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Wednesday, 18 December, 2024
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‘लव जिहाद, नारकोटिक्स जिहाद’: केरल चर्च के तानों से मुस्लिमों के बिजनेस और समाज को कैसे हो रहा नुकसान

इस महीने की शुरुआत में ही केरल के पाला के एक बिशप ने 'नारकोटिक्स जिहाद' की चेतावनी दी थी. समुदाय के भीतर से ही कड़ी प्रतिक्रिया मिलने के बावजूद इनका जमीन पर असर महसूस होना शुरू हो गया है.

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केरल: 33 वर्षीय के.ए. राशिद आजमी फूड्स के निदेशक हैं, जो केरल में सबसे लोकप्रिय रेडी-टू-कुक पैकेज्ड फूड ब्रांडों में से एक है. उपमा और इडियप्पम से लेकर पुट्टु पोडी और चावल के पाउडर तक बेचने वाला यह ब्रांड राशिद के पिता द्वारा 1994 में शुरू किया था और अपने उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला और उच्च गुणवत्ता के कारण बहुत जल्दी यह हर घर में जाने जाना वाला नाम बन गया.

पिछले हफ्ते, राशिद और उनकी टीम को उनसे संबंधित वितरकों और ग्राहकों के लगातार आ रही कॉलों का सामना करना पड़ा. उन सभी का एक ही सवाल था- क्या आज़मी फूड्स ने ईसाई समुदाय के एक वरिष्ठ माने जाने वाले बिशप के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन के लिए धन दिया था?

राशिद ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें इस बारे में कतई कोई जानकारी नहीं है कि वे आखिर कह क्या रहे थे?.

यहां जिन विरोध प्रदर्शनों की बात की जा रही है वे 10 सितंबर को आयोजित किए गये थे और ईसाई समुदाय के उन सदस्यों के नेतृत्व में और एक ऐसे बिशप के खिलाफ हुए थे जिन्होने हाल ही में ‘लव जिहाद’ और ‘नारकोटिक्स (नशीले पदार्थों के) जिहाद’ की चेतावनी दी थी. उनके कथनों से पूरे केरल में आक्रोश फैल गया है, जिसमें ईसाई समुदाय भी शामिल है.

इसके बाद व्हाट्सएप संदेशों और फेसबुक पोस्ट की एक श्रृंखला में यह आरोप लगाया था कि आजमी फूड्स ने ईसाई समुदाय में दरार पैदा करने के उद्देश्य से इस प्रदर्शन के लिए परिवहन सुविधा प्रदान की थी और साथ ही इन विरोधों के लिए पैसे भी दिए थे. इन सभी पोस्टों में कंपनी के बहिष्कार का आह्वान किया गया था.

इनमें से एक फेसबुक पोस्ट में लिखा गया था, ‘आजमी पुट्टू पाउडर एक 100 करोड़ का जिहादी साम्राज्य है … हमें उन लोगों का बहिष्कार करना चाहिए जो पाला बिशप के बयान के खिलाफ लोगों को सामने लाते हैं और ईसाइयों के खिलाफ जिहाद अभियान शुरू करते हैं.’

कुछ इसी तरह की अफवाहें एक और मुस्लिम परिवार के स्वामित्व वाली एक खाद्य कंपनी केकेएफएम इंडिया के खिलाफ भी फैलाई गईं. जहां आजमी फूड्स का कारोबार 28 साल से चल रहा है, वहीं केकेएफएम भी 20 साल से बाजार में है, और उनके मालिकों का कहना है कि इनमें से किसी ने कभी इस तरह की चीज़ का सामना नहीं किया है.

राशिद, जो अभी भी इस घटना से परेशान हैं, ने दिप्रिंट को बताया, ‘केरल जैसे राज्य में, जहां हम सभी हमेशा से शांति से सह-अस्तित्व में रहे हैं, ऐसा होते देखना वास्तव में निराशाजनक था. यह विशेष रूप से मुसलमानों द्वारा संचालित दो कंपनियों को लक्षित करने के लिए चलाया गया एक घृणास्पद अभियान था.’

आजमी फूड्स और केकेएमएफ दोनों कंपनियों ने सोशल मीडिया पर ऐसे मैसेज प्रसारित करने वालों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है.

फेसबुक पोस्ट्स में न केवल इन दो कंपनियों पर हालिया विरोध प्रदर्शन के लिए पैसे देने का आरोप लगाया गया, बल्कि यह भी आरोप लगाया गया कि वे टीजे जोसेफ पर हुए कुख्यात हमले से भी जुड़े थे, ज्ञात हो कि जोसेफ एक ईसाई अल्पसंख्यक संस्थान में एक प्रोफेसर थे जिन्होंने 2010 में ‘मोहम्मद’ नाम के एक विवादास्पद पैसेज वाला एक प्रश्न पत्र तैयार किया था. इसके बाद एक चरमपंथी इस्लामी संगठन- पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के सदस्यों द्वारा 2010 में ही जोसेफ का हाथ काट दिया गया था.

इन फेसबुक पोस्ट्‌स में से एक में आरोप लगाया गया था कि, ‘ये फर्म उन लोगों की है जिनपर जोसेफ सर के हाथ काटने का आरोप है.’

केकेएमएफ के मार्केटिंग मैनेजर फैयास मोहम्मद ने कहा, ‘वह सबसे हास्यास्पद बात थी. प्रोफेसर के साथ हमला करने वालों से हमारा कोई लेना-देना नहीं है.’

दोनों कंपनियों का मुख्यालय केरल के कोट्टायम जिले के एराट्टुपेट्टा शहर में है, जहां राज्य के ईसाई समुदाय का एक बड़ा हिस्सा रहता है. यहां से सिर्फ 12 किमी दूर एक ईसाई बहुल शहर पाला स्थित है जिसने हाल-फिलहाल में अपने बिशप के द्वारा व्यक्त किए गये विचारों के लिए बदनामी झेली है.

K.A. Rashid, the director of Ajmi Foods | Photo: Nirmal Poddar/ThePrint
आजमी फूड्स के निदेशक केए रशीद | फोटो: निर्मल पोद्दार/दिप्रिंट

मुसलमानों और ईसाइयों के बीच गहरी होती दरारें

केरल के एक लोकप्रिय पादरी पाला बिशप जोसेफ कल्लारंगट ने इस महीने की शुरुआत में यह टिप्पणी की थी कि ‘जिहादी आतंकवादी’ सिर्फ ‘लव’ का ही सहारा नहीं ले रहे हैं, बल्कि अन्य गैर-मुसलमानों को ‘फंसाने’ के लिए नशीले पदार्थों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है.

उन्होंने कहा था, ‘उन्हें पता चल गया है कि भारत जैसे देश में, हथियार उठाना और दूसरों को खत्म करना इतना आसान नहीं है. अब वे अन्य साधनों का उपयोग कर रहे हैं. उनका उद्देश्य सिर्फ अपने धर्म को बढ़ावा देना और गैर-मुसलमानों को खत्म करना है. इसके लिए वे ‘लव जिहाद’ और ‘नारकोटिक्स जिहाद’ का इस्तेमाल करते हैं.’

बिशप कल्लारंगट के पाला डाइयोसीज़ ने इसके बाद में एक बयान जारी कर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि उनका यह बयान किसी समुदाय विशेष के खिलाफ नहीं था, बल्कि उन्होने केवल ‘समाज में प्रचलित खतरनाक प्रवृत्तियों के बारे में एक आम चेतावनी दी थी’.

लेकिन शायद तब तक बहुत देर हो चुकी थी. बिशप के बयानों ने केरल के सामाजिक परिदृश्य में पहले ही दरार डाल दी थी और इसका असर आजमी फूड्स और केकेएमएफ द्वारा ज़मीनी तौर पर बहुत स्पष्ट रूप से महसूस किया जा रहा है.

और उनका चर्च इस मोर्चे पर बार-बार गलती करने का दोषी है.

पाला बिशप सिरो-मालाबार चर्च का हिस्सा हैं जो केरल में सबसे बड़े ईसाई संप्रदायों में से एक है.

जनवरी 2020 में, सिरो-मालाबार चर्च, जो यूक्रेनी चर्च के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ईस्टर्न कैथोलिक चर्च है, ने एक बयान जारी कर के कहा था कि ईसाई लड़कियों को ‘लव जिहाद’ के नाम पर निशाना बनाया और मारा जा रहा है.

इस बयान में कहा गया था, ‘केरल में ‘लव जिहाद’ की आई वृद्धि सांप्रदायिक सद्भाव और शांति को खतरे में डालती है. यह सच है कि राज्य में लगातार ईसाई लड़कियों को ‘लव जिहाद’ का निशाना बनाया जा रहा है.’

अप्रैल 2021 में, दिप्रिंट ने इस बारे में खबर दी थी कि कैसे चर्च के ये बयान सक्रिय रूप से केरल में ‘लव जिहाद’ के नैरेटिव को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसके कारण विभिन्न ईसाई व्हाट्सएप ग्रुप इस ‘खतरे’ की चेतावनी वाले वीडियो से भरे-पड़े थे.

लेकिन इस चर्च के अलावा, पाला बिशप खुद भी अतीत में कई विवादों का हिस्सा रहे हैं, विशेष रूप से तब जब उन्होंने इस साल मार्च में राम मंदिर के लिए पैसे दान किए थे. केरल विधानसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले उठाए गये इस कदम से कई लोगों की भौहें चढ़ गई थी क्योंकि इससे चर्च की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से बढ़ती नज़दीकियों का पता चलता था.

इसके बाद, जुलाई में, बिशप कल्लारंगट ने उन ईसाई परिवारों के लिए अतिरिक्त छूट की घोषणा की थी जिनके पांच या उससे अधिक बच्चे हैं. ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल के कार्यकर्ता और महासचिव जॉन दयाल ने दिप्रिंट को बताया कि इससे चर्च की असुरक्षा का पता चलता है और यह भी कि कैसे यह अपने लिए ‘खतरा और कमज़ोरी’ महसूस कर रहा है.

दयाल ने दिप्रिंट को बताया था, ‘ईसाई समुदाय की आबादी लगतार कम हो रही है क्योंकि साधारण सा तथ्य यह है कि समुदाय के सदस्य काफी कम बच्चे पैदा कर रहे हैं. और जब भी ऐसा होता है तो चर्च को दिया जाने वाला दान कम हो जाता है, ईसाई मतदाताओं की आबादी घट जाती है. चर्च द्वारा इसे आर्थिक और राजनीतिक दोहरे नुकसान के रूप में देखा जाता है.’

जिस बात ने इस तरह की चिंताओं को और बल दिया था, वह 2015 का एक सरकारी आदेश था जिसमें इस राज्य की अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना को मुसलमानों के पक्ष में 80:20 के अनुपात में पुनःपरिभाषित किया गया था.

इस साल मई में केरल उच्च न्यायालय द्वारा इसे रद्द किए जाने से पहले कई ईसाई संगठनों ने इस आदेश का कड़ा विरोध किया था. अदालत ने अपने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह विभाजन जनसंख्या अनुपात के अनुसार होना चाहिए. नई योजना के अनुसार, इस छात्रवृत्ति को इन दो अल्पसंख्यकों की आबादी के अनुरूप 60:40 के अनुपात में विभाजित किया जाएगा.

जिस बात ने इस मामले को और बिगाड़ दिया वह यह कि 2016 से 2018 के बीच तकरीबन 20 मुस्लिम युवाओं के एक समूह ने अफगानिस्तान की यात्रा की और आईएसआईएस में शामिल हो गए- इनमें से कुछ में वे महिलाएं भी शामिल थीं, जिन्होंने ईसाई धर्म छोड़ इस्लाम धर्म अपना लिया था. बाद में इन महिलाओं को ‘इस्लाम के तथाकथित खतरे’ के पोस्टर-इमेज के रूप मे पेश किया गया.

केरल की एक लोकप्रिय मुस्लिम संस्था फोरम ऑफ फेथ एंड हार्मनी के अध्यक्ष सी.एच. रहीम ने कहा कि मुस्लिम मध्यम वर्ग की बढ़ती हुई समृद्धि ने भी इस ‘असुरक्षा’ की भावना में वृद्धि में सहायता की है.

रहीम कहते है, ‘जब मुसलमान देश से बाहर जाते हैं और मध्य पूर्व देशों में काम करते हैं, तो वहां से उनके द्वारा भेजे गये पैसे को यहां के समुदाय को आर्थिक रूप से आगे बढ़ने में मदद करने वाले तथ्य के रूप में देखा जाता है. लेकिन अक्सर इस बात पर कोई विचार नहीं किया जाता है कि इसकी वजह से पूरे राज्य का भी विकास हो रहा है.’

वे आगे कहते हैं, ‘अगर मुसलमानों के खिलाफ यह नफरत आगे भी जारी रही, तो इसका सीधा सा मतलब यह होगा कि ईसाई दक्षिणपंथियों के हाथों के मोहरे बन जाएंगे और यह लंबे समय में केरल की धर्मनिरपेक्षता को नुकसान पहुंचाएगा.’

इस बारे में टिप्पणी के लिए दिप्रिंट ने पाला बिशप जोसेफ कल्लारंगट और सीरो-मालाबार चर्च के आर्कबिशप जॉर्ज एलेनचेरी के साथ भी संपर्क किया लेकिन इन दोनों के सचिवों ने कहा कि वे इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे.


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सीएम द्वारा की गई आलोचना के बावजूद चर्च अपने रुख पर कायम है

पिछले हफ्ते पाला बिशप द्वारा की टिप्पणी के बाद से केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल (केसीबीसी) ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर ‘जिम्मेदारी के साथ चर्चा’ की जानी चाहिए.

केसीबीसी में कैथोलिकों के सभी तीन संप्रदायों- सिरो-मालाबार, लैटिन और सीरो-मलंकरा- के सदस्य शामिल हैं लेकिन इस संस्था के चेयरमैन आर्कबिशप जॉर्ज एलेनचेरी हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए, केसीबीसी के बिशप और प्रवक्ता फादर जैकब जी. पलाकप्पिल्ली ने कहा कि ‘नारकोटिक्स जिहाद’ की शब्दावली ‘पूरी तरह से तथ्यों पर आधारित’ है.

उन्होने कहा, ‘यह एक वास्तविकता है कि हमारे समाज में नशीले पदार्थों का उपयोग काफी प्रचलित है, इससे कोई कैसे इनकार कर सकता है?’

जब उनसे पूछा गया कि ‘नारकोटिक्स जिहाद’ शब्द का क्या मतलब है, तो पलाकप्पिल्ली ने अपने फोन पर ‘सबूत’ के रूप में सहेज कर रखे गए बहुत सारे पीडीएफ दस्तावेज खोले.

इनमें से एक दस्तावेज ‘यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज’ नामक एक संस्था द्वारा प्रकाशित एक पेपर है, जो अफगानिस्तान के आतंकी संगठनों और इस देश में उगाई जाने वाली अफीम के बीच के संबंध की पड़ताल करता है. ‘नार्को-जिहाद’- हराम मनी फॉर ए हलाल कॉज?’ शीर्षक वाला यह पेपर यह निष्कर्ष देता है कि: ‘अफगानिस्तान को स्थायित्व प्रदान करने वाले पर जोर देने वाली कोई भी नीति मादक पदार्थों के व्यापार को प्रभावी ढंग से हल किए बिना निराधार और अस्थिर साबित होगी, क्योंकि यह ड्रग्स आधारित अर्थव्यवस्था इस क्षेत्र में आतंकवाद के लिए धन के मुख्य स्रोतों में से एक है’.

यह पूछे जाने पर कि इसका केरल से क्या लेना-देना है, पलाकप्पिल्ली ने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों में कई जोड़े केरल से अफगानिस्तान गए हैं.’

Father Jacob G. Palackappilly, a bishop and spokesperson of the KCBC | Photo: Nirmal Poddar/ThePrint
केसीबीसी के प्रवक्ता फादर जैकब जी. पलाकप्पिल्ली | फोटो: निर्मल पोद्दार/दिप्रिंट

हालांकि, उन्होंने केरल में ‘नशीले पदार्थों के जिहाद’ वाले मामलों की विशिष्ट संख्या पर पूछे गये सवाल को टाल दिया.

उन्होंने कहा, ‘मैं आपको क्यों बताऊं… आप खुद जाकर इसे देख सकते हैं. हमारे पास जो जानकारी है, उसका हम खुलासा नहीं कर सकते. आप लोगों पर भी भरोसा नहीं कर सकते. मीडिया को सब कुछ बता देना ठीक नहीं है.’

राज्य में लगातार जारी इस विवाद के बीच, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जहां उन्होंने धर्म और नशीले पदार्थों के बीच किसी तरह का संबंध होने से इनकार किया.

मुख्यमंत्री द्वारा प्रस्तुत सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2020 में केरल में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट) के तहत 4,941 मामले दर्ज किए गए थे. इन मामलों के 5,422 आरोपियों में से 49.8 प्रतिशत हिंदू थे, 34.47 प्रतिशत मुस्लिम और 15.73 प्रतिशत ईसाई थे. विजयन ने कहा, ‘इन आंकड़ों में कोई असामान्य अनुपात नहीं दिखता है. नशीले पदार्थों का धंधा धर्म के आधार पर नहीं चलता है.’

उन्होंने स्कूलों या कॉलेजों में महिलाओं को नशीली दवाओं के लालच में फंसाए जाने के किसी भी मामले को भी खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ‘अगर उनमें से कोई भी ड्रग्स का इस्तेमाल करता है तो वह ड्रग पहुंचाने वाले इस नेटवर्क का हिस्सा बन जाता है, अतः किसी भी धर्म द्वारा किए जा रहे संगठित प्रयास के हिस्से के रूप में इसका विश्लेषण करना बचकाना होगा.’

इससे पहले भी केरल के सीएम ने बिशप को उनकी टिप्पणी के लिए फटकार लगाई थी. उन्होंने कहा था, ‘यह केरल है, धर्मनिरपेक्षता का उद्गम स्थल. ऐसा मत सोचिए कि यहां के सद्भाव को बिगाड़ा जा सकता है. किसी के भी इस तरह के कदमों से हमारे समाज द्वारा सख्ती से निपटा जाएगा.’

इन स्पष्ट चेतावनियों के बावजूद, सीरो-मालाबार चर्च और केसीबीसी ने अभी भी अपने बयान वापस नहीं लिए हैं. पलाकपिल्ली का कहना है, ‘सरकार को इस सारे मामले की जांच करनी चाहिए और समाज की रक्षा करनी चाहिए. यह एक बड़ा और गंभीर मुद्दा है.’


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नन, बिशप, कार्यकर्ता- ईसाई समुदाय से मिल रही है कड़ी प्रतिक्रिया

हालांकि सिरो-मालाबार चर्च के प्रमुख ‘लव जिहाद’ और ‘नारकोटिक्स जिहाद’ पर अपनी बात पर अड़े हुए लगते हैं, फिर भी उन्हें अपने समुदाय के भीतर से ही बड़े पैमाने पर आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ रहा है.

‘नारकोटिक जिहाद’ पर पाला बिशप द्वारा दिए गये बयान के कुछ दिनों बाद, एक अन्य पादरी कोट्टायम के कुराविलांगड के एक चर्च में आयोजित एक प्रार्थना सभा में इन्हीं बयानों को दोहरा रहा था. लेकिन वहां मौजूद चार नन इसे ‘सांप्रदायिकता के बीज बोने’ का एक तरीका बताते हुए इस प्रार्थना सभा से बाहर चली गईं.

ये चारों नन वही थीं, जिन्होंने पहले भी रेप के आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल की मौजूदगी का विरोध किया था.

एक अन्य वरिष्ठ नन, सिस्टर टीना जोसेफ, भी इस तरह की टिप्पणियों की आलोचना में काफी मुखर रही हैं.

उन्होने दिप्रिंट को बताया, ‘यीशु ने हमें प्रेम करना सिखाया. लेकिन इस तरह के बयान समाज में विभाजन ही पैदा करेंगे. मुझे पता है कि शीर्ष पादरियों और बिशपों के खिलाफ बोलने के लिए मुझे विपरीत प्रतिक्रिया मिल सकती है, लेकिन बुराई के खिलाफ बोलना हमारा कर्तव्य है.’

न केवल नन ही बल्कि एक कैथोलिक अखबार ‘सत्यदीपम’ चलाने वाले फादर पॉल थेलाकट भी सीरो-मालाबार चर्च के हालिया बयानों के खिलाफ सामने आए हैं.

थेलाकट ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुसलमानों के खिलाफ कुछ ईसाई नेताओं के रवैये में स्पष्ट रूप से बदलाव आया है. क्या उन्हें लगता है कि ईसाई लड़कियां इतनी भोली-भाली हैं कि उन्हें आसानी से भरमाया और बहकाया जा सकता है? यह सच नहीं है. वे काफी परिपक्व लड़कियां हैं.’

Father Paul Thelakat, who runs a Cathloic newspaper, Sathyadeepam | Photo: Nirmal Poddar/ThePrint
कैथोलिक अखबार ‘सत्यदीपम’ चलाने वाले फादर पॉल थेलाकट | फोटो: निर्मल पोद्दार/दिप्रिंट

थेलाकट ने स्वयं 2000 से 2015 तक सिरो-मालाबार चर्च के प्रवक्ता के रूप में कार्य किया है. लेकिन इस पादरी का कहना है कि उस समय स्थिति अलग थी, क्योंकि उनके कार्यकाल के ज़्यादातर भाग में चर्च का नेतृत्व अलग था.

वर्तमान आर्कबिशप, फादर एलेनचेरी को 2012 में इस पद पर नियुक्त किया गया था. 2018 के बाद से, वह 2016 में किए गये एक भूमि सौदे में की गई कर चोरी के आरोपों के लेकर आयकर विभाग द्वारा बार-बार की जा रही पूछताछ के साथ ही भूमि घोटालों में उलझे हुए हैं.

ईसाई समुदाय के सदस्यों का दावा है कि इन घोटाले के आरोपों की वजह से ही चर्च की भाजपा और केंद्र सरकार के साथ एक नई तरह की निकटता दिखायी दे रही है.

2021 के केरल विधानसभा चुनावों से ठीक दो महीने पहले, एलेनचेरी सहित विभिन्न चर्च निकायों के प्रमुखों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी और कथित तौर पर अन्य मुद्दों के साथ-साथ ‘लव जिहाद’ पर भी चर्चा की थी.

एक्टिविस्ट ग्रुप आर्चडीओसेसन मूवमेंट फॉर ट्रांसपेरेंसी के संयोजक शायजू एंटनी ने ‘लव जिहाद’ पर सिरो-मालाबार चर्च के हालिया बयानों के पीछे एक ‘स्पष्ट राजनीतिक एजेंडा’ होने का आरोप लगाया.

एंटनी ने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि चर्च के प्रमुख खुद को भाजपा और केंद्र सरकार के साथ जोड़ना चाहते हैं. यह सिर्फ एक आत्म-संरक्षण की रणनीति है, इसके अलावा और कुछ नहीं. लेकिन इस तरह वे केरल के सामाजिक ताने-बाने को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें) 


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