नई दिल्ली: नरेश और राकेश टिकैत के नेतृत्व वाले भारतीय किसान यूनियन – (बीकेयू) – के इस रविवार दो-फाड़ होने के एक दिन बाद इस संगठन के भीतर मौजूद राजनीति विभाजन इसकी प्रमुख वजह बनकर उभरी है.
अलग हुए गुट ने इस विभाजन के लिए मूल संगठन के ‘राजनीतिकरण’ और बीजेपी के विरोध में खड़ी पार्टियों के ‘खुला समर्थन’ के साथ-साथ टिकैत के ‘तानाशाही भरे नियंत्रण’ को भी दोषी ठहराया. मगर, यूनियन के सूत्रों ने दावा किया कि बागी समूह में शामिल लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं और उनकी ‘बीजेपी के प्रति सहानुभूति’ के कारण यह टूट हुई.
1987 में स्थापित बीकेयू, 2020 में मोदी सरकार द्वारा लाए गए और अब निरस्त कर दिए गए कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर तक चले किसानों के विरोध का नेतृत्व करने वाले मुख्य संगठनों में से एक था. इस संगठन में यह ग्यारहवां विभाजन है.
यह नया समूह, बीकेयू (अराजनैतिक), लखनऊ में बनाया गया और राजेंद्र मलिक – गठवाला खाप (84 गांवों का एक समूह) के चौधरी – इसके प्रमुख बने हैं . यह विभाजन पूर्व बीकेयू अध्यक्ष – नरेश और राकेश टिकैत के पिता – महेंद्र सिंह टिकैत, जिनकी 2011 में मृत्यु हो गई थी, की पुण्यतिथि के साथ ही हुआ.
पूर्वी यूपी के किसान नेता राजेश सिंह चौहान, जिन्होंने टिकैत के नेतृत्व वाली संगठन के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया था, को नए समूह का अध्यक्ष बनाया गया है.
बीकेयू के पूर्व राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक, जो अलग हुए गुट के साथ इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में समूह में शामिल हुए हैं. उन्होंने आरोप लगाया, ‘बीकेयू एक गैर-राजनीतिक संगठन था, जो किसानों के अधिकारों के लिए लड़ रहा था. इसने तीन (विवादास्पद) कृषि कानूनों पर किसानों के विरोध का नेतृत्व भी किया लेकिन विधानसभा चुनावों से पहले (उत्तर प्रदेश और पंजाब में) इसने एक नया राजनीतिक चरित्र ले लिया और एक पार्टी का पक्ष लेते हुए, दूसरों का विरोध किया.’
मल्लिक ने कहा, ‘हम (बीजेपी के खिलाफ) विपक्ष का हिस्सा बन गए. हम केजरीवाल के साथ बैठते हैं. जब हम बंगाल गए तो हमने ममता (मुख्यमंत्री ममता बनर्जी) का साथ दिया. तेलंगाना में हमने मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का पक्ष लिया. यूपी में हमने समाजवादी पार्टी और रालोद का साथ दिया.’
उन्होंने कहा, ‘हमने खुले तौर पर (भाजपा के खिलाफ) विपक्षी दलों को समर्थन की घोषणा की, जो कि बीकेयू जैसे संगठन के लिए अच्छा नहीं था. यही बंटवारे की मुख्य वजह थी.’
इधर राजेंद्र मलिक ने आरोप लगाया कि ‘बीकेयू टिकैतों का एक ‘जेबी’ संगठन (उनके द्वारा नियंत्रित) बन गया था – नरेश टिकैत इसके अध्यक्ष थे, उनकी पत्नी महिला शाखा की प्रमुख हैं, उनके बेटे गौरव युवा शाखा के प्रमुख हैं, भाई राकेश बीकेयू के प्रवक्ता हैं. तो अन्य नेता क्या करेंगे?’
उन्होंने कहा, ‘उनके इसी तानाशाही व्यवहार के कारण संगठन में विभाजन हुआ.’
हालांकि, बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने संगठन में इस विभाजन के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया.
टिकैत ने कहा, ‘उन्होंने (भाजपा ने) तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध के दौरान उनकी ताकत देखी है और भाजपा किसान संघ को विभाजित करने की कोशिश कर रही है. कुछ दिनों में यह साफ हो जाएगा कि इसके (विभाजन के) पीछे कौन था? लेकिन, हमेशा याद रखें कि आंदोलन जनता ने किया था, नेताओं ने नहीं.’
उन्होंने आगे कहा: ‘हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं जो किसानों के हितों के लिए काम करते हैं. हम इन नेताओं को किसानों के वास्ते एकजुट रहने के लिए मना रहे थे लेकिन मुझे लगता है कि उन पर दबाव था. सरकार (केंद्र सरकार) ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की हमारी मांग को पूरा नहीं किया और अब वे किसान संगठनों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं.‘
बीकेयू के सूत्रों ने यह भी आरोप लगाया कि अलग हुए समूह के लोगों ने इस साल के यूपी और पंजाब चुनावों में विधानसभा टिकट की उम्मीद लगा रखी थी. जब ऐसा नहीं हुआ तो इससे उपजे असंतोष ने संगठन में विभाजन को अंजाम दिया.
बीकेयू के एक नेता ने उनका नाम न छापने की गुजारिश के साथ कहा, ‘धर्मेंद्र मलिक, जो इस विभाजन के पीछे के मुख्य शख्स हैं, बुढाना (यूपी में) से विधानसभा चुनाव का टिकट पाने की उम्मीद कर रहे थे. उन्होंने चुनाव से पहले अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी प्रमुख) से भी मुलाकात की थी लेकिन चुनाव लड़ने के मुद्दे पर यूनियन के भीतर वैचारिक मतभेद था.’
इस बीकेयू नेता का कहना था, ‘मलिक के नेतृत्व वाला गुट इस बात से नाखुश है कि टिकैत ने उनके और कुछ अन्य लोगों के लिए पार्टी के टिकट के लिए जोर भी नहीं लगाया. यूनियन के कुछ अन्य नेताओं ने भी नरेश और राकेश टिकैत का उन पर भारी पड़ना महसूस किया.’
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इस विभाजन के निहितार्थ
बीकेयू के लिए विभाजन कोई नई बात नहीं है. साल 2001 में ही यूनियन की युवा शाखा के अध्यक्ष, ऋषिपाल अंबावता, ने बीकेयू छोड़ दी थी और बीकेयू-अंबावता नाम से एक और संगठन बना लिया था.
इसी तरह, 2011 में, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक गुट बीकेयू से अलग हो गया था और उसने भारतीय किसान संघ-भानु का गठन किया था. 2013 में गौतमबुद्धनगर में बीकेयू के जिलाध्यक्ष रहे श्योराज सिंह बीकेयू-भानु में शामिल हुए. बाद में उन्होंने 2017 में अपना खुद का संगठन, बीकेयू-लोकशक्ति, बना लिया.
साल 2015 में, एक अन्य प्रमुख नेता, हरपाल बिलारी ने बीकेयू छोड़ दी और बाद में बीकेयू- (रियल) का गठन किया.
फिर भी रविवार को हुआ विभाजन अहम है क्योंकि इसकी वजह से किसानों के आंदोलन के बाद टिकैत के तहत बीकेयू द्वारा अपनाए गए ‘भाजपा विरोधी रुख’, जिसने यूपी के कुछ हिस्सों में पार्टी के प्रदर्शन को कुछ हद तक प्रभावित किया था, के कमजोर पड़ने की संभावना है.
किसानों के आंदोलन के बाद हुए विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ जाट मतदाताओं की लामबंदी देखी गई थी. बावजूद इसके कि चुनाव से पहले विवादित कृषि कानूनों को वापस ले लिया गया था.
भाजपा पर टिकैतों के द्वारा बनाए गए दबाव – अन्य मांगों के साथ एमएसपी की मांग के साथ- से कुछ सीटों पर पार्टी को तगड़ा झटका लगा. हालांकि बीजेपी यूपी में सत्ता में लौटने में कामयाब रही मगर इससे सपा की सीटों में बढ़ोतरी करने में मदद मिली.
यहां तक कि राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), जिसने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीती थी, ने भी इस बार पश्चिमी यूपी में आठ सीटें जीतीं.
बीकेयू के सूत्रों ने दावा किया कि नया धड़ा बीजेपी का समर्थन करने वाला है.
एक दूसरे बीकेयू नेता ने कहा, ‘यहां तक कि जब हरियाणा और यूपी के तमाम किसान कृषि कानूनों को निरस्त करने पर एकजुट थे, तब भी राजेंद्र मलिक (नए समूह के अध्यक्ष) बीजेपी के साथ थे और विरोध को ख़त्म करने की वकालत कर रहे थे.‘
इस नेता ने आरोप लगाया: ‘जब अमित शाह ने जनवरी में यूपी से दिल्ली तक जाट नेताओं से मुलाकात की तो वह (मलिक) जाट बेल्ट में बीजेपी का समर्थन करने के लिए (भाजपा नेता) संजीव बालयान के साथ थे. उन्होंने विरोध प्रदर्शन के दौरान टिकैत द्वारा बुलाई गई मुजफ्फरनगर रैली में भी शिरकत नहीं की और चुनाव से पहले भाजपा विधायक उमेश मलिक का खुलकर समर्थन किया.’
सूत्रों ने दावा किया कि उमेश मलिक पर आंदोलनकारी किसानों द्वारा पिछले साल किये गए एक कथित हमले – उन्होंने कथित तौर पर इस राजनेता की कार पर पत्थर फेंके थे – ने बीकेयू में दरार को और चौड़ा कर दिया.
सूत्रों ने कहा कि कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में धर्मेंद्र मलिक की भागीदारी के बावजूद उनकी कथित राजनीतिक सहानुभूति एक और कारक था. सूत्रों के अनुसार, वह उस ‘किसान समृद्धि आयोग’ के सदस्य थे जो कि यूपी में पहली योगी आदित्यनाथ सरकार के दौरान किसानों की आय बढ़ाने के लिए बनाया गया था.
बीकेयू के एक तीसरे नेता ने कहा, ‘यूपी में योगी आदित्यनाथ की सत्ता में वापसी के बाद से ही राज्य की बीजेपी सरकार चुनाव से पहले सपा को खुला समर्थन देने के लिए टिकैतों को सबक सिखाना चाहती थी. मलिक (राजेंद्र) पहले से ही उनके समर्थक थे और एक हल्के दबाव ने मनचाहा नतीजा (विभाजन का) प्राप्त कर लिया.’
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