कानपुर/कन्नौज/लखनऊ: इत्र व्यवसायी पीयूष जैन के कन्नौज स्थित एक मंजिला की ओर जाने वाली गली इतनी संकरी सी है कि वहां से कोई कार शायद ही निकल सके. उसके पड़ोसी अभी भी उसके इस घर से बरामद हुए 24 किलो सोने और उसके अलावा कानपुर स्थित उसके एक दूसरे घर से 26 दिसंबर को जीएसटी खुफिया इकाई द्वारा की गई छापेमारी में 177 करोड़ रुपये से अधिक नकद बरामद होने की खबर को लेकर हैरान हैं.
जैन के पड़ोसी उसे एक ‘साधारण इंसान’ के साथ-साथ ‘उदासीन’ और ‘धरती से जुड़े’ शख्स’ के रूप में बताते हैं. मगर, पान मसाला उद्योग और इत्र व्यापर के क्षेत्र से जुड़े व्यवसायियों के लिए यह कोई अचम्भे वाली बात नहीं है कि जैन के पास इतनी नकदी भी जमा हो सकती है.
उनके अनुसार पीयूष जैन ‘सुगंध का शानदार पारखी’, अपने वादे का पक्का, एक ‘सीक्रेट कंपाउंड’ रखने वाला और ‘भरपूर मात्रा में नकदी जमा कर के रखने’ वाला शख्स है. उसके पड़ोसियों और व्यापारिक सहयोगियों दोनों ने यह बात मानी कि वह इस उद्योग के किसी भी अन्य सामान्य व्यवसायी की तरह ही है जो अपने आप को ‘लो-प्रोफाइल’ बनाए रखते हैं.
जैन के कानपुर स्थित आवास की तलाशी के दौरान सात अलमारियों- चार बेडरूम में और तीन बेसमेंट (तहखाने) में रखी गईं- से भारी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी.
हालांकि, जैन की व्यावसायिक गतिविधियों से अभी भी एक रहस्य जुड़ा है, मगर उसके पड़ोसी और पान मसाला अथवा इत्र उद्योग के लोगों के पास उनके बारे में कुछ न कुछ कहने को है. फिर भी कोई इस बात को लेकर निश्चित नहीं है कि उसके ग्राहक कौन थे, या फिर क्या उसका किसी से कोई राजनीतिक संबंध था.
जैन के बारे में कुछ समय पहले की बात करते हुए, उसके एक करीबी सहयोगी, जो अपना नाम नहीं जाहिर करना चाहते थे ने कहा कि, जैन पिछले कई वर्षों से इत्र बनाने के व्यवसाय में थे और उनके पास एक ‘सीक्रेट कंपाउंड ’ था, जिसे वह पान मसाला कंपनियों को आपूर्ति करता था. यह कुछ ऐसी बात थी जो उसे दूसरों से अलग करती थी और जिससे उसने खूब सारे पैसे बनाये.
उन्होंने बताया कि जैन ज्यादा लोगों पर भरोसा नहीं करता था और नगदी से जुड़े ज्यादातर काम खुद करता था.
जैन के बारे में जानने का दावा करने वाले एक अन्य व्यवसायी ने कहा, ‘उसने अपनी खुद की डायरियां रखी हुई थीं, अपने नकद का सारा लेखा- जोखा (रिकॉर्ड) खुद रखता था. उसे किसी पर भी भरोसा नहीं था और यही वजह है कि इस तरह की नकदी मिलने के वाकये ने सभी को चकित कर दिया है.’
उसने कहा, ‘चूंकि वह पान मसाला उत्पादन में उपयोग होने वाले यौगिक (कंपाउंड) को बनाने में माहिर था, इसलिए उसका इसपर एकाधिकार था. वह एक खास मिश्रण की बोतल लाता था, जिसका उपयोग वह इस यौगिक को बनाने में करता था. कोई नहीं जानता कि उसमें क्या था?.’
‘राजनीतिक दलों का पैसा रखता था’
इस व्यवसायी के अनुसार, जैन एक ऐसे शख्स के रूप में भी ख्यात था जो ‘हवाला लेनदेन के लिए जरुरत पड़ने पर एक दिन के भीतर 5 करोड़ रुपये की राशि का इंतजाम कर सकता है.
इस व्यवसायी ने कहा, ‘हर कोई जानता है कि उसके पास हरदम नकदी तैयार रहती है. इसके अलावा, वह अकेला ऐसा शख्स नहीं है. पान मसाला और परफ्यूम (इत्र) का सारा कारोबार नकदी पर ही चलता है. चाहे यह कच्चे माल की खरीद का काम हो, या फिर नकद भुगतान करना हो; इन सब में नकद पैसा एक प्रमुख भूमिका निभाता है. बाजार में हर कोई जानता है कि पीयूष के पास हमेशा कैश उपलब्ध होगा.‘
उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है कि उसने ‘राजनीतिक दलों से संबंधित धन’ छिपा रखा हो और इसकी जरुरत पड़ने पर ‘इसे एक जगह पर एकत्र किया हो’. उन्होंने और अधिक विवरण देने से इनकार करते हुए कहा कि इस बारे में कोई भी ज्यादा कुछ नहीं जानता कि क्या जैन का कोई राजनीतिक संबंध था या नहीं. यह इसलिए क्योंकि उसे कभी भी किसी राजनीतिक नेता के साथ अथवा किसी राजनीतिक कार्यक्रम में भाग लेते नहीं देखा गया था.
दिप्रिंट ने पीयूष जैन से जुड़ी सारी फर्मों का विवरण हासिल किया और हमने यह पाया कि उसके द्वारा आधिकारिक तौर पर घोषित कंपनियों का कारोबार उसके घर से बरामद नकद की तुलना में बहुत कम था.
ओडोकेम इंडस्ट्रीज – जिसमें पीयूष जैन, उसके पिता महेश चंद जैन और उसके भाई अंबरीश जैन भागीदार हैं – के वित्तीय रिकॉर्ड के अनुसार वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए इसका कुल कारोबार केवल 4,24,33,300 रुपये का दिखाया गया है. इसमें से, इनपुट टैक्स क्रेडिट युटिलिजेसन – निर्माताओं को निर्माण में लगी सामग्री की खरीद पर भुगतान किया गया कर – 1,16,33,252 रुपये के रूप में दिखाया गया है और घोषित लायबिलिटी 83,06,282 रुपये की है.
वित्तीय विवरण में वित्तीय वर्ष 2020-21 और 2019-20 के लिए क्रमश: के लिए 6,05,88,700 रुपये और 5,25,93,400 रुपये का टर्नओवर दिखाया गया है.
टैक्स अधिकारियों से जुड़े एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये रिकॉर्ड इस बात का सबूत हैं कि इस व्यवसायी ने वास्तविक आंकड़े छिपाते हुए, सिर्फ टैक्स बचाने के लिए अपने टर्नओवर को कम करके आंका है.’
जैन पर जीएसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है और फ़िलहाल उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में रखा गया है. उसने कथित तौर पर पिछले चार वर्षों में 31.5 करोड़ रुपये से अधिक की जीएसटी की चोरी की है.
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‘सुगंध की शानदार स्मृति’
उसके दामाद नीरज जैन ने दिप्रिंट को बताया कि पीयूष जैन और उसके भाई अंबरीश दोनों ने कन्नौज के एक विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में मास्टर्स डिग्री हासिल की हुई है. हालांकि जैन के पिता महेश चंद्र भी परफ्यूम के ही के धंधे में थे, लेकिन रसायन विज्ञान में पारंगत होने के कारण, पीयूष ने साबुन और डिटर्जेंट के लिए भी यौगिक बनाना शुरू कर दिया था. जल्द ही, उसने यौगिक बनाने की कला – जो पान मसाला व्यवसाय के लिए आवश्यक शर्त है – में महारत हासिल करने के बाद अपने पारिवारिक व्यवसाय को संभाला. उसे जानने वाले एक व्यवसायी ने कहा कि उसके पास ‘सुगंध की शानदार स्मृति’ है.
पान मसाला उद्योग के काम आने वाला जैन का यह प्रसिद्ध यौगिक रसायनों और प्राकृतिक अर्क का मिश्रण है. इस व्यापार से जुड़े लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि एक अच्छा यौगिक ही किसी पान मसाले की गुणवत्ता को तय करता है.
ऐसे ही एक व्यवसायी के मुताबिक कन्नौज परफ्यूम और पान मसाला निर्माण का केंद्र है. इत्र बनाने वाली इकाइयां (परफ्यूमरीज) विभिन्न प्रकार के यौगिक बनाती हैं और इसे पान मसाला निर्माताओं को बेचती हैं. इस व्यवसायी ने बताया कि पान मसाला में गुटखा, सुपारी, तंबाकू, चूना और परफ्यूम की मिलजुली सामग्री होती है.
इस व्यवसायी के अनुसार, एक अच्छे कंपाउंड निर्माता को 700 से 800 तरह की सुगंध और स्वाद के बीच अंतर करने में सक्षम होना चाहिए, और उसे केवल एक कंपाउंड को सूंघने भर से यह पता चल जाना चाहिए कि इसमें कौन से रसायन और अर्क (एसेन्स) डाला गया है.
उसने कहा कि जैन ने इस कला में महारत हासिल कर ली थी. इस व्यवसायी के अनुसार किसी भी उत्पाद को चखने के बाद जैन बता सकता है कि इसमें क्या- क्या इस्तेमाल किया गया है.
इस व्यवसायी ने कहा, ‘कंपाउंड निर्माण से जुड़े किसी भी विशेषज्ञ के पास सुगंध और स्वाद की शानदार याददाश्त होनी चाहिए और जैन के पास यही गुण है. इसके अलावा, अपने स्वयं के ज्ञान के साथ-साथ उसके पास इस व्यवसाय से मिला प्रशिक्षण और सीख भी शामिल है. ‘
मुन्ना लाल एंड संस परफ्यूमर्स के मालिक और कन्नौज में अत्तर एंड परफ्यूम्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, समीर पाठक ने कहा, ‘हम केवल इतना जानते हैं कि वह बेहतरीन कंपाउंड बनाता है और इसीलिए बेहद लोकप्रिय है. करीब 50-60 ऐसे उत्पाद होते हैं जिनका उपयोग कंपाउंड बनाने में किया जाता है और इत्र उनमें से सिर्फ एक उत्पाद है. सारी सामग्री को मिलाने के बाद, इसे फेंटा (ब्लेंड) जाता है और वह इसे बहुत अच्छे से करता है. जैन बहुत पढ़ा लिखा आदमी है. वह इस व्यवसाय का बहुत अच्छा जानकार है और उसकी अच्छी-खासी प्रतिष्ठा है. मैं उसके बारे में और कुछ अधिक नहीं जानता.’
‘वह बहुत ही लो-प्रोफाइल रहता था’
पीयूष जैन के दामाद के अनुसार, उसके तीन बच्चे हैं – एक बेटी नीलांशा, जो शादीशुदा है और एक पायलट है, और दो बेटे, प्रत्युष और प्रियांश. प्रत्युष जहां आईआईटी कानपुर में पढ़ रहा है, वहीं प्रियांश भी इंजीनियरिंग का छात्र है.
जब दिप्रिंट ने कानपुर के आनंदपुरी स्थित उनके एक लम्बे-चौड़े बंगले – जहां से 177 करोड़ रुपये की बरामदगी की गई थी – का दौरा किया, तो हमें पता चला कि इस कॉलोनी में रहने वाले लोग जिनमें से बहुत से जैन समुदाय से जुड़े लोग भी थे, पीयूष जैन को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते थे. घर के बाहर एक चोट के कारण पिचकी हुई बॉडी वाली टोयोटा कोरोला कार खड़ी थी.
पड़ोस में ही स्थित एक जैन मंदिर के प्रबंधक संतोष जैन, जो इस समुदाय के अधिकांश निवासियों को जानते हैं, ने कहा, ‘वह यहां कभी नहीं आए या कुछ भी दान नहीं किया, और न ही कभी जैन समाज की किसी भी गतिविधि का कभी हिस्सा रहे. उसका भाई अंबरीश अक्सर आता है और उसके बेटे भी यहां की गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं. मैंने उसे सिर्फ टीवी पर देखा है, यहां के लोग शायद ही उसे जानते हों.’
कानपुर के ट्रांसपोर्ट नगर इलाके के बीजेपी पार्षद मनोज राठौर ने भी कहा कि पीयूष कभी भी इस इलाके की किसी गतिविधि में शामिल नहीं हुआ.
राठौर ने बताया, ‘मैंने उसे कभी किसी चीज में शामिल होते नहीं देखा. वह अपने आप में सीमित रहता था. दरअसल, उसके एक कर्मचारी ने मुझे बताया था कि एक बार उसने जैन से कुछ पैसे मांगे थे, लेकिन उसने यह कहते हुए मना कर दिया था कि, ‘पैसा हराम का है क्या?’. उसके ड्राइवर ने मुझे बताया था कि उसने उसे कभी भी कार एसी तक नहीं चलाने दिया.’
इस इलाके के विधायक, महेश त्रिवेदी, जो भाजपा से ही हैं, ने भी अन्य लोगों की बात में हामी भरी और कहा कि पीयूष जैन कभी भी ‘जैन समाज की गतिविधियों में शामिल’ नहीं रहा था.
उन्होंने कहा, ‘मैंने उसे कभी नहीं देखा या उससे कभी बात भी नहीं की. वह क्षेत्र की किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं रहा था. हम सिर्फ इतना जानते हैं कि वह इस घर में रहता था और एक व्यापारी था.’
हालांकि जैन के दामाद नीरज ने कहा कि यह सब सच नहीं है. उसने कहा, ‘वह एक बहुत ही मददगार व्यक्ति हैं और आप कन्नौज में उनके पड़ोसियों से मिलकर इसकी पुष्टि कर सकते हैं. हां, वह सामाजिक रूप से निष्क्रिय रहते हैं और ज्यादा लोगों से मिलते-जुलते नहीं हैं. वह एक परिवार उन्मुख व्यक्ति है. वह अपने व्यवसाय के बारे में बहुत बुद्धिमान और जानकार शख्स है और इसीलिए वह इतने संपन्न है.’
जैन के वकील सुधीर मालवीय ने कहा कि उन्होंने इस मामले से पहले उसके बारे में कभी नहीं सुना था. उन्होंने कहा, ‘मैंने उसके बारे में पहले कभी नहीं सुना था. जब उसे गिरफ्तार किया गया, तो मुझे सिर्फ उसका मामला पेश करने के लिए रखा गया. मैं भविष्य में इस मामले पर और जानकारी साझा कर सकूंगा.’
दूसरी तरफ, कन्नौज में जैन के आस-पास के लोग उसके बारे में प्रशंसा भरे शब्दों में ही बात करते हैं. हालांकि, उसके पड़ोसी भी जैन के घर से बरामद की गई संपत्ति को लेकर हैरान हैं मगर उनका कहना है कि वे हमेशा से जानते थे कि वह ‘एक धनी व्यक्ति है, जो कई नौकरों का खर्च उठा सकता है’.
स्थानीय तौर पर पार्लर चलाने वाले एक पड़ोसी ने दिप्रिंट को बताया, ‘ हम हमेशा से जानते थे कि यह एक अमीर परिवार है क्योंकि यहां केवल वही लोग थे जिनके पास नौकर-चाकर थे. उनके पास सामान चढ़ाने और उतारने के लिए अक्सर काफी सारे टेम्पो आते रहते थे, जो एक अच्छे-खासे व्यवसाय का संकेत था. लेकिन हम कभी यह कल्पना भी नहीं कर सकते थे किउसके घर से इतना सारा पैसा निकलेगा.’ वे बताते हैं, ‘उसकी पत्नी अक्सर मेरे पार्लर आती थीं, उन्होंने हमारे भी किसी कर्मचारी (स्टाफ) को अपने घर भेजने के लिए नहीं कहा. उनके पास अपने बारे में ऐसा कोई गुमान नहीं था.’
पड़ोसियों का कहना हैं कि जैन परिवार की महिलाओं ने कभी भी महंगे आभूषण या कपड़े नहीं पहने थे, न ही उनके पास घर में ऐसी चीजें थीं जो इतनी मूल्यवान लगती थीं – वास्तव में, ऐसा कुछ भी नहींथा, जो उनके पास इतना नकद जमा होने का संकेत दे.
एक पडोसी ने कहा, ‘उनके पास एक बहुत ही साधारण-सा दिखने वाला घर था, जिसमें कुछ भी विशेष नहीं था. लेकिन हां, वे अच्छे खासे संपन्न हैं, और यहां हर कोई इस बात को जानता है. उनके पास एक पुराना एलएमएल वेस्पा स्कूटर और एक पुरानी सैंट्रो कार हो सकती है, लेकिन सभी जानते हैं कि उनके पास कानपुर में दो घर और अन्य कई कारें हैं.’
एक अन्य पड़ोसी, एक और जैन जो पीयूष के दूर का रिश्तेदार होने का दावा करते हैं, ने कहा कि जैन की जो छवि जो अब पेश की जा रही है – एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो साधारण कपड़ों और रबर की चप्पलों में घूमता है – एकदम सच भी नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘वह (जैन) अच्छे कपड़े पहनते हैं. बहुत तड़क-भड़क वाले तो नहीं, लेकिन अच्छे खासे. ऐसा नहीं है कि वह बाथरूम में पहने जाने वाली रबड़ की चप्पल पहन कर या अपने स्कूटर पर सवार होकर शादियों में जाते हैं (जैसा कि मीडिया में बताया गया है). जब वह इतने संपन्न हैं तो वह ऐसा कुछ क्यों करेंगे? उन्होंने कभी दिखावा नहीं किया, लेकिन हमेशा अच्छे कपड़े पहने.’ उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने हमेशा सबकी मदद ही की. यह यकीन करना मुश्किल है कि उसने नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए इतनी सारी नकदी जमा की.’
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‘पान मसाला कंपनियां सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से कर चुकाती हैं और जमकर कर चोरी करती हैं’
अब तक की गयी जांच के अनुसार, पीयूष जैन द्वारा पिछले चार वर्षों में की गई जीएसटी की कुल चोरी का मूल्य 32 करोड़ रुपये से अधिक है.
जीएसटी विभाग के सूत्रों के अनुसार, इस पैमाने की गई कर चोरी कोई ‘अनसुनी’ बात नहीं है.
एक सूत्र ने बताया कि पान मसाला कंपनियां केवल ‘प्रतीकात्मक कर’ का ही भुगतान करती हैं और कोई भी व्यवसायी अपने बही-खातों में कच्चे माल की खरीद या अपने उत्पादों की बिक्री का सही-सही रिकॉर्ड नहीं दिखाता है. वास्तविक राशि का केवल 10 प्रतिशत ही दिखाया जाता है.
सूत्रों ने कहा, ‘इसके अलावा, इन उत्पादों पर लगने वाला कर उन मशीनों की संख्या पर भी निर्भर करता है जिनका उपयोग उन्हें बनाने के लिए किया जाता है. इसलिए, वे दो मशीनें की दिखातें हैं, लेकिन असलियत में छह मशीनों का उपयोग करते हैं.’
सूत्रों ने आगे बताया कि टैक्स चोरी के द्वारा जो पैसा जमा होता है, उसे ये कारोबारी कंस्ट्रक्शन बिजनेस (निर्माण व्यवसाय) में लगाते हैं. उनमें से कई तो इसका निवेश कृषि भूमि की खरीद में भी करते हैं और शेल कंपनियों के माध्यम से शेयर से खरीदते हैं, जिसके बाद धन के स्याह-सफ़ेद करने वाली हेराफेरी की जाती है.
जीएसटी विभाग के एक सूत्र के मुताबिक, ‘पान मसाला कंपनियों को कच्चे माल की बिना लिखा-पढ़ी के ही आपूर्ति होती रहती है.’
इस सूत्र के अनुसार, पान मसालों पर एक विशेष उपकर समेत बहुत अधिक कर लगाया जाता है, क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. यही वजह है कि यहां टैक्स की चोरी अन्य उत्पादों के मुकाबले काफी ज्यादा है.
इस सूत्र ने आगे कहा, ‘करों के अलावा, पान मसाले पर उपकर भी लगता है. इसलिए, अगर हम सही-सही गणना करें, तो पान मसाले पर 28 प्रतिशत जीएसटी और 60 प्रतिशत उपकर लगाया जाता है, जो मिलकर 88 प्रतिशत हो जाता है. फिर, चूंकि तंबाकू भी पान मसाले के साथ मिलाकर बेचा जाता है, इसलिए उस पर 28 प्रतिशत का अलग से जीएसटी लगाया जाता है, साथ ही 160 प्रतिशत उपकर के साथ यह 188 प्रतिशत बन जाता है. इसलिए कुल उत्पाद पर 88 प्रतिशत के आलावा 188 प्रतिशत का अतिरिक्त कर लगाया जाता है. यही वजह है कि हम इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा टैक्स चोरी देखते हैं.’
वह कहते हैं, ‘इसके अलावा, इस उद्योग में ज्यादातर लोग नकदी में ही कारोबार करते हैं. कच्चे माल और तैयार माल पर करों की चोरी करके वे जो पैसा कमाते हैं, वह बहुत बड़ी राशि होती है.’
इस सूत्र ने बताया, ‘इस उद्योग में सबसे अधिक कर चोरी देखी जाती है क्योंकि यहां लगाए गए कर बहुत अधिक हैं. जितना अधिक कर, उतनी ही अधिक इसकी चोरी.’
कैसे होती है टैक्स की यह चोरी
50,000 रुपये से अधिक मूल्य के किसी भी सामान को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने के लिए एक ई-वे बिल की आवश्यकता होती है. यह बिल माल की सुचारू आवाजाही के लिए हरेक कन्साइनमेंट (माल की खेप) को आवंटित एक विशिष्ट संख्या (यूनिक नंबर) होती है और इसे टैक्स चालान के साथ माल के परिवहन के लिए ले जाने से पहले हासिल किया जाना होता है. यह बिल इस बात की घोषणा करता है कि कौन सा सामान बिंदु ए से बी तक के ले जाया जा रहा है और यह कितने मूल्य का है. ऊपर उद्धृत सूत्र ने बताया कि यही वह बिंदु है जिसका दुरुपयोग व्यवसायी और ट्रांसपोर्टर कर से बचने के लिए करते हैं.
इस सूत्र ने सारे मामले को समझाते हुए कहा, ‘ई-वे बिल किसी रोड परमिट की तरह है. जब कोई ट्रक बिंदु ए से बिंदु बी तक कुछ सामान ले जा रहा हो तो उन सामानों के टैक्स इनवॉयस (कर सहित चालान) के साथ ई-वे बिल होना जरूरी है. ई-वे बिल माल सिर्फ यह दर्शाने के लिए बनाई गई एक प्रणाली है की अभी माल की आवाजाही हो रही है. यह माल के विवरण को घोषित करने का एक तरीका है क्योंकि इसमें उसका सारा विवरण और उसकी कीमत होती है.’
इस सूत्र ने बताया, ‘डिफॉल्टर्स (कर चोरी करने वाले) क्या करते हैं कि वे इस ई-वे बिल को उत्पन्न ही नहीं करते हैं. ट्रांसपोर्टर, विक्रेता के साथ अपनी मिलीभगत से, इस बिल को बनाता ही नहीं है, ताकि उन्हें यह घोषित न करना पड़े कि क्या माल कहां ले जाया जा रहा है. जब तक यह पकड़ा नहीं जाता, माल आसनी से दूसरी जगह चला जाता है और वे सफलतापूर्वक कर से बचने में कामयाब हो जाते हैं.’
सूत्र ने कहा, ‘कई मामलों में, ट्रांसपोर्टर यह दिखाता है कि इस ट्रक माल की कई खेपें (एक के बजाय) ले जाई जा रहीं है, और प्रत्येक का मूल्य 50,000 रुपये से कम है. ठीक इस मामले की तरह जहां मुखौटा कंपनियों के नाम पर माल की खेप दिखाई गई थीं, जबकि यह सभी एक ही कंपनी के थे.’
इस सूत्र ने कहा कि जीएसटी विभाग नियमित रूप से इसके बारे में ख़ुफ़िया जानकारी (इनपुट) प्राप्त करता रहता है और ऐसे ट्रकों को नियमित आधार पर पकड़ता भी है, लेकिन ज्यादातर मामलों में कोई गिरफ्तारी नहीं होती है क्योंकि कर चोरी करने वाले जुर्माने के साथ कर का भुगतान करने के लिए राजी हो जाते हैं.
इस सूत्र ने कहा, ‘यह एक आपस में अत्यंत घनिष्ठता से जुड़ा समुदाय है. वे अपने व्यापारिक रहस्यों को बाहर नहीं जाने देते हैं. हमें इसका पता तभी चलता है जब हम किसी कर चोरी को रंगे हाथों पकड़ते हैं. उस समय भी, वे हमें सिर्फ इतना कहते हैं कि वे सारे कर का भुगतान कर देंगे, चाहे यह राशि कितनी भी क्यों न हो, और हमें उनका माल (स्टॉक) छोड़ देना चाहिए. वे अपने प्रतिद्वंद्वियों के बारे में भी कभी बात नहीं करते.’
जैन के मामले में क्या हुआ
जीएसटी इंटेलिजेंस (ख़ुफ़िया विभाग) के सूत्रों के अनुसार, प्रदीप कुमार अग्रवाल के स्वामित्व वाली त्रिमूर्ति फ्रेग्रेन्स की फैक्ट्री, अंबरीश जैन और पीयूष जैन के आवास और गणपति कैरियर्स, जो बिना ई-वे बिल के त्रिमूर्ति का सामान ले जा रहा था, के निदेशक प्रवीण जैन के कार्यालय और निवास सहित कई स्थानों की तलाशी ली गई.
त्रिमूर्ति में तलाशी के बाद पता चला कि पान मसाला और तंबाकू से लदे चार वाहनों के पास कोई भी चालान अथवा ई-वे बिल नहीं था, जिसके बाद इन सभी चार वाहनों को सीजीएसटी अधिनियम की धारा 129 के तहत जब्ती के तहत रखा गया था.
सूत्रों के अनुसार त्रिमूर्ति फ्रेग्रेन्स के निर्माताओं ने क्लीयरेन्स के माध्यम से जीएसटी की चोरी को स्वीकार किया और वर्तमान में लागू दरों के आधार पर जुर्माना और ब्याज के साथ पूर्ण जीएसटी का भुगतान कर दिया.
इसके बाद 22 दिसंबर से 25 दिसंबर तक पीयूष जैन के आवास की तलाशी ली गई, जिसमें करीब 178 करोड़ रुपये की बरामदगी हुई.
त्रिमूर्ति और गणपति करिअर्स में भी तलाशी की गई, जिसकी वजह से फर्जी चालान की आड़ में पान मसाला और तंबाकू सहित कर योग्य वस्तुओं की क्लीयरेन्स के माध्यम से जीएसटी की चोरी का संकेत देने वाले कई आपत्तिजनक दस्तावेजों की बरामदगी हुई.
पीयूष जैन की न्यायिक हिरासत के लिए मांग करते हुए एक जांच अधिकारी ने कानपुर की अदालत को बताया, ’पीयूष जैन ने भी कई फर्मों को तैयार उत्पादों, अर्थात् परफ्यूमरी कंपाउंड, की अवैध आपूर्ति के माध्यम से कर चोरी करना स्वीकार किया है. उसने यह भी कुबूल किया है कि उनके आवास से बरामद और जब्त की गई नकदी उसके और उसके भाई अंबरीश द्वारा नियंत्रित और संचालित उनकी उपरोक्त फर्मों से कर योग्य सामानों की अवैध आपूर्ति के कारण जमा हुई है.‘
जांच से यह भी पता चला है कि पीयूष जैन के स्वामित्व वाली तीन कंपनियां कर योग्य वस्तुओं, यानि की परफ्यूमरी कंपाउंड, के निर्माण और आपूर्ति में लगी हुई हैं. वित्तीय रिकॉर्ड के अनुसार, 2020-21 में इन तीनों फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुओं का संयुक्त कर योग्य मूल्य लगभग 20-22 करोड़ रुपये है, जिसमें से 85 प्रतिशत की आपूर्ति एक ही फर्म – त्रिमूर्ति – को की गयी है. कुल कारोबार का लगभग 10 प्रतिशत वॉक-इन (खुद चल कर आने वाले) ग्राहकों को बेचा गया है.
एक जीएसटी अधिकारी ने कहा, पीयूष जैन ने यह स्वीकार किया है कि तीनों फर्मों ने सामूहिक रूप से कर योग्य वस्तुओं, जो कि परफ्यूमरी कंपाउंड है और जिसका कर योग्य मूल्य 177,45,01,240 रुपये है, का बिना कोई चालान जारी किए और उस पर लगने वाले जीएसटी के भुगतान के बिना अवैध आपूर्ति का काम किया है. उपरोक्त आपूर्ति को न तो उनके नियमित खातों में दर्ज किया गया था और न ही इसे उनके जीएसटी रिटर्न में घोषित किया गया था.’
टैक्स इनवॉयस जारी किए बिना कर योग्य वस्तुओं की आपूर्ति का कृत्य सीजीएसटी अधिनियम के तहत एक अपराध है. इसके अलावा अधिकारी ने कहा कि खातों और अभिलेखों का रखरखाव नहीं करना, आउटवर्ड (जावक) और इनवर्ड (आवक) आपूर्ति का विवरण प्रस्तुत नहीं करना और जीएसटी के भुगतान में विफलता आदि भी अधिनियम के प्रावधानों का पूर्ण रूप से उल्लंघन है.
जांचकर्ताओं ने अदालत को यह भी बताया कि पीयूष ने अपनी तरफ से सारी बात बताने में भी आनाकानी की है.
जांच अधिकारी ने अदालत को बताया, ‘तीन से चार वर्षों की अवधि तक विभिन्न खरीदारों को 177.75 करोड़ रुपये से अधिक के सामान की आपूर्ति करने के बावजूद, जैन ने अपने द्वारा चोरी-छिपे आपूर्ति किए गए ऐसे सामानों के खरीदारों की पहचान उजगर करने के बारे में अपनी अनभिज्ञता जाहिर की. उसने यह भी दावा किया कि उसे कच्चे माल, जिनसे उसकी फर्मों ने परफ्यूमरी कंपाउंड का निर्माण किया था, की आपूर्ति करने वालो के नाम भी याद नहीं हैं. वर्ष 2021 के लिए उसकी तीन फर्मों के बहीखातों में दिखाया गया कुल लेनदेन केवल 21 करोड़ रुपये के आसपास का है.’
इस अधिकारी के अनुसार, पीयूष जैन की तीन फर्मों ने पिछले चार साल में 177.45 करोड़ रुपये के सामान की आपूर्ति की थी, जिसका अर्थ है कि उन्होंने सामूहिक रूप से हर साल 45 करोड़ रुपये के माल की आपूर्ति बिना इनवॉइस जारी किए और इस अवधि के दौरान जीएसटी की चोरी करते हुए की है. इस मामले में आगे की जांच अभी जारी है.
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