चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बीते दिनों जब ये ऐलान किया कि वे ‘जन सुराज’ के लिए ‘शुरुआत बिहार से’ करेंगे, वो भी 2 अक्टूबर से, तब से बिहार की राजनीति और महात्मा गांधी चर्चा के केंद्र में आ गए हैं.
अपनी सोच का खांका खींचते हुए गुरुवार को उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि महात्मा गांधी की जयंती यानी कि 2 अक्टूबर को पश्चिमी चंपारण में गांधी आश्रम से 3 हजार किमी की पदयात्रा शुरू करेंगे.
हालांकि गुरुवार को जब पटना में प्रशांत किशोर बोल रहे थे तो एक चीज़ जो उभरकर आई, वो ये कि महात्मा गांधी की सोच का इस्तेमाल कर वो बिहार में नई शुरुआत करने जा रहे हैं. किशोर जहां बैठे थे, उसके पीछे महात्मा गांधी का एक कथन लिखा था- द बेस्ट पॉलिटिक्स इज़ राइट एक्शन. यानी एकबार फिर से महात्मा गांधी का नाम लेकर नई राजनीतिक पार्टी की शुरुआत होने जा रही है.
लेकिन सवाल उठता है कि भारत में जो कोई भी नई शुरुआत करने की सोचता है वो महात्मा गांधी के विचारों को ही अपना केंद्रबिंदु क्यों बनाता है. क्या ये वर्तमान समय में गांधी की प्रासंगिकता का नतीजा है या हर कोई इस बात को समझ गया है कि गांधी के बिना इस देश में राजनीतिक तौर पर सफल नहीं हुआ जा सकता.
और यही बात प्रशांत किशोर की नई शुरुआत से भी निकलकर आती है और जन-सुराज (सुशासन) गांधी के जन-स्वराज से काफी मेल खाता हुआ भी दिखता है, जिसकी परिकल्पना गांधी ने 1909 में लिखी अपनी किताब ‘हिंद स्वराज‘ में की थी. उनका मानना था कि स्वराज एक पवित्र साध्य है इसलिए उसे प्राप्त करने के साधन भी पवित्र होने चाहिए.
किशोर ने जिस सुराज शब्द की बात की है वो तब चर्चा में आया था जब पूर्व केंद्रीय मंत्री अनिल माधव दवे ने शिवाजी और सुराज नाम से एक किताब लिखी थी जिसकी भूमिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखी है. सुराज का मतलब होता है सुशासन. लेकिन दिलचस्प संयोग है कि बिहार में नीतीश कुमार को सुशासन बाबू कहा जाता है और किशोर भी जिस नई सोच के साथ आए हैं वो भी सुशासन की ही राह है.
My quest to be a meaningful participant in democracy & help shape pro-people policy led to a 10yr rollercoaster ride!
As I turn the page, time to go to the Real Masters, THE PEOPLE,to better understand the issues & the path to “जन सुराज”-Peoples Good Governance
शुरुआत #बिहार से
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) May 2, 2022
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भाजपा, केजरीवाल और अब प्रशांत किशोर
हालांकि किशोर पहले नहीं हैं जिन्होंने राजनीतिक विचार के लिए गांधी से प्रेरणा ली हो. दिलचस्प बात है कि 1980 में जब भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ था, उस समय भाजपा ने अपने संविधान में गांधीवादी समाजवाद की बात की थी.
वहीं केजरीवाल ने जब आम आदमी पार्टी बनाई उससे कुछ समय पहले उन्होंने स्वराज नाम से एक किताब लिखी जिसमें उन्होंने भी गांधी से प्रेरणा लेने और उनके सिद्धांतों के आधार पर ही चलने की बात कही.
तो ऐसी कौन-सी बात है कि 1980 की भाजपा से लेकर 2013 की आम आदमी पार्टी और 2022 के प्रशांत किशोर तक को गांधी की ही शरण में जाना पड़ रहा है. जबकि भाजपा और आम आदमी पार्टी वैचारिक और सैद्धांतिक तौर पर महात्मा गांधी के विचारों को कब के तिलांजलि दे चुके हैं. आम आदमी पार्टी ने तो पंजाब में सरकार बनने के बाद सरकारी दफ्तरों से गांधी की तस्वीर तक हटा दी.
ये बात तो स्पष्ट है कि महात्मा गांधी भारत की सामासिक संस्कृति के प्रतीक हैं और दुनियाभर में उनके लिए सम्मान है. ऐसे में गांधी को इस देश में नजरअंदाज कर पाना किसी के लिए भी मुश्किल है.
लेकिन क्या महात्मा गांधी का इस्तेमाल कर बिहार में प्रशांत किशोर मजबूत हो पाएंगे या वो भी भाजपा और आम आदमी पार्टी की तरह गांधी के सिद्धांतों को भुलाकर विशुद्ध राजनीति करने लगेंगे?
क्योंकि हाल ही में उनकी कांग्रेस के साथ बातचीत चल रही थी और आखिर में उन्होंने पार्टी में शामिल होने से मना कर दिया. ऐसे में गांधी परिवार को छोड़ महात्मा गांधी की सोच की राह लेने वाले किशोर बिहार में कितने सफल हो पाएंगे.
चुनावी रणनीति बनाने में तो 2014 से 2022 तक तक वो काफी सफल हुए हैं और इस दौरान उन्होंने अलग-अलग विचारधारा वाली पार्टियों के साथ काम किया है. नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, वाईएसआर रेड्डी, अमरिंदर सिंह से लेकर आम आदमी पार्टी तक के लिए उन्होंने रणनीति बनाई है.
हालांकि किशोर का मानना है कि उनकी विचारधारा लेफ्ट ऑफ सेंटर की है.
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नई सोच, नए प्रयास: कितना होगा सफल?
प्रशांत किशोर का कहना है कि बिहार में लालू यादव के शासन के 15 साल और नीतीश कुमार के 15 साल के बाद भी राज्य देश का सबसे पिछड़ा हुआ राज्य है. उन्होंने कहा, ‘आने वाले 10-15 बरस में बिहार को अग्रणी बनना है तो उसके लिए नई सोच और नए प्रयास की जरूरत है.’
लेकिन पारंपरिक तौर पर चलने वाली राजनीति के बरक्स किशोर जिस सोच को बिहार के लोगों के बीच ले जाने की कोशिश करने वाले हैं, क्या उसे लोग अपनाएंगे? क्योंकि किसी भी नए व्यक्ति को मौका देने में राज्य के लोग काफी हिचकते हैं और इसीलिए प्रशांत किशोर के लिए ये नई शुरुआत आसान नहीं होने वाली है.
किशोर के सामने बिहार के बेरोजगार युवाओं के असंतोष का सामना करने की चुनौती होगी. वहीं समाज में मजबूती के साथ पैठ बना चुकी जातिगत सोच भी नए चेहरे के लिए मुश्किलात लेकर आएंगी. हालांकि किशोर को लेकर लोगों के बीच एक और आशंका है कि वे टिककर किसी के साथ नहीं रहते. जैसा कि उन्होंने कई राजनीतिक पार्टियों के साथ काम किया और उसके बाद अलग राह ले ली.
बिहार में उन्होंने 2020 में बात बिहार की शुरुआत की थी जिसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका. इसके पीछे किशोर कोरोना महामारी को वजह बताते हैं लेकिन उनके इस रवैये से लोगों के बीच उन्हें लेकर एक झिझक जरूर है. हालांकि इस बार उन्होंने आश्वस्त किया कि वो अपनी पूरी बुद्धि और शक्ति से काम करेंगे और इससे पीछे नहीं हटेंगे.
बिहार के लोगों के बीच अपनी सोच को विस्तार देने के लिए 2 अक्टूबर से प्रशांत किशोर पदयात्रा करेंगे जिसके तहत राज्य के सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्रों से जुड़े करीब 18 हजार लोगों से वे मुलाकात करेंगे और राज्य को समझने की कोशिश करेंगे. ये कुछ वैसा ही जैसा कि भारत आने के बाद महात्मा गांधी ने ट्रेन से देशभर की यात्राएं की थी और भारत को समझने का प्रयास किया था जिसमें वे काफी हद तक सफल रहे थे.
लेकिन क्या गांधी की राह पर चलना प्रशांत किशोर के लिए आसान होगा? क्या वैसा नैतिक बल और प्रतिबद्धता उनके अंदर है. वे भले ही कह रहे हों कि वो अभी राजनीतिक पार्टी नहीं बना रहे लेकिन उनकी बातों से ये भी संकेत मिल रहे हैं कि वो आने वाले दिनों में ऐसा जरूर कर सकते हैं.
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि गांधी के नाम से उन्होंने नए सफर की शुरुआत तो कर दी है लेकिन उस पर बने रह पाना और खुद को साबित करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. खासकर बिहार जैसे जटिल राज्य में.
(व्यक्त विचार निजी हैं)
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