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Thursday, 25 April, 2024
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बिहार के सीएम नीतीश कुमार इस तरह फिर से हासिल करना चाहते हैं भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा का टैग

2005 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने वाले एक योद्धा की छवि बनाई थी. उनके शासनकाल के पहले दो वर्षों में रिश्वत लेने वाले अधिकारियों के खिलाफ 122 मामले दर्ज किए गए.

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने वाले एक योद्धा की छवि हासिल करने की कोशिश में जुटे हैं जो पिछले कुछ वर्षों में धूमिल हो गई है.

जुलाई के अंत से लेकर पिछले 45 दिनों के दौरान बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू), जो कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले गृह विभाग को रिपोर्ट करती है, ने कथित तौर पर अवैध रूप से नगदी और संपत्ति हासिल करने वाले राज्य के कई अधिकारियों को जांच के घेरे में लिया है, जिसमें उसके अपने ही विभाग के दो एसपी और दो डीएसपी भी शामिल हैं.

ईओडब्ल्यू के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) नैयर हुसैन खान ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें गृह विभाग की तरफ से जांच के लिए 42 अधिकारियों की एक सूची दी गई थी. हम छह मामलों में छापेमारी कर चुके हैं. अन्य लोग पर भी आगे कार्रवाई करेंगे.’

इन 42 अधिकारियों की सूची कथित तौर पर रेत खनन घोटाले के सिलसिले में सौंपी गई है, जिसमें अवैध खनिकों, पुलिस और परिवहन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत मानी जा रही है.

इस घोटाले के खुलासा पहली बार तत्कालीन पटना डीआईजी (सेंट्रल रेंज) शालिन ने 2017 में किया था.

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छह महीने पहले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव की तरफ से यह मुद्दा उठाए जाने के बाद रेत खनन घोटाले पर हंगामा तेज हो गया था. इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो गृह विभाग भी संभालते हैं, ने ईओडब्ल्यू से इसके बाबत जांच करने को कहा.

ईओडब्ल्यू के सूत्रों ने बताया कि छापेमारी से पहले सभी 42 अधिकारियों पर पिछले तीन महीनों से नजर रखी जा रही थी.

ईओडब्ल्यू ने मंगलवार को कथित तौर पर एक पुलिस कांस्टेबल नरेंद्र कुमार धीरज के स्वामित्व वाली संपत्तियों पर छापेमारी की और 9.47 करोड़ रुपये बरामद किए, जो धीरज की आय के ज्ञात स्रोतों से 540 प्रतिशत अधिक हैं.

एडीजी खान ने दिप्रिंट को बताया, ‘सही आंकड़े इससे ज्यादा हो सकते हैं.’ लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि छापे का अवैध रेत खनन घोटाले से कोई लेना-देना नहीं है.

वरिष्ठ अधिकारी जांच के घेरे में

ईओडब्ल्यू की तरफ से राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर भी अपना शिकंजा कसा जा रहा है.

इसने पिछले शनिवार को कथित तौर पर पूर्व एसपी राकेश दुबे से जुड़े परिसरों पर छापा मारा. ईओडब्ल्यू के सूत्रों ने बताया कि उसे पता चला था कि दुबे ने होटल, निर्माण कंपनियों और जमीन में कथित तौर पर 2.57 करोड़ रुपये का निवेश किया है.

ईओडब्ल्यू के एक अधिकारी ने कहा, ‘उनकी संपत्तियों की अभी जांच चल रही है. उनके वेतन खाते से वर्षों से कोई निकासी नहीं हुई है.’

पदोन्नत आईपीएस अधिकारी दुबे आरा जिले में ट्रांसफर से पहले पांच साल तक राजभवन से जुड़े थे. ईओडब्ल्यू सूत्रों ने बताया कि दुबे ने पिछले 11 साल से अपने वेतन खाते को हाथ भी नहीं लगाया है.

जांच के लिए सूची में शामिल एक अन्य आईपीएस अधिकारी औरंगाबाद जिले के पूर्व एसपी सुधीर पोइरका हैं.

सूत्रों ने बताया कि ईओडब्ल्यू ने एक अन्य कार्रवाई के तहत एक मोटर वाहन निरीक्षक के घर छापा मारा और 2 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की.

दो डीएसपी के पास 1.5 करोड़ रुपये की संपत्ति पाई गई, जबकि राज्य पुल निर्माण निगम के एक कार्यकारी अभियंता के यहां सतर्कता विभाग के छापों के दौरान अधिकारियों को नोटों की गिनती के लिए मशीन मंगानी पड़ी. नगदी 1.43 करोड़ के करीब पाई गई (संपत्ति की जांच अभी चल रही है).

ईओडब्ल्यू सूत्रों के मुताबिक, मुजफ्फरपुर में एक कार्यकारी अभियंता से पास 16 लाख रुपये नकद बरामद किए गए, जबकि अन्य 56 लाख रुपये उसके घर से बरामद हुए. यह सब और बहुत कुछ पिछले 45 दिनों के भीतर हुआ है.

एक सेवारत आईएएस अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘अधिकारियों द्वारा अवैध ढंग से पैसा कमाने में दिखाई जाने वाली निडरता अद्भुत है. अवैध कमाई को दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर और अन्य महानगरों में बड़े पैमाने पर अचल संपत्ति में निवेश करने में न तो उन्हें कोई शर्म आती है और न ही कतई भय होता है. मुझे कतई आश्चर्य नहीं होगा अगर नोएडा में आधे फ्लैट बिहारी अधिकारियों के स्वामित्व वाले हों तो.’

उन्होंने कहा कि अधिकांश अधिकारी राजनीतिक रूप से एक-दूसरे से अच्छी तरह जुड़े रहते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान तब सवाल उठे थे जब नीतीश की जदयू ने एक सरकारी इंजीनियर की पत्नी को टिकट दिया.


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भ्रष्टाचार के खिलाफ नीतीश की लड़ाई कमजोर

2005 में पहली बार सत्ता में आए नीतीश कुमार अपने सुशासन के बूते भ्रष्टाचार विरोधी एक योद्धा की छवि बनाने में कामयाब रहे थे.

विजिलेंस ब्यूरो एकदम सक्रिय हो गया था. राज्य सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि उनके शासनकाल के पहले दो वर्षों में अधिकारियों के कथित तौर पर रिश्वत लेते रंगे पकड़े जाने के सिलसिले में 122 मामले दर्ज किए गए थे.

इसके विपरीत, पिछले 15 वर्षों में लालू प्रसाद-राबड़ी देवी शासनकाल के दौरान ब्यूरो ने अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के केवल 47 मामले दर्ज किए थे.

भले ही विजिलेंस ब्यूरो ने नीतीश सरकार के विभिन्न कार्यकालों के दौरान 906 मामले दर्ज किए हों, लेकिन हाल के वर्षों में इनकी संख्या काफी घटती रही है.

ब्यूरो ने 2017 में 83 ऐसे मामले दर्ज किए थे, 2018 में 45, 2019 में 36 और 2020 में 12 मामले ही दर्ज किए गए.

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की तरफ से जारी इंडिया करप्शन सर्वे, 2019 में बिहार को राजस्थान के ठीक पीछे देश के दो सबसे भ्रष्ट राज्यों की श्रेणी में रखा गया था. रिपोर्ट में कहा गया कि बिहार में सर्वे में शामिल 75 फीसदी लोगों ने रिश्वत देने की बात स्वीकार की है.

एक पूर्व आईपीएस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि 2010 तक मुख्यमंत्री ने विशेष सतर्कता प्रकोष्ठ (एसवीसी) जैसे निकायों के माध्यम से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के प्रयास किए थे, जिसमें सीबीआई के पूर्व अधिकारी शामिल थे. अधिकारी ने कहा, ‘लेकिन उसके बाद नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में अपनी रुचि खो दी है क्योंकि सतर्कता मामलों की संख्या में गिरावट आई है और एसवीसी को एक तरह से निष्क्रिय ही कर दिया गया है.’

बिहार के पूर्व मुख्य सचिव वी.एस. दुबे ने भी कहा कि राज्य में भ्रष्टाचार अब चरम पर है.

उन्होंने कहा, ‘एक करोड़ के दिन अब गए. अब यह तो यह 10 करोड़ रुपये या 100 करोड़ रुपये है. भ्रष्टाचार तो हर जगह हैं और इसे पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन सरकार अपनी भ्रष्टाचार विरोधी इकाइयों की सक्रियता के जरिये कम जरूर कर सकती हैं.’

दुबे ने बताया, ‘लोक प्रशासन समिति के अध्यक्ष के रूप में मैंने सक्रिय एंटी करप्शन विंग की सिफारिश की थी. अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो हर अधिकारी यही सोचता है कि वह इससे बच सकता है और ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, उन्हें कुछ समय जेल में ही तो बिताना पड़ेगा.’

नीतीश शासन सबसे भ्रष्ट: राजद

इसमें कोई अचरज की बात नहीं है कि विपक्षी दल राजद ने नीतीश शासन को राज्य के इतिहास में सबसे भ्रष्ट करार दिया है.

राजद विधायक सर्वजीत ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह ऊपर से नीचे की ओर फैलता है. नीतीशजी ने अपना प्रशासन पांच अधिकारियों के हवाले कर दिया है. वे जनप्रतिनिधियों की नहीं सुनते हैं. मैं चुनौती देता हूं कि कोई भी बिहार के पुलिस थाने में चला जाए और बिना रिश्वत दिए प्राथमिकी दर्ज कराकर दिखा दे.’

भाजपा के विधायक भी इस बात पर सहमति जताते हैं.

भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर ने राज्य में भ्रष्टाचार का बोलबाला होने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘चपरासी से लेकर मुख्य सचिव तक सभी की संपत्तियों की जांच के लिए एक अलग आयोग होना चाहिए. पैनल को पंचायत वार्ड प्रतिनिधि से लेकर मुख्यमंत्री तक की संपत्तियों की जांच भी करनी चाहिए.’

हालांकि, जदयू ने इन आरोपों को खारिज किया है.

जदयू के एमएलसी नीरज कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘वो तो नीतीश कुमार ही हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के लिए अतिरिक्त सरकारी इकाइयां बनाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को मजबूत किया. यहां तक कि आर्थिक अपराध शाखा भी 2012 में उन्होंने ही बनाई थी.’

उन्होंने कहा, ‘अगर रेत खनन में कथित रूप से शामिल सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है, तो इसकी शुरुआत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ही की थी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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