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Sunday, 3 November, 2024
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‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना के तहत करीब 80% धनराशि मीडिया प्रचार पर हुई खर्च

संसदीय रिपोर्ट में कहा गया कि चंडीगढ़ एवं त्रिपुरा ने इस निधि का शून्य प्रतिशत खर्च किया जबकि बिहार ने करीब छह प्रतिशत खर्च किया.

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नई दिल्ली: संसद की एक समिति ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना के 2014-15 में शुरुआत के बाद से कोविड प्रभावित वर्ष को छोड़कर अब तक आवंटित राशि का राज्यों द्वारा केवल 25.15 प्रतिशत खर्च करने को ‘दुखद’ बताया है और कहा है कि यह उनके खराब ‘कार्य निष्पादन’ को प्रदर्शित करता है.

लोकसभा में बृहस्पतिवार को पेश ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना के विशेष संदर्भ में शिक्षा के माध्यम से महिला सशक्तिकरण पर महिलाओं को शक्तियां प्रदान करने संबंधी भाजपा सांसद हीना गावित की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट में यह बात कही गई है.

रिपोर्ट में कहा गया कि चंडीगढ़ एवं त्रिपुरा ने इस निधि का शून्य प्रतिशत खर्च किया जबकि बिहार ने करीब छह प्रतिशत खर्च किया.

रिपोर्ट के अनुसार, समिति को यह देखने को मिल रहा है कि वर्ष 2014-15 में योजना की शुरुआत के बाद से कोविड वाले वर्ष 2019-20 और 2020-21 को छोड़कर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना के तहत कुल आवंटन 848 करोड़ रुपये था और उक्त अवधि में राज्यों को 622.48 करोड़ रुपये जारी किये गए थे .

इसमें कहा गया है कि, ‘राज्यों द्वारा निधि की केवल 25.15 प्रतिशत राशि अर्थात 156.46 करोड़ रुपये खर्च किया जाना समिति के लिये अत्यधिक आश्चर्य एवं दुख का कारण है.’

रिपोर्ट के अनुसार, ‘समिति को यह देखकर अत्यधिक निराशा हुई है कि किसी भी राज्य ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ निधियों को प्रभावी ढंग से उपयोग करने में सराहनीय प्रदर्शन नहीं किया है जबकि चंडीगढ़ एवं त्रिपुरा का खर्च शून्य प्रदर्शित किया जा रहा है. बिहार ने आवंटित राशि का महज 5.58 प्रतिशत ही उपयोग किया.’

समिति ने इस बात पर हैरत जतायी है कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य कार्यों के संबंध में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा किये गए खर्च के बारे में अलग-अलग सूचना नहीं है.

इसमें कहा गया है कि समिति का कहना है कि ऐसे आंकड़ों के अभाव में राज्यों द्वारा राशि के उपयोगिता की सार्थक रूप से निगरानी कैसे की जा सकेगी. ऐसे में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय केंद्रीय निधि की कम उपयोगिता संबंधी मामला राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के समक्ष उठाये और इस योजना की निधि की उचित उपयोगिता सुनिश्चित करे.

रिपोर्ट के अनुसार, ‘समिति को यह बात भी देखने को मिल रहा है कि 2016 से 2019 की अवधि के दौरान जारी की गई 446.72 करोड़ रूपये में मीडिया प्रचार पर 78.91 प्रतिशत राशि खर्च की गई है और यह देखकर समिति बिल्कुल भी प्रसन्न नहीं है.’

समिति ने कहा, ‘अब उचित समय आ गया है जब हमें योजना के तहत निर्धारित शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े नतीजों को हासिल करने के लिये प्रचुर वित्तीय उपबंध करने पर ध्यान देना होगा.’

समिति ने गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक लिंग चयन निषेध अधिनियम (पीसीएंडपीएनडीटी) के तहत पिछले 25 वर्ष के दौरान दर्ज मामलों में दोषसिद्धि में देरी पर चिंता व्यक्त करते हुए सिफारिश की कि मामलों की सुनवाई में तेजी लायी जाए और निर्णय लेने में छह महीने से अधिक समय नहीं लगना चाहिए.


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