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Friday, 22 November, 2024
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Zoozoos से लेकर Byju’s, स्विगी और क्रेड तक- IPL विज्ञापन साफ बताते हैं कि भारत में क्रिकेट कौन देखता है

मनोरंजन से भरपूर आईपीएल हमेशा से लाखों दर्शकों को लुभाता रहा है और यही वजह है कि ये एक बड़ा मार्केटिंग स्पेस बन चुका है. लेकिन बाकी जगहों की तरह यहां भी विज्ञापनों का ट्रेंड बदला है. आईपीएल में अब पारंपरिक ब्रांडों से ज्यादा ई-कॉमर्स व्यवसाय से जुड़े विज्ञापन हावी हो गए हैं.

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नई दिल्ली: वह साल 2008 था. टेलीविजन स्क्रीन पर 1980 के दशक के बॉलीवुड के इमोशनल ड्रामा की याद दिलाने वाला एक विज्ञापन चल रहा था.

जुड़वां बच्चे रंजन और मनो अपनी मां के साथ अकेले रहते हैं. हर कोई उनके पैदा होने के बाद से उन्हें ताने मारता आया है कि उनके पिता नहीं है. इस अपमान को सहते-सहते परेशान हो चुकी उनकी मां एक दिन आत्महत्या करने के लिए जैसे ही अपने कदम आगे बढ़ाती है उसके बच्चे उसे यह कहकर रोक लेते हैं कि उनके पिता आ गए हैं.

उनके घर पर टेलीविजन स्क्रीन पर घोषणा होती है, ‘आ गया मनोरंजन का बाप ’ – हिंदी शब्द मनोरंजन के साथ बड़ी चालाकी से खेलते हुए इसे आईपीएल के साथ जोड़ दिया गया था. और इस तरह से इंडियन प्रीमियर लीग पहली बार हमारी स्क्रीन पर आया जिसमें भरपूर मनोरंजन के साथ खेल का वादा किया गया था.

फिल्मी सितारों और बिजनेस के बड़े-बड़े दिग्गजों का टीम का मालिक बनना, विदेशी खिलाड़ियों का भारतीय युवा क्रिकेटरों के साथ मिलकर खेलना और अपनी विशेषज्ञता साझा करना, हर स्टेडियम में चीयरलीडर्स की मौजूदगी क्रिकेट को एक अलग ही रंग में रंग रहा था. आईपीएल के जरिए भारत को एक खेल आयोजन से जुड़ी पार्टियों का पहला स्वाद चखने को मिला. यह पैसे, ग्लैमर, खेल और शो बिज का एक ऐसा कॉकटेल बन गया जो 14 साल बाद भी क्रिकेट प्रशंसकों को लुभा रहा है.

जाहिर सी बात है इसने सभी ब्रांड्स के लिए एक आदर्श मार्केटिंग अवसर और प्लेटफॉर्म भी उपलब्ध करा दिया था.

पिछले आईपीएल सीज़न के दौरान प्रसारित किए गए- 2008 में ‘मनोरंजन का बाप’, 2009 का सोनी मैक्स ‘होम ऑफ आईपीएल’ 2014 का ‘कन्ना का शांत रहना’, 2016 का वह ‘शानदार’ प्रोमो, जिसने आईपीएल को एक कार्निवल जैसी छवि दी … सबसे यादगार विज्ञापन की श्रृंखला का एक हिस्सा रहे हैं.

इसके अलावा आईपीएल को ध्यान में रखकर तैयार किए गए अमेज़न, पेप्सी, जियो, फेसबुक, एफएमसीजी ब्रांड और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के वो विज्ञापन भी थे, जिन्होंने दर्शकों के दिल और दिमाग दोनों पर कब्जा कर लिया था.

मसलन वोडाफोन का ज़ूज़ू– प्यारे, अंडे के आकार का ये किरदार 2009 के आईपीएल में पहली बार भारतीय स्क्रीन पर आया और लोगों के दिलों पर छा गया. उस साल आम चुनावों के साथ शेड्यूलिंग को लेकर उठे विवाद के कारण आईपीएल दक्षिण अफ्रीका में खेला गया था.

हालांकि, पिछले कुछ सालों में ये एफएमसीजी और कंज्यूमर ड्यूरेबल ब्रांड्स धीरे-धारे आईपीएल से किनारे होते चले गए और फिन-टेक, एड-टेक, पेमेंट्स और डिलीवरी सर्विसेज सेगमेंट क्रेड, बायजूस और स्विगी जैसे ई-कॉमर्स ब्रांड्स ने आईपीएल विज्ञापन में अपनी पैठ जमा ली.

बदलते आईपीएल विज्ञापन परिदृश्य के बारे में, गुरुग्राम में एक विज्ञापन एजेंसी ‘द ग्लिच’ के क्रिएटिव डायरेक्टर युद्धजीत मुखर्जी ने कहा, ‘एक समय था जब सॉफ्ट ड्रिंक्स, लेज (आलू के चिप्स) और टेलीकॉम का आईपीएल के विज्ञापन क्षेत्र में दबदबा हुआ करता था. आज नई कंपनियों, विशेष रूप से फाइनेंशियल सर्विस देने वाली कंपनियों ने कब्जा कर लिया है.’

मुखर्जी याद करते हुए बताते हैं कि इस महीने की शुरुआत में एक प्रोजेक्ट के लिए इंटरनल रिसर्च में पाया गया कि आईपीएल के सेवा से संबंधित सभी विज्ञापनों में से 90 प्रतिशत बीमा और फाइनेंस से जुड़े थे.

मुखर्जी के अनुसार, जाहिर है, भारत में डिजिटल बाजार फल फूल रहा है और यही वह जगह है जहां विकास की संभावना है. इसलिए ई-कॉमर्स ब्रांड जमकर विज्ञापन कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘बदलाव हमें बताता है कि भारत अभी एक बड़ा और तेजी से बढ़ता डिजिटल मार्केट स्पेस है. इन (डिजिटल-फर्स्ट) ब्रांड्स में बहुत सारा पैसा लगाया जा रहा है. और अगले कुछ सालों में भारत दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल मार्केट स्पेस बन सकता है.’

आईपीएल का एक और सीज़न हमेशा की तरह दर्शकों की बेहतर पकड़ के साथ आगे बढ़ रहा है. इसका फाइनल 29 मई को होने वाला है. दिप्रिंट ने आईपीएल में आने वाले विज्ञापनों पर पैनी नज़र रखते हुए ये जानने की कोशिश की कि कौन से कारण विज्ञापनों में बदलाव की वजह बने हैं.


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युवा दर्शकों को लुभाने का लक्ष्य

आईपीएल को देखने वाला एक बड़ा दर्शकों का वर्ग है. इसलिए आईपीएल सीजन के दौरान आने वाले विज्ञापन भी इसके दर्शक वर्ग की आयु, लिंग, स्थान और इनकम ग्रुप को ध्यान में रखकर तैयार किए जाते रहे हैं.

गुरुग्राम में एक विज्ञापन एजेंसी ‘मैजिक सर्कल’ में सहयोगी क्रिएटिव डायरेक्टर श्रेया सरकार के अनुसार, हालांकि इसके सभी दर्शकों को ध्यान में रखते हुए विज्ञापन प्रसारित किए जाते हैं लेकिन विज्ञापनों की अधिकतम संख्या युवा दर्शकों, मिलेनियल और जेन जेड दर्शकों को लेकर होती है.

उन्होंने कहा, ‘पिछले साल राहुल द्रविड़ के क्रेड विज्ञापन वायरल होने के बाद से सभी ब्रांड चाहते हैं कि उनकी स्क्रिप्ट युवा दर्शकों के लिए लिखी जाए. वे सोशल मीडिया पर री-शेयर वैल्यू वाली स्क्रिप्ट चाहते हैं.’

सरकार के अनुसार, 55 साल और उससे अधिक उम्र के दर्शकों वाले ब्रांड भी अक्सर युवा समूह के लिए स्क्रिप्ट लिखना पसंद करते हैं, ताकि उनके कंटेट को फिर से शेयर किया जा सके. ‘मानसिकता यह है कि अधिक उम्र के दर्शक भी इस समय जो ट्रेंड चल रहा है, उसके साथ बने रहना चाहते हैं. इसलिए अधिकांश विज्ञापन 25-35 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों की बात कर रहे हैं.’

यहां लगभग सभी के लिए कुछ न कुछ है.

फॉग ने अपने प्रोडक्ट की एक पॉकेट-फ्रेंडली डिओडोरेंट के रूप में मार्केटिंग करते हुए इस साल जो एक विज्ञापन निकाला, उसमें दो लड़कियां आपस में एक लड़के के साथ फ्लर्ट करने की बात करते हुए नज़र आती हैं. 18 से 24 साल के युवा दर्शकों के लिए ऐसा करना आम है. टाटा पंच का विज्ञापन उम्रदराज दर्शकों को तेजी से आगे बढ़ने और युवाओं के साथ जोड़ता नज़र आता है, वहीं फैंटेसी गेमिंग ऐप गेमज़ी- लखनऊ सुपर जायंट्स के कप्तान के.एल. राहुल को लेकर आया है, जो टियर-2 शहर के दर्शकों को अपने साथ जोड़ता है. और एक नया स्विगी इंस्टामार्ट विज्ञापन एक महानगरीय शहर में रहने वाले युवा जोड़े के इर्द-गिर्द घूमता है.

देखा जाए तो ई-कॉमर्स ब्रांड इस साल अब तक विज्ञापनों पर सबसे अधिक खर्च करने वालों में से एक रहे हैं. इस 15वें आईपीएल सीजन के पहले पांच मैचों में उन्होंने 30 प्रतिशत विज्ञापन पर कब्जा कर लिया है. इनमें से 17 फीसदी विज्ञापन ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के थे.

मुखर्जी ने कहा, ‘यह देश एक उभरती हुई डिजिटल इकोनॉमी है. कोई हैरानी नहीं है कि ई-कॉमर्स ने स्मार्टफोन, टेलीकॉम और एफएमसीजी पर कब्जा कर लिया है. यही वह जगह है जहां भविष्य है.’ वह आगे कहते है ‘ प्रतिस्पर्धा कड़ी है, इसलिए ब्रांड्स को कुछ ऐसा लेकर आने की जरूरत है, जो उन्हें बाकी सब से अलग बना सके.’

जैसे-जैसे महिला दर्शकों की संख्या बढ़ी है (टेलीविज़न रेटिंग एजेंसी टैम की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में कुल आईपीएल दर्शकों में 43 प्रतिशत महिलाएं थीं), वैसे-वैसे उन्हें ध्यान में रखकर तैयार किए गए विज्ञापनों की संख्या भी बढ़ गई. साल 2020 में महिलाओं को लक्षित करने वाले विज्ञापनों में रिकॉर्ड 57 प्रतिशत का उछाल आया.


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राजस्व में इजाफा, ब्रांड रिकॉल

जिस तरह आईपीएल की लोकप्रियता इसे ब्रांड्स के लिए एक आकर्षक मार्केटिंग अवसर बनाती है, वैसे ही विज्ञापन टूर्नामेंट से जुड़े लोगों के लिए ये राजस्व का एक प्रमुख जरिया है.

2021 में वो स्टार जिन्होंने 2019 में आईपीएल के टेलीविजन प्रसारक होने के लिए पांच साल का अनुबंध हासिल किया, कथित तौर पर विज्ञापन राजस्व में 3,200 करोड़ रुपये कमाए. इस साल 4,000 करोड़ रुपये की कमाई पर नज़र गड़ाए हुए है. आईपीएल के दौरान 10 सेकंड के विज्ञापन स्पॉट पर विज्ञापनदाताओं को लगभग 16 लाख रुपये खर्च करने होते हैं, जबकि टूर्नामेंट की अवधि के लिए मैच में ब्रेक के दौरान 30 सेकंड के विज्ञापन की लागत 37 करोड़ रुपये होती है.

विज्ञापन के लिए इतनी भारी-भरकम कीमतों के चलते आईपीएल को अक्सर भारत के सुपर बाउल के रूप में जाना जाता है. यह तुलना एक मायने में सही भी है क्योंकि सुपर बाउल अमेरिकी फुटबॉल के एनएफएल का वो शिखर है, जहां इसके प्रत्येक संस्करण में आने वाले वर्ष के लिए सबसे बड़े विज्ञापन अभियानों का शुभारंभ होता है.

खासकर तेजी से कर्ज देने वाले स्टार्ट-अप, ई-कॉमर्स और एड-टेक स्पेस, इस समय चल रहे आईपीएल सीज़न के लिए सबसे अधिक दिखाई देने वाले विज्ञापनदाताओं में से हैं. इसके अलावा फॉग डिओडोरेंट, स्विगी, बायजूस, विमल पान मसाला, क्रेड, रुपे, ड्रीम 11, स्लाइस, टाटा न्यू, लेज़ और गेमज़ी कुछ ऐसे ब्रांड हैं जिन पर दिप्रिंट का ध्यान गया है.

100 से अधिक ब्रांड कथित तौर पर आईपीएल के आधिकारिक टेलीविजन स्टार स्पोर्ट्स और डिज्नी + हॉटस्टार और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर विज्ञापन स्लॉट साझा करेंगे. फिनटेक, हाइपरलोकल डिलीवरी सर्विस, भुगतान प्लेटफॉर्म और स्ट्रीमिंग दिग्गज जैसी नई सर्विस आईपीएल स्लॉट में रुचि रखने वाले में से हैं.

ओगिल्वी, मुंबई के ग्रुप क्रिएटिव हेड खुर्रम हक ने कहा, ‘आईपीएल को जिस तरह की अटेंशन मिलती है उसकी तुलना कर पाना नामुमकिन है.’

हक ने कहा, ‘आईपीएल (विज्ञापनदाताओं) को अधिकांश ऐसे युवा और तकनीक से प्यार करने वाले दर्शक मिलते हैं जिन्हें नए उत्पादों पर आजमाइश करने में कोई गुरेज नहीं होता है. कंपनियां को भी लगता है कि आईपीएल के दौरान विज्ञापन देने पर जो कद और विश्वसनीयता उन्हें मिलती, वो शायद ही कहीं और मिल पाए. और यह मायने रखता है क्योंकि इनमें से बहुत सी कंपनियां पहली बार विज्ञापन दे रही होती हैं.’

आईपीएल के दौरान बेतहाशा विज्ञापन का मतलब होता है कि ब्रांड इस दौरान अपने मीडिया बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च कर रहे हैं. हक ने कहा, ‘कुछ के लिए, यह साल का एकमात्र समय है जब वे विज्ञापन करते हैं. कई कंपनियां इन दो महीनों के भीतर साल भर के अपने मीडिया बजट का अधिकांश हिस्सा खर्च कर देते हैं.’


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नए ब्रांड लेकिन आईपीएल का आकर्षण बरकरार

क्रेड ने 2020 में आईपीएल के दौरान अपने विज्ञापन अभियानों के साथ धूम मचा दी थी. उसके अगले साल वो राहुल द्रविड़ का एक अलग गुस्से वाले रूप को लेकर आए थे, जिसने काफी सुर्खियां बटोरी थीं.

इस साल क्रेड लीक से हटकर एक अलग ही विज्ञापन लेकर आया. इसमें करिश्मा कपूर का लुक देखकर एक पुराने डिटर्जेंट विज्ञापन की यादें ताजा हो आईं.

यूजर्स के बिलों का ऑनलाइन भुगतान करने वाला स्लाइस सुपर कार्ड्स ने इस साल डिजिटल और टेलीविजन मीडिया पर भी भारी विज्ञापन दिए. यह संभावित ग्राहकों का ध्यान खींचने में भी कामयाब रहा है.

एक एड-टेक फर्म में 22 साल के एक ब्रांड मैनेजर ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘मैं एक लैपटॉप खरीदना चाह रहा था लेकिन हाल ही में नौकरी ज्वाइन करने के कारण फाइनेंस मेरे लिए एक बड़ी परेशानी थी. जब मैंने आईपीएल के दौरान स्लाइस कार्ड का एक विज्ञापन देखा, तो तुरंत इसके लिए अप्लाई कर दिया और मुझे वो मिल भी गया.’

मुखर्जी ने कहा कि छोटे ब्रांड भी बड़े ब्रांड्स को बाहर कर रहे हैं. क्योंकि आईपीएल ही एकमात्र ऐसा समय है जब उन पर खासा ध्यान दिया जाता है.

उन्होंने कहा, ‘बाजार 2008 से विकसित हुआ है. ओटीटी की दुनिया में उपभोक्ता कई अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर बटे हैं लेकिन आईपीएल यकीनन एकमात्र ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां एक साथ इतने सारे यूजर्स का ध्यान जाता है. इसलिए काफी सारे ब्रांड महंगे स्लॉट के बावजूद यहां विज्ञापन के लिए मुकाबला करते नज़र आते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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