नई दिल्ली: काठमांडू द्वारा सीमाओं को फिर से परिभाषित किए जाने के प्रयास की वजह से आपसी संबधों में आई दरार के लगभग दो साल बाद, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके नेपाली समकक्ष शेर बहादुर देउबा ने शनिवार को कई सारी विकास संबंधी परियोजनाओं की घोषणा करके आपसी मतभेदों को दूर करने की दिशा में कदम उठाया.
सीमा पार रेल संपर्क से लेकर बिजली व्यापार के लिए एक गलियारा बनाये जाने तक भारत और नेपाल ने अपने आपसी संबंधों, जो इस समय सीमा विवाद के मुद्दों से लेकर इस हिमालयी देश में चीन के बढ़ते दखल तक कई सारी चुनौतियों का सामना कर रहा है, को फिर से सहज बनाने का प्रयास किया.
मोदी और देउबा के बीच इस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों पक्षों ने विद्युत क्षेत्र में सहयोग पर एक भारत-नेपाल जॉइंट विजन डॉक्युमेंट भी जारी किया, जो रेल संपर्क के अलावा नेपाल के प्रधान मंत्री की भारत यात्रा से सबसे बड़ी उपलब्धि थी.
देउबा ने मोदी से मिलने से पहले हैदराबाद हाउस में अपनी उद्घाटन भाषण के दौरान कहा, ‘नेपाल की जलविद्युत (हाइड्रोएलेक्ट्रीसिटी) उत्पादन और इसके निर्यात की उच्च क्षमता को देखते हुए हमारे दोनों देशों के बीच बिजली निर्यात के क्षेत्र में सहयोग के बारे में व्यापक समझ होना महत्वपूर्ण है. इसलिए, हमारी चर्चा के दौरान सीमा पार होने वाला बिजली का व्यापार एक प्राथमिकता एजेंडा (मुद्दा) बना हुआ है.’
उन्होंने यह भी कहा, ‘मैं विद्युत क्षेत्र में सहयोग पर नेपाल-भारत जॉइंट विजन स्टेटमेंट, जिस पर आज हम जलविद्युत उत्पादन, इसके ट्रांसमिशन (संचरण) और इसके सीमा-पार व्यापार पर पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग के लिए सहमत हुए हैं, से बहुत खुश हूं. मैं प्रधानमंत्री मोदी जी के नेपाल से बिजली खरीदने के प्रस्ताव का स्वागत करता हूं.’
विद्युत क्षेत्र के विज़न डॉक्यूमेंट के अनुसार, नई दिल्ली के हालिया सीमा-पार बिजली व्यापार नियमों ने नेपाल को भारतीय बाजार तक पहुंच बनाने और भारत के साथ बिजली का व्यापार करने में सक्षम बनाया है.
दोनों प्रधानमंत्रियों ने शनिवार को यह भी कहा कि भारत और नेपाल के पास बिजली व्यापार के क्षेत्र में ‘अभूतपूर्व अवसर’ हैं. इनमें नेपाल में बिजली उत्पादन परियोजनाओं का संयुक्त विकास, सीमा-पार ट्रांसमिशन, बुनियादी ढांचे का विकास, और पारस्परिक लाभ के आधार पर दोनों देशों में बिजली बाजारों तक उचित पहुंच के साथ दोनों दिशाओं में किया जाने वाले बिजली व्यापार शामिल है.
उन्होंने बाजार की मांग और प्रत्येक देश में लागू घरेलू नियमों, राष्ट्रीय ग्रिड के समन्वित संचालन तथा नवीनतम परिचालन सम्बन्धी सूचना, प्रौद्योगिकी और जानकारी को साझा करने में संस्थागत सहयोग का भी उल्लेख किया.
नेपाल में बनी 90 किलोमीटर लंबी 132 किलोवोल्ट (केवी) वाली सोलू कॉरिडोर ट्रांसमिशन लाइन, जिसे 200 करोड़ रुपये की लागत से भारतीय क्रेडिट के साथ बनाया गया है, का भी शनिवार को उद्घाटन किया गया.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘हम नेपाल की जलविद्युत विकास योजनाओं में भारतीय कंपनियों द्वारा अधिक भागीदारी के विषय पर भी सहमत हुए. यह बेहद खुशी की बात है कि नेपाल अपनी अतिरिक्त बिजली भारत को निर्यात कर रहा है. यह नेपाल की आर्थिक प्रगति में अच्छा योगदान देगा. ‘
दोनों प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त रूप से बिहार के जयनगर से नेपाल के कुर्था तक 35 किलोमीटर लंबे सीमा-पार रेल लिंक के संचालन का भी शुभारंभ किया. यह मुद्दा भी भारत-नेपाल संबंधों में एक बड़ी अड़चन बना हुआ था.
भारत द्वारा वित्त पोषित यह परियोजना, जिसमें 34.9 किलोमीटर के नैरो गेज सेक्शन को ब्रॉड गेज में बदला जाना शामिल था, इस साल अक्टूबर में ही नेपाल को सौंप दी गयी थी. मगर सुरक्षा से जुड़े मुद्दों की बजह से इस रेलवे लाइन के संचालन की प्रक्रिया में देरी हुई.
मोदी और देउबा ने नेपाल में रुपे कार्ड के संचालन का भी शुभारंभ किया. इसका उद्देश्य इस हिमालयी देश में भारतीय पर्यटकों के प्रवाह को बढ़ावा देना था.
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नेपाल के 2020 के नक्शे पर नहीं हुई कोई ठोस प्रगति
हालांकि सीमा के मुद्दे पर चर्चा हुई, लेकिन उस मामले में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई, जिसके द्वारा भारत और नेपाल के बीच नाजुक संबंधों में एक बार फिर से बाधा डाले जाने की संभावना है.
देउबा ने अपने मीडिया बयान में कहा, ‘हमने सीमा सम्बन्धी मामलों पर चर्चा की और मैंने उनसे पहले से स्थापित तंत्र के माध्यम से इन्हे हल करने का आग्रह किया.’
इस बीच, मोदी ने कहा कि ‘भारत और नेपाल की खुली सीमाओं’ के मुद्दे पर चर्चा की गई क्योंकि इसका ‘अवांछित तत्वों द्वारा दुरुपयोग’ किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘हमने अपने रक्षा और सुरक्षा संस्थानों के बीच नजदीकी सहयोग बनाए रखने पर भी जोर दिया.’
मगर, भारत ने आधिकारिक तौर पर 2020 में नेपाल द्वारा अपने राजनीतिक मानचित्र को बदलने तथा इसमें कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा के विवादित क्षेत्रों को अपने इलाके में शामिल करने का मुद्दा नहीं उठाया.
बाद में मीडिया को संबोधित करते हुए, विदेश सचिव हर्ष वी. श्रृंगला ने कहा, ‘मुझे लगता है कि एक आम भावना यह थी कि हमें इसे चर्चा और बातचीत के माध्यम से हल करना चाहिए.’ श्रृंगला ने कहा, ‘दोनों पक्षों ने इस बारे में एक संक्षिप्त चर्चा की और आम तौर पर महसूस किया कि इस मुद्दे को हल करने के लिए हमें एक जिम्मेदार तरीके से बातचीत और चर्चा करने की आवश्यकता है और यही वह तरीका है जिसमें हम आगे चलकर शामिल होंगे. … और हमें इस बात में कोई संदेह नहीं है कि दो करीबी और मैत्रीपूर्ण देशों के बीच, हम कोई रास्ता खोज ही लेंगे.’
हालांकि, भारत ने हमेशा यह स्वीकार किया है कि उसे नेपाल के साथ कालापानी और सुस्ता के सीमा मुद्दों को सुलझाने की जरूरत है, मगर नवंबर 2019 में मामला तब थोड़ा गंभीर हो गया जब जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म किये जाने के बाद मोदी सरकार भारत का एक नया राजनीतिक मानचित्र लेकर आई. इस में कालापानी को उत्तराखंड के हिस्से के रूप में दर्शाया गया था .
हालांकि, जब 5 मई, 2020 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कैलाश-मानसरोवर के लिए नई सड़क का उद्घाटन किया, तो सारा मामला काफी बिगड़ गया. यह सड़क उत्तराखंड के पिथौरागढ़ को भारत-चीन सीमा पर स्थित उस लिपुलेख दर्रे से जोड़ती है जिसे नेपाल अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है.
इसके बाद, नेपाल ने 11 मई, 2020 को काठमांडू में भारतीय दूत विनय मोहन क्वात्रा को एक राजनयिक चिट्ठी (डिप्लोमेटिक नोट) सौपी, जिसमें भारत को वर्चुअल माध्यम से विदेश सचिव स्तर पर बातचीत करने के लिए कहा गया था; भारत ने इस मांग को खारिज कर दिया था.
अंततः, उस वर्ष 20 मई को, केपीएस ओली के नेतृत्व वाली तत्कालीन नेपाल सरकार ने एक नया नक्शा जारी किया, जिसमें लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी के विवादित क्षेत्रों को उसकी सीमाओं के भीतर दिखाया गया था. इस को भारत ने स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया था.
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