नई दिल्ली: 1988 बैच के भारतीय विदेश सेवा अधिकारी विनय मोहन क्वात्रा को इस महीने के शुरू में जब पांच वरिष्ठ अधिकारियों को सुपरसीड कर विदेश सचिव नियुक्त किया गया तो कई वरिष्ठ सिविल सेवा अधिकारियों के मन में इसे लेकर कोई संदेह नहीं था कि ऐसा क्यों हुआ, उनका कहना है कि क्वात्रा के ‘प्रधानमंत्री के साथ कामकाजी रिश्ते बहुत अच्छे’ हैं.
नेपाल में भारत के मौजूदा राजदूत क्वात्रा, जो 30 अप्रैल को मौजूदा विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के रिटायर होने के बाद उनकी जगह लेंगे, उन लोगों में से एक हैं जो 2014 में नरेंद्र मोदी के पहली बार कुर्सी संभालने के समय प्रधानमंत्री कार्यालय में कार्यरत थे.
क्वात्रा ऐसे पहले अधिकारी नहीं हैं जिन्होंने पीएमओ में कार्यकाल के बाद अपना करियर ग्राफ तेजी से ऊपर उठते देखा है. भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के 38 अधिकारी बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले वर्ष (2014-15) के दौरान पीएमओ में तैनात थे. कुछ को मनमोहन सिंह के पीएमओ से बरकरार रखा गया था, जबकि अन्य को उसी वर्ष तैनाती मिली थी.
इनमें से एक इस समय उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री है, 11 विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन या संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में विदेशी पोस्टिंग पर हैं, या विदेश में अध्ययन अवकाश पर हैं; एक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की निगरानी करने वाली समिति के प्रमुख हैं, जबकि दो रिटायर नहीं हुए हैं और पीएमओ में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. कुछ को विदेश मंत्रालय, वाणिज्य और उद्योग और वित्त मंत्रालयों में सचिव जैसे प्रतिष्ठित पद मिल चुके हैं.
दिप्रिंट ने मोदी के शुरुआती दिनों में पीएमओ में काम करने के समय से लेकर अपने मौजूदा, प्रतिष्ठित पदों पर पहुंचने तक इन अधिकारियों के सफर पर एक नजर डाली.
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राजनीति से नीति निर्माण तक
विदेश मंत्री एस.जयशंकर भाजपा में शामिल होने वाले सबसे अहम राजनयिकों में से एक हैं. 2015 में विदेश सचिव के तौर पर कार्यरत जयशंकर सेवानिवृत्ति के बाद भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और 2019 में केंद्रीय में मंत्री बने.
गुजरात कैडर के 1988 बैच के आईएएस अधिकारी अरविंद के. शर्मा 2014 में मोदी पीएमओ में संयुक्त सचिव के रूप में काम करते थे. उन्होंने सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली और जून 2021 में भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष बने.
उन्होंने 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ा और योगी आदित्यनाथ की दूसरी पारी में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया.
नृपेंद्र मिश्रा 2014 से 2019 तक प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव के तौर पर पीएमओ में कार्यरत थे. 2019 में सेवानिवृत्त होने के बाद से उन्हें नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय जैसे कई संगठनों का नेतृत्व संभालने का जिम्मा मिला और फरवरी 2020 में उन्हें राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
भारत सरकार की तरफ से स्थापित राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट वह संगठन है जो अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की निगरानी कर रहा है.
प्रमोद कुमार मिश्रा, जिन्हें 2014 में पीएमओ में अतिरिक्त सचिव के तौर पर नियुक्त किया गया था, मौजूदा समय में प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव हैं, उन्हें इस पद पर 2019 में नियुक्त किया गया था. मिश्रा का कार्यकाल 2024 तक बढ़ा दिया गया है.
2014 और 2015 के बीच पीएमओ में सेवा देने वाले अन्य वरिष्ठ अधिकारियों में से बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम को वाणिज्य और उद्योग सचिव के तौर पर प्रोन्नत किया गया है; तरुण बजाज राजस्व सचिव हैं, टीवी सोमनाथन को वित्त सचिव नियुक्त किया गया है. वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी विक्रम मिश्री अब उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं.
2014 में पीएमओ में शामिल किए गए एक अन्य वरिष्ठ आईएएस अधिकारी भास्कर खुल्बे फरवरी 2022 में रिटायर हुए हैं.
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विदेशों में भी संभाल रहे जिम्मेदारी
वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ब्रजेंद्र नवनीत, राजीव टोपनो और गुलजार नटराजन कुछ समय तक विभिन्न मंत्रालयों में सेवाएं देने के बाद फिलहाल विदेशों में तैनात हैं.
तमिलनाडु कैडर के 1999 बैच के आईएएस अधिकारी नवनीत ने 2014 से 2019 के बीच पीएमओ में निदेशक और संयुक्त सचिव के तौर पर काम किया था और 2020 में उन्हें जिनेवा में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया.
1996-बैच के गुजरात कैडर के अधिकारी राजीव टोपनो 2014 से 2019 के बीच मोदी के निजी सचिव के तौर पर सेवारत थे, और 2020 में उन्हें वाशिंगटन डीसी में विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशक के वरिष्ठ सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया गया.
2014-15 में पीएमओ में अपनी सेवाएं देने वाले दो आईएएस अधिकारी फिलहाल अध्ययन अवकाश पर हैं, जबकि एक अन्य ने यह सेवा छोड़ दी है और लंदन में एक अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन का हिस्सा बन चुके हैं.
कम से कम छह आईएफएस अधिकारी—संजीव कुमार सिंगला, जावेद अशरफ, दीपक मित्तल, मुनु महावर, नामग्या सी. खम्पा और प्रतीक माथुर—अब इजरायल, फ्रांस, कतर, मालदीव और नेपाल में राजदूत के तौर पर या भारतीय मिशन पर्यवेक्षक के पदों पर कार्यरत हैं. माथुर न्यूयॉर्क में यूएन में काउंसलर के पद पर तैनात हैं.
कोई विशिष्ट नियम नहीं
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू का कहना है कि पीएमओ के अधिकारियों की अन्य प्रमुख पदों पर तैनाती का ट्रेंड मौजूदा सरकार तक ही सीमित नहीं है.
2014 में प्रकाशित संस्मरण द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर के लेखक संजय बारू कहते हैं, ‘सामान्य तौर पर इसे लेकर कोई नियम नहीं है. यह प्रधानमंत्री पर निर्भर करता है. लेकिन पहले भी ऐसा हो चुका है. जब पीएमओ में सेवाएं देने वाले अधिकारियों को प्रतिष्ठित पद मिले, वहीं उनमें से कुछ राजनीति में शामिल हो गए.’
बारू ने इस संदर्भ में इंदिरा गांधी के समय के एक पूर्व आईएफएस अधिकारी के. नटवर सिंह का उदाहरण दिया, जो कांग्रेस में शामिल हो गए थे और बाद में मनमोहन सिंह सरकार के समय विदेश मंत्री बने.
उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री के अधीन सेवाएं देने वाले अधिकारी पहले भी राजनीति में शामिल हुए हैं. हमारे पास मणिशंकर अय्यर और नटवर सिंह इसके उदाहरण हैं—दोनों आईएफएस अधिकारी थे और दोनों ही इंदिरा गांधी के पीएमओ में तैनात थे. बाद में दोनों राजनीति में आए और मंत्री बने. इसलिए इसमें नया कुछ नहीं है, लेकिन अब यह चलन थोड़ा ज्यादा बढ़ा जरूर है.’
खासकर, जिन अफसरों ने पहले मनमोहन सिंह के अधीन अपनी सेवाएं दी थीं, उन्होंने वर्तमान शासन के तहत भी अच्छा प्रदर्शन किया है. इनमें से कई अधिकारी हाई प्रोफाइल पदों पर पहुंचे हैं, जिसमें एक अहम नाम दिल्ली के मौजूदा उपराज्यपाल अनिल बैजल का है, जो मनमोहन सिंह के शासनकाल में शहरी विकास सचिव थे.
मनमोहन सिंह सरकार के दोनों कार्यकाल में अपनी सेवाएं देने वाले बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम को 2014 में मोदी ने चुना और संवेदनशील राज्य जम्मू-कश्मीर—जो अब केंद्र शासित प्रदेश है—में मुख्य सचिव के तौर पर नियुक्त किया. वह मौजूदा समय में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के सचिव के तौर पर कार्यरत हैं.
मनमोहन सिंह के प्रधान सचिव के रूप में कार्यरत रहे टी.के.ए. नायर कहते हैं कि एक सिविल सेवक की स्थिति उनकी योग्यता और अधिकारी के प्रति प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण पर निर्भर करती है.
उन्होंने कहा, ‘पीएमओ में काम करने वाले अधिकारियों को आम तौर पर प्रतिष्ठित पद मिलते हैं, लेकिन यह पीएम की पसंद पर भी निर्भर करता है.’
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