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Thursday, 21 November, 2024
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वानखेड़े हों या पंजाब या बंगाल, दलित अधिकार आयोग पर भाजपा का पक्ष लेने का आरोप क्यों लग रहा है?

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग एक वैधानिक निकाय है, लेकिन आलोचकों का दावा है कि यह केवल विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों में ही दलितों पर होने वाले अत्याचार को उजागर करता है.

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नई दिल्ली: अभी इस बात की जांच पूरी नहीं हो पाई है कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के अधिकारी समीर वानखेड़े ने अपने अनुसूचित जाति (एससी) प्रमाणपत्र को फर्जी तरीके से बनवाया है या नहीं. लेकिन विवादों के घेरे में आए अधिकारी को पहले ही कुछ हाई-प्रोफाइल समर्थन और ‘क्लीन चिट’ मिल गई है.

उन्हें यह क्लीनचिट राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) के उपाध्यक्ष अरुण हलदर की तरफ से मिली है, जिन्होंने 31 अक्टूबर को वानखेड़े के आवास का दौरा किया था.

हलदर ने दिप्रिंट से कहा, ‘एक क्रांतिकारी को बदनाम किया जा रहा है. वह ड्रग्स नाम के खतरे के खिलाफ जंग लड़ रहा है. मैंने व्यक्तिगत तौर पर अनुरोध के बाद उसके घर का दौरा किया और सभी दस्तावेज देखे. उनके पिता ने 20 साल पुराने कुछ रिकॉर्ड भी दिखाए.’

हलदर ने जोड़ा, ‘परिवार एक अनुसूचित जाति समुदाय से आता है, केवल उनकी मां मुस्लिम थीं. इतना उच्च पदस्थ अधिकारी इतने लंबे समय तक सभी लोगों को धोखा कैसे दे सकता है?’

उन्होंने कहा, ‘मैं अपने निजी अनुभवों के आधार पर कह रहा हूं कि नवाब मलिक अपने दामाद की तरफ से बदला ले रहे हैं. इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ऐसे पदों पर ज्वाइनिंग से पहले सभी दस्तावेजों की पुष्टि करता है. यह नकली कैसे हो सकता है? एक बार जांच पूरी हो जाने भी यह सब स्पष्ट हो जाएगा.’

यह पूछे जाने पर कि उन्होंने कौन से दस्तावेज देखे जिसके आधार पर उन्होंने वानखेड़े को क्लीन चिट दी, हलदर ने कहा, ‘मैं यह अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूं. उन्होंने आयोग को भी सभी दस्तावेज दिखाए हैं, जिन्हें सत्यापन के लिए महाराष्ट्र सरकार के पास भेज दिया गया है.’

जांच जारी रहने के बीच हलदर की तरफ से अधिकारी के समर्थन किए जाने पर महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक, जिन्होंने वानखेड़े पर एससी प्रमाणपत्र के लिए फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगाया था, ने एनसीएससी सदस्य के इरादों पर ही सवाल खड़े कर दिए है. हलदर पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता भी हैं.

मलिक ड्रग्स से जुड़े एक मामले में अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी में अहम भूमिका निभाने वाले एनसीबी के जोनल डायरेक्टर वानखेड़े पर लगातार निशाना साधते रहे हैं.

महाराष्ट्र के मंत्री ने हलदर के आचरण को लेकर राष्ट्रपति से शिकायत करने की धमकी भी दी है.

इसके बाद एनसीएससी अध्यक्ष विजय सांपला ने वानखेड़े को पिछले सोमवार (1 नवंबर) को दिल्ली स्थित अपने कार्यालय में बुलाया, जहां उनसे अपनी जाति प्रमाणपत्र के सत्यापन के लिए अपने प्रमाणपत्र पेश करने को कहा गया.

हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब हलदर और अनुसूचित जाति आयोग इस बात को लेकर आलोचनाओं की घेरे में है जिसे आलोचक सत्तारूढ़ भाजपा के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार के रूप में देखते हैं.

पिछले हफ्ते ही आयोग ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार को दलित सिख लखबीर सिंह के परिवार को कोई सहायता मुहैया नहीं कराने को लेकर फटकार लगाई थी, जिसकी सिंघू बॉर्डर पर कथित तौर पर कुछ निहंगों ने बेरहमी से हत्या कर दी थी.

सांपला ने पंजाब सरकार पर अन्य राज्यों में घटित होने वाले ऐसे ही मामलों में राजनीति करने लेकिन अपने ही राज्य में दलितों की समस्याओं पर चुप्पी साधने का आरोप लगाया था. हालांकि, उस समय तक पंजाब में कांग्रेस सरकार पहले ही चार आरोपियों को गिरफ्तार करा चुकी थी.

पिछले पांच महीनों में आयोग ने कम से कम तीन मामलों में पंजाब सरकार को कठघरे में खड़ा किया है.

जून में एनसीएससी ने एक महिला श्रमिक के साथ हाथापाई के मामले में पंजाब सरकार को नोटिस जारी किया था. इस मामले में मनसा में कुछ मजदूरों का वेतन न मिलने को लेकर झड़प हुई थी. सितंबर में आयोग ने एक दलित युवक की मौत के मामले में कोई सहायता न देने को लेकर पंजाब सरकार के अधिकारियों पर फिर निशाना साधा.

फिर सितंबर में ही एनसीएससी ने बटाला में आंदोलनकारी दलितों पर हमले की जांच नहीं करने के लिए राज्य को एक और नोटिस थमाया. साथ ही समय पर कार्रवाई नहीं करने पर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी दी.

पंजाब अकेला ऐसा राज्य नहीं है. एनसीएससी पर पश्चिम बंगाल के मामलों में भी पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगा है.

इस साल के शुरू में विधानसभा चुनावों में भाजपा की करारी हार के बाद पार्टी सांसदों ने आयोग से पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा की घटनाओं की समीक्षा का आग्रह किया था.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विरोध के बावजूद मई में एनसीएससी ने पूर्वी बर्धमान और दक्षिणी 24 परगना जिलों का दो दिवसीय दौरा किया. इस यात्रा के बाद सांपला ने दावा किया कि 1947 के बाद पहली बार पश्चिम बंगाल में राज्य के नजर रखने के बीच बलात्कार और हत्या की घटनाएं हुईं.


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‘भाजपा शासित राज्यों में दलितों पर अत्याचारों की अनदेखी’

विपक्षी नेताओं का आरोप है कि यह आयोग का ढर्रा बन गया है—विपक्ष शासित राज्यों में मामलों को उजागर करो, जबकि भाजपा शासित राज्यों में दलितों पर अत्याचार पर आंखें मूंद लो.

गुजरात के एक कांग्रेस सांसद ने दिप्रिंट को बताया, ‘अभी कुछ दिन पहले कच्छ में एक दलित परिवार पर 20 लोगों की भीड़ ने हमला किया था, जब उन्होंने एक मंदिर में प्रवेश की कोशिश की थी. पुलिस ने मामले में एक प्राथमिकी भी दर्ज की है. लेकिन आयोग ने गुजरात सरकार से कोई जवाब तक नहीं मांगा है.’

गुजरात के नेता और वडगाम से विधायक जिग्नेश मेवाणी ने दिप्रिंट को बताया, ‘गुजरात में दलितों के खिलाफ अत्याचार के बहुत सारे मामले हैं, लेकिन आयोग ने न तो जांच के लिए राज्य का दौरा किया है और न ही सरकार को कोई नोटिस भेजा है.’

उन्होंने कहा, ‘कई भाजपा नेताओं पर दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले दर्ज हुए हैं, लेकिन ऐसे मामलों में आयोग हमेशा आंखें मूंद लेना पसंद करता है.’

एनसीएससी को तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ जारी आंदोलन में मध्यस्थता करने के प्रयासों को लेकर किसान संगठनों की नाराजगी का भी सामना करना पड़ा है.

सितंबर में सांपला नानकसर डेरा के प्रमुख बाबा लाखा सिंह से मिलने पहुंचे थे ताकि उन्हें कृषि कानूनों के खिलाफ जारी आंदोलन खत्म कराने के लिए एक मध्यस्थ के तौर पर आगे लाया जा सके, लेकिन किसान संगठनों की तरफ से इसका जोरदार विरोध किया गया. इससे पहले जनवरी में सांपला ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और लाखा के बीच भी बैठक कराई थी.


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‘यह एक राजनीतिक आयोग’

एनसीएससी सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है, लेकिन इसमें सदस्यों की नियुक्ति अमूमन राजनीतिक ही रही है.

इसके उपाध्यक्ष नियुक्त होने से पहले अरुण हलदर भाजपा की बंगाल इकाई में सचिव थे और उन्होंने राज्य भाजपा के एससी मोर्चा के अध्यक्ष के तौर पर भी काम किया था. नगरपालिका चुनाव लड़ने के अलावा वह राज्य विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार भी रहे थे.

वहीं, सांपला पंजाब में भाजपा का एक प्रमुख दलित चेहरा रहे हैं. वह अमित शाह के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के दौरान भाजपा की पंजाब इकाई के अध्यक्ष थे. सांपला को 2019 के लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया गया था. उस समय सांपला ने कहा था कि निरीह गाय की तरह उनकी बलि चढ़ा दी गई. बाद में, ‘क्षतिपूर्ति’ के तौर पर उन्हें एनसीएससी प्रमुख बनाया गया.

आयोग के अन्य सदस्यों में, अंजू बाला यूपी के मिसरिख से भाजपा की पूर्व सांसद हैं, जबकि सुभाष पारधी ने महाराष्ट्र भाजपा के एससी मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है.

सांपला से पहले रामशंकर कठेरिया, जो आगरा से भाजपा सांसद थे, आयोग के अध्यक्ष थे. भाजपा की तमिलनाडु इकाई के पूर्व अध्यक्ष एल. मुरुगन, जो अब केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री हैं, कठेरिया के कार्यकाल के दौरान उपाध्यक्ष थे.

हालांकि, कांग्रेस के शासनकाल में भी स्थिति अलग नहीं थी. यूपीए शासन के दौरान कांग्रेस के पी.एल. पुनिया दो बार आयोग के अध्यक्ष रहे थे. पुनिया से पहले बूटा सिंह—एक और अनुभवी कांग्रेस नेता—ने यह पद संभाला था.

वाजपेयी के समय में भाजपा के प्रमुख दलित चेहरे सूरज भान एनसीएससी प्रमुख थे. फरवरी 2004 में संवैधानिक दर्जा दिए जाने के बाद भान इस पद को धारण करने वाले पहले व्यक्ति थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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