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Friday, 22 November, 2024
होमदेशजुलाई से 43 करोड़ डोज़ लगाए जा चुके हैं, लेकिन सरकार ने टीकों के विपरीत प्रभाव पर अभी तक रिपोर्ट जारी नहीं की

जुलाई से 43 करोड़ डोज़ लगाए जा चुके हैं, लेकिन सरकार ने टीकों के विपरीत प्रभाव पर अभी तक रिपोर्ट जारी नहीं की

एडवर्स इवेंट्स फॉलोइंग इम्यूनाइजेशन (एईएफआई) का डेटा ये समझने के लिए महत्वपूर्ण होता है, कि यदि विपरीत असर और मौतों की घटनाएं सामने आती हैं, तो उनके कारणों को टीकों के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है.

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नई दिल्ली: भारत में अभी तक लगाए गए कुल टीकों के क़रीब 56 प्रतिशत (43 करोड़ से अधिक), जुलाई महीने से 16 सितंबर तक की अवधि में दिए गए हैं. लेकिन सरकार ने 12 जुलाई के बाद से अभी तक, एडवर्स इवेंट्स फॉलोइंग इम्युनाइज़ेशन (एईएफआई) के मामलों पर, कारणता आंकलन रिपोर्ट जारी नहीं की है. डॉ सतिंदर अनेजा की अगुवाई में नेशनल एईएफआई कमेटी ने, पिछली रिपोर्ट को 28 जून को स्वीकृति दी थी.

डॉ अनेजा ने, जो शारदा यूनिवर्सिटी में बाल रोग प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष हैं, दिप्रिंट से कहा, ‘हमने अभी तक हुई बैठकों की रिपोर्ट्स पेश कर दी हैं. वो मंत्रालय (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण) के पास हैं. वेबसाइट पर डालने से पहले कभी कभी, उन्हें रिपोर्ट का अनुवाद कराने में समय लग जाता है’.

दिप्रिंट ने फोन और ईमेल के ज़रिए स्वास्थ्य मंत्रालय से संपर्क साधकर, देरी के बारे में पूछना चाहा और ये भी जानना चाहा, कि एईएफआई कारणता आंकलन की नई रिपोर्ट कब अपेक्षित है, लेकिन इस ख़बर के छपने तक, उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

एईएफआई की दैनिक संख्या तो कोविन वेबसाइट पर डाल दी जाती है, लेकिन ऐसे मामलों के प्रोफाइल को समझने के लिए, आंकलन रिपोर्ट महत्वपूर्ण होती है.

30 जून तक भारत में कोविड टीकों की 33,57,16,019 ख़ुराकें दी जा चुकीं थीं. बृहस्पतिवार सुबह तक ये संख्या 76,57,17,137 हो गई थी. ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का टीकाकरण चल रहा है, इसलिए ये आंकलन करना आवश्यक है कि एईएफआई की घटनाएं और उसका प्रोफाइल कैसे बदल रहा है, और टीकाकरण के बाद की मौतों पर भी, यदि वो हैं तो नज़र रखना ज़रूरी है, जिससे कि समझा जा सके कि क्या इसके कारणों का संबंध टीके से है.

इस साल 16 जनवरी को राष्ट्रीय कोविड टीकाकरण कार्यक्रम शुरू होने के बाद से, प्राप्तकर्त्ताओं की आयु अपेक्षाकृत काफी युवा हो गई है. आयु के साथ एईएफआई के मामलों में अकसर अंतर आ जाता है, लेकिन रिपोर्ट्स के अपडेट न किए जाने से, वो सूचना अभी तक पब्लिक डोमेन में नहीं है.

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने, नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘रिपोर्ट्स तो आती रहती हैं लेकिन उनके विश्लेषण में समय लग जाता है. पूरे रिकॉर्ड्स को बारी से देखना होता है, और कभी कभी अस्पताल से कागज़ात भी मंगाने पड़ जाते हैं. वो अकसर, मांगे गए दस्तावेज़ देने में तत्परता नहीं दिखाते, इसलिए उनके पीछे लगना पड़ता है. बुनियादी चीज़ है विश्लेषण. बिना विश्लेषण के रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए, क्योंकि लोग उनका ग़लत अर्थ निकाल सकते हैं, ख़तरों की ग़लत व्याख्या कर सकते हैं’.

एईएफआई की रिपोर्टिंग मज़बूत नहीं

एईएफआई कमेटी के सूत्रों ने कहा कि चूंकि विश्लेषण में समय लगता है, इसलिए आमतौर पर देरी हो जाती है. लेकिन ये भी वास्तविकता है कि भारत में एईएफआई की रिपोर्टिंग बहुत अच्छी नहीं है.


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कमेटी के एक सदस्य ने कहा, ‘लोग अकसर विपरीत असर की घटनाओं की ख़बर नहीं देते. जहां तक कमेटी का सवाल है, तो हम ऐसे केवल गंभीर मामलों को देखते हैं. कुछ हद तक बदन दर्द और बुख़ार आदि अपेक्षित होता है, और हम ऐसे मामलों को नहीं देखते. हम दूसरी गंभीर घटनाओं के कारण जानने की कोशिश करते हैं. विश्लेषण के लिए हमें इसे समग्रता के साथ देखना होता है. मसलन, यदि कोई व्यक्ति 80 या 90 वर्ष का है, और उसे अन्य बीमारियां भी हैं, और उसे कोई विपरीत असर हो जाता है, तो उसे इसी संदर्भ में देखना होता है. इसीलिए इसमें समय लगता है’.

बुख़ार, बदन दर्द, इंजेक्शन की जगह दुखन, वैक्सिनेशन के कुछ सबसे आम परिणाम हैं, और ऐसे मामलों में सरकार पैरासिटेमॉल लेने की सलाह देती है.

पब्लिक डोमेन में आई पिछली रिपोर्ट में, 88 विपरीत प्रभावों का विश्लेषण किया गया था. उसका निष्कर्ष था: ‘जिन 88 मामलों का कारणता आंकलन किया गया है, उनमें से 61 के कारणों का टीकाकरण के साथ संबंध पाया गया’.
रिपोर्ट में कहा गया कि इन 61 मामलों में से 37 प्रतिक्रियाएं, वैक्सीन उत्पाद से जुड़ी थीं, 22 टीकाकरण की बेचैनी से जुड़ी प्रतिक्रियाएं थीं, और दो मामलों का संबंध टीकाकरण में हुई ग़लती से था. 18 मामले ऐसे थे जिनके कारणों का टीकाकरण से एक असंगत जुड़ाव था (संयोगवश, इसलिए टीकाकरण से जुड़ाव नहीं), जिनमें तीन मौतें शामिल थीं. नौ मामलों को ‘अनिश्चित वर्ग’ में रखा गया, जिनमें दो मौतें थीं.

वैक्सीन के साइड-इफेक्ट्स

भारत सरकार ने टीकाकरण कार्यक्रम में फिलहाल इस्तेमाल की जा रहीं, सभी तीनों वैक्सीन्स के संभावित साइड-इफेक्ट्स की सूची तैयार की थी.

कोविशील्ड के लिए सामान्य साइड-इफेक्ट्स में इंजेक्शन की जगह दुखन, सरदर्द, थकान, बदन दर्द और मिचली शामिल हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एफएक्यू डॉक्युमेंट में कहा गया है, ‘इस वैक्सीन के लगने के बाद डिमाइलीनेटिंग डिसऑर्डर की बहुत कम घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन उनके कारणों का टीके से संबंध स्थापित नहीं हुआ’.

डिमाइलीनेटिंग डिसऑर्डर्स वो होते हैं, जिनमें मस्तिष्क के नर्व फाइबर्स, ऑप्टिक नर्व्ज़, और स्पाइनल कॉर्ड को ढकने वाला सुरक्षात्मक आवरण क्षतिग्रस्त हो जाता है.

कोवैक्सीन के लिए, अतिरिक्त साइड-इफेक्ट्स में पेट दर्द, मिचली और उल्टी, चक्कर आना, कपकपाहट, पसीना, नज़ला, और ज़ुकाम आदि शामिल हैं.

स्पूतनिक 5 के लिए, साइड-इफेक्ट्स में बदहज़्मी, भूख न लगना, और कभी कभी बढ़े हुए स्थानीय लिम्फ नोड्स आदि हो सकते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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