पटना: मुकेश सहनी की फर्श से अर्श तक पहुंचने का सफर मानो अब खत्म हो गया है. खासकर अभी तो यही कहा जा सकता है जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें राज्य कैबिनेट के मत्स्य और पशुपालन मंत्रालय से उन्हें हटा दिया है.
बॉलीवुड सेट डिजाइनर से राजनेता बने सहनी, बीते कई दिनों से बिहार के सभी भाजपा नेताओं के निशाने पर हैं. वे कई कारणों से उनसे खफा हैं, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान उनके बयानों के कारण.
भाजपा नेताओं ने सहनी को कैबिनेट से हटाने की मांग की थी जिसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने सहयोगी दल भाजपा की मांग को मान लिया.
पिछले हफ्ते विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के सभी तीन विधायक भाजपा में शामिल हो गए. सहनी अब अपनी पार्टी के अकेले एमएलसी हैं. वो भाजपा कोटे से एमएलसी हैं जिसका कार्यकाल जून में खत्म होने जा रहा है.
कैबिनेट से बर्खास्तगी के बाद मुकेश सहनी का राजनीतिक कैरियर अब अधर में लटक गया है लेकिन इससे पहले भी वो कई चुनौतियों से गुज़र चुके हैं.
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कौन हैं सहनी?
18 साल की उम्र में मुकेश सहनी, बिहार का दरभंगा जिला छोड़कर भागे थे. इस रिपोर्टर को उन्होंने पहले बताया था, मैं एक दोस्त के साथ भागा था. हमारा दिल्ली जाने की योजना थी लेकिन मुंबई जाने वाली ट्रेन पहले आ गई, इसलिए हम मुंबई पहुंच गए.
900 रुपए महीने की सैलरी से काम की शुरुआत करने वाले सहनी आगे चलकर बॉलीवुड फिल्मों के लिए सेट बनाने लगे और फिर बाद में इसी काम का कॉन्ट्रैक्ट लेने लगे. उन्होंने अपनी कंपनी स्थापित की जिसका नाम था- मुकेश सिने वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड. मुकेश सहनी याद करते हैं कि कैसे उन्होंने 2002 के ब्लॉकबस्टर देवदास फिल्म के दौरान शाहरुख खान और ऐश्वर्या बच्चन के साथ फोटो खिंचवाई थी.
ये ठीक वैसा ही था जैसे एक रंक का राजा बन जाना.
2013 में उन्होंने राजनीति का रुख किया और भाजपा को समर्थन दिया. 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ मंच साझा की थी, जहां उन्हें एक ऐसे युवा की तरह प्रस्तुत किया गया था जिसने मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में नाम कमाया.
हालांकि 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद सहनी ने अपनी खुद की विकासशील इंसान पार्टी बनाई. उन्होंने अखबारों के फ्रंट पेज पर विज्ञापन दिए जिसमें उन्होंने खुद को सन ऑफ मल्लाह बताया यानी मल्लाह का बेटा.
मछली पालन का काम करने वाले समुदाय से सहनी ताल्लुक रखते हैं जो बिहार में एक अति पिछड़ी जाति है, जिसकी जनसंख्या राज्य में 29 प्रतिशत के करीब है. मल्लाह और निषाद समुदाय की जनसंख्या दरभंगा, मधुबनी, खगड़िया, मुजफ्फरपुर में करीब 4 प्रतिशत के करीब है.
विकासशील इंसान पार्टी के मुखिया के तौर पर
सहनी ने विकासशील इंसान पार्टी का जब गठन किया था, उस समय उन्होंने शपथ ली थी कि वो अपने समुदाय के लोगों की भलाई और उत्थान के लिए काम करेंगे. उन्होंने अपने समुदाय और राजनीतिक पार्टियों को हैरत में डाल दिया था जब उन्होंने चॉपर्स, महंगी बसों की इस्तेमाल किया और कथित तौर पर समर्थकों को पैसे दिए. वहीं पटना के एक महंगे होटल में उनके लिए एक कमरा पूरे साल के लिए बुक रहता था.
4 नवंबर 2018 को गांधी मैदान में उन्होंने निषाद आरक्षण रैली की थी जहां उन्होंने अपने समुदाय के आरक्षण की मांग की थी. उस रैली में तकरीबन 2 लाख लोगों की भीड़ थी जिसने बिहार की राजनीतिक पार्टियों को ये दिखाया कि सहनी के पास न केवल पैसा है बल्कि अपने समुदाय के युवाओं के बीच गहरी पैठ भी है.
हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने विपक्षी गठबंधन का दामन थामा. उनकी पार्टी ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक भी सीट नहीं मिली.
तेजस्वी यादव की तरह सहनी भी एकदम अचंभित थे लेकिन वो गठबंधन में बने रहे, वो भी तब तक जब 2020 में विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे की घोषणा हो रही थी. सहनी ने यादव पर आरोप लगाया कि उन्होंने उनकी पीठ पर छुरा घोंपा और उसके तुरंत बाद वो दिल्ली आकर अमित शाह से मिले. सहनी को बिहार में 11 विधानसभा सीटें और एक एमएलसी का पद देने की बात तय हुई.
11 सीट बस कहने के लिए थी. 11 में से छह सीटों पर उम्मीदवार भाजपा ने ही तय किए थे. बिहार विधानसभा चुनाव में वीआईपी को 4 सीटें मिलीं लेकिन उनके सभी विधायक भाजपा के पूर्व नेता थे जिनकी वफादारी सहनी से ज्यादा भाजपा से थी.
सहनी खुद अपनी विधानसभा सीट नहीं जीत पाए थे लेकिन भाजपा के कोटे से वो एमएलसी चुने गए जिसके बाद उन्हें बिहार में मंत्री बनाया गया.
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बड़ी गलती
सहनी की पार्टी को विस्तार देने की जल्दबाजी उनके लिए एक गलती साबित हुई. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने उनके साथ सीट बंटवारे को लेकर मना कर दिया था. सहनी की बजाए भाजपा ने संजय निषाद को तवज्जो दी.
सहनी ने यूपी चुनाव में अकेले लड़ने का फैसला किया और 49 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. उन्होंने न केवल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमले किए बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी निशाने पर लिया. उन्होंने एक पूरे पन्ने का विज्ञापन निकाला जिसमें उन्होंने मतदाताओं से भाजप को वोट न देने की अपील की.
भाजपा के मंत्री सम्राट चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब आपने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा तो उसके बाद गठबंधन में रहने का कोई सवाल ही नहीं उठता.’
यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद विकासशील इंसान पार्टी के सभी विधायक भाजपा में शामिल हो गए. वीआईपी को बोचहा विधानसभा सीट देने से मना कर दिया गया जहां 12 अप्रैल को उपचुनाव होना है, जो कि सिंटिंग वीआईपी विधायक की मृत्यु के बाद खाली है.
रविवार को सीएम नीतीश कुमार ने भाजपा के दबाव के बाद राज्य के राज्यपाल को सहनी को हटाने की अनुशंसा कर दी.
सहनी ने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर मुझे कंफर्ट में रहना होता तो मैं मुंबई छोड़कर नहीं आता. लेकिन मैं अपने समुदाय के लिए काम करना चाहता हूं.’ उन्होंने कहा कि वो अपने संगठन को मजबूत करने की शपथ लेते हैं ताकि दूसरे पार्टियों को उनके साथ गठबंधन करने की जरूरत पड़े.
लेकिन सहनी ने दूसरी पार्टियों के साथ भी अपने रिश्ते खराब कर लिए हैं. यहां तक कि राजद ने भी उनके लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं. राजनेताओं का कहना है कि सहनी ने कई गलतियां की हैं जो अक्सर राजनेता नहीं करते. वो 42 साल के हैं लेकिन राजनीति के हिसाब से अभी भी युवा हैं लेकिन वो अलग-थलग पड़े चुके हैं. शायद फिल्म इंडस्ट्री और बिहार की राजनीति दोनों पर महारत हासिल करना इतना भी आसान काम नहीं है.
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