चंडीगढ़: विभाजन के दौरान अफरा-तफरी में बिछड़े दो भाइयों को पिछले 74 सालों में न तो एक-दूसरे के ठिकाने के बारे में कोई जानकारी मिल पाई थी और न ही यह पता था कि वे जिंदा भी हैं या नहीं. उनमें एक-दूसरे से फिर कभी मिल पाने की कोई उम्मीद भी बाकी नहीं रह गई थी. लेकिन तभी एक पाकिस्तानी यूट्यूब चैनल पंजाबी लहर की कोशिश ने कुछ पल के लिए सही उन्हें एक-दूसरे से मिला दिया. भारत-पाकिस्तान सीमा को दोनों ओर से जोड़ने वाला करतारपुर कॉरिडोर दशकों बाद उनके पुनर्मिलन का गवाह बना.
दोनों बुजुर्ग भाई जब इतने समय बाद एक-दूसरे से गले मिले तो उनके लिए आंसुओं को रोक पाना मुश्किल हो गया. इस भावनात्मक पुनर्मिलन का एक वीडियो अब वायरल हो गया है. दोनों भाइयों ने अपने-अपने घर लौटने से पहले कुछ घंटे साथ बिताए.
इन दोनों भाइयों में बड़े सादिक खान विभाजन के दौरान आठ या नौ साल के थे और मौजूदा समय में पाकिस्तान के बोगरान गांव (फैसलाबाद के पास) में रहते हैं. बिछड़ने के समय शीका खान तो एकदम छोटे बच्चे थे और अब पंजाब में बठिंडा के गांव फुलेवाला में रहते हैं. पुनर्मिलन के बाद ही शीका खान को पता चल पाया कि पहले उनका नाम हबीब खान रखा गया था.
इतने सालों के बाद दो भाइयों के पुनर्मिलन के इस भावनात्मक वीडियो ने दुनियाभर के पंजाबियों के दिलों को छू लिया है, जिनमें से कुछ की आंखें आज भी उस दर्दनाक विभाजन को याद करके नम हो जाती हैं. इस विभाजन ने न केवल दो राष्ट्रों को जन्म दिया बल्कि पंजाब के भी दो हिस्से कर दिया— भारत में चढ़दा पंजाब (सूर्य उगने की दिशा में) और पाकिस्तान में लेहंडा पंजाब (सूर्य अस्त की दिशा में).
बहरहाल, यह भू-राजनीतिक विभाजन दोनों भाइयों के परस्पर संवाद में कोई बाधा नहीं बना और दोनों ने एक जैसी बोली पंजाबी में एक-दूसरे से बातें कीं. सादिक खान, जिन्होंने सीमा के उस पार अपना परिवार बसाया, ने अपने बेटे-बेटियों और पोते-पोतियों को हबीब से मिलवाया.
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भाइयों के लिए भाग्यशाली साबित हुआ एक यूट्यूब वीडियो
पाकिस्तान के रहने वाले नासिर ढिल्लों और लवली सिंह एक लोकप्रिय यूट्यूब चैनल पंजाबी लहर चलाते हैं जो दोनों तरफ के पंजाब के परिवारों को फिर से आपस में मिलाने पर केंद्रित है.
दोनों भाइयों को फिर से मिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले फुलेवाला निवासी डॉ. जगसीर सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि ढिल्लों और लवली सिंह मई 2019 में एक स्टोरी के सिलसिले में इंटरव्यू के लिए बोगरान गए थे. तभी उन्हें सादिक खान के बारे में पता चला जो अपने बिछड़े भाई से मिलने को बेकरार थे.
जगसीर सिंह ने बताया, ‘गांव का लम्बरदार (मुखिया) सादिक का भतीजा है. उसने (फिल्म मेकर) को सादिक के बारे में बताया जो कि बंटवारे के समय भारत में रह गए अपने भाई से किसी भी हाल में मिलना चाहते हैं. नासिर ने तुरंत सादिक का एक वीडियो मैसेज बनाया, जिसमें उन्होंने गांव का नाम फुलेवाला बताया और कहा कि वह अपने भाई को तलाश रहे हैं.’
वीडियो में सादिक ने एक बेहद छोटा और प्यारा-सा संदेश दिया, ‘हबीब, मैं तुम्हें सालों से ढूंढ़ रहा हूं. यदि तुम मुझे देख सकते हो तो कृपया मुझसे संपर्क करो. मैं 80 साल का हो चुका और पता नहीं कि कितने दिन जिंदा रहूंगा, लेकिन इससे पहले में तुमसे मिलने का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं.’
यह वीडियो पंजाबी लहर पर अपलोड होने के दो दिनों के भीतर ही जगसीर के एक रिश्तेदार ने उनसे संपर्क साधा, जो जगराओं में रहते हैं और सादिक और हबीब के परिवार के बारे में जानते थे. उन्होंने डॉ. जगसीर को वीडियो भेजा, जिसे देखकर उन्हें लगा कि ये बुजुर्ग कुछ जाने-पहचाने से लग रहे हैं.
जगसीर ने कहा, ‘हबीब गांव के गिने-चुने मुसलमानों में से एक हैं. जब मैंने वीडियो देखा तो लगा कि सादिक तो एकदम हबीब के जैसे लगते हैं. मैंने हबीब को वीडियो दिखाया और वह रोने लगे. फिर हमने मोबाइल फोन पर वीडियो कॉल के जरिए एक-दूसरे से बात कराई.’
एक-दूसरे के साथ पहली बातचीत में सादिक ने हबीब से उनकी मां के बारे में पूछा और उन्हें पता चला कि उनका दशकों पहले निधन हो चुका है. दूसरी ओर, सादिक ने हबीब को अपने पिता की मृत्यु के बारे में बताया. उन्होंने तमाम चाचाओं और चचेरे भाई-बहनों के बारे में भी बात की.
सादिक ने हबीब से पूछा, ‘तूने शादी नहीं करी.’ जब उन्हें पता चला कि हबीब के पास गांव में कोई जमीन नहीं है और वह गरीबी में रहते हैं, तो उन्होंने फोन पर कहा, ‘मेरे पास यहां जो कुछ भी है वह तुम्हारा ही है.’
हबीब ने सादिक से बताया कि उसने भी उसकी तलाश की कोशिश की थी. उसने और उसके ममेरे भाइयों ने सीमा पार के लोगों से संपर्क किया और संदेश भेजने की भी कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
जगसीर ने कहा, ‘भारत में हमने और पाकिस्तान में नासिर ने मिलकर तय किया कि हमें उन्हें करतारपुर कॉरिडोर में मिलवाना चाहिए. वे इतने बूढ़े हो चुके हैं और अगर उनके मिलने से पहले उन्हें कुछ हो जाता तो हम खुद को माफ नहीं कर पाते.’
गौरतलब है कि करतारपुर कॉरिडोर भारत-पाकिस्तान सीमा पर 4.7 किलोमीटर लंबा सड़क मार्ग है जिसके जरिये भारत के सिख तीर्थयात्रियों को पाकिस्तान के करतारपुर में स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब जाने की अनुमति मिली हुई है.
दोनों भाइयों की मुलाकात मार्च 2020 के लिए तय की गई थी लेकिन कोविड लॉकडाउन के कारण इसमें देरी हुई. इस दौरान करतारपुर कॉरिडोर भी बंद कर दिया गया. जगसीर ने बताया, ‘जब यह फिर से खुला, तो हम उन्हें उनके भाई से मिलाने के लिए पहुंचे.’
उन्होंने कहा, ‘आखिरकार किस्मत ने दोनों भाइयों को एक-दूसरे से मिलवा ही दिया. यह वाहेगुरु की महिमा से ही संभव हो पाया है. वे करतारपुर दरबार साहिब में मिले और यह सब वाहे गुरु की कृपा से हुआ है, इसका श्रेय हमें नहीं दिया जाना चाहिए.’
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‘आंसू रोक पाना मुश्किल था’
वीडियो में दिखाई देता है कि दोनों भाई गले मिलते हैं और फर्श पर बैठ जाते हैं, तभी हबीब को यह कहते सुना जाता है, ‘देखो आखिरकार हम एक-दूसरे से मिल लिए, भरोसा ही नहीं हो रहा होगा.’ इसके बाद सादिक अपने परिवार को हबीब से मिलवाते हैं. इस दौरान वह कहते हैं, ‘मेरी पोती कहती है कि मैं तो चाहती हूं कि यह दादा भी हमारे साथ ही रहें.’
इस दौरान दोनों भाइयों ने एक साथ भोजन किया. सादिक के पोतों ने हबीब की थाली से भी खाना खाया.
जगसीर ने कहा, ‘उन कुछ घंटों के लिए तो ऐसा लगा मानो भारत और पाकिस्तान के बीच की सारी दूरियां खत्म हो गई हैं. अपने आंसुओं को रोक पाना बेहद मुश्किल हो रहा था.’
वीडियो में सादिक को यह कहते सुना जा सकता है, ‘हमें सरकार से आपको यहां आने और अपने परिवार के साथ समय बिताने की अनुमति देने के लिए कहने का कोई तरीका खोजना चाहिए.’
और जब दोनों भाइयों की मुलाकात के बाद अलविदा कहने का समय आया तो सादिक किसी भी तरह हबीब को लौटने नहीं देना चाहते थे. हबीब ने कहा, ‘मेरी बस छूट जाएगी.’ इस पर सादिक ने कहा, ‘नहीं, नहीं तुम मत जाओ, बस इंतजार कर सकती है.’
दोनों भाइयों को उम्मीद है कि वे जल्द ही फिर से मिल पाएंगे.
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विभाजन के कारण झेली त्रासदी
विभाजन के दौरान दोनों भाइयों के बिछड़ने और फिर उनके जीवन में घटी घटनाओं की दास्तां बेहद मार्मिक है.
सादिक, हबीब और उनकी बहन अपने माता-पिता के साथ लुधियाना के पास जगराओं के एक गांव में रहते थे. बंटवारे के समय जब दंगे-फसाद शुरू हो गए तो उनकी मां ने जगराओं से लगभग 45 किलोमीटर दूर फुलेवाला गांव में अपने माता-पिता के घर जाने का फैसला किया. वह हबीब को अपने साथ ले गईं.
मई 2019 में पंजाबी लहर पर पोस्ट पहले वीडियो में सादिक यादों का पिटारा खोलते हुए कहते हैं, ‘वह हमारी मां की गोद में था. तब बहुत ही छोटा था.’ हालांकि, घटनाओं के बारे में ठीक से याद रखने के लिहाज से सादिक काफी उम्रदराज हो चुके हैं.
सादिक फिर कभी अपनी मां को नहीं देख पाए. जबकि वह वहां नहीं थीं, तभी उन्हें और परिवार के अन्य सदस्यों को जगराओं छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था.
यहां से जाने के दौरान रास्ते में सादिक के पिता की मौत हो गई और उसकी बहन भी उनसे बिछड़ गई. हालांकि, वह कुछ सालों बाद ही फिर से उसका पता लगाने में सफल रहे.
जगसीर ने बताया, ‘सादिक की बहन पाकिस्तान पहुंच गई थी और दो-तीन साल बाद फिर से मिलने में कामयाब रहे. सादिक अपने चाचाओं के साथ रहकर बोगरान गांव में पले-बढ़े, जहां उन्हें कुछ जमीन मिल गई थी. सादिक ने शादी भी कर ली और उनका एक भरा-पूरा परिवार है जिसमें बेटे-बेटियां और पोते-पोतियां सब हैं.’
हबीब ने भी अपना जीवन काफी कठिनाई से गुजारा. जब उनकी मां को पता चला कि उनके पति और दो अन्य बच्चे लापता हो गए हैं तो इतनी व्याकुल हुईं कि नहर में कूदकर अपनी जान दे दी. जगसीर ने बताया, ‘हबीब अपनी मामाओं के साथ रहकर बड़े हुए और अपने परिवार के अन्य सदस्यों की तरह एक चरवाहा और दिहाड़ी मजदूर बन गए.’
जगसीर ने बताया कि जब हबीब— जिन्हें सादिक से मुलाकात के पहले अपने इस नाम के बारे में जानकारी नहीं थी और गांव में शीका के नाम से जाने जाते थे— की उम्र काम करने के लायक नहीं रही तो उनसे काम कराने वाले एक परिवार ने उन्हें ‘एक तरह से अपना’ लिया और अपने घर पर ही रहने की जगह दे दी. वह हर दिन अपने ममेरे भाइयों से मिलने भी जाते हैं.
जगसीर ने कहा, ‘हबीब ने कभी शादी नहीं की…उनके लिए सादिक के बच्चे और पोते ही अब एक परिवार हैं जिसे वह अपना कह सकते हैं.’
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