नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ऐसे समय मौक़े से ग़ायब नज़र आ रहे हैं, जब ग़ैर-एनडीए शासित राज्यों में उनके समकक्षी आपस में फोन खड़खड़ा कर, एक सम्मेलन की योजना बना रहे हैं जिसमें अपने सामान्य हित के लिए, शासन में केंद्र की कथित दख़लअंदाज़ी पर चर्चा की जाएगी. साथ ही सम्मेलन में 2024 के आम चुनावों में, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ लड़ने के लिए, एक साझा मंच का गठन करने की संभावनाओं पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा.
दिप्रिंट को पता चला है कि पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) चीफ ममता बनर्जी ने, रविवार को अपने तमिलनाडु समकक्षी एमके स्टालिन को फोन करके, विपक्षी मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन का प्रस्ताव दिया था, लेकिन केजरीवाल के साथ उनकी अभी तक ऐसी कोई बात नहीं हुई है.
दोनों राजनीतिक दलों के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि बनर्जी ने आख़िरी बार केजरीवाल से पिछले साल जुलाई में बात की थी, जब दोनों नेताओं ने ख़ासकर 2024 चुनावों की रोशनी में, बीजेपी से लड़ने के लिए, एक संयुक्त विपक्ष की संभावनाओं पर चर्चा की थी.
विपक्षी ख़ेमे के सूत्रों ने बताया कि तेलंगाना सीएम के चंद्रशेखर राव जो एक बीजेपी-विरोधी और कांग्रेस-विरोधी मोर्चा बनाने के लिए, ख़ुद भी अपने तमिलनाडु और महाराष्ट्र समकक्षों से संपर्क साध रहे हैं और जिनकी अंत में बनर्जी से मिलकर, इस विषय पर चर्चा करने की योजना है, वो भी हाल में केजरीवाल के संपर्क में नहीं रहे हैं.
विपक्षी ख़ेमे के वरिष्ठ नेताओं ने दिप्रिंट से पुष्टि की है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री से अभी तक प्रस्तावित सम्मेलन के लिए संपर्क नहीं किया गया है.
लेकिन, विपक्षी नेताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा के पांच राज्यों में चल रहे असेम्बली चुनाव- जिनके नतीजे 10 मार्च को घोषित किए जाएंगे- संभावित रूप से राज्यों के प्रस्तावित सम्मेलन की योजनाओं और 2024 में बीजेपी से लड़ने के लिए, एक संयुक्त मोर्चे के गठन पर असर डाल सकते हैं. सूत्रों ने कहा कि नतीजों से विपक्षी मोर्चे के नेता के चयन पर भी असर पड़ सकता है, जिसके गठन पर फिलहाल काम चल रहा है.
राजनीतिक विश्लेषकों को भी लगता है कि बहुत कुछ इन दिनों चल रहे असेम्बली चुनावों पर निर्भर करेगा.
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसाइटीज़ से जुड़े राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण राय ने कहा, ‘विपक्षी गठबंधनों के मामले में, चल रहे चुनाव एक बेहद महत्वपूर्ण कारक हैं. असेम्बली चुनावों के बाद जो क्षेत्रीय पार्टियां केंद्र में बीजेपी के खिलाफ लड़ना चाहती हैं, उनके बीच काफी पुनर्गठन देखने को मिलेगा. कांग्रेस को भी ख़ारिज नहीं किया जा सकता. जहां तक आप का सवाल है, अगर वो पंजाब चुनाव जीत जाती है, तो ये उसके लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है. चल रहे चुनावों के परिणाम न सिर्फ बीजेपी के खिलाफ संयुक्त मोर्चे को आकार देने में सहायक होंगे, बल्कि ये भी संकेत देंगे कि उनकी अगुवाई कौन कर सकता है’.
इंतज़ार कीजिए और देखिए की मुद्रा में
टीएमसी के राज्यसभा सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने दिप्रिंट से कहा, ‘संयुक्त बीजेपी-विरोधी मोर्चे की शुरुआत होनी ही थी. हमने उसे शुरू कर दिया है. जहां तक केजरीवाल का सवाल है, मैं आपको बता सकता हूं कि हमने (टीएमसी) अभी तक उनसे संपर्क नहीं किया है. लेकिन आप कुछ नहीं कह सकते कि भविष्य में क्या हो सकता है’.
ये पूछने पर कि क्या चल रहे चुनावों के नतीजे, इस मामले में कोई प्रभाव डालेंगे, रॉय ने कहा, ‘निश्चित रूप से’.
इस बीच, एक वरिष्ठ आप नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि टीएमसी गोवा में चुनाव लड़ रही है, जो कुछ समय से आप की विस्तार योजनाओं का हिस्सा रहा है, जिसकी वजह से बनर्जी और केजरीवाल के रिश्तों पर असर पड़ा है. नेता ने आगे कहा कि प्रस्तावित बीजेपी-विरोधी मोर्चे को लेकर पार्टी इंतज़ार करो और देखो की मुद्रा में है, और असेम्बली चुनावों के बाद ही, इस बारे में कोई फैसला लेगी.
दिप्रिंट ने कॉल्स और लिखित संदेशों के ज़रिए आप प्रवक्ताओं से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने इस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं की.
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पुराने सहयोगी
केजरीवाल के न केवल बनर्जी, बल्कि स्टालिन, राव, और महाराष्ट्र सीएम उद्धव ठाकरे जैसे अन्य नेताओं के साथ भी दोस्ताना रिश्ते रहे हैं, जिन्होंने अभी तक केंद्र में बीजेपी सरकार के खिलाफ, एक संयुक्त मोर्चे की बातचीत में दिलचस्पी का इज़हार किया है.
जून 2018 में, जब केजरीवाल शासन में उप-राज्यपाल (एलजी) अनिल बैजल की दखलअंदाज़ी के खिलाफ, दिल्ली के राज निवास पर अपने मंत्रियों के साथ एक धरने पर बैठे हुए थे, तो बनर्जी ने केजरीवाल के परिवार के साथ मुलाक़ात करके, बीजेपी की केंद्र सरकार के खिलाफ लड़ाई में, जो एलजी की नियुक्ति करती है, केजरीवाल के साथ एकजुटता का इज़हार किया था.
उस समय बनर्जी के साथ तेलुगु देसम पार्टी नेता एन चंद्रबाबू नायडू, भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) नेता पिनारयी विजयन, और जनता दल (सेक्युलर) नेता एचडी कुमारस्वामी भी गए थे. उस धरना प्रदर्शन के दौरान केजरीवाल को, ठाकरे और स्टालिन से भी समर्थन मिला था.
नवंबर 2020 में, राव ने क्षेत्रीय पार्टियों का एक बीजेपी-विरोधी गठबंधन बनाने की कोशिश की, जिसके लिए उन्होंने कहा कि अन्य नेताओं के अलावा, उन्होंने केजरीवाल और ममता से भी बात की थी.
केजरीवाल और बनर्जी ने दिसंबर 2020 और मार्च 2021 के बीच, प्रशासनिक मुद्दों पर केंद्र की बीजेपी सरकार के साथ, अपने अपने टकरावों में एक दूसरे के प्रति समर्थन का इज़हार किया था.
अलग अलग इन दोनों ने, अपने अपने राज्यों में हुए ताज़ा असेम्बली चुनावों में, बीजेपी के खिलाफ धमाकेदार जीत हासिल की है. जहां आप ने 2020 में 70 में से 62 सीटें जीतीं, वहीं टीएमसी ने 2021 के पश्चिम बंगाल चुनावों में, 292 सीटों में से 213 पर जीत हासिल की.
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उनके बीच क्या बदला
मंगलवार को दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, एक दूसरे आप नेता ने कहा कि केजरीवाल के उन अधिकांश नेताओं के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते हैं, जिनका नाम बीजेपी के खिलाफ साझा विपक्ष की बातों में सामने आ रहा है, और इसमें एकमात्र अपवाद बनर्जी थीं, जो हाल ही में अपनी पार्टी की मौजूदगी को बंगाल से बाहर फैलाने पर काम कर रही हैं. नेता ने कहा कि इस महीने के गोवा चुनाव, दोनों के बीच टकराव की एक मुख्य वजह हैं.
वरिष्ठ आप नेताओं ने बताया कि केजरीवाल और बनर्जी, आख़िरी बार 28 जुलाई 2021 को नई दिल्ली में मिले थे. उसी दिन बनर्जी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी से भी मुलाक़ात की थी.
ऊपर हवाला दिए गए दूसरे आप नेता ने कहा, ‘बैठक में दोनों (बनर्जी और केजरीवाल) ने क्षेत्रीय राजनीति, और बीजेपी से मुक़ाबले के लिए एक संयुक्त मोर्चे की योजना पर बातचीत की’.
सितंबर 2021 में, बनर्जी ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी गोवा में चुनाव लड़ेगी- जहां आप पहले ही चुनावों के लिए कमर कस रही थी. दोनों पार्टियों के सूत्रों ने बताया, कि नवंबर 2021 में जब बनर्जी विपक्षी नेताओं से मुलाक़ात के लिए दिल्ली आईं, तो गांधी और केजरीवाल दोनों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया.
अपनी मौजूदा योजना के तहत बनर्जी ने एक बार फिर, कांग्रेस के बिना भविष्य के लिए योजना बनाने की मंशा ज़ाहिर की है- जिसे वो कुछ समय से ख़ारिज करती आ रहीं हैं- लेकिन विपक्षी गठबंधन में केजरीवाल के समावेश की संभावना, अगर वो हो जाता है, अभी तक खुली है.
दूसरे आप नेता ने कहा, ‘फिलहाल, हम पूरी तरह से चल रहे चुनावों में लगे हुए हैं. देखते हैं कि उसके बाद चीज़ें कैसे बदलती हैं.’
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