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Thursday, 25 April, 2024
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सालसेट है गोवा में बीजेपी की सबसे कमज़ोर कड़ी, क्या पार्टी को फायदा पहुंचाएगी इससे जुड़ी नई रणनीति

बीजेपी ने सालसेट तालुका की सभी 8 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं जिनमें 3 प्रत्याशी ईसाई हैं. सत्तारूढ़ पार्टी को उम्मीद है कि बिखरे हुए विपक्ष के साथ मिलकर इस रणनीति से वो 2 या 3 सीटें जीत सकती है.

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पणजी: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) उम्मीद कर रही है कि गोवा में वो जिस विरोधी लहर का सामना कर रही है उससे वो उबर जाएगी क्योंकि बहुत सारी पार्टियों के मैदान में होने की वजह से विपक्षी वोटों का बटवारा हो जाएगा. एक क्षेत्र जिसकी पार्टी नेताओं को चिंता सता रही है वो है, ईसाई-बहुल सालसेट तालुका की आठ सीटें जिन्होंने पारंपरिक तौर पर कभी बीजेपी को पसंद नहीं किया है.

इस बार एक नई रणनीति के तहत बीजेपी ने सालसेट तालुका की सभी 8 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं जिनमें तीन प्रत्याशी ईसाई हैं. पार्टी उम्मीद कर रही है कि बिखरे हुए विपक्ष के साथ मिलकर इस रणनीति से वो आठ में से कम से कम दो-तीन सीटें जीत सकती है.

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने जो नाम नहीं बताना चाहते थे उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘बीजेपी को इस बात से फायदा मिल रहा है कि जिन चुनाव क्षेत्रों में बहुत क़रीबी मामला है या जो गारंटी के तौर पर बीजेपी सीटें नहीं हैं वहां पर सबसे मज़बूत विरोधी उम्मीदवार कई पार्टियों में बिखरे हुए हैं’.

उन्होंने कहा, ‘40 सीटों में से सिर्फ सात या आठ सीटें ऐसी हैं, जिनमें हम वास्तव में कमज़ोर हैं, और ये सब सालसेट की सीटें हैं. यहां की पिचासी प्रतिशत आबादी ईसाई है, और इसलिए यहां हमारे लिए बहुत कम उम्मीद है’.

एक दूसरे बीजेपी नेता ने आगे कहा: ‘सालसेट में हमारा सबसे अच्छा प्रदर्शन 2002 में था, जब हमने दो सीटें जीतीं थीं, वरना ये मुश्किल ही रहा है. लेकिन, अबकी बार इतनी सारी पार्टियां मैदान में हैं,और हमने भी हर सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, इसलिए हम कम से कम दो सीटें जीतने की उम्मीद कर रहे हैं’.

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किंगमेकर्स और दल-बदलू

गोवा के दक्षिणी तट पर साल नदी और उसके अप्रवाही जल के आसपास फैला सालसेट तालुका, सूबे के सभी ग्यारह तालुकों में सबसे अधिक संख्या में विधायक, राज्य की 40-सदस्यीय असेम्बली में भेजता है.

सालसेट के आठ विधानसभा चुनाव क्षेत्र हैं नवेलिम, करटोरिम, बेनॉलिम, नुवेम, वेलिम, मड़गांव, कुंकोलिम और फातोरदा.

पिछले चार चुनावों में सालसेट क्षेत्र ने या तो कांग्रेस को चुना है या फिर कुछ उम्मीदवारों के प्रति पसंद का इज़हार किया है, चाहे वो कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर लड़ते हों या निर्दलीय हों या फिर छोटे दलों से लड़ते हों.

मसलन, एलेक्सो रेजिनाल्डो लॉरेंको ने लगातार तीन बार करटोरिम सीट का प्रतिनिधित्व किया. पहले स्थानीय सोव गोवा फ्रंट के उम्मीदवार के तौर पर और फिर दो बार कांग्रेस विधायक के नाते. इस बार, लॉरेंको ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया और तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन एक महीने के भीतर उसे भी छोड़ दिया और अब एक निर्दलीय के नाते चुनाव लड़ रहे हैं.

इसी तरह, फिलिप नेरी रॉड्रिग्स सालसेट के सेलिम चुनाव क्षेत्र से पिछले पांच चुनावों में से चार जीत चुके हैं. तीन बार कांग्रेस उम्मीदवार के नाते और एक बार निर्दलीय के तौर पर. 2019 में, रॉड्रिग्स उन 10 विधायकों में थे जो अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए और प्रमोद सावंत की सरकार में एक मंत्री बन गए. इसी साल उन्होंने विधायकी से इस्तीफा दे दिया और अब एनसीपी उम्मीदवार के नाते वेलिम सीट से चुनाव लड़ेंगे.

सालसेट के मौजूदा आठ विधायकों में से पांच ने 14 फरवरी के असेंबली चुनाव से पहले अपनी पार्टियां छोड़ दी हैं.

सालसेट की आठ सीटों के विधायकों ने गोवा असेंबली में अकसर किंगमेकर्स की भूमिका निभाई है जिसका खंडित जनादेश का एक लंबा इतिहास रहा है.

मसलन, 2017 के असेंबली चुनाव के बाद जब कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बावजूद बीजेपी ने सरकार बना ली और उसने सालसेट के फातोरदा चुनाव क्षेत्र से गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी)  विधायक विजय सरदेसाई और सालसेट के ही बेनॉलिम विधायक चर्चिल अलीमाओ का समर्थन हासिल कर लिया जो उस समय राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ थे.

उसके बाद से सरदेसाई बीजेपी से रिश्ता तोड़ चुके हैं और उसके खिलाफ फातोरदा से चुनाव लड़ रहे हैं जबकि अलीमाओ बेनॉलिम से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.

सालसेट में BJP

पिछले महीने पणजी में दिप्रिंट से बात करते हुए मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा था, ‘ऐसा नहीं है कि हमने सालसेट में सेंध नहीं लगाई है. अतीत में हम इस तालुका से तीन सीटें जीत चुके हैं. पिछले चुनाव में हमने सालसेट में कोई सीट नहीं जीती थी लेकिन इस बार हमें काफी यक़ीन है कि हम कम से कम 2-3 सीटें जीत लेंगे’.

बीजेपी ने अभी तक मड़गांव से 1994, 1999, और 2002 में जीत हासिल की है लेकिन वो इसलिए था कि दिगम्बर कामत जो 2005 में कांग्रेस के सीएम बने थे उस समय वो बीजेपी के साथ थे. कामत के कांग्रेस में चले जाने के बाद मड़गांव सीट भी उन्हीं के साथ चली गई.

मड़गांव के अलावा बीजेपी ने दो बार फातोरदा सीट से जीत हासिल की है. जब दामू नायक ने 2002 और 2007 में कांग्रेस को हराया था और एक बार 2012 में उसने कनकोलिम सीट जीती थी जिसमें कांग्रेस क़रीबी दूसरे नंबर पर रही थी.

2017 में बीजेपी सालसेट में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.

पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पूर्व सीएम मनोहर पर्रिकर ने 2012 चुनावों से पहले एक तरकीब अपनाने की कोशिश की थी जिसे ‘मिशन सालसेट’ कहा जाता था. वह इस मान्यता पर आधारित थी कि एक कैथलिक-बहुत क्षेत्र खुले तौर पर बीजेपी को पसंद नहीं करेगा.

सालसेट में कांग्रेस-विरोधी वोटों को लक्ष्य बनाते हुए पर्रिकर ने सीधे बीजेपी उम्मीदवार खड़ा करने की बजाय कुछ मज़बूत निर्दलीय उम्मीदवारों को समर्थन देने का फैसला किया. दो निर्दलीयों- नवेलिम से अवर्तानो फुरतादो और वेलिम से बेंजामिन सिल्वा- ने पर्रिकर की अगुवाई में बनने वाली बीजेपी सरकार को अपना समर्थन दे दिया.

फुरतादो दो साल तक राज्य मंत्रिमंडल का भी हिस्सा रहे.

लेकिन, पर्रिकर के ‘मिशल सालगेट’ का बीजेपी को सालगेट में कोई दीर्घ-कालिक फायदा नहीं हुआ. फुरतादो और डीसिल्वा दोनों 2017 के असेंबली चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवारों के हाथों परास्त हो गए.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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