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Thursday, 19 December, 2024
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अमरिंदर सिंह पाकिस्तानी ड्रोन से बम और हथियार गिराए जाने की बात कहकर बेवजह डर का माहौल बना रहे हैं: चन्नी

पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी ने दिप्रिंट को दिए एक खास इंटरव्यू में कहा कि यह चुनाव ‘चेहरे’ का है, पार्टियों का नहीं.

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चंडीगढ़: पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का कहना है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह लगातार राष्ट्रीय सुरक्षा की बात करके राज्य के लोगों को ‘बेवजह’ डरा रहे हैं. उन्होंने पाकिस्तान की तरफ से सीमावर्ती राज्य में ड्रोन के जरिए टिफिन-बॉक्स बम, हथियार और ड्रग्स गिराने के पूर्व मुख्यमंत्री के दावों को भी सिरे से नकार दिया है.

मुख्यमंत्री चन्नी ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘कप्तान साहब हर समय राष्ट्रीय सुरक्षा की बात करके लोगों को डरा रहे हैं. जब आप खुद मुख्यमंत्री हैं और अपने ही राज्य को डराते रहेंगे तो यह कैसे चलेगा? बेवजह कहना कि…टिफिन बम आएंगे…ड्रोन बम आएंगे…यह सब बेकार की बात है. कुछ नहीं आ रहा (पाकिस्तान से). डरने की कोई बात नहीं है.’

गौरतलब है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ने और बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस गठित करने के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा को अपना चुनावी मुद्दा बना रखा है.

हालांकि, जब वह खुद मुख्यमंत्री थे और चन्नी उनके मंत्रिमंडल में थे तब वह पंजाब को लेकर पाकिस्तान के ऐसे नापाक इराद नाकाम होने की बात करते रहे हैं. पिछले सितंबर में महत्वाकांक्षी माने जाने वाले पंजाब कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू के अभियान को रोकने के लिए गांधी परिवार की तरफ से कैप्टन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने और पार्टी छोड़ने को मजबूर किए जाने के बाद चन्नी अचानक ही मुख्यमंत्री का चेहरा बनकर उभरे थे.

कांग्रेस आलाकमान को अमरिंदर सिंह का उत्तराधिकारी चुनने के लिए आम सहमति के विकल्प के तौर पर चन्नी के नाम पर तैयार होना पड़ा.

वैसे तो अमरिंदर सिंह के विरोधी गुट की अगुवाई सिद्धू करते थे और इसमें चन्नी भी शामिल थे. हालांकि, गांधी भाई-बहन राहुल और प्रियंका के आशीर्वाद के साथ कप्तान को हटाने का मिशन पूरा होने के बाद उनका दांव उलटा पड़ गया.

बहरहाल, मुख्यमंत्री के तौर पर अभी थोड़े दिन के कार्यकाल में ही चरणजीत सिंह चन्नी ने अपने राजनीतिक कौशल से सभी को चौंका दिया है. वह खुद को एक दलित नेता के तौर पर पेश नहीं करते, भले ही उनकी पार्टी के कई सहयोगियों को लगता हो कि वह इस चुनाव में एक एक्स फैक्टर साबित हो सकते हैं. खासकर यह देखते हुए कि वह उस राज्य में पहले दलित सीएम हैं जहां हर तीसरा व्यक्ति दलित है.

कांग्रेस के पक्ष में ‘दलितों के एकजुट’ हो जाने की संभावनाओं को लेकर जारी चर्चाओं को दरकिनार करते हुए चन्नी ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं (पंजाब चुनाव में) कोई एक्स फैक्टर नहीं हूं. मैं एक साधारण आदमी हूं जो लोगों के लिए काम करता है. मैं मतदाताओं को हिंदू, सिख या दलित के रूप में नहीं देखता. मैं मतदाताओं को एक मतदाता के रूप में ही देखता हूं. गरीब व्यक्ति गरीब होता है, चाहे वह किसी भी वर्ग या समुदाय का हो.’

पंजाब यूनिवर्सिटी से कांग्रेस पर पीएचडी कर रहे पंजाब के नए मुख्यमंत्री ने एक दिग्गज कांग्रेसी नेता के तौर पर अपने बर्ताव से फैकल्टी के कई सदस्यों को काफी प्रभावित किया है. पंजाब में दलित स्टडी के जाने-माने विद्वान प्रोफेसर रॉनकी राम की अगुआई में जब सातवें वेतन आयोग के अनुरूप यूजीसी वेतनमान की मांग को लेकर पंजाब यूनिवर्सिटी के शिक्षकों का एक प्रतिनिधिमंडल चन्नी से मिलने पहुंचा तो मुख्यमंत्री ने प्रोफेसर राम के पैर छुए थे, इसे लेकर शैक्षणिक हलकों में काफी चर्चा रही. हालांकि, प्रो. राम के नेतृत्व में पहुंचे शिक्षकों की मांग अभी अधूरी ही है.

‘गरीबों के लिए काम करने वाला एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति’

पंजाब की राजनीति व्यापक तौर पर समावेशी संस्कृति वाली मानी जाती है और चन्नी ने खुद को एक दलित नेता के तौर पर पेश न करके एक राजनीतिक कौशल का परिचय दिया है क्योंकि जैसा कांग्रेस का मानना है कि राज्य में सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक दबदबे और खासी आबादी वाला जाट सिख वर्ग इस वजह से कांग्रेस से छिटक सकता था.

चन्नी खुद को दलित के बजाए एक ऐसे मध्यमवर्गीय परिवार के व्यक्ति के तौर पर पेश करना पसंद कर रहे हैं जो संघर्ष का रास्ता तय करते हुए धीरे-धीरे सफलता की सीढ़ी चढ़ा है और सामान्य रूप से गरीबों के लिए काम कर रहा है.

यही वजह है कि जब दिप्रिंट ने उनसे पूछा कि क्या पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री देने के कांग्रेस के फैसले से दलितों का सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में ध्रुवीकरण होगा? तो उन्होंने ऐसी किसी बात से इनकार किया. हालांकि, वह निश्चित तौर पर जानते हैं कि कैसे दलित मुख्यमंत्री का मुद्दा पंजाब में चुनावी विमर्श को बदल सकता था.

चन्नी ने दिप्रिंट से कहा, ‘कई मुद्दे हैं लेकिन अब यहां चेहरे अहम हो गए हैं—कौन किस पार्टी का चेहरा है और कौन पंजाब को आगे ले जा सकता है? यह चुनाव पार्टियों का नहीं होगा बल्कि (उनके और शिरोमणि अकाली दल के प्रकाश सिंह/सुखबीर बादल और आम आदमी पार्टी के भगवंत मान के बीच) चेहरों का चुनाव होगा.’

बादल और मान जाट सिख हैं. पंजाब के मुख्यमंत्री ने गणतंत्र दिवस से पहले डेरा सचखंड बल्लां में रात बिताई थी, जिसके अनुयायियों में एक बड़ी संख्या एड-धर्मी/रविदासिया (एससी) समूहों की है.

पंजाब के नए मुख्यमंत्री अपनी छवि एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर गढ़ रहे हैं जो समाज के हर तबके का कल्याण चाहता है. उन्होंने कहा, ‘मैंने साढ़े तीन महीने में बहुत मेहनत की है. लोगों ने मेरा काम काफी पसंद भी आया है.’


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खुद को अमरिंदर सिंह से अलग दिखाना एक चुनौती

बतौर कांग्रेस मुख्यमंत्री करीब साढ़े चार साल राज्य पर शासन करने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह के विपक्षी खेमे में शामिल हो जाने के बाद चन्नी को मुख्यमंत्री कार्यालय में कोई अंतर दिखाने के लिए सिर्फ 111 दिन मिले हैं. उनका कहना है, ‘वो चार साल तो बीजेपी के खाते में गए…अब बीजेपी को ही इसे संभालने दीजिए. लोग बीजेपी को देख रहे हैं, ‘आपने क्या किया है?’

उन्होंने कहा, ‘जिस सरकार का खजाना खाली था, उसी सरकार ने तीन महीने में लोगों को 33 हजार करोड़ रुपए की सौगातें दी हैं. हमने बिजली का बकाया माफ किया और बिजली की दरों को कम कर दिया…पानी का शुल्क घटाया और बकाया राशि माफ की है… पेट्रोल-डीजल के दाम कम किए हैं…तीन महीने में लोगों को 33 हजार करोड़ रुपए मुहैया कराए गए हैं.’

वह एक ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिसके लिए सबसे बड़ी चुनौती खुद को अपने उस पूर्ववर्ती से अलग साबित करने की है जिसके नेतृत्व में उन्होंने साढ़े चार साल तक मंत्री पद संभाला है. उन्हें यह बात समझाने के लिए खासी मेहनत करनी पड़ रही है कि उनके पूर्ववर्ती ने क्या किया या क्या नहीं, इसके आधार पर उन्हें कैसे आंका जा सकता है.

उनका कहना है, ‘कोई भी सरकार नेता की इच्छाशक्ति से चलती है. अगर मुख्यमंत्री खुद काम न करना चाहे, तो (सिस्टम के भीतर) काम कैसे होगा? सीएम के बिना किसी मंत्री के पास काम करने की कोई ‘हैसियत’ नहीं होती है. बिना मुख्यमंत्री के विधायक कुछ नहीं कर सकता. सब इस बात पर निर्भर करता है कि सीएम क्या चाहते हैं, काम करते हैं या नहीं, लोगों से मिलते हैं या नहीं और उनकी विचारधारा क्या है.’


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‘प्रधानमंत्री के लिए पूरा सम्मान’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने काफिले के मार्ग में सुरक्षा चूक के कारण फिरोजपुर में प्रस्तावित रैली रद्द करनी पड़ी थी जिसे लेकर राष्ट्रीय स्तर पर खासा विवाद उत्पन्न हो गया लेकिन इस सबसे बेपरवाह मुख्यमंत्री चन्नी कहते हैं, ‘पीएम मोदी के दौरे के समय सुरक्षा में कोई चूक नहीं हुई थी. कोई खतरा नहीं था.’

मंझे हुए नेता चन्नी इस केस को लेकर एकदम कूटनीतिक रुख अपनाते हैं, ‘जब कभी भी किसी को लौटना पड़ता है तो उसे गुस्सा आता है. हमारे मन में प्रधानमंत्री के लिए पूरा सम्मान है.’

पंजाब के मुख्यमंत्री प्रचार अभियान पर निकलने से पहले भले ही अपने आवास पर गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ कर रहे हों, लेकिन आत्मविश्वास से पूरी तरह लबरेज हैं. उनका दो टूक कहना है, ‘कोई त्रिशंकु फैसला नहीं होगा. पंजाब के लोग बहुत समझदार हैं. उन्होंने पिछली बार (2017 में) भी एकतरफा मतदान किया था. यह बहुकोणीय मुकाबला लग रहा होगा लेकिन जीत केवल एक ही पार्टी की होगी.’

पंजाब में 20 फरवरी को मतदान होना है और नतीजे 10 मार्च को घोषित होंगे लेकिन चन्नी की तत्कालिक चिंता यही है कि राहुल गांधी इस चुनाव में पार्टी का सीएम चेहरा किसे घोषित करते हैं.

उनसे कहें कि कांग्रेस ‘शायद’ दलित कार्ड का फायदा उठाने के बारे में सोच रही होगी और फिर उनसे पूछें कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया गया तो सिद्धू क्या करेंगे? तो वह चेहरे के भावों में बिना किसी उतार-चढ़ाव के कहते हैं, ‘जब तक इसमें ‘शायद’ और ‘अगर’ लगा हुआ है तब तक जवाब देने का कोई मतलब नहीं है.

उनकी प्रतिक्रियाओं को सुनें और उनका शांत व्यवहार देखें तो यही कहा जा सकता है कि चरणजीत सिंह चन्नी भले ही एक एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री हो सकते हैं लेकिन एक्सीडेंटल राजनेता तो कतई नहीं हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी मेंं पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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