scorecardresearch
Thursday, 18 April, 2024
होममत-विमतनीतीश कुमार बदल गए हैं, ऐसा लगता है जैसे बिहार में एक नया मुख्यमंत्री है

नीतीश कुमार बदल गए हैं, ऐसा लगता है जैसे बिहार में एक नया मुख्यमंत्री है

जो लोग अपनी युवावस्था में लोकतंत्र में विश्वास करते हैं, वे अक्सर उम्र के साथ अधिनायकवाद के समर्थकों में बदल जाते हैं. बिहार इसे देख रहा है.

Text Size:

हर एक व्यक्ति का व्यक्तित्व और चरित्र समय और काल के अनुसार बदलता रहता है. जवानी में समाजवादी, क्रान्तिकारी और ढलती उम्र में रूढ़िवादी तथा निजीकरण व्यवस्था का समर्थक हो जाता है. प्रारंभ में प्रजातंत्र में विश्वास करते हैं और ढलती उम्र में अधिनायकवाद के समर्थक बन जाते हैं. इस तरह से सामान्य व्यक्तियों में बदलाव होता है. नौकरशाहों तथा राजनीतिज्ञों में भी ये देखा जा सकता है.अनेक भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा भारतीय प्रशासनिक पुलिस सेवा के पदाधिकारियों में तथा राजनीतिज्ञों में साफ-साफ यह दिखाई देता है. प्रारंभ में आईएएस-आईपीएस अपनी छवि के प्रति बहुत ही सजग दिखते हैं लेकिन 15-20 साल बाद उन्हीं पदाधिकारियों में पहले वाला जोश, उत्साह, छवि और निष्ठा के प्रति सजगता कम दिखती है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का चरित्र ग्राफ भी इससे अलग नहीं है.

लगातार यू-टर्न

नीतीश कुमार संसदीय प्रणाली को मजबूत करने के प्रति अपनी निष्ठा, प्रतिबद्धता और जुनून के लिए प्रसिद्ध थे, 1990 से 1995 और बिहार विधानसभा के सदस्य, लोकसभा के सदस्य के रूप में जो निष्ठा, उत्साह संसदीय प्रणाली को मजबूत करने में दिखता था उसमें 16वीं विधानसभा में बिहार विधानसभा के रूप में गिरावट दिखाई दे रही है.

 

श्री नीतीश कुमार जी ‘लवकुश’ के पहले महासम्मेलन, जो सतीश कुमार द्वारा आयोजित था, उसमें भाग लेने जाने में संकोच कर रहे थे. जातीय सभा में जाना उन्हें पसंद नहीं था परंतु भारी मन से पटना के गांधी मैदान में आयोजित सम्मेलन में भाग लिया. लेकिन व्यक्ति ने नाम लिए बगैर जातीय ‘लवकुश’ को वोट के लिए मजबूत करने हेतु श्री उपेंद्र कुशवाहा को जनता दल (यू) के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया. दोनों एक दूसरे की आलोचना की सीमा को पार कर टिप्पणी करते रहे थे. आज दोनों एक दूसरे के प्रशंसक और सत्ता के लिए सहयोगी बन गए हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

जब नीतीश कुमार अटल जी के मंत्रिमंडल में रेल मंत्री थे तब रेल दुर्घटना की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र दे दिया था. लेकिन समय और काल के बदलाव में नैतिकता को ताक पर रखते हुए मुजफ्फरपुर बालिका आवास गृह में चौंतीस लड़कियों के साथ बलात्कार की घटना सामने आने पर, भागलपुर के सृजन घोटाला की घटना के बावजूद मुख्यमंत्री पद पर बने रहते हैं. उनकी नैतिकता समय और काल के अनुसार बदल गई.

पहली बार आठ दिनों के लिए बिहार का मुख्यमंत्री बनने पर तत्कालीन सांसद श्री प्रभुनाथ सिंह एवं अन्य लोग येनकेन प्रकारेण बहुमत जुटाने पर लगे हुए थे. नीति सिद्धांत सब ताक पर था. उस समय नीतीश जी ने चुपचाप रहकर सभी गतिविधियों का मौन समर्थन कर दिया था. अंत्त्वोगत्त्वा बहुमत के अभाव में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था और उसी समय नीतीश कुमार की नैतिकता पर प्रश्नचिह्न लग गया था.

पुनः नैतिकता के आधार पर 2014 में मुख्यमंत्री के पद से उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था. चूंकि लोकसभा चुनाव में इनकी पार्टी को पराजय मिल गई थी और जीतनराम मांझी को जो घर जा रहे थे तब रास्ते से लौटवाकर मुख्यमंत्री बिहार के रूप में मनोनीत कर शपथ दिलवा दी थी. फिर उसी नीतीश कुमार ने माझी को मुख्यमंत्री के पद से हटाने के लिए जो भी कार्रवाई की, सब जगज़ाहिर है.

2020 के 17 वें बिहार विधानसभा चुनाव में जेडी (यू) केवल 43 सीटों पर ही सुरक्षित रह सकी.अब नैतिकता कहां चली गई. भारतीय जनता पार्टी के साथ ‘बड़े भाई के साथ छोटे भाई’ का शीत युद्ध जारी है. देखें कब, कहां और किस मौके पर उजागर होता है.


यह भी पढे़ं: सुशांत राजपूत के कज़िन से शाहनवाज़ तक- बिहार कैबिनेट में BJP के चेहरे पार्टी की सियासत के बारे में क्या बताते हैं


एक गुस्सैल मुख्यमंत्री

आजकल माननीय मुख्यमंत्री जी जल्दी-जल्दी गुस्से में आ जाते हैं. घटना पिछले विधान सभा में राज्यपाल महोदय के अभिभाषण पर धन्यवाद भाषण देते समय की है जब प्रतिपक्ष के नेता श्री तेजस्वी यादव के टिप्पणी पर वे आग बबूला हो गए.

शायद जो लोग भी नीतीश कुमार को जानते हैं, उन्होंने  इससे पहले शायद ही उन्हें गुस्से में देखा होगा. आजकल ‘चिढ़ा-चिढ़ा’ व्यवहार दिखता है. सत्ताधारी दल के सदस्य सदन आसन की ओर उंगली दिखा रहे हैं. अध्यक्ष को ‘व्याकुल’ कहा जाता है.

क्या संसदीय प्रणाली में आसन को अपमानित करने से सरकार या संसदीय प्रणाली मजबूत होगी. लेकिन यह सब मुख्यमंत्री देख रहे हैं.

पिछले सदन के सत्र में एक माननीय विधायक अपना आवेदन मुख्यमंत्री को देने जाते हैं. आवेदन में क्या लिखा था नहीं मालूम लेकिन गुस्से में आवेदन को किनारे रखते हुए काफी गुस्से भरी नज़रों से देखा जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती. माननीय सदस्य जब वापस लौटने लगे तो एक पदाधिकारी को इंगित कर बात करने को कहा.

नीतीश जी का गुस्सा पहले दिखाई नहीं देता था. उन्हें कभी भी किसी को ‘अपशब्द’ या ‘तुम ताम’ कर बात करते नहीं देखा गया था. नीतीश जी हमेशा छोटा हो या बड़ा सभी के साथ आदरसूचक शब्दों से बात करते थे. उनकी यह आदत अनुकरणीय थी. परन्तु कुछ दिनों से  इसमें गिरावट आ गयी है.

2010 में जब बिहार में बाढ़ आई थी तब नीतीश कुमार ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (जो अब देश के प्रधानमंत्री हैं) को रात्रि भोज पर बुलाकर उसे कैंसिल कर दिय था. लेकिन जब उन्होंने देखा कि मोदी राहत मांगे जाने पर राज्य की बुराई कर रहे हैं तो उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर दिया था. आगे चल कर नीतीश ने यह भी कहा था कि मिट्टी में मिल जायेंगे लेकिन भाजपा में नहीं जायेंगे. लेकिन आज भाजपा के साथ हैं. जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने पर उन्होंने कोई समझौता नहीं करने का विचार व्यक्त किया था. परन्तु अनुच्छेद-370 के पक्ष में भाजपा का समर्थन किया है. किसान बिल हो, निजीकरण का प्रस्ताव हो, राम मंदिर निर्माण का सवाल हो, सीएए, एनआरसी का सवाल हो उक्त सभी विषयों पर भाजपा का समर्थन जनता दल (यू) ने किया है.

अब लोकतांत्रिक नहीं है

पिछले विधान सभा के सत्र में नीतीश कुमार की बिहार सरकार ने विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक 2021 पेश किया है. जिसके बाद बिहार पुलिस को अधिकार होगा कि वह बिना वारंट के किसी के घर की तलाशी ले सकती है. किसी प्रकार के कोई न्यायिक आदेश की जरूरत नहीं होगी. मात्र पुलिस को विश्वास होना चाहिए वह तलाशी लेने के नाम पर कभी भी किसी के घर में घुस सकती है. इस बिल से पुलिस को असीमित अधिकार मिलेगा. व्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त हो जायेगी.

इस बिल का विपक्ष विरोध कर रहा था जिसे विधानसभा के द्वारा पास कराने के लिए संसदीय इतिहास में पहली बार सदन के अंदर पुलिस को बुला कर सदस्यों को पीटते हुए बाहर करवाया गया. यही है प्रजातंत्र का संसदीय कारनामा.

संसदीय परम्परा की दुहाई देने वाले माननीय मुख्यमंत्री देखते रहे और अपना पल्ला झाड़ कर अध्यक्ष विधानसभा के ऊपर आरोप मढ़ दिया. डीजीपी और पुलिस सचिव से संयुक्त प्रेस काॅफ्रेंस करवा कर कह दिया कि अध्यक्ष के आदेश पर सब कुछ हुआ. पुनः बिहार विधान परिषद में नीतीश जी ने हस्तक्षेप करते हुए आगबबूला होकर ऊंगली दिखाते हुए कांग्रेस के नेताओं को कहा कि राष्ट्रीय जनता दल के चक्कर में पड़ कर अपने आप को क्यों बर्बाद कर रहे हैं. इस प्रकार से नीतीश जी के गुस्से को उनके बाॅडी लैंग्वेज से पढ़ा जा सकता है कि उनके व्यवहार में काफी परिवर्तन दिख रहा है.

(लेखक बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं और व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं.)


यह भी पढे़ंः‘तानाशाह’ CM जिसे अपनी ‘आलोचना पसंद नहीं’- बिहार विधानसभा का हंगामा नीतीश के बारे में क्या बताता है


 

share & View comments