scorecardresearch
Monday, 25 November, 2024
होमदेश#जनरेशन नोव्हेयर: स्मार्टफोन की लत के साथ अब एक अदृश्य महामारी से जूझ रहे भारत के युवा

#जनरेशन नोव्हेयर: स्मार्टफोन की लत के साथ अब एक अदृश्य महामारी से जूझ रहे भारत के युवा

कई सारे युवा भारतीय कॉलेज की पढाई छोड़ रहे हैं, उनकी आईआईटी में प्रवेश की आकांक्षाएं धूल में बदल रही हैं और उनमे से कई तो अब नशामुक्ति केंद्रों की शरण में हैं. क्या स्मार्टफोन पर निर्भरता वाकई बढ़ती जा रही है?

Text Size:

प्रयागराज: शौर्य प्रताप चौहान के लिए सब कुछ एकदम ठीक चल रहा था. अपनी कक्षा के सबसे प्रतिभाशाली छात्रों में से एक रहे चौहन ने साल 2014 में अपनी 10वीं की बोर्ड परीक्षा में 90% अंक प्राप्त किए थे. फिर, बिना किसी स्पष्ट कारण के, उसके अंक कम होते चले गए. 12वीं की बोर्ड परीक्षा में उसने सिर्फ 75 फीसदी अंक हासिल किए. राजस्थान के कोटा में स्थित एक जाने-माने कोचिंग इंस्टिट्यूट से कोचिंग के बावजूद, वह इंजनियरिंग की संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम) पास करने अथवा किसी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में अपना प्रवेश सुरक्षित करने में विफल रहा. इसके बाद उसने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में गणित की पढ़ाई की और बड़ी मुश्किल से किसी तरह स्नातक हो पाया, लेकिन उसका कहना है कि अब वह स्वयं से गणित का एक भी प्रश्न हल नहीं कर सकता.

सालों तक चौहान ने अपनी इन सारी मुसीबतों के लिए अपने टूटे हुए रोमांटिक रिश्ते को दोष दिया. कई अन्य लोगों की तरह, उसके माता-पिता ने भी बुरी संगति, ध्यान लगाने की कमी और आमतौर पर युवा वयस्कों द्वारा सामना की जाने वाली भावनात्मक समस्याओं को दोषी ठहराया. पर एक बात थी जिस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और वह था चौहान का सबसे अंतरंग, निरंतर साथ रहने वाले, उसका अपना स्मार्टफोन.

अपनी ‘जेनरेशन नोव्हेयर’ वाली श्रृंखला की पिछली खबर में, दिप्रिंट ने युवाओं के बीच बेरोजगारी के बढ़ते संकट, राजनीतिक या सामाजिक सक्रियता के लिए अवसरों की कमी और इंटरनेट के उपयोग में आयी विस्फोटक तेजी पर नजर डाली थी. स्मार्टफोन का व्यसन अथवा लत इस संकट की अभिव्यक्तियों में से एक है.

साल 2019 से ही राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के डॉ. राकेश पासवान और डॉ. ईशानराज के नेतृत्व में एक टीम एक ऐसी महामारी से जूझ रही है जो कई युवा भारतीयों के जीवन को नष्ट-भ्रष्ट करती जा रही है. इसी उद्देश्य से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले (पूर्व में इलाहाबाद) के मोतीलाल नेहरू मंडल अस्पताल में डॉक्टरों ने एक मोबाइल नशामुक्ति केंद्र स्थापित किया है.

कुछ युवाओं के लिए तो यही उनकी एकमात्र आशा है.


यह भी पढ़ें: ‘लौटा दो पुरानी पेंशन’ : पेंशन योजना बहाल करने के लिए पूरे देश में लगातार तेज हो रहा आंदोलन


स्मार्टफोन के प्रति दीवानगी की दुनिया

विशेषज्ञों ने लंबे समय से व्यावहारिक व्यसन (बेहवियरल एडिक्शन) के अस्तित्व को मान्यता दी हुई है. एक ओर जहां ड्रग्स (मादक पदार्थों) के आदी लोग किसी मादक पदार्थ पर निर्भर हो जाते हैं, वहीं व्यावहारिक व्यसनी- जैसे की जुआरी कि क्लेप्टोमेनियाक्स (आदतन छोटी-मोटी चोरी करने वाले) – किसी खास कृत्य को करने से आराम और आनंद प्राप्त करते हैं. भारत में स्मार्टफोन की लत से जुड़ा नैदानिक साहित्य (क्लीनिकल लिटरेचर) काफी कम है, लेकिन एक अध्ययन के तहत युवा लड़कों में इसके प्रति उच्च स्तर की निर्भरता पाई गई है. 2014 के एक अन्य शोध पत्र ने युवाओं में स्मार्टफोन के प्रति निर्भरता के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों की ओर इशारा किया.

कई अन्य लोगों की तरह, चौहान द्वारा फोन के उपयोग में तब काफी तेजी से वृद्धि हुई जब उसने एक साधारण स्मार्टफोन से टचस्क्रीन के उपयोग की ओर कदम बढ़ाया. उसने फोन कॉल, व्हाट्सएप, दो-दो फेसबुक अकाउंट (जिनमें वह दिन में लगभग 400 बार लॉग इन और लॉग आउट करता था) और यूट्यूब पर दिन में 12 घंटे से अधिक का समय बिताना शुरू कर दिया. उसने मेरे साथ हुई एक बातचीत में कहा, ‘मैं पूरे-पूरे दिन चारपाई पर लेटा रहता था और अपने फोन का उपयोग करने के अलावा कुछ नहीं करता था.’

23 साल शौर्य प्रताप चौहान, झांसी निवासी अपने स्मार्टफोन को स्क्रॉल करते हुए | ज्योति यादव | दिप्रिंट

हालांकि, यह कोई असामान्य या अनूठी कहानी नहीं है. डॉ ईशानराज कहते हैं, ‘एक मामले में, एक अभिभावक जोड़ा अपने बेटों, जो 11वीं और 12वीं में थे, के बारे में चिंता करते हुए हमारे पास आया. उनमें से एक लड़के ने तो उसकी परीक्षा में बैठने से साफ इनकार कर दिया था. जब माता-पिता ने उन दोनों से उनका फोन छीनने की कोशिश की तो वे हिंसक हो उठे. उस अनुभव ने ही अंततः हमें स्मार्टफोन नशामुक्ति केंद्र स्थापित करने के लिए प्रेरित किया.’

चौहान की कहानी कोई अपवाद भी नहीं है. उसके एक दोस्त आकाश जायसवाल, जो एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता है, ने वीडियो गेम पबजी खेलने की लत के कारण कालेज की पढ़ाई छोड़ दी है. चौहान याद करते हुए कहते हैं, ‘उसने कहा कि वह पिता की किराने की दुकान संभालेगा और पत्राचार से डिग्री हासिल कर लेगा.’

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ही 24 वर्षीय छात्र सोनू कुमार ने आधी रात को अपने पिता का व्हाट्सएप स्टेटस देखा और इसके तुरंत बाद उनका फोन आ गया. अपने पिता द्वारा डांटे जाने के डर के बारे में बात करते हुए कुमार ने कहा, ‘हमको लगा था कि वो इस बात के लिए डाटेंगे कि रात के 12 बजे भी फोन से चिपके हुए हो.‘ लेकिन वह अपने पिता को खुशी से मुस्कुराते हुए देखकर हैरान हो गया जो उसे बता रहे थे कि तुम पहले शख्श हो जिसने मेरा नवीनतम व्हाट्सएप स्टेटस देखा है. यह इस बात का एक स्पष्ट संकेत है कि स्मार्टफोन के लत की आदत उम्र के अंतराल को पार कर गयी है.’

ऐसा भी नहीं है कि युवा पीढ़ी इन खतरों से अनजान है. कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) परीक्षा की तैयारी कर रहे 23 वर्षीय समरजीत यादव ने अपने फोन से सभी सोशल मीडिया ऐप्स को डिलीट कर दिया है.

वे कहते हैं, ‘अक्सर मैं अपनी मां से एक कप चाय मांगने के बाद अपने फोन की वजह से विचलित हो जाता हूं और एक ऐप से दूसरे ऐप पर आता-जाता रहता हूं. तब, मुझे एहसास होता है कि चाय तो ठंडी हो गई है, इसलिए मैं उसे फिर इसे मेरे लिए गर्म करने के लिए कहता हूं. फिर, वही बात बार-बार होती रहती है.’

प्रतियोगी परीक्षा के एक अन्य प्रत्याशी सत्यम शुक्ला ने अपना फोन इस उम्मीद के साथ चार्ज करना बंद कर दिया है कि इससे उसके उपयोग का समय कम हो जाएगा. अभिषेक कुमार तो इससे भी एक कदम आगे चले गए और उन्होंने हाल ही में अपना फोन तोड़ दिया. वे कहते हैं कि उन्होंने यह कदम ‘मोबाइल की लत से कैसे छुटकारा पाएं’ के बारे में गूगल पर अंतहीन सर्च के बाद तंग आकर उठाया.

आने वाला संकट की आहट

पिछले हफ्ते तपती हुई गरमी की एक दुपहरी में प्रयागराज के प्रसिद्ध सुभाष चौराहा के पास से तीन युवकों का एक समूह गुजरा. उनमें से एक को पल्सर बाइक चलाने का काम सौंपा गया था, जबकि बीच में बैठा एक युवक इंस्टाग्राम रीलों को देख रहा था और तीसरे वाला संगीत सुन रहा था. उनमें से एक ने बताया ‘हमारे पास बाइक चलाने के लिए एक रोटा (बारी-बारी से किया जाने वाला) सिस्टम है. लड़ाई इस बात के लिए नहीं होती कि कौन ड्राइव करता है, यह इस बात पर होती है कि कौन सबसे पीछे बैठता है, ताकि वह फ्री होकर अपने स्मार्टफोन का उपयोग कर सके.’

प्रयागराज (पहले इलाहाबाद), उत्तर प्रदेश, तीन युवा बाइक पर जाते हुए | फोटो- ज्योति यादव, दिप्रिंट

सार्वजनिक रूप से अपने फोन से चिपके किशोर छोटे शहरों और ग्रामीण भारत के उसी तरह के प्रतीक बन रहे हैं जैसी कि अपने खेतों में काम कर रहे किसान. प्रयागराज के एक ऐसे छात्र की कहानी बड़ी मशहूर है, जिसे लैम्प-पोस्ट से टकराने या नालियों में गिरने से बचने के लिए एक साथी की जरूरत रहती थी, क्योंकि वह अपने स्मार्टफोन से अपनी नजरें नहीं हटा सकता था. हालांकि यह कहानी किंवदंती हो सकती है, लेकिन इसके पीछे का संदेश नहीं.

जब एक दशक पहले पहली बार स्मार्टफोन की लत के बारे में शोध सामने आया, तो केवल कुछ लोगों ने इस पर ध्यान दिया. हालांकि, जब पीड़ित परिवारों ने मदद मांगना शुरू किया तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसके बारे में काम करना शुरू कर दिया.

भारत का पहला स्मार्टफोन नशामुक्ति केंद्र जून 2014 में बेंगलुरु में खोला गया था. इसके तुरंत बाद दिल्ली में इसका अनुसरण किया गया. साल 2019 में पुणे में और फिर उत्तर प्रदेश के तीन जिलों में ऐसे केंद्र स्थापित किये गए थे. एक केंद्र अमृतसर में भी है.

डॉ पासवान कहते हैं, ‘धीरे-धीरे, युवाओं के दिमाग का स्थान (ब्रेन स्पेस), खाली समय और रचनात्मकता वास्तविक दुनिया से दूर होती जाती है और स्मार्टफोन के अंदर कैद हो जाती है.’

उपचार से मदद मिल सकती है. चौहान सालभर से दवा पर हैं और अब उनकी ध्यान क्षमता भी बढ़ गयी है. उनका स्क्रीन-टाइम (फोन पर बिताया गया समय), जो पहले दिन में 14 घंटे से अधिक था, अब घटकर 7-8 घंटे हो गया है. हालांकि, अभी ऐसी कोई जादुई गोली नहीं है जो इस समस्या को तुरंत ठीक कर सकती है. डॉ ईशानराज कहते हैं, ‘हमने 400 से अधिक रोगियों को पंजीकृत किया है. लेकिन उनमें से केवल 40% ही फॉलो-अप के लिए वापस आए.’

गोपनीय मनकक्ष (कन्फिडेंशियल रूम) मोतीलाल नेहरू डिवीजनल हॉस्पिटल, प्रयागराज जिला, उत्तर प्रदेश | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

क्लीनिकल लिटरेचर से पता चलता है कि सभी अन्य व्यसनों की तरह, इसमें भी नशा मुक्ति की प्रगति निराशाजनक रूप से धीमी हो सकती है, और इसके फिर से उभर आने (रिलैप्स) की दर काफी अधिक हो सकती है. प्रत्येक व्यसन, चाहे वह व्यावहारिक हो या मादक द्रव्यों के सेवन वाला, जटिल भावनात्मक, व्यक्तिगत और सामाजिक कारकों से जुड़ा हुआ होता है. सभी जरूरतमंद युवाओं को निरंतर रूप से मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद नहीं हैं.

प्रयागराज नशामुक्ति केंद्र के डॉक्टरों का मानना है कि समस्या और भी विकराल होने वाली है. डेलॉयट के एक अध्ययन के अनुसार, साल 2026 तक भारत दूसरे सबसे बड़े स्मार्टफोन निर्माता और लगभग एक अरब उपयोगकर्ताओं के बाजार के रूप में उभरेगा, और ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट-इनेबल्ड फोन की बिक्री अधिक होगी.

स्मार्टफोन की कीमतें लगातार गिर रही हैं और ऑनलाइन परीक्षा, सेमिनार, मनोरंजन से लेकर स्थानीय फलों के जूस की दुकान पर 20 रुपये के भुगतान तक हर चीज के लिए उनका उपयोग सर्वव्यापी होता जा रहा है. स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की संख्या और अधिक वृद्धि के लिए तैयार है. और इसके साथ, ही इसके नशेड़ियों की संख्या में भी अनवरत रूप से बढ़ती चली जाएगी.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: इलाहाबाद से BHU तक- भारत को फायर ब्रांड नेता देने वाले UP के विश्वविद्यालयों में सूख रही अब राजनीति की नर्सरी


 

share & View comments