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Friday, 22 November, 2024
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‘दंगाइयों को संदेश’ या ‘अतिक्रमण विरोधी अभियान’— खरगोन में दंगों के बाद आखिर हुआ क्या था

खरगोन के दंगा प्रभावित इलाकों में चले बुलडोजर से दर्जनों घर और दुकानें ध्वस्त हो गए हैं. कानूनी विशेषज्ञ किसी अन्य कथित अपराध में शामिल लोगों को दंडित करने के लिए अधिकारियों द्वारा अतिक्रमण कानूनों का सहारा लिए जाने पर सवाल उठा रहे हैं.

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खरगोन: मध्य प्रदेश के खरगोन में पिछले रविवार को रामनवमी के मौके पर सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं— जिसमें पथराव और आगजनी हुई- के बाद जिला प्रशासन ने ‘दंगाइयों को कड़ा संदेश देने’ के लिए ‘अवैध रूप से बने’ घरों को निशाना बनाकर एक अतिक्रमण ध्वस्तीकरण अभियान चलाया था.

जिला कलेक्टर पी. अनुग्रह ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि अधिकांश दंगे 5 किलोमीटर के दायरे में हुए थे. उन्होंने कहा, ‘हमने उन क्षेत्रों की पहचान की जहां सबसे अधिक दंगे हुए थे. फिर हमने उन इलाकों का चयन किया जहां सरकारी जमीन पर अवैध ढांचों का अतिक्रमण था. इसके बाद हमने दंगाइयों और प्रभावित लोगों को संदेश देने के लिए एक अभियान चलाया.’

यह पूछे जाने पर कि किसी कथित दंगाई को कोर्ट में दोषी ठहराए बिना प्रशासन हिंसक घटनाओं के एक दिन बाद ‘अवैध’ घरों को कैसे निशाना बना सका, जिला कलेक्टर ने कहा, ‘चार्जशीट सब कुछ बताएगी.’

अनुग्रह ने कहा कि प्रशासन ने गिरफ्तार किए गए सभी लोगों के घरों को नहीं गिराया है. उन्होंने कहा, ‘हम यहां निर्दोष लोगों को परेशान करने के लिए नहीं हैं.’

जिला प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि जिनके घरों और दुकानों को तोड़ा गया था, उन्हें पूर्व सूचना दी गई थी. लेकिन कई प्रभावितों ने दिप्रिंट को बताया कि ऐसा कुछ नहीं था और जब बुलडोजर और पुलिसकर्मी उनके दरवाजे पर पहुंचे तो वे हैरान रह गए.

कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर अवैध कब्जे वाली जमीन पर रहने वालों को नोटिस दिया भी गया था, तो उन्हें विध्वंस के खिलाफ अपील का उचित मौका दिया जाना चाहिए था.

सुप्रीम कोर्ट के एक वकील एहतेशाम हाशमी ने कहा, ‘यह किसी को दंडित करने का तरीका नहीं है. इस तरह किसी अन्य अपराध के आरोपियों के खिलाफ अतिक्रमण कानून के तहत मुकदमा चलाना, समाज के खिलाफ एक अपराध है.’

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने गुरुवार को एक भाषण, जिसे उन्होंने बाद में ट्वीट भी किया, में कहा, ‘जिनके घर जल गए (दंगे में), हम उनके घरों का पुनर्निर्माण करवाएंगे. जिन लोगों ने घरों को जलाया, हम उन्हें कड़ी सजा देंगे, मैं उन्हें बख्शूंगा नहीं.’

राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने झड़पों के तुरंत बाद कहा था, ‘जिस घर से पत्थर आए हैं, हम उस घर को ही पत्थरों का ढेर बना देंगे.’

उन घरों से ‘पथराव’ हुआ था या नहीं, ये तो पता नहीं लेकिन खरगोन में कई घर वास्तव में मलबे के ढेर में बदल गए हैं.


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कैसे दुकानें, भोजनालय और घर सब उजड़ गए

गौ रक्षा संगठन के रामनवमी जुलूस पर कुछ लोगों की तरफ से कथित तौर पर पथराव किए जाने, जिसके बाद सांप्रदायिक हिंसा फैली, के एक दिन बाद खरगोन अधिकारियों ने प्रभावित क्षेत्रों में इमारतों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया. छोटे मोहन टॉकीज इलाके से शुरू होकर औरंगपुरा और फिर खसखसवाड़ी, गणेश मंदिर और तालाब चौक तक अतिक्रमण विरोधी अभियान चला.

छोटे मोहन टॉकीज के पास रहने वाले शेख मोहम्मद रफीक ने दावा किया कि उनके परिवार की तीन इमारतों को नष्ट कर दिया गया और उन्हें हाल-फिलहाल कोई नोटिस नहीं मिला था.

रफीक ने बताया, ‘हमें दुकानें खाली करने का कोई समय नहीं मिला. मेरा घर उनके ठीक पीछे है, जहां हम 14 लोग एक साथ रहते हैं, जिनमें नौ बच्चे भी शामिल हैं. हम सहरी के बाद सो रहे थे, जब पुलिस और अधिकारी जेसीबी लेकर हमारे घर पहुंच गए.’ साथ ही उन्होंने कहा कि उनके पिता ने अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

खसखसवाड़ी इलाके में टूटे हुए मकान | फोटो: बिस्मी तसकीन/दिप्रिंट

रफीक को लगता है कि ध्वस्तीकरण अभियान में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘अधिकारियों पर बहुसंख्यकों के सामने यह साबित करने का दबाव था कि वे कार्रवाई करेंगे.’

उन्होंने कहा कि नौ-दस महीने पहले एक तहसीलदार अतिक्रमण विरोधी अभियान के लिए यहां आए थे लेकिन उस दौरान आसपास के पांच-छह अन्य घरों को ही तोड़ा गया था. रफीक ने बताया, ‘उन्होंने हमारी दुकानों को अतिक्रमण क्षेत्र में बताकर पंचनामा बनाया था. हमने अधिकारियों के समक्ष इसके खिलाफ आवेदन भी दिया था लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.’

इसी क्षेत्र में एक-दूसरे के सामने स्थित दो भोजनालयों, जिन्हें वक्त होटल के नाम से जाना जाता था, को भी ध्वस्त कर दिया गया है.

कशिश, जिनके पिता रशीद एक रेस्तरां भवन के मालिक हैं, ने बताया कि उन्हें पांच-छह साल पहले नोटिस मिला था. उन्होंने कहा, ‘नोटिस में कहा गया था कि अगर भविष्य में सड़क चौड़ी की गई तो हमारे होटल के कुछ हिस्से टूट जाएंगे.’ इन दोनों में से छोटे भोजनालय के मालिक अतीक ने कहा कि उन्हें कभी नोटिस नहीं दिया गया और वह अदालत का दरवाजा खटखटाने की सोच रहे हैं.

तालाब चौक स्थित जामा मस्जिद परिसर में अधिकारियों ने 12 दुकानों को ध्वस्त कर दिया.

पी अनुग्रह के मुताबिक, इस क्षेत्र में एक नाली का निर्माण किया जाना निर्धारित है, और अन्य अधिकारियों ने भी कथित तौर पर छह महीने पहले यहां नोटिस पोस्ट करने का दावा किया. हालांकि, कई दुकानदारों का आरोप है कि उन्हें कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई, जबकि कुछ ने बताया कि अधिकारी कुछ महीने पहले इलाके में नाप लेने आए थे.

खरगोन स्थित सुपर बेकरी का मलवा | फोटो: बिस्मी तसकीन/दिप्रिंट

तालाब चौक से करीब 400 मीटर की दूरी पर सुपर बेकरी है जो ध्वस्त की गई इमारतों में से एक है.

इसके मालिक अमजद खान ने कहा, ‘मैं यह बेकरी 15 साल से चला रहा हूं और मुझे 20 लाख रुपये का नुकसान हुआ है. हमने तो दंगा नहीं किया था, फिर हमें क्यों सजा मिली?’

भास्वर मुहल्ले— जहां कथित तौर पर भारी पथराव हुआ था— के पास ही स्थित खसखसवाड़ी क्षेत्र में कई छोटे घर और कुछ दुकानों को ध्वस्त कर दिया गया था.

यहां रहने वाले चार परिवारों ने कहा कि उन्हें सात अप्रैल को तीन दिनों के भीतर अपने घरों को खाली करने का नोटिस मिला था. इनमें से एक घर सरकारी सब्सिडी वाली प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत बनाया गया था. बेकरी मालिक अमजद ने बताया कि सप्ताहांत की वजह से वह समय पर तहसीलदार को संपत्ति के जरूरी दस्तावेज जमा नहीं करा पाए.

इस बारे में पूछे जाने पर जिला कलेक्टर ने कहा कि सरकारी जमीन पर नहीं बल्कि दूसरे प्लॉट पर मकान निर्माण की मंजूरी दी गई है. अमजद ने इससे इनकार किया और कहा कि उनके पास आवश्यक मंजूरी है.

खसखसवाड़ी में अपनी बेटी और पोती के साथ रहने वाली रशीदा दिप्रिंट से मिलने के दौरान एकदम व्याकुल नज़र आईं. उनका घर और छोटी दुकान दोनों मलबे का ढेर बन गए हैं. उन्होंने कहा, ‘मैंने सब कुछ खो दिया. मैं रमजान के लिए कुछ सामान लाई थी…सब कुछ चला गया.’

एक अन्य निवासी आबिद खान ने कहा, ‘उन्होंने हमें आठ महीने पहले नोटिस दिया था लेकिन कुछ नहीं किया. अब, दंगे का फायदा उठाया और हमें निशाना बनाया. हमें तंबुओं में रहना पड़ रहा है.’

दिप्रिंट को राज्य के अधिकारियों से प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि इस हफ्ते चले अभियान में 45 ‘अवैध’ ढांचों को ध्वस्त किया गया है.

सोमवार को चले अभियान में खसखसवाड़ी में 12 घर और 10 दुकानें, छोटे मोहन टॉकीज में चार घर और तीन दुकानें, गणेश मंदिर के पास एक दुकान, औरंगपुरा में तीन दुकानें और तालाब चौक क्षेत्र में 12 दुकानें ध्वस्त की गई. इसके अलावा मंगलवार को कम से कम दो भोजनालयों और एक बेकरी को निशाना बनाया गया. बुधवार को कोई तोड़फोड़ नहीं हुई.

हालांकि, जिला कलेक्टर पी. अनुग्रह का कहना है कि ये आंकड़े ‘गलत’ हैं क्योंकि कुछ घर और दुकानें ‘टिन’ के बने अस्थायी ढांचे थे, जिन्हें उन लोगों ने बनाया था जिनके पास रहने के लिए अन्य स्थान थे.

उनके अनुसार, केवल 16 से 20 दुकानें और चार घरों को तोड़ा गया हैं और ‘वह भी केवल टिन के ढांचे थे.’


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विशेषज्ञों ने ध्वस्तीकरण अभियान की वैधता पर सवाल उठाए

जिला कलेक्टर ने दिप्रिंट को बताया कि खरगोन में तोड़फोड़ मध्य प्रदेश नगर निगम नियमों के साथ-साथ एमपी भू-राजस्व संहिता के प्रावधानों के तहत की गई.

हालांकि, कई कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह से यह अभियान चलाया गया, उसमें कई खामियां हैं.

इंदौर के एक वकील अंकित प्रेमचंदानी के मुताबिक, अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे उचित नोटिस दें और तोड़फोड़ शुरू करने से पहले कुछ जरूरी प्रक्रियाओं का पालन करें.

उन्होंने कहा, ‘किसी इमारत को गिराने से पहले कई तरह की अनुमति लेनी पड़ती है. नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत कहते हैं कि संबंधित पक्ष को अपील का समय और सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए, यह बताने के लिए कि उनके घर को क्यों नहीं तोड़ा जाना चाहिए.’ साथ ही कहा कि यदि नोटिस हासिल करने के लिए कोई उपलब्ध नहीं है तो उसे दरवाजे पर चिपकाना भी स्वीकार्य है.

उन्होंने कहा, ‘इसे चिपकाया जाता है और अधिकारियों की तरफ से इसकी तस्वीर क्लिक की जाती है और माना जाता है कि इसे तामील कराया गया है.’

मध्य प्रदेश के ही एक अन्य वकील अभिनव बी. धनोदकर ने भी कहा कि राज्य नगर निगम कानून के तहत लोगों को अवैध कब्जे वाली जमीन खाली करने के लिए कम से कम तीन दिन का समय दिया जाना चाहिए.

धनोदकर ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने अपने कई आदेशों में कहा है कि उचित समय दिया जाना चाहिए. नोटिस में इस कारण का भी उल्लेख होना चाहिए कि घर अवैध क्यों है— क्या नक्शे को मंजूरी नहीं मिली है या घर जीर्ण-शीर्ण और खतरनाक है या इसे अतिक्रमण करके बनाया गया है.’

इसके अलावा, 2016 में मध्य प्रदेश नगर निगम नियमों में शुल्क का भुगतान करके भवनों में अनधिकृत निर्माण को वैध कराने की अनुमति दी गई है.

प्रेमचंदानी ने कहा, ‘किसी अवैध निर्माण पर एक निश्चित समयसीमा के भीतर कंपाउंडिंग फीस जमा करने की आवश्यकता होती है. यह अवसर सभी पक्षों को दिया जाना चाहिए.’

दिल्ली निवासी वकील अनस तनवीर ने भी उचित प्रक्रिया की ओर ध्यान आकृष्ट किया. उन्होंने कहा, ‘ऐसे मामलों में न्यायिक निर्णय कार्यकारी मजिस्ट्रेट या सिविल कोर्ट द्वारा किया जाना चाहिए. ध्वस्तीकरण से पहले भी उन्हें उचित समय देते हुए नोटिस देना होता है कि वे फलां तारीख को उनका घर गिराने जा रहे हैं.’

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता एहतेशाम हाशमी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि मध्य प्रदेश सरकार का ध्वस्तीकरण अभियान कानूनी नोटिस दिए जाने को ताक पर रख आगे निकल गया है.

उन्होंने ध्वस्तीकरण अभियान को अनुच्छेद-21 का उल्लंघन बताया, जो जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा से संबंधित है, क्योंकि लोगों को निष्पक्ष मुकदमे और कानूनी सहायता का अधिकार दिए बिना अतिक्रमण कानूनों के तहत ‘किसी और कथित अपराध’ के लिए दंडित किया गया.

हाशमी ने कहा, ‘यह कानूनन सही नहीं है. भले ही उन्हें नोटिस दिया गया हो लेकिन आप इसे इस तरह अंजाम नहीं दे सकते…कर्फ्यू क्षेत्र में, उन्होंने क्षेत्रों को अलग-थलग कर दिया है और फिर मौका देखकर उनके घरों को ढहा दिया.’


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‘सजा’ के तौर पर ध्वस्तीकरण की पिछली घटनाएं

मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से पहले भी इसी तरह के कदम उठाए जाने को लेकर सवाल उठते रहे हैं, जिसमें किसी अन्य आरोप के बाद ‘अतिक्रमण करने वालों’ के खिलाफ ‘अवैध निर्माण’ ढहाने की कार्रवाई की गई है.

दिसंबर 2020 में उज्जैन में अधिकारियों ने भारतीय जनता युवा मोर्चा की रैली के दौरान पथराव की घटना के बाद अब्दुल रफीक के एक घर को ध्वस्त कर दिया था.

इस घटना के संदर्भ में जिला कलेक्टर का दावा किया था कि ध्वस्तीकरण अभियान से दो लक्ष्य साधे गए, एक तो अवैध अतिक्रमण को ढहाया गया और साथ ही ‘पथराव की घटना में शामिल अपराधियों’ को निशाना बनाया गया.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस दीपक गुप्ता ने इस घटना को ‘एकदम अवैध और एक पुलिसिया राज वाला कृत्य’ बताया है. उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह की घटनाएं पुलिस और राजनेताओं द्वारा कानून अपने हाथ में लेने और अदालतों के प्रति भरोसे में कमी को दर्शाती हैं.

पिछले साल भी, हिंदुत्व समूहों की एक रैली के दौरान पथराव की घटना के बाद धार में एक मुस्लिम व्यक्ति के घर को तोड़ दिया गया था. उस समय, पुलिस अधीक्षक ने मीडियाकर्मियों से कहा था कि घर अवैध था लेकिन अनुविभागीय मजिस्ट्रेट ने कहा था कि यह ‘शांति भंग करने वाले असामाजिक तत्वों को चेतावनी’ थी.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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