यही मांग रही है.’
झारखंड में आदिवासी समूह ‘सरना’ को एक अलग धर्म कोड के रूप में शामिल करने के लिए दो दशकों से अधिक समय से आंदोलन कर रहे हैं.
झामुमो महासचिव ने यह भी कहा कि अभी तक पार्टी ने यह तय नहीं किया है कि वह राष्ट्रपति पद के लिए किस उम्मीदवार का समर्थन करेगी. उन्होंने कहा, ‘अभी भी फैसला लेने के लिए समय है.’
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झामुमो-कांग्रेस गठबंधन में दरार
बैठक को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना गया क्योंकि झारखंड उन राज्यों में से एक है जहां सत्तारूढ़ झामुमो के साथ कांग्रेस गठबंधन सहयोगी है. महाराष्ट्र के बाद एक अन्य राज्य जिसमें कांग्रेस सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है. महाराष्ट्र में कथित तौर पर भाजपा की वजह से उनके गठबंधन की सरकार राजनीतिक उथल-पुथल का सामना कर रही है.
महाराष्ट्र में पार्टी नेतृत्व के खिलाफ शिवसेना के लगभग 40 विधायकों के विद्रोह ने शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस से बनी महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन सरकार को अस्थिर करने की धमकी दी है.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि एक बार जब पार्टी महाराष्ट्र को जीत लेगी, तो ध्यान पूरी तरह से झारखंड पर केंद्रित हो जाएगा. फिलहाल तो राज्य नेतृत्व से सरकार की विफलताओं को ‘आक्रामक रूप से’ उजागर करने के लिए कहा गया है.
सोरेन के साथ झामुमो-कांग्रेस गठबंधन में पहले से ही दरारें आती नजर आ रही हैं. पिछले महीने झामुमो ने राज्यसभा सीट के लिए अपने सहयोगी दल की मांग को खारिज कर दिया और इसके बजाय अपना खुद का उम्मीदवार महुआ माजी को मैदान में उतारा था.
वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए हमारे पास केवल दो साल बचे हैं, इसलिए हम खुद कोई कदम उठाने के बजाय, अपने आप सामने आने वाली चीजों पर ध्यान केंद्रित करेंगे. इस मामले में सोरेन को ही तय करना होगा कि क्या करना है. भ्रष्टाचार के आरोपों ने आदिवासियों के बीच उनकी छवि को ही नुकसान पहुंचाया है. गठबंधन भी अस्थिर दिख रहा है. और अगर झामुमो भाजपा के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन करता है तो यह और कमजोर हो जाएगा.’
भाजपा के झारखंड अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा, ‘हम अपने मुद्दे पर आधारित विरोध और आंदोलन जारी रखेंगे. जहां तक इस सरकार का सवाल है, वे कई मामलों में पूरी तरह विफल रही हैं – चाहे भ्रष्टाचार में उसका लिप्त होना हो, उनकी गरीब विरोधी नीति हो या विकास विरोधी एजेंडा. हम राजनीतिक स्तर पर , जमीनी स्तर पर और यहां तक कि न्यायपालिका में भी अपना आंदोलन जारी रखेंगे.’
झारखंड में राजनीतिक गठजोड़ की संभावनाओं पर प्रकाश ने कहा कि वे मौजूदा समय में विपक्ष में हैं और राजनीति में भविष्यवाणी करना मुश्किल है.
भाजपा प्रवक्ता देव ने कहा, ‘कांग्रेस अंत तक झामुमो से जुड़ी रहेगी क्योंकि यह उन कुछ राज्यों में से एक है जहां उसकी मौजूदगी है. इस तथ्य के बावजूद है कि झामुमो ने उन्हें किसी भी नीतिगत फैसले में विश्वास में नहीं लिया है.’
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गठबंधन में बदलाव संभव?
झारखंड के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि राज्य में कई कांग्रेस सदस्य झामुमो से अलग होना चाहते हैं. उन्होंने कहा ‘कई कांग्रेस विधायक हैं जो गठबंधन और झामुमो के साथ हुए सौदे से नाखुश हैं. राज्यसभा में गड़बड़ी के बाद हालात बद से बदतर हो गए और कांग्रेस के कई नेता गठबंधन तोड़ने और झामुमो को बाहरी समर्थन देने के पक्ष में हैं’
कांग्रेस के एक अन्य नेता के अनुसार, यह टकराव नया नहीं है और समय के साथ और तेज हो गया है.
उन्होंने कहा, ‘आपने देखा कि राज्यसभा चुनाव के दौरान क्या हुआ था. सोमवार की बैठक और सोरेन के हाव-भाव से पता चलता है कि वह लड़ने के मूड में नहीं हैं. जहां तक गठजोड़ का सवाल है, हम कुछ बदलाव देख सकते हैं.’
यह पूछे जाने पर कि क्या झामुमो झारखंड में गठबंधन सरकार को गिराने को लेकर आशंकित है, जहां मुख्यमंत्री कानूनी जटिलताओं में उलझे हुए हैं, भट्टाचार्य ने कहा, ‘भाजपा के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है. वे किसी भी नैतिकता का पालन नहीं करते हैं. इसलिए, (सरकार गिराने की) आशंका हमेशा बनी रहती है. लेकिन हमारा गठबंधन मजबूत है और सरकार को तत्काल कोई खतरा नहीं है.’
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