नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इस सोमवार को अपने गृह राज्य गुजरात के तीन-दिवसीय दौरे पर अहमदाबाद पहुंच गए, जहां वो स्कूलों का दौरा कर रहे हैं, और विभिन्न परियोजनाओं का उदघाटन कर रहे हैं.
लेकिन, पिछले क़रीब 10 दिन में पीएम राज्य के कई धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजनों में भले ही वर्चुअल सही, लेकिन अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं, जहां इसी साल चुनाव होने जा रहे हैं.
इस पखवाड़े में प्रधानमंत्री के व्यस्त कार्यक्रम में, एक धार्मिक ट्रस्ट द्वारा संचालित एक शैक्षणिक परिसर का उदघाटन, ताक़तवर स्वामीनारायण पंथ के वरिष्ठ नेताओं से मुलाक़ात, और गुजरात में हनुमान की 108 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण शामिल रहा है.
गुजरात बीजेपी नेताओं ने दिप्रिंट से कहा, कि ऐसे प्रांत में जहां की लगभग 88 प्रतिशत आबादी हिंदू है, और जहां आध्यात्मिक नेताओं और पंथों का पाटिदार जैसे महत्वपूर्ण समुदायों पर बहुत प्रभाव रहता है, वहां धार्मिक सर्किट के साथ जुड़े रहना ज़रूरी होता है.
एक प्रदेश बीजेपी नेता ने कहा, ‘प्रधान मंत्री ने सभी संप्रदायों के गुरुओं के साथ अच्छे समीकरण बनाए हुए हैं- ये एक पारिवारिक रिश्ते की तरह है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘मोदी के पास हर काम की जानकारी है जो धार्मिक न्यास कर रहे हैं, और समय समय पर वो उन्हें सुझाव भी देते रहते हैं कि उन्हें किन मुद्दों से निपटना है. कुछ मामलों में तो वो आरएसएस के अपने शुरुआती दिनों से, गुरुओं की दो-तीन पीढ़ियों तक को जानते हैं’.
गुजरात में ऐसे बहुत से हिंदू समाज हैं, जो न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन करते हैं, बल्कि बहुत सी धर्मार्थ गतिविधियां भी अंजाम देते हैं, और महत्वपूर्ण समुदायों पर काफी प्रभाव रखते हैं.
कुछ धार्मिक पंथ अराजनीतिक होने का दावा करते हैं, लेकिन राजनीतिक पार्टियां चुनावों से पहले उनका समर्थन हासिल करने की कोशिश में रहती हैं.
गुजरात में मोदी की धार्मिक आउटरीच
10 अप्रैल को पीएम मोदी वीडियो लिंक के ज़रिए, जूनागढ़ के उमिया माता मंदिर के 14वें स्थापना दिवस समारोह में नज़र आए, जहां उन्होंने बात की कि ‘आध्यात्मिक और दैवी महत्व’ के स्थल भी, किस तरह सामाजिक जागरूकता फैलाने में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं.
उमिया माता गुजरात के राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कदवा पाटिदार समुदाय की कुलदेवी हैं.
मोदी ने, जिन्होंने 2008 में मंदिर का उदघाटन किया था, जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे, इस बारे में बात की किस तरह बच्चों और गर्भवती मांओं में कुपोषण को दूर करने की ज़रूरत है, और उन्होंने मंदिर न्यास से कहा कि गांवों में स्वस्थ शिशु प्रतियोगिताएं आयोजित कराएं, और मंदिरों के हॉल्स को योगा कक्षाओं के लिए इस्तेमाल करें.
दो दिन बाद, 12 अप्रैल को मोदी वर्चुअल तरीक़े से पाटिदार समाज के उप-समूह लेउवा के एक और महत्वपूर्ण स्थल- अहमदाबाद के निकट अडालज में श्री अन्नापूर्णा धाम पहुंच गए. यहां पीएम ने एक शैक्षणिक परिसर और हॉस्टल का उदघाटन किया, और जन सहायक ट्रस्ट के हीरामणि आरोग्यधाम का भूमि पूजन किया.
अपने भाषण में मोदी ने मोटे तौर पर ज़मीनों के मालिक खेतिहर पाटिदार समाज का खुलकर ज़िक्र किया, और कहा कि इन्होंने समाज में एक अहम काम को अंजाम दिया है. उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें इस बात की बहुत ख़ुशी है, कि उनका श्री अन्नापूर्णा धाम की आध्यात्मिक और सामाजिक पहलक़दमियों के साथ एक लंबा जुड़ाव रहा है.
मोदी ने कहा कि देवी अन्नापूर्णा की एक चुराई हुई प्रतिमा को पिछले साल कनाडा से वाराणसी वापस लाया गया था. उन्होंने कहा, ‘हमारी संस्कृति के ऐसे दर्जनों प्रतीक, पिछले कुछ सालों में विदेशों से वापस लाए गए हैं’.
पीएम के एजेण्डा में अगला आइटम था, 16 अप्रैल को काठियावाड़ प्रायद्वीप के मोरबी में हनुमान की एक 108 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण.
Today, we mark the special occasion of Hanuman Jayanti. In Morbi, at 11 AM, a 108 feet statue of Hanuman ji will be inaugurated. I am honoured to be getting the opportunity to be a part of this programme via video conferencing. https://t.co/qjvLIHWWiO pic.twitter.com/kbHcIxd90Z
— Narendra Modi (@narendramodi) April 16, 2022
इस समारोह में अपने वीडियो संबोधन में, मोदी ने उल्लेख किया कि ये प्रतिमा उन चार प्रतिमाओं में दूसरी है, जो ‘हनुमान जी चार धाम परियोजना’ के तहत, देश की चारों दिशाओं में बनाई जा रही हैं.
मोरबी के साथ अपने क़रीबी रिश्तों, और स्वर्गीय पुरोहित केशवानंद बापू के पास अपने दौरों को याद करते हुए मोदी ने कहा, ‘हनुमान जी शक्ति और मज़बूती की अभिव्यक्ति हैं, जो तमाम वनवासियों को समान अधिकार और सम्मान देते थे. यही कारण है कि हनुमान जी का‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ (सरकार की एक सांस्कृतिक ‘अनेकता में एकता’ पहल) के साथ भी एक अहम रिश्ता है’.
उन्होंने मोरबी, जामनगर, राजकोट, और कच्छ में बढ़ते उद्योगों का भी उल्लेख किया, और इस क्षेत्र को एक ‘मिनी जापान’ क़रार दिया.
दो दिन बाद, पीएम ने प्रभावशाली बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण (बीएपीएस) संस्था के दो वरिष्ठ नेताओं से मुलाक़ात की, और बाद में ट्वीट किया कि उन्होंने उनके कोविड तथा यूक्रेन राहत कार्यों की ‘सराहना’ की थी, और एचएच प्रमुख स्वामी महाराज जी के आगामी जन्म शताब्दी समारोह पर भी चर्चा की थी’.
गुजरात बीजेपी उपाध्यक्ष जनकभाई पटेल ने दिप्रिंट को बताया, कि राज्य में धार्मिक नेताओं का प्रभाव उनके मंदिरों से कहीं आगे तक जाता है.
उन्होंने कहा, ‘गुजरात एक धार्मिक समाज है और धार्मिक गुरुओं का अपने अनुयायियों पर बहुत असर रहता है. ये न केवल धर्म की वजह से बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, और महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में उनके सामाजिक कार्यों की वजह से भी है. उनके विदेशों में भी कई मंदिर हैं, और वहां के प्रवासियों में उनके मानने वाले बड़ी संख्या में हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘केंद्रित समाजिक कार्यों में अपनी भागीदारी बढ़ाने के लिए, वो समय समय पर प्रधानमंत्री से मार्गदर्शन लेते रहते हैं’.
एक दूसरे बीजेपी नेता ने कहा, कि हालांकि पंथों के प्रमुख आमतौर से अपनी राजनीतिक निकटताओं को ज़ाहिर करने से परहेज़ करते हैं, ‘लेकिन उनके हाव भाव से उनके समर्थन का अंदाज़ा लगाया जा सकता है’. उन्होंने आगे कहा कि ऐसे बहुत से गुरुओं के साथ पीएम का रिश्ता ‘बहुत व्यक्तिगत’ है.
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पाटिदार और गुजरात की मंदिर राजनीति
व्यापक रूप से समझा जाता है कि गुजरात की आबादी में क़रीब 17 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाला पाटिदार समुदाय ही- जिसे अकसर पाटिल सरनेम से पहचाना जाता है- वो ताक़त है जो गुजरात में सरकारों को चलाती है.
राज्य का हर तीसरा विधायक इसी समुदाय से आता है, जिसके हाथ में काफी वित्तीय ताक़त भी है. लेकिन, अतीत में ओबीसी दर्जा पाने के लिए हुए पाटिदार आंदोलन, बीजेपी के लिए चिंता का विषय बने हैं.
एक ऐसे राज्य में जहां धर्म और राजनीति आपसे में गहराई से जुड़े हैं, वहां हर समुदाय के मंदिर वो स्थल होते हैं जहां का दौरा करना चुनावों से पहले राजनेताओं के लिए ज़रूरी समझा जाता है.
समुदाय के रसूख़ की एक मिसाल वो ख़बर थी जो 2018 में सुर्ख़ियां बनी, जिसमें विश्व उमिया फाउण्डेशन ने 1,000 करोड़ की लागत से बनने वाले मंदिर तथा सामुदायिक परिसर के निर्माण के लिए, सिर्फ तीन घंटे के भीतर 150 करोड़ रुपए जमा कर लिए गए.
अगले साल, 2019 के लोकसभा चुनावों से कुछ पहले ही, प्रधानमंत्री मोदी गांधीनगर ज़िले के जसपुर में विश्व उमिया धाम परिसर के ग्राउंडब्रेकिंग समारोह में शरीक हुए. दो साल बाद, गृह मंत्री अमित शाह ने महत्वाकांक्षी मंदिर परिसर की आधार शिला रखी, जिसका निर्माण 2024 में पूरा होना है.
इसी तरह, 2012 के गुजरात चुनावों से पहले, मोदी लेउवा पाटिदारों के श्री खोडलधाम मंदिर के ग्राउंडब्रेकिंग समारोह में शरीक हुए थे.
पांच साल बाद, 2017 के विधान सभा चुनावों से पहले, पीएम इस मंदिर के उदघाटन में भी मौजूद थे. 2017 के चुनावों से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस मंदिर का दौरा किया था.
उस समय, हार्दिक पटेल की अगुवाई में पाटिदार समुदाय के लिए ओबीसी दर्जे की मांग कर रहे आंदोलन ने राज्य का माहौल गर्म कर दिया था और बीजेपी के लिए एक अनिश्चितता की सी स्थिति पैदा कर दी थी. वो चुनाव जीत गई लेकिन 1995 के बाद से, जब वो पहली बार सत्ता में आई थी, ये उसका सबसे ख़राब प्रदर्शन था.
इस बीच आंदोलन की वजह से लोगों में कांग्रेस की पैठ बढ़ी. साल 2015 में भी पाटीदारों के असंतोष ने नगर निकाय चुनावों पहले बीजेपी में चिंता पैदा कर दी थी, हालांकि अंत में उसने जीत हासिल कर ली थी.
हालांकि पाटिदार आंदोलन ख़त्म हो गया है, लेकिन समुदाय अभी भी एक चुनौती बना हुआ है, क्योंकि अटकलें गर्म हैं कि श्री खोडलधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेश पटेल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं.
समृद्ध स्वामीनारायण पंथ भी महत्वपूर्ण है, ख़ासकर इसलिए कि अमेरिका और यूरोप के गुजराती प्रवासियों के बीच उसकी काफी पहुंच है. 2016 में जब मंदिर के मुख्य पुरोहित की मृत्यु हुई, तो मोदी दिल्ली से उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए वहां गए. इस पंथ के भी पाटिदार समुदाय में काफी संख्या में अनुयायी हैं.
आम आदमी पार्टी (आप) प्रमुख अरविंद केजरीवाल, जो गुजरात में सेंध लगाने की उम्मीद कर रहे हैं, उन्होंने भी इसका ध्यान रखा और इस महीने राज्य में अपना चुनावी प्रचार शुरू करने से पहले, अहमदाबाद के स्वामीनारायण मंदिर में पूजा करने के लिए पहुंचे.
गुजरात विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के सहायक प्रोफेसर गौरंग जानी ने कहा, ‘गुजरात में ब्राह्मणों की संख्या आबादी का केवल 1 प्रतिशत है, और ये पाटिदार समुदाय है जिसका समाज में सबसे अधिक प्रभाव है’.
जानी ने आगे कहा, ‘पाटिदार देवता, उनके पंथ, उनके मंदिर, गुजरात में प्रभाव के आधुनिक केंद्र बन गए हैं. यही कारण है कि चुनावों के दौरान हर पार्टी उनके पीछे भागती है. दलित और आदिवासी भी उन्हीं को अपने आदर्श के रूप में देखते हैं’.
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