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Friday, 19 April, 2024
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मोदी के 8 साल ने दिखाया, शासन की नयी शैली क्या होती है और सियासी छवि कैसे गढ़ी जाती है

बहुसंख्यकों की भावनाओं के बूते चुनावी जीत हासिल करके भाजपा सरकार ने अपने रिपोर्ट-कार्ड पर टांक लिये सलमे-सितारे, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उभरे मार्केटिंग के महारथी.

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नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपने आठ साल पूरे कर लिये हैं. अब तक कायम रही उनकी अजेयता के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है. अपनी कई कामयाबियों और खामियों के साथ मोदी ने अपनी राजनीति के बारे में चर्चा करने का काफी मसाला जुटा दिया है.

प्रधानमंत्री मोदी मार्केटिंग के महारथी हैं. उनकी मार्केटिंग को तिकड़म का नरम रूप कहा जा सकता है, इसमें आप किसी साधारण चीज में अविश्वसनीय मूल्य जोड़ देते हैं या किसी पुराने आइडिया पर नया  मुलम्मा चढ़कर उसे नया बताकर चलाने की कोशिश करते हैं. मोदी को दोनों काम करने के लिए जाना जाता है. चाहे वह नोटबंदी को एक ऐतिहासिक फैसले के रूप में पेश करना हो, जिसके तहत विदेशों में जमा किए गए काले धन को वापस लाने का दावा किया गया, या दोपहर के भोजन को ‘पीएम पोषण’ के नाम से पेश करना हो, या 1999 में शुरू किए गए ‘निर्मल भारत अभियान’ को ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के रूप में पेश करना हो, या 2011-14 की नेशनल मैनुफैक्चरिंग पॉलिसी को ‘मेक इन इंडिया’ के रूप में प्रस्तुत करना हो, या 2006-15 के नेशनल ई-गर्वनेंस को ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम नाम देना हो, या 2005-14 के ‘नो फ्रिल्स एकाउंट्स’ को जन धन योजना के रूप में लागू करना हो. ‘पीआर’ (जन संपर्क अभियान) और इवेंट करने के अपने कौशल का मोदी ने भरपूर इस्तेमाल किया.

मौलिकता में महारत  

लेकिन मोदी सरकार को मौलिकता का श्रेय भी दिया जा सकता है. इसमें से अधिकांश तो उनकी पार्टी के वैचारिक गुरु आरएसएस द्वारा पेश विचारों की देन है और भाजपा इनमें से लगभग हर मामले में कामयाब रही है. बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भेदभावमूलक संवाद ने तीन तलाक और नागरिकता संशोधन कानून जैसे धर्म प्रेरित कानून लाने की विधायी संभावना को मजबूत किया. अब बहुचर्चित समान नागरिक संहिता का परीक्षण उत्तराखंड में किया जाने वाला है.


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इन संवादों के कारण अयोध्या विवाद के लंबे संघर्ष का फल हासिल हो सका, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस ‘कानून का गंभीर उल्लंघन’ था. फिर भी सीबीआइ की विशेष अदालत ने इस उल्लंघन के सभी 32 दोषियों को बरी कर दिया. इस फैसले का इस्तेमाल अब काशी, मथुरा, और दिल्ली में नयी याचिकाएं दर्ज करने के लिए किया जा रहा है ताकि जिन मस्जिदों के बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें मंदिर तोड़कर बनाया गया था उन मस्जिदों पर दावा किया जा सके. इन सबको भाजपा की ‘उपलब्धियां’ बताया जा रहा है क्योंकि आरएसएस इन सबकी मांग आज़ादी के बाद से ही उठता आ रहा है और ये अब मोदी के राज में पूरी की जा सकी हैं.

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भाजपा के राज में आरएसएस की एक और मूल मांग पूरी हुई वह है अनुच्छेद 370 का रद्द किया जाना, जिसके कारण कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल था. इसे मोदी के मुकुट का सबसे चमकता नगीना माना जा रहा है. 1990 से कश्मीर में कानून-व्यवस्था की जो भयावह स्थिति रही है उसके मद्देनजर देखा जाए तो जम्मू और कश्मीर और लद्दाख को दो अलग केंद्रशासित प्रदेशों में बदलने और इसके बाद जम्मू-कश्मीर में परिसीमन करने के बावजूद कोई नुकसान न होना, कोई हिंसक विरोध न होना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई निंदा न किया जाना सचमुच में एक उपलब्धि ही मानी जाएगी.

वास्तव में, भारत के राजनयिक रिश्ते पहले कभी इतने अच्छे नहीं रहे, चाहे वह क्वाड को मजबूत बनाने का मामला हो या अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, और आसियान देशों के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए रणनीति बनाना हो. मोदी के राज में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) भी शानदार रहा है क्योंकि 2021-22 में भारत में अब तक का सबसे बड़ा वार्षिक एफडीआइ (83.57 अरब डॉलर) आया, जिसने मनमोहन सिंह के राज में आए औसत एफडीआइ के दोगुने के बराबर था.

लेकिन कुल मिलाकर भाजपा अपने रिपोर्ट–कार्ड पर वैचारिक मसलों के मामले में सुनहरे सितारे टांकने में सफल रही है, क्योंकि बहुसंख्यकों की भावनाएं हमेशा उसकी चुनावी जीत का आधार रही हैं. वैसे, वह नीति निर्धारण में विफल रही है. मोदी सरकार के रिपोर्ट-कार्ड पर अब तक के सबसे बड़े धब्बे ये रहे— नये कृषि कानून जिन्हें उसे वापस लेना पड़ा; भूमि अधिग्रहण अध्यादेश; और आधा-अधूरा जीएसटी कानून, जिसने लोगों के मन में असंतोष पैदा किया क्योंकि जीएसटी स्लैब और जींसों पर टैक्स बिलकुल बेबुनियाद थे. नारी सशक्तीकरण के लिए उज्ज्वला योजना और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान जैसे बड़े प्रयासों के बावजूद भारत सरकार ने सैनीटरी पैड को लक्जरी का सामान बताकर उस पर टैक्स लगाने की गलती की. कोविड-19 महामारी और रूस-यूरेन युद्ध से काफी पहले बढ़ी बेरोजगारी दर, फ्युल की कीमतों, और महंगाई जैसे मसलों पर भी भाजपा को काफी जन असंतोष का सामना करना पड़ा.

कई सवाल

इसी तरह, भाजपा अपनी सामाजिक छवि बनाए रखने में विफल रही है. पिछले दशक में बलात्कार के ऐसे कई मामले सामने आए जिनमें भाजपा के सदस्य मुख्या आरोपी थे, चाहे वह कुलदीप सिंह सेंगर हो या चिन्मयानंद (दोनों बरी), या विजय जॉली, अनिल भोसले, वेंकटेश मौर्य, रवींद्रनाथ त्रिपाठी, या निहाल चंद हों. भाजपा इन सबके मामले में चुप्पी साढ़े रही और महिलाओं की असुरक्षा पर कोई टिप्पणी नहीं की. वास्तव में, भाजपा के दो नेता चौधरी लाल सिंह, और चंदर प्रकाश गंगा ‘हिंदू एकता मंच’ की उस रैली में शामिल हुए थे जो कठुआ बलात्कार और हत्याकांड के आरोपियों के समर्थन में निकाली गई थी.

कोविड के कारण अचानक लगाए गए लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के एकमुश्त विस्थापन, महामारी की दूसरी लहर में वाइरस से ग्रस्त रोगियों के परिजनों का ऑक्सीज़न सिलिंडर के लिए दर-दर भटकने, और आंदोलनकारी किसानों की मौतों की तस्वीरों ने मोदी सरकार के आठ साल दौर की अविस्मरणीय छवि बना दी. हालांकि मोदी के करिश्मे ने भाजपा को उत्तर प्रदेश समेत चार राज्यों में एक बार फिर जीत दिला दी और उनके खिलाफ तमाम आलोचनाओं की धार भोथरी कर दी, लेकिन बहुसंख्यकों में उनके ठोस आधार में जो छोटी-सी थरथराहट उभर रही है उसकी पूरी तरह अनदेखी नहीं की जा सकती.

इसमें पेगासस घोटाले, और भारत की जमीन पर चीन की घुसपैठ के मामले को और जोड़ दीजिए तो आप पाएंगे कि मोदी सरकार को कई सवालों के जवाब देने होंगे.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखिका एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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