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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमत‘क़र्ज़ के जाल’ में श्रीलंका, भारत की प्रतिक्रिया दिखाती है कि चीन को पीछे धकेलने का काम शुरू हो गया है

‘क़र्ज़ के जाल’ में श्रीलंका, भारत की प्रतिक्रिया दिखाती है कि चीन को पीछे धकेलने का काम शुरू हो गया है

इधर चीन कोलंबो पोर्ट सिटी को हंबनटोटा पोर्ट की तरह क़ब्ज़ाने के इंतज़ार में है उधर भारत ने श्रीलंका की वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने में बेहद तेज़ी दिखाई है.

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चीनी विदेश मंत्री के श्रीलंका समेत हिंद महासागर के कुछ मुठ्ठीभर देशों के दौरे से घर लौटने के कुछ दिन बाद ही, नई दिल्ली ने कोलंबो की तनावपूर्ण आर्थिक स्थिति को हल्का करते हुए, उसे 91.2 करोड़ डॉलर का क़र्ज़ दे दिया और साथ ही 1.5 बिलियन डॉलर की दो और लाइन ऑफ क्रिडिट की सुविधा दे दी, जिनमें भारत से खाद्य पदार्थों और ईंधन की ख़रीद शामिल है.

सीधे से कहें तो लंबे समय से चल रहे कोविड संकट ने पर्यटकों पर आधारित श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है और कुछ समय से द्वीप राष्ट्र भुगतान न कर पाने की स्थिति में चल रहा है. दूसरी ओर चीन प्रलोभन देकर देश का एक प्रमुख दान-दाता बन गया और उसने दक्षिण के हंबनटोटा पोर्ट और उद्धारित भूमि पर एक बिल्कुल नए कोलंबो पोर्ट सिटी जैसी हाईप्रोफाइल परियोजनाओं के लिए क़र्ज़ दे दिया.

अपेक्षा की जा रही है कि चीनी सहायता से इन परियोजनाओं का निर्माण अब से कुछ दशकों में श्रीलंका को एक साहसिक नई दुनिया में ले जाएगा लेकिन फिलहाल के लिए कोलंबो शर्मनाक हद तक बढ़ गए ऋण से जूझ रहा है जिसे उसने बीजिंग से पुनर्गठित करने के लिए कहा है.

फिलहाल चीन ने अनुरोध को नज़रअंदाज़ कर दिया है. ये एक कारण हो सकता है कि श्रीलंका को चला रहे राजपक्षे बंधुओं- राष्ट्रपति गोटाबाया, प्रधानमंत्री मिहिंदा, वित्त मंत्री बासिल, सिंचाई और जल संसाघन मंत्री चमाल- को लगने लगा है कि शायद अब समय आ गया है कि वो अपने हितों का विविधीकरण करें और अपने सभी हॉपर्स को चीनी टोकरी में न रखें.


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भारत का पुन: प्रवेश

इसी महीने 24 वर्ष पुरानी बातचीत के बाद- इस मामले को पहली बार राजीव गांधी और जेआर जयवर्धने के बीच 1987 भारत-श्रीलंका समझौते पर चल रही बातचीत में उठाया गया- राजपक्षा कैबिनेट ने प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी, जिसके तहत भारत और श्रीलंका पूर्वी श्रीलंका में साथ मिलकर त्रिंकोमाली ऑयल टैंक परियोजना को विकसित करेंगे.

इसमें परिकल्पना की गई है कि ऑयल कंपनी की पूरक लंका आईओसी 99 में से 14 ऑयल टैंक्स चलाएगी, 24 टैंक्स सीलॉन पेट्रोलियम कॉरपोरेशन चलाएगी, जबकि दोनों के बीच का एक संयुक्त उद्यम, जिसे त्रिंको पेट्रोलियम टर्मिनल प्रा. लि. कहा जाता है, बाक़ी 61 ऑयल टैंक्स चलाएगी- 51% हिस्सेदारी सीपीसी की होगी और शेष 49% की मालिक लंका आईओसी होगी. ये साझा उद्यम 50 वर्षों तक चलेगा.

क्रमश: 1.5 बिलियन डॉलर्स और 91.2 करोड़ डॉलर्स की, खाद्य और ईंधन की दो क्रेडिट लाइन्स की घोषणा शनिवार को की गई, जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे से बात की.

भारत की सहायता से श्रीलंका को निश्चित रूप से एक अस्थायी राहत मिलेगी. दिसंबर 2021 में अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच ने श्रीलंका का दर्जा ‘सीसीसी से घटाकर सीसी’ कर दिया. पीपुल्स बैंक ऑफ श्रीलंका ने जो कुछ भी कहा- जिसमें चीन की ओर से निकट ही दिसंबर अंत में (ये हुआ भी) 1.5 बिलियन डॉलर की अदला-बदली सुविधा का वादा भी शामिल था-उसका फिच पर कोई फर्क़ नहीं पड़ा. फिच से कुछ पहले ही, एक अप्रभावित स्टैण्डर्ड एंड पुअर ने भी बढ़े हुए सॉवरिन डिफॉल्ट के जोखिम के मद्देनज़र श्रीलंका की रेटिंग को ‘सीसीसी+से घटाकर सीसीसी’ कर दिया था.

वांग यी के दौरे से कोलंबो में कोई ख़ुशी पैदा नहीं हुई. क़र्ज़ को पुनर्गठित करने के बाद के अनुरोध भी नज़रअंदाज़ कर दिए गए- श्रीलंका का बाहरी क़र्ज़ बढ़कर 45 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है, जो इसकी नॉमिनल जीडीपी (2020) का क़रीब 60% है, जबकि भारत का क़रीब 20% और पाकिस्तान का 40% है. श्रीलंका अकेले चीन का 8 बिलियन डॉलर का क़र्ज़दार है.

वांग यी की वापसी पर चीन ने श्रीलंका को चीनी की एक खेप भेजी, शायद उस मांग में मिठास लाने के लिए कि कोलंबो को उसके साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर दस्तख़त करने चाहिए- कोलंबो बहुत ध्यान से इस मांग की अनदेखी करता रहा है.

इस बीच, नवंबर 2021 में बासिल राजपक्षे दिल्ली आए थे. जयशंकर ने मदद का वादा किया और उन्हें ‘चार स्तंभों का’ एक पैकेज पेश किया-जिसमें भारतीय निवेश का स्वागत और भारतीय वस्तुओं के लिए क्रेडिट लाइन्स को स्वीकार करना शामिल है. बातचीत का एक बड़ा हिस्सा त्रिंको ऑयल फार्म्स प्रोजेक्ट पर चर्चा को समर्पित रहा.

इसलिए, नव वर्ष के आगमन के साथ सवाल येखड़ा होता है कि भारत-श्रीलंका-चीन के रिश्तों में आख़िर चल क्या रहा है? निश्चित रूप से नई दिल्ली को अच्छी तरह से मालूम है कि चीनी हिमालय में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बैठे हुए हैं और उनके जल्दी वहां से वापस जाने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे.

इस बीच, हिंद महासागर में अपने असर को वापस पाने का एक विश्वसनीय प्रयास रहा है. ख़ासकर राजपक्षे बंधुओं के कोलंबो पोर्ट के पूर्वी कंटेनर टर्मिनल को चीनियों के हवाले कर देने की पृष्ठभूमि में- माना जाता है कि यूनियन कार्यकर्त्ता भारत-जापान-श्रीलंका के उस उद्यम से परेशान थे जो उसका प्रबंध करना चाहता था.

उसकी बजाय राजपक्षे बंधुओं ने भारत को मनाने की कोशिश में, उसे कोलंबो पोर्ट में पश्चिमी कंटेनर टर्मिनल चलाने की अनुमति दे दी है- वो कॉन्ट्रेक्ट अडानी समूह को मिला है. त्रिंको ऑयल फार्म प्रोजेक्ट को मंज़ूरी सोने पर सुहागा है.


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चीनी पैसे का आकर्षण फीका पड़ा

दो साल पहले महामारी की शुरुआत के समय, पीएम महिंदा राजपक्षे ने चीनी लोगों की मुसीबतें कम करने के लिए प्रार्थनाएं की थीं. आज, श्रीलंका के ‘चीनी क़र्ज़ के जाल’ में फंसने को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और ये भी कि क्या भारत, जो उससे कहीं ज़्यादा ग़रीब है, अधिक टिकाऊ विकल्प पेश कर सकता है.

शायद चीनियों के हंबनटोटा पोर्ट और उसके नज़दीकी मट्टाला एयरपोर्ट- जो ख़ुद महिंदा राजपक्षे के चुनाव क्षेत्र में है- को विकसित करने का आकर्षण आख़िरकार फीका पड़ने लगा है. (जब श्रीलंका चीनी क़र्ज़ पर अपनी सालाना ईएमआई का भुगतान नहीं कर पाया, तो उसे मजबूरन पोर्ट को सरकारी चाइना मर्चेंट्स एजेंसी को 99 साल के पट्टे पर देना पड़ गया).

श्रीलंकाई लोगों की समझ में शायद आने लगा है कि कोलंबो पोर्ट सिटी में भी कुछ ऐसा ही चल रहा है- जहां चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी 660 एकड़ (2.4 किमी) भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए 1.4 बिलियन डॉलर का निवेश कर रही है, जिसका मतलब है कि चीनी कंपनी को 43%परियोजना 99 साल के पट्टे पर मिल जाएगी.

स्वाभाविक रूप से चीनी लोग रियल एस्टेट पर क़ब्ज़े की किसी भी भविष्यवाणी को तिरस्कृत कर रहे हैं. बल्कि श्रीलंका में चीन के राजदूत क्वी ज़ेनहॉन्ग ने तो कहा है कि नए पोर्ट सिटी में 15 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया जाएगा.

भारत का पुशबैक

लेकिन श्रीलंका की वित्तीय ज़रूरतों के प्रति भारत का इतनी तत्परता दिखाना राजपक्षे बंधुओं और नरेंद्र मोदी सरकार के बीच बढ़ी हुई आपसी समझ को दर्शाता है. अहम बात ये है कि चीन पर बढ़ती निर्भरता को लेकर नई दिल्ली से श्रीलंका पर उतने आक्रामक हमले नहीं हो रहे हैं जितने आमतौर से पाकिस्तान जैसे देशों पर होते हैं.

फिर भी, श्रीलंकाई लोग संभवत: भविष्य में अपने ख़ुद के निवेशों का मूल्यांकन कर रहे हैं. उनकी समझ में आ रहा है कि जिबूती गणराज्य, लाओस, ज़ाम्बिया और किर्गिज़स्तान जैसे ग़रीब देशों पर उनकी जीडीपी के 20% के बराबर चीन का क़र्ज़ है. एडडेटा के अनुसार, 40 अन्य छोटे और मध्यम आकार के देशों पर भी ऐसा कम से कम 10 प्रतिशत क़र्ज़ है जिसमें ‘छिपा हुआ क़र्ज’ भी शामिल है.

क्या राजपक्षे बंधुओं को आख़िरकार वो लंबा खेल समझ आ रहा है जो चीनी खेल रहे हैं? क्या उनकी वांग यी के हालिया दौरे के दौरान उनसे कोई कहासुनी हुई थी? शायद यही कारण हो सकता है कि बीजिंग ने श्रीलंका के किसी भी क़र्ज़ को पुनर्निर्धारित करने से इनकार कर दिया.

वास्तविकता कुछ भी हो, एक चीज़ साफ है- ऋणग्रस्त दक्षिण एशियाई देश में चीन के खिलाफ पुशबैक की पहली झलक शायद दिखने लगी है.

ज्योति मल्होत्रा ​​दिप्रिंट की सीनियर कंसल्टिंग एडिटर हैं. वह @jomalhotra ट्वीट करती हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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