नई दिल्ली: विशाल फर्टिलिटी इंडस्ट्री को विनियमित करने के लिए, एक बिल का सबसे पहला मसौदा 2008 में, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने तैयार किया गया था. बहुत से घुमाव और मोड़ आने के बाद, इसका ताज़ा रूप असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नॉलजी (विनियमन) बिल, 2020 सोमवार को लोकसभा में विचार विमर्श के लिए सूचीबद्ध था.
एआरटी बिल को उठाए जाने से पहले ही सदन स्थगित कर दिया गया, लेकिन सरकार को उम्मीद है कि संसद के शीत सत्र में इस क़ानून को पारित कर दिया जाएगा.
एआरटी बिल में, जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले साल मंज़ूरी दे दी थी, फर्टिलिटी क्लीनिक्स और एग-स्पर्म बैंक्स चलाने के लिए न्यूनतम मानदंड और नियम निर्धारित करने का लक्ष्य है.
बिल में ‘असिस्टेड रीप्रोडक्टिव तकनीक सेवाओं की सुरक्षित और नैतिक प्रेक्टिस का प्रावधान है’, जिनमें एग या स्पर्म डोनेशन, इन-विट्रो-फर्टिलाइज़ेशन (आईवीएफ), इंट्रॉयूटरीन इंसैमिनेशन (आईयूआई), और जेस्टेशनल सरोगेसी शामिल हैं. बिल का उद्देश्य ये भी है कि एग डोनर्स, जेस्टेशनल सरोगेट्स, और एआरटी सेवाओं के ज़रिए पैदा किए गए बच्चों को संरक्षण दिया जाए.
बिल की जड़ें ‘नेशनल गाइडलाइन्स फॉर अक्रेडिटेशन, सुपरवीज़न एंड रेगुलेशन ऑफ एआरटी क्लीनिक्स इन इंडिया’ जिसका मसौदा आईसीएमआर ने 2005 में तैयार किया था. तीन साल बाद आईसीएमआर एआरटी (विनियमन) बिल व नियम 2008 का मसौदा लेकर आई.
अगस्त 2009 की एक रिपोर्ट में, भारतीय विधि आयोग ने कहा था कि ये बिल ‘अधूरा’ है, लेकिन उसने कहा था कि एआरटी क्लीनिक्स को विनियमित करने और सरोगेसी में सभी पक्षों के अधिकार और कर्त्तव्यों को सुरक्षित करने के लिए, क़ानून लाए जाने की ज़रूरत है.
पिछले साल, एआरटी बिल को संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया गया था, लेकिन कोविड के कारण सदन की कार्यवाही में कटौती कर दी गई, जिससे उसमें और देरी हुई.
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भारत में ART रेग्युलेशन की ज़रूरत
भारत आज दुनिया भर में फर्टिलिटी इंडस्ट्री का केंद्र है, जहां तरह तरह की सेवाओं के लिए, चिकित्सा पर्यटकों का तांता लगा हुआ है.
इन सेवाओं में गेमेट डोनेशन (डोनर के वीर्य या एग का प्रयोग), इंट्रायूटरीन इंसैमिनेशन (ऐसी प्रक्रिया जिसमें वीर्य को कृत्रिम रूप से गर्भाशय में डाला जाता है), इन-वीट्रो फर्टिलाइज़ेशन (वीर्य द्वारा एग को शरीर से बाहर फर्टिलाइज़ किया जाता है, और फिर गर्भाशय में रखा जाता है), इंट्रा साइटोप्लाज़्मिक स्पर्म इंजेक्शन (एक तरह का आईवीएफ जिसमें वीर्य को एग के केंद्र में इंजेक्ट किया जाता है), जेस्टेशनल सरोगेसी (जिसमें कोई सरोगेट बच्चे को अपने गर्भाशय में रखती, लेकिन उसका इससे कोई जिनेटिक रिश्ता नहीं होता), और प्री-इंप्लांटेशन जिनेटिक डायग्नोस्टिक्स (इंप्लांटेशन/प्रेग्नेंसी से पहले जिनेटिक स्थिति जांचने के लिए एंब्रियो की स्क्रीनिंग) शामिल हैं.
इनके तथा अन्य फर्टिलिटी प्रक्रियाओं तथा सेवाओं के लिए, एआरटी बिल 2020 पर राज्य सभा स्थाई समिति की एक रिपोर्ट में, पूरे देश में ‘समान लागत’ और ‘गुणवत्ता के वैश्विक मानदंड’ सुनिश्चित करने के लिए, मानक संचालन प्रक्रियाएं तैयार करने की ज़रूरत का उल्लेख किया गया.
कमेटी ने ये भी कहा कि निजी प्लेयर्स द्वारा एआरटी सेवाओं के ‘व्यवसायीकरण’ को रोकने के लिए, एक निगरानी इकाई स्थापित की जानी चाहिए. कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि 2008 में, भारत के चिकित्सा पर्यटन बाज़ार में रीप्रोडक्टिव हिस्से का मूल्यांकन, आईसीएमआर ने 45 करोड़ डॉलर किया था, और उस समय एक दशक के अंदर, इसके बढ़कर 6 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष पहुंच जाने का अनुमान लगाया गया था.
बिल के एक पिछले मसौदे की प्रस्तावना में, आईसीएमआर ने कहा था कि फर्टिलिटी क्लीनिक्स की संख्या में ‘बेतहाशा वृद्धि’ हुई थी, और उससे अनैतिक और शोषणकारी प्रथाएं विकसित हो सकती हैं.
बिल के मसौदे में कहा गया, ‘आज की तारीख़ में कोई भी व्यक्ति इनफर्टिलिटी या असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नॉलजी (एआरटी) क्लीनिक खोल सकता है; इसके लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं है. इसके परिणामस्वरूप, देश भर में ऐसे क्लीनिक्स की बाढ़ सी आ गई है. उसमें आगे कहा गया, ‘उपरोक्त के मद्देनज़र, जनहित में ये ज़रूरी हो गया है कि ऐसे क्लीनिक्स के कामकाज को विनियमित किया जाए. ताकि सुनिश्चित हो सके कि उनके द्वारा दी जा रहीं सेवाएं नैतिक हैं, और सभी संबंधित पक्षों के चिकित्सा,सामाजिक और क़ानूनी अधिकार सुनिश्चित हो सकें,
2020 के बिल में इन चिंताओं से निपटने की भी कोशिश की गई है.
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बिल के प्रावधान
बिल में देश के भीतर हर एआरटी क्लीनिक और एग-स्पर्म बैंक के लिए पंजीकरण का प्रावधान किया गया है. पंजीकरण के लिए उन्हें कुछ निर्धारित मानकों पर पूरा उतरना होगा. बिल में गेमेट डोनर्स के लिए पात्रता मानदंड भी रखा गया है, कि वो कितनी बार और किन परिस्थितियों में डोनेट कर सकते हैं.
बिल के अंदर अपराधों में क्लीनिक्स का लैंगिक चयन पेश करना, एआरटी से पैदा हुए बच्चों को छोड़ देना या उनका शोषण करना, मानव भ्रूण का बेंचना, ख़रीदना, या उसका आयात करना, और जोड़े या संबंधित डोनर्स का, किसी भी रूप में शोषण करना आदि शामिल हैं. उल्लंघन के लिए पांच से 12 साल तक की जेल, और 5 लाख से 25 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रस्ताव है.
बिल के उद्देश्य, जो स्थाई समिति की रिपोर्ट में दिए गए हैं, ये हैं:
(i) एआरटी सेवाओं का विनियमन करना और इसमें शामिल महिलाओं तथा बच्चों को शोषण से बचाना.
(ii) एग डोनर्स को बीमा कवर उपलब्ध कराना, और कई बार के भ्रूण आरोपण से बचाना (मां तथा बच्चे के स्वास्थ्य जोखिम के मद्देनज़र).
(iii) एआरटी से पैदा हुए बच्चों को वही अधिकार दिलाना, जो जैविक बच्चों को उपलब्ध अधिकारों के समान हों.
(iv) एआरटी बैंकों द्वारा किए जाने वाले वीर्य, एग और भ्रूण के क्रायोप्रिज़र्वेशन (कोल्ड स्टोरेज) को विनियमित करना.
(v) असिस्टेड रीप्रोडक्टिव तकनीक के ज़रिए पैदा हुए बच्चे के फायदे के लिए, आरोपण से पहले जिनेटिक जांच को अनिवार्य बनाना. (vi) एआरटी क्लीनिक्स और बैंकों का बाक़ायदा पंजीकरण सुनिश्चित कराना.
एआरटी बिल से ही जुड़ा है सरोगेसी (विनियमन) बिल 2019, जिसका उद्देश्य सरोगेसी को विनियमित करना है. संसद की प्रवर समिति जिसने बिल की जांच की थी, उसने कहा था कि पहले एआरटी बिल को पारित किया जाना चाहिए.
2020 के बाद का सफर
वर्तमान बिल पहले लोकसभा में 14 सितंबर 2020 को पेश किया गया. पिछले साल अक्तूबर में राज्यसभा अध्यक्ष ने, लोकसभा स्पीकर से परामर्श करके, बिल को आगे की जांच के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग से जुड़ी एक संसदीय स्थाई समिति को भेज दिया.
स्थाई समिति ने 19 मार्च 2021 को अपनी रिपोर्ट सदन में पेश की. उसने कई चिंताएं जताईं जिनमें एआरटी क्लीनिक्स के लिए ‘उद्योग’ शब्द का इस्तेमाल, निजी क्लीनिक्स का प्रसार, और सरकार द्वारा संचालित एआरटी सेवाओं की कमी, क्लीनिक्स के ऊंचे दाम और उनमें अंतर, और बहुत से आईवीएफ क्लीनिक्स में ‘प्रशिक्षित और कुशल एआरटी एक्सपर्ट्स’ को न रखना शामिल हैं.
कमेटी ने सुझाव दिए कि एसओपीज़ तैयार करना, समान लागतें तय करना, और ‘हर स्तर पर’ विश्व स्तर की सेवाएं सुनिश्चित करना ज़रूरी है.
कमेटी ने कहा कि एक नेशनल बोर्ड की निगरानी में, एक निगरानी प्रणाली स्थापित करनी होगी, ताकि ‘एआरटी सेवाओं के बेलगाम व्यवसायीकरण को रोका जा सके.’ उसने आगे कहा कि मुनाफे के इरादे से कुछ निजी ऑपरेशंस में लिंग-चयन किए जाने लगा, और मांग के हिसाब से बच्चों को बढ़ावा दिया जाने लगा, जिससे ‘देश में लिंग-अनुपात पर बुरा असर पड़ सकता है.’
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