नयी दिल्ली, पांच अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि विलय के बाद कंपनी खत्म नहीं हो जाती। जिस कंपनी में विलय हुआ है, उसे विलय की शर्तों और प्रत्येक मामलों में तथ्यों के आधार पर संबंधित कंपनी की देनदारी से जोड़ा सकता है।
न्यायाधीश यू यू ललित और न्यायाधीश एस रवीन्द्र भट्ट की पीठ ने इस महत्वपूर्ण कानूनी सवाल का निपटान किया कि आखिर विलय के बाद कौन आयकर का देनदार होगा। जिसका विलय हुआ है या जिसमें विलय हुआ है।
पीठ ने पूर्व के निर्णय के आधार पर मामले में आदेश देते हुए इस बात को खारिज कर दिया कि विलय वाली कंपनी का अब कोई अस्तित्व नहीं है और उसे देनदार नहीं बनाया जा सकता।
न्यायालय आयकर विभाग की अपील पर सुनवाई कर रहा है। उसने महागुन रियल्टर्स प्राइवेट लि. (एमआरपीएल) के खिलाफ आयकर मामले को फिर से विचार और निर्णय के लिये आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण को भेज दिया।
पीठ ने कहा कि विलय किसी कंपनी के कारोबार को समेटने जैसा नहीं है।
‘‘विलय के मामले में निश्चित रूप से संबंधित कंपनी जिस रूप में जानी जाती है, वह समाप्त हो जाता है। उसका अस्तित्व खत्म हो जाता है। लेकिन कंपनी का कामकाज उस इकाई के साथ जारी रहता है, जिसमें विलय हुआ है।
पीठ के अनुसार, ‘‘दूसरे शब्दों में कंपनी का कारोबार जारी रहता है लेकिन नये कंपनी परिसर में यानी जिसमें उसका विलय हुआ है। ऐसे में यह जरूरी है कि मामले को सिर्फ धारणा के बजाय, इसे व्यापक रूप से देखा जाए।
मामले के तथ्यों के अनुसार, एमआरपीएल का महागुन इंडिया प्राइवेट लि. के साथ विलय विलय हुआ था और आयकर अधिकारी ने 11 अगस्त, 2011 को आठ करोड़ रुपये से अधिक की आय को लेकर आकलन आदेश जारी किया था।
आयकर आयुक्त ने आयकर विभाग द्वारा कर के दायरे में लायी गयी कुछ राशि को अलग कर रियल एस्टेट कंपनी की अर्जी को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया था। आयुक्त ने आयकर विभाग की याचिका को खारिज कर दिया।
मामले में आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) और दिल्ली उच्च न्यायालय ने आयकर विभाग की याचिका को खारिज कर दिया था।
भाषा
रमण अजय
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