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Friday, 22 November, 2024
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BJP, उनके सहयोगी, सोशल एक्सपर्ट—कोई भी नीतीश-जद (यू) की ‘समाज सुधार यात्रा’ में नहीं दे रहा साथ

बिहार के मुख्यमंत्री ने शराब के सेवन, बाल विवाह और दहेज जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ 22 दिसंबर से यात्रा शुरू की है लेकिन इसे ‘टाइमपास’ और ‘सरकार की नाकामियों से ध्यान भटकाने’ का तरीका बताया जा रहा है.

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पश्चिम चंपारण स्थित वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व में 2021 की अंतिम कैबिनेट बैठक के एक दिन बाद 22 दिसंबर को राज्य के पूर्वी चंपारण जिले से अपनी ‘समाज सुधार अभियान यात्रा’ की शुरुआत की थी.

राज्य की एनडीए सरकार में शामिल भाजपा के नेता इस कैबिनेट बैठक में तो मौजूद थे लेकिन वह इसमें भाग लेने के तुरंत बाद राजधानी लौट आए समाज सुधार यात्रा के उद्घाटन में शामिल नहीं हुए.

भाजपा के मंत्री सम्राट चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘कैबिनेट बैठक तो एनडीए सरकार की थी, जबकि समाज सुधार यात्रा जदयू का कार्यक्रम है.’

नीतीश कुमार को यात्रा शुरू किए 12 दिन बीत चुके हैं और इसका उद्देश्य शराब के खिलाफ जागरूकता पैदा करने के साथ-साथ दहेज और बाल विवाह जैसी कुरीतियों को दूर करना भी है. लेकिन भाजपा ने 15 जनवरी तक चलने वाली इस यात्रा से स्पष्ट तौर पर दूरी बना ली है.

इस यात्रा में भाजपा की भागीदारी किसी जिले में वहां के मंत्री के व्यक्तिगत तौर पर मौजूद होने तक सीमित है, जबकि मुख्यमंत्री संबंधित जिले से गुजर रहे हों या वहां किसी सभा को संबोधित कर रहे हों. पार्टी ने यात्रा के पक्ष में कोई बयान भी जारी नहीं किया है.

बिहार भाजपा के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा, ‘हम मुख्यमंत्री की यात्रा की सराहना करते हैं, लेकिन यह एनडीए का कार्यक्रम नहीं है. यह तो जदयू का आयोजन है.’

काफी समय से दोनों दलों के बीच मतभेद बढ़ने की खबरें आती रही हैं, लेकिन भाजपा नेताओं के नीतीश की इस यात्रा से न जुड़ने की एक वजह राज्य में शराबबंदी कानूनों को लागू करने के तरीकों को लेकर आलोचना और शराब की खपत को लेकर मुख्यमंत्री की तरफ से सार्वजनिक तौर पर दिए गए हालिया बयानों को भी माना जा रहा है.

यात्रा और उसके विषय—सामाजिक सुधार—को लेकर भी अन्य लोग सवाल खड़े कर रहे हैं खासकर इसके लिए ऐसा समय चुनने को लेकर जबकि राज्य में शासन की नाकामी का मुद्दा उठाया जा रहा है.

हालांकि, जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन ने अभियान का बचाव करते हुए दिप्रिंट से कहा, ‘यह (यात्रा) ऐतिहासिक है और इसका उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन लाना है. पहले, समाज सुधारक होते थे जिन्होंने इन मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाई. लेकिन उनके पास सत्ता की ताकत नहीं होती थी. नीतीश कुमार के पास सत्ता है और उन्हें सामाजिक रूप से लागू कर सकते हैं.’

नीतीश के लिए यात्रा ‘टाइमपास’

नाम न छापने की शर्त पर राज्य के कई भाजपा नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि वे मुख्यमंत्री की यात्रा से जुड़ना नहीं चाहते..

भाजपा के एक विधायक ने दावा किया, ‘अब तक (निषेध कानून के तहत) गिरफ्तारियों पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि मुख्य रूप से दलित और अत्यंत पिछड़ी जातियों के लोग ही इसके तहत गिरफ्तार किए गए और जेल भेजे गए.’

मुख्यमंत्री की यात्रा को ‘फ्लॉप शो’ करार देते हुए विधायक ने कहा, ‘हाल की एक घटना, जिसमें पुलिस नवंबर में पटना में शराब की तलाशी के लिए मैरिज हॉल पर छापेमारी के दौरान दुल्हन के कमरे में घुस गई थी (बाद में यह सूचना फर्जी साबित हुई), ने मध्यम वर्ग को नाराज कर दिया है, जो कि मुख्यत: हमारे मतदाताओं का वर्ग है.’

भाजपा के कुछ नेता तो मुख्यमंत्री की यात्रा को ‘टाइमपास’ भी करार दे रहे हैं. विधायक ने कहा, कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन्हें निपटाना जरूरी है, जिसमें भ्रष्टाचार,—क्योंकि हर सतर्कता छापे में जिला स्तर के अधिकारियों के कब्जे से भारी नकदी और संपत्ति बरामद हो रही है—बेरोजगारी और राज्य में कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति आदि शामिल हैं. यात्रा केवल अन्य प्रमुख मुद्दों से ध्यान भटकाने की एक कोशिश है.’

राज्य के शराब विरोधी कानूनों पर एनडीए सहयोगियों में मतभेद नवंबर 2021 में सामने आए थे, जब राज्य भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने बिहार में शराबबंदी कानूनों की समीक्षा करने का आह्वान किया, खासकर इस पर अमल के तरीकों को लेकर. उन्होंने यह मुद्दा राज्य में जहरीली शराब की घटनाओं में हुई मौतों के बाद उठाया था. लेकिन नीतीश कुमार ने उनकी इस मांग को ठुकरा दिया.

नीतीश की यात्रा से दूरी बनाने वाले सहयोगी दलों में भाजपा अकेली नहीं है.

एक छोटा सहयोगी दल हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (एचएएम) भी अभियान के खिलाफ है, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और एचएएम नेता जीतन राम मांझी ने दिसंबर में कहा था कि लोगों को रात 10 बजे के बाद शराब के सेवन की अनुमति दी जानी चाहिए. वह नियमों के संशोधन के संदर्भ में यह टिप्पणी कर रहे थे. मांझी ने 15 दिसंबर को पश्चिम चंपारण में एक सभा में अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘थोड़ी-थोड़ी पिया करो.

मांझी ने शराबबंदी का ‘गुजरात मॉडल’ लागू करने की मांग की है, जिसमें राज्य में बाहर से आने वाले लोगों को शराब के सेवन के लिए लाइसेंस जारी किए जाते हैं, जबकि सार्वजनिक रूप से शराब पीते पाए जाने वालों पर जुर्माना लगाया जाता है.


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‘बिहार में बाहरी लोगों को नहीं पीने देंगे’

बिहार में लागू शराबबंदी कानून के कारण न्यायपालिका पर पड़ने वाले बोझ—क्योंकि इसके तहत आरोपित लोगों की तरफ से जमानत मांगने के मामले बढ़े हैं—को देखते हुए देश के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने भी नीतीश सरकार की आलोचना की है.

जस्टिस रमन्ना ने पिछले महीने में आंध्र प्रदेश में एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा, ‘कानून बनाने में दूरदर्शिता का अभाव सीधे तौर पर अदालतों का बोझ बढ़ा देता है. उदाहरण के तौर पर बिहार शराबबंदी कानून के कारण हाई कोर्ट में जमानत के आवेदनों की बाढ़ आ गई है. इस वजह से किसी साधारण जमानत आवेदन के निपटारे साल भर का समय लग जाता है.’

सीजेआई की इस टिप्पणी ने विरोधी दल राजद को नीतीश कुमार सरकार पर हमले का मौका दे दिया. नीतीश के कट्टर समर्थक माने जाने वाले भाजपा नेता और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी तक ने सीजेआई के बयान से सहमति जताते हुए एक बयान जारी करके कहा कि शराब विरोधी कानूनों के आरोपियों से जुड़े मामले निपटाने के लिए और अदालतें स्थापित की जानी चाहिए.

बिहार में 2016 में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से अब तक चार लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और 1.93 करोड़ लीटर से ज्यादा शराब जब्त की गई है. आबकारी विभाग के आंकड़ों के अनुसार, शराब की आपूर्ति में इस्तेमाल होने वाले 61,000 से अधिक वाहनों को भी जब्त किया गया है.

शराबबंदी कानून पर अमल के तरीकों की आलोचना होने के बावजूद बिहार के मुख्यमंत्री अपने रुख पर कायम हैं और यात्रा के दौरान कुछ बयानों के कारण भी उनकी आलोचना की जा रही है.

समस्तीपुर में भीड़ को संबोधित करते हुए नीतीश ने कहा, ‘मैं बिहार में बाहरी लोगों को शराब नहीं पीने दूंगा. जो शराब का सेवन करना चाहते हैं उन्हें बिहार आने की जरूरत नहीं है.’ उनकी इस भाषा की उनके पूर्व सहयोगी और पूर्व एमएलसी प्रेम कुमार मणि ने आलोचना की. उन्होंने कहा कि यह तो किसी राजा की भाषा है न कि एक लोकतांत्रिक शासक की.

मणि ने दिप्रिंट से कहा, ‘नीतीश इस समय घिसी-पिटी लकीर पर चल रहे हैं. हम प्रेमचंद (महान हिंदी लेखक) के युग में दहेज, शराब और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं के बारे में पढ़ा करते थे. आजकल के लेखकों ने तो इन विषयों पर लिखना तक बंद कर दिया है. आज सती के खिलाफ आंदोलन शुरू करने से कोई राजा राम मोहन राय नहीं बन जाएगा.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे यह काफी हास्यापद लगता है कि नीतीश ऐसे मुद्दों पर इतना समय बर्बाद कर रहे हैं जबकि राज्य विकास के सभी सूचकांकों में सबसे नीचे बना हुआ है. वह एक ऐसे छात्र की तरह व्यवहार कर रहे हैं जो संगीत और ललित कला पर ध्यान दे रहा है और लेकिन गणित में पिछड़ता जा रहा है.’

बिहार के मुख्यमंत्री ने अपनी सभाओं के दौरान न केवल शराबबंदी का विरोध करने वाले ‘बुद्धजीवियों’ पर निशाना साधा बल्कि डॉक्टरों तक को हैरत में डालते हुए यह भी कहा कि शराब का सेवन एड्स समेत तमाम स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए भी जिम्मेदार होता है. मुख्यमंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया जताते हुए आईजीआईएमएस पटना के डॉ. ब्रजनंदन यादव ने कहा, ‘मैंने कभी नहीं सुना था कि शराब के सेवन से एड्स हो सकता है.’

ए.एन. सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान, पटना के पूर्व निदेशक डॉ. डी.एम. दिवाकर ने भी कुछ इस तरह की प्रतिक्रिया दी.

दिवाकर ने कहा, ‘सरकार का काम सामाजिक जागरूकता पैदा करना नहीं बल्कि शासन करना है. सामाजिक जागरूकता का काम इसे सामाजिक संगठनों पर छोड़ देना चाहिए. सरकार सामाजिक जागरूकता के लिए माहौल बना सकती है. अगर मुख्यमंत्री के इस तरह जगह-जगह घूमने के बजाये सरकार ने इसे स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल किया तो ज्यादा सकारात्मक असर पड़ता.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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