नई दिल्ली: देशभर के अस्पतालों में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के तेजी से कोविड संक्रमण की चपेट में आने के बीच इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की तरफ से टेस्ट के संबंध में सोमवार को अधिसूचित नए दिशानिर्देश ने डॉक्टरों को चिंता में डाल दिया है. कई डॉक्टरों को डर है कि इससे स्वास्थ्य कर्मियों के संक्रमित होने के आसार तो बढ़ेंगे ही इसके साथ ही कोविड होने की जानकारी बिना की गई सर्जरी मरीजों के लिए भी घातक साबित हो सकती है.
टेस्ट के संबंध में नई नीति—जिसे सितंबर 2020 के बाद पहली बार बदला गया है—कहती है, ‘सर्जिकल/गैर-सर्जिकल चिकित्सा प्रक्रिया से गुजरने वाले एसिम्प्टमैटिक मरीजों—जिनमें प्रसव के लिए आने वाली गर्भवती महिलाएं भी शामिल है—का तब तक कोविड टेस्ट करने की जरूरत नहीं है जब तक ऐसा करना अतिआवश्यक न हो या फिर इसके स्पष्ट लक्षण नजर न आ रहे हों.
हालांकि, इसका फैसला इलाज करने वाले डॉक्टरों के ‘विवेक पर निर्भर’ करेगा लेकिन इन दिशानिर्देशों ने बेचैनी बढ़ा दी है. खासकर ऐसे समय में जबकि कई अस्पतालों का कहना है कि किसी अन्य इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराए गए और फिर टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए मरीजों की संख्या, कोविड संबंधी दिक्कतों के कारण अस्पताल आने वाले मरीजों की तुलना में काफी बढ़ गई है.
नए दिशानिर्देशों के तहत कोविड-19 संक्रमित लोगों के संपर्कों में आने वालों के लिए भी अब टेस्ट कराना अनिवार्य नहीं है. बशर्तें, वो उम्र और कोमोर्बिटिडी के आधार पर ‘ज्यादा जोखिम’ वाली श्रेणी में न आते हों.
फोर्टिस सीडीओसी हॉस्पिटल फॉर डायबिटीज एंड एलाइड साइंसेज के चेयरमैन और एम्स, नई दिल्ली में मेडिसिन के प्रोफेसर रहे चुके डॉ. अनूप मिश्रा ने बुधवार को एक ट्वीट में नए नियम को रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि ‘दो मुद्दे’ उठ रहे हैं.
Two issues:
1. Even if asymptomatic, surgical outcome in #Covid19 positive cases may be worse.
2. Possible infection of #anesthesia/#criticalcare team during/after op in such patient mean danger to #doctors/#HCW & further attrition of workforce.This order should be rescinded https://t.co/EkbCUl3kP1
— anoop misra (@docanoopmisra) January 12, 2022
मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा, ‘सर्जरी से पूर्व कोविड-19 का टेस्ट काफी महत्वपूर्ण होता है. यह एनेस्थेटिस्ट और क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट जैसे अहम वर्कफोर्स में वायरस का संक्रमण फैलने से रोकता है और संभवतः मरीज को भी ऑपरेशन के दौरान ऐसे जोखिमों से बचाता है जिसकी आशंका कोविड-19 निगेटिव मरीजों में नहीं होती है. मेरी राय यही है कि किसी भी सर्जरी या चीरफाड़ से जुड़ी प्रक्रिया से पहले सभी मरीजों का कोविड-19 टेस्ट होना चाहिए.’
हालांकि, डॉक्टरों के बीच संक्रमण को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के पास कोई प्रामाणिक आंकड़ें उपलब्ध नहीं हैं लेकिन कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि दिल्ली के छह प्रमुख अस्पतालों में 750 से अधिक डॉक्टर इस समय SARS-CoV-2 वायरस से संक्रमित हैं.
स्वास्थ्य कर्मियों में संक्रमण बढ़ने के साथ दिल्ली के कई सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने हर्निया, अपेंडिक्स जैसे मामलों और अन्य सामान्य स्थितियों में मरीजों के लिए वैकल्पिक ओपीडी और गैर-जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं पर अस्थायी रोक लगाने का आह्वान किया है.
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‘एक अजीब अपवाद’
आईसीएमआर की इस ‘उद्देश्यपरक टेस्टिंग स्ट्रेटजी’ में अस्पताल में भर्ती मरीजों के अलावा सामुदायिक स्तर पर और कोविड-19 के पुष्ट मामलों के संपर्क में आए एसिम्प्टमैटिक लोगों के टेस्ट में छूट दी गई है बशर्ते जब तक कि वे उम्र या कोमोर्बिडिटी के कारण ‘उच्च-जोखिम’ की श्रेणी में न आते हों.
इसका सीधा मतलब यह भी है कि आने वाले दिनों में कांट्रैक्ट ट्रेसिंग के मामले में ‘टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट’ संबंधी दिशानिर्देश पूरी तरह से बदल जाएगा.
इन दिशानिर्देशों के तहत डायबिटीज, हाइपरटेंशन, फेफड़े या किडनी की गंभीर बीमारी, मोटापे और असाध्य रोगों को कोमोर्बिडिटी की सूची में रखा गया है.
एंडोक्रिनोलॉजी एंड डायबिटीज, मैक्स हेल्थकेयर के चेयरमैन डॉ. अंबरीश मिथल कहते हैं कि डॉक्यूमेंट का यह हिस्सा महामारी विज्ञान के आधार पर उचित ही कहा जा सकता है.
मिथल ने कहा, ‘आप देख ही रहे हैं कि ओमिक्रॉन जिस तेजी से फैल रहा है, सभी कॉन्टैक्ट की टेस्टिंग का औचित्य समझ नहीं आता क्योंकि अगर हम ऐसा करते हैं तो यह टेस्टिंग को प्रभावित करेगा. साथ ही जोखिम की श्रेणी में आने वाले लोगों के लिए भी खतरा बढ़ जाएगा.’
मिथल ने कहा, ‘लेकिन जो बात मुझे वास्तव में परेशान करने वाली लगती है और जिससे मैं पूरी तरह असहमत हूं, वो ये कि अस्पतालों में भर्ती लोगों का टेस्ट न हो. इनमें वे लोग भी शामिल होंगे जो एनेस्थीसिया के तहत कुछ प्रक्रियाओं से गुजरेंगे, ट्यूब आदि का उपयोग किया जाएगा और फिर वहां मौजूद कर्मचारियों के लिए भी जोखिम होगा. चूंकि वे अस्पताल हैं तो जाहिर है कि उनके आसपास अस्वस्थ लोग ही होंगे.’
उन्होंने कहा, ‘वहां संक्रमण फैलने के जोखिम का क्या? यह एक बेहद अजीब अपवाद है, भले ही इसे ‘इलाज करने वाले डॉक्टर के विवेक’ पर छोड़ा गया है. मरीजों को भर्ती करते समय और यदि आवश्यक हो तो चिकित्सकीय प्रक्रिया से पहले एक बार फिर टेस्ट के जरिए यह सुनिश्चित करना जरूरी होना चाहिए कि उसे कोविड तो नहीं है.’
दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘फिलहाल, हम उन सभी का टेस्ट करना जारी रखेंगे जिन्हें भर्ती करने की जरूरत पड़ती है या किसी आपात स्थिति में आते हैं. इतने ज्यादा पॉजिटिविटी रेट (दिल्ली सरकार के मंगलवार के बुलेटिन के मुताबिक टेस्ट पॉजिटिविटी रेट 25.65 प्रतिशत था) और कई लोगों के एसिम्प्टमैटिक होने के मद्देनजर सावधानी बरतते हुए हमने टेस्टिंग जारी रखने का निर्णय लिया है.’
उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि टेस्ट के नतीजे आने तक कोई इलाज या चिकित्सकीय मदद नहीं दी जा रही लेकिन इतना जरूर है कि मरीज की कोविड स्थिति के बारे में पता होने से हम इलाज के लिए बेहतर ढंग से योजना बना सकते हैं. अभी हमारे लगभग 80 स्वास्थ्य कर्मी कोविड से संक्रमित हैं जिनमें लगभग 30 डॉक्टर और 40 नर्स शामिल हैं.’
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