scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशतालिबान की वापसी- केरल के परिवारों को उम्मीद, ISIS के लिए अफगानिस्तान भागे जोड़े लौट सकते हैं वापस

तालिबान की वापसी- केरल के परिवारों को उम्मीद, ISIS के लिए अफगानिस्तान भागे जोड़े लौट सकते हैं वापस

दिप्रिंट ने पूरे केरल का दौरा करके ऐसे परिवारों से मुलाक़ात की, जिनके सदस्य अफगानिस्तान में ISIS में शामिल हो गए थे. कुछ को अभी भी उनसे मिलने की उम्मीद है, जबकि दूसरों ने सब्र कर लिया है कि अब वो शायद उन्हें कभी नहीं देख पाएंगे.

Text Size:

केरल: बिंदु संपत पिछले 31 वर्षों से एक प्रमाणित मेकअप आर्टिस्ट रही हैं, त्रिवेंद्रम में उनका घर उनके एक छोटे से ब्यूटी पार्लर- बिंदूज़ का काम भी करता है.

लेकिन पिछले पांच सालों में, उन्हें उस तरह से ग्राहक मिलने बंद हो गए हैं, जैसे पहले मिलते थे. संपत का मानना है कि इसकी वजह ये है कि स्थानीय निवासी उन्हें एक ‘आतंकी की मां’, और उनके घर को एक ‘आतंकी ट्रेनिंग सेंटर’ के तौर पर देखते हैं.

54 वर्षीय संपत निमिषा की मां हैं- केरल की एक 21 वर्षीय युवती जो 2016 और 2018 के बीच, आतंकी संगठन आईएसआईएस में शामिल होने के लिए भागकर अफगानिस्तान चली गई.

अपने बेडरूम से अभी अभी बाहर निकलीं संपत, जिन्होंने गुलाबी और सफेद सूट पहना हुआ था और एक चमकदार लाल बिंदी और सिंदूर लगाया हुआ था, का कहना था, ‘वो अपेक्षा करते हैं कि मैं हर समय दुखी और टूटी हुई दिखती रहूं. लेकिन अगर मैं टूट जाती हूं, तो फिर मेरी बेटी के लिए कौन लड़ेगा? आज मेरी एक एक सांस मेरी बेटी के लिए है’.

लेकिन बहादुरी के उनके इस दिखावे को, आंसुओं में बदलते देर नहीं लगती, जब वो अपनी बेटी को याद करती हैं.

परिवार के पुराने फोटोग्राफ्स को देखते हुए वो दिप्रिंट से कहती हैं, ‘मेरा बेटा, निमिषा और मैं, एक ही प्लेट में खाया करते थे, जब वो दोनों छोटे थे. वो मेरे कपड़ों को काटकर अपने साइज़ का कर लिया करती थीं, क्योंकि वो चाहती थी कि उसके कपड़ों से मेरी जैसी ख़ुशबू आए. अब वो मुसीबत में है, तो मैं उसकी उम्मीद नहीं छोड़ सकती’.

पिछले पांच सालों के दौरान बिंदू ने अपनी बेटी को वापस लाने के लिए बहुत से तरीक़ों पर ग़ौर किया है, ख़ासकर जब 2019 में ख़बर आई कि निमिषा का पति उन बहुत से लोगों में था, जो एक ड्रोन हमले में मारे गए थे और 31 वर्षीय निमिषा तथा केरल से भागे हुए बाक़ी लोग, अभी ज़िंदा हैं और उन्होंने अफगान बलों के सामने सरेंडर कर दिया है, जिसके बाद वो काबुल में क़ैद हैं.

पिछले महीने उम्मीद की एक किरन दिखाई पड़ी.


यह भी पढ़ें: अफगानिस्तान की नई तालिबान सरकार पर पाकिस्तान की स्पष्ट छाप है, भारत के लिए ये क्यों बुरी खबर है


अगस्त के मध्य में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर क़ब्ज़ा किया, तो उन्होंने काबुल में बहुत सी जेलें तोड़ दीं, और क़ैदियों को आज़ाद कर दिया- निमिषा (फ़ातिमा) भी कथित रूप से उन्हीं में थी.

संपत ने कहा, ‘वो उम्मीद की एक किरन थी, मुझे लगा कि आख़िरकार मेरी बेटी वापस आ जाएगी, मैं बहुत ख़ुश थी’.

लेकिन, रिहाई के कई हफ्ते गुज़र जाने के बाद, निमिषा की वापसी की संभावना नज़र नहीं आती, और न ही केरल के उन दूसरे बाक़ी लोगों की, जो आईएसआईएस में शामिल होने गए थे.

भारतीय अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया है कि निमिषा समेत चार भारतीय विधवाएं, जल्द ही देश वापस नहीं आने जा रही हैं.

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, भारत पूर्व अफगान सरकार से बातचीत कर रहा था, भले ही भारत की ओर से एनआईए, और अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (एनडीएस) के बीच, ये बातचीत धीमी गति से चल रही थी. लेकिन अब तालिबान के सत्ता में आ जाने के बाद, अनिश्चितता पैदा हो गई है.

गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, इन पुरुषों और महिलाओं की वापसी को लेकर, अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है.

एक सूत्र ने कहा, ‘अभी तक इस बारे में कोई निर्णय नहीं हुआ है. महिलाओं समेत कुछ लोगों के अफगानिस्तान में सरेंडर करने के बाद, उन्हें जेल भेज दिया गया था और उनके प्रत्यर्पण की बात चल रही थी. लेकिन कुछ भी ठोस नहीं था. लेकिन अब, जब वो सब बाहर आ गए हैं और ज़रूर कहीं छिप गए होंगे, तो उनकी वापसी की संभावना और कम हो गई है’.

सुरक्षा प्रतिष्ठान में एक दूसरे सूत्र ने भी कहा कि केंद्रीय एजेंसियां ‘उनकी वापसी को लेकर बहुत सहज नहीं थीं’.

सूत्र ने कहा, ‘वो बहुत ही कट्टर लोग हैं, और उन्हें भारत वापस आने देना एक बहुत बड़ा जोखिम होगा, इसलिए उनमें इच्छा नहीं है. कुछ लोग इक़बाली गवाह बन सकते हैं, लेकिन फिर भी इसमें बहुत बड़ा जोखिम है. ज़्यादातर लोग जो वापस आएंगे और गिरफ्तार किए जाएंगे, उन्हें छह महीने में ज़मानत मिल जाएगी, और वो यहां आज़ादी के साथ घूम सकेंगे. कोई भी फैसला लेने से पहले, इन सभी ख़तरों पर ग़ौर करना होगा’.

दिप्रिंट की टीम ने कई जोड़ों के घरों का दौरा किया, जो पिछले कुछ सालों में आईएसआईएस में शामिल होने अफगानिस्तान भाग गए थे और उनके परिजनों से जानने का प्रयास किया कि वो धीरे-धीरे किस तरह ‘कट्टर’ बने, और संपत की तरह क्या वो भी चाहते हैं कि उनके बच्चे घर लौट आएं- अगर हां, तो किस क़ीमत पर.

बेचैनी में परिवार

हिंदू-नायर पृष्ठभूमि का निमिषा का परिवार उन क़रीब 10 परिवारों में से है, जो प्रसिद्ध अत्तुकल मंदिर के ट्रस्टी हैं- जो उनके घर से बहुत कम दूरी पर है. निमिषा का भाई अब भारतीय सेना में एक मेजर है.

निमिषा केरल में कासरगोड ज़िले के सेंचुरी कॉलेज में डेंटिस्ट्री की छात्रा थी, जब उसने 2016 में इस्लाम धर्म अपना लिया और अपना नाम बदलकर फ़ातिमा ईसा रख लिया.

अपनी डिग्री हासिल करने से क़रीब तीन महीने पहले ही, उसने अपना कोर्स छोड़ दिया और परिवार को अपने फैसले से अवगत कराने के लिए घर वापस आ गई. फिर उसने बेक्सन विंसेंट से शादी कर ली, जिसने ईसाई धर्म छोड़कर इस्लाम को अपना लिया था.

संपत का कहना है कि उसे निमिषा उर्फ फ़ातिमा का फैसला कभी समझ में नहीं आया, लेकिन फिर भी उन्होंने उसका समर्थन करने का निर्णय किया, क्योंकि वो बस यही चाहती थीं, कि ‘उनकी बेटी ख़ुश रहे और सैटल हो जाए’.

लेकिन फिर कुछ महीने बाद, 2017 में, उनकी बेटी ने उन्हें टेलीग्राम के ज़रिए बताया कि वो अफगानिस्तान में हैं. दोनों कुछ समय तक संपर्क में रहीं, लेकिन फिर वो सारा संपर्क टूट गया.

संपत की दीवारों पर उनकी नवासी- उम्मु कुलसू की फ्रेम की हुई तस्वीरें हैं, जो अब पांच साल की हो गई होगी. वो कहती हैं, ‘मैं उससे कभी मिली नहीं हूं, लेकिन वो मेरी नवासी है और मैं उसे प्यार करती हूं. उसे अपने घर में होना चाहिए, सुरक्षित’.

Bindu Sampath has been a certified makeup artist for 31 years | Photo: Suraj Singh Bisht/ThePrint
बिंदू संपथ, 31 साल से एक प्रमाणित मेकअप आर्टिस्ट | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट.

निमिषा के जाने के बाद से ही, संपत उसे वापस लाने के लिए अनथक प्रयास कर रही हैं.

संपत का कहना है कि पिछले पांच सालों में, उन्होंने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, केरल सरकार के बहुत से मंत्रियों, महिला आयोग और बाल अधिकार समूहों को पत्र लिखे हैं, और केरल हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की है, कि निमिषा को वापस भारत लाया जाए- लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

अब निमिषा की रिहाई के एक महीना गुज़र जाने के बाद, उसके वापस आने की सारी उम्मीदों का दामन अब हाथ से छूटने लगा है.

संपत कहती हैं, ‘कम से कम जब वो जेल में थी, तो मुझे पता था कि उसे खाना मिल रहा था. लेकिन अब तो ये भी मालूम नहीं कि वो ज़िंदा है या मुर्दा. अगर उसे वापस लाया जाता है, तो मैं जानती हूं कि उसे जेल में रखा जा सकता है, लेकिन कम से कम उस पर मुक़दमा भारतीय क़ानून के हिसाब से तो चलेगा’.

निमिषा कम से कम उन चार महिलाओं में थी, जो केरल से अफगानिस्तान पहुंच गई थी. अफगानिस्तान में भारतीय अधिकारियों द्वारा की गई पूछताछ में, जिनके वीडियोज़ सामरिक मामलों की वेबसाइट स्ट्रैटन्यूज़ ग्लोबल ने मार्च 2020 में अपलोड किए थे, इन महिलाओं को अपने फैसले का बचाव करते सुना जा सकता था.

निमिषा को कहते हुए देखा जा सकता है, ‘मैं दायश में नहीं रहना चाहती; मेरी विचारधारा दायश वाली नहीं है; मैं बस शरीया (में रहना) चाहती थी’.

ये पूछने पर कि क्या वो भारत वापस जाना चाहेगी, निमिषा कहती है: ‘भारत मेरा जन्म स्थान है, अगर वो मुझे लेते हैं, अगर वो मुझे जेल में नहीं डालते, तो मैं जाऊंगी…अगर मेरी तक़दीर में है तो मैं अपनी मां से फिर मिलूंगी’.

निमिषा के पति बेक्सन ने अपने भाई बेस्टिन, उसकी पत्नी मेरिन जेकब उर्फ मरियम के साथ, ईसाई धर्म छोड़कर इस्लाम अपना लिया था. दोनों भाईयों का ताल्लुक़ पलक्काड़ से था, और दोनों जोड़े एक साथ भागकर अफगानिस्तान चले गए थे. अधिकारिक सूत्रों के अनुसार, ज़्यादातर परिवार पहले ईरान गए और फिर सड़क के रास्ते सीमा पार करके अफगानिस्तान पहुंच गए.

जाने वाले अधिकतर लोगों को, कथित तौर पर केरल के उत्तरी छोर के ज़िले, कासरगोड में ‘ब्रेनवॉश’ किया गया था.

बल्कि ख़बरों में कहा गया था कि एक आतंकी मोहसिन, जिसने 25 मार्च 2020 को काबुल के एक गुरुद्वारे पर हमला किया था, जिसमें 25 सिखों की मौत हुई थी, कासरगोड का ही रहने वाला था. मोहसिन कुछ वर्ष पहले आईएसआएस में शामिल होने के लिए चला गया था.

अन्य में, कासरगोड के पदन्ना गांव के दो भाई ईजाज़ और शिहाज़, 2016 में अपनी पत्नियों के साथ अफगानिस्तान भाग गए थे.

उनके पड़ोसी हफीज़ुद्दीन टीके, और कज़िन अशफाक मजीद भी उसी ग्रुप का हिस्सा थे; मजीद के साथ उसकी पत्नी और बच्चा भी गया था.

भागने वाले ज्यादातर लोगों का ताल्लुक़ ख़ुशहाल परिवारों से है, और वो डॉक्टर्स और व्यवसायी जैसे पेशे अपनाने के लिए पढ़ाई कर रहे थे.

According to official sources, most of the families travelled first to Iran, and then crossed the border into Afghanistan by road | Illustration: Manisha Yadav
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक ज्यादातर परिवार पहले तो ईरान पहुंचे और फिर सीमा पार कर सड़क के रास्ते अफगानिस्तान | चित्रण: मनीषा यादव

यह भी पढ़ें: पाकिस्तान और चीन एक गैर-भरोसेमंद तालिबानी सरकार की उम्मीद कर रहे हैं, भारत को भी यही करना चाहिए


कट्टरता का रास्ता: कोई ‘हराम’ फोटोग्राफ्स और ऋण पर ब्याज नहीं

कासरगोड के पदन्ना में हर कोई अब्दुल मजीद का घर जानता है- अशफाक के पिता, जो 2016 में अपनी पत्निया शम्सिया, और एक साल के बच्चे के साथ अफगानिस्तान चला गया था.

लेकिन मजीद का घर सिर्फ उनके बेटे द्वारा लाई गई बदनामी की वजह से ही नहीं, बल्कि इसलिए भी जाना जाता है कि लोग अब्दुल को, ‘समाज का एक उदार और दयालु सदस्य’ मानते हैं.

अशफाक की भाभी अनिशा अजनस ने दिप्रिंट से कहा, ‘जो भी हुआ उस सबके बावजूद, लोग हमारे साथ खड़े रहे क्योंकि हमारे पिता की यहां बहुत अच्छी प्रतिष्ठा है. वो हमेशा परोपकार के काम करते रहते हैं, मंदिर के लोग भी उनके पास चंदे के लिए आते हैं, और वो ख़ुशी से योगदान देते हैं’.

अब्दुल मुम्बई में होटल का कारोबार करते हैं, और उन्हें उम्मीद थी कि उनका बेटा भी इसमें आ जाएगा. लेकिन अशफाक ने, जो मुम्बई में एक कॉलेज से बीकॉम कर रहा था, बीच में ही उसे छोड़ दिया क्योंकि उसका ‘दिल अब उसमें नहीं था’.

परिवार को लगता है कि अशफाक अफगानिस्तान जाने से दो साल पहले, ‘कट्टरता’ के रास्ते पर लग गया था. मसलन, वो कहते हैं कि 2014 में जब अशफाक की शादी हो रही थी, तो उसने ये कहते हुए शादी का कोई भी फोटो खिंचवाने से इनकार कर दिया, कि ये ‘ग़ैर-इस्लामी’ है.

अशफाक ने, जो उस समय 24 साल का था, ख़र्चीली शादी पर भी सख़्त ऐतराज़ जताया था, कि इस्लाम के मुताबिक़ शादियों में ज़्यादा ख़र्च हराम या मना है.

अनीशा कहती हैं, ‘हमें लगा कि वो बस ज़्यादा मज़हबी हो रहा है, लेकिन हमें बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि बंद दरवाज़ों के पीछे क्या चल रहा था. वो ज़्यादातर अपने में ही गुम रहता था. उन्होंने अपना रास्ता ख़ुद चुना है, इसलिए हम ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते. अगर वो वापस आते हैं तो हम जानते हैं कि भारतीय क़ानूनों के मुताबिक़ उन्हें सज़ा दी जाएगी’.

अशफाक के कज़िन्स ईजाज़ और शीहाज़ के रिश्तेदार भी ऐसी ही कहानी सुनाते हैं.

एक रिश्तेदार ने नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि एक बार ईजाज़ का बेटा बीमार हुआ, और उसके पिता अब्दुल रहीम उसे अपनी कार से अस्पताल ले जाना चाहते थे, लेकिन ईजाज़ ने मना कर दिया चूंकि वो कार क़र्ज़ से ख़रीदी गई थी, जिस पर ब्याज अदा किया जाता है, और ब्याज को इस्लाम में हराम समझा जाता है. परिवार को इससे धक्का लगा था क्योंकि ईजाज़ ख़ुद एक योग्य डॉक्टर था.

कासरगोड में तक़रीबन हर कोई किसी अब्दुल रशीद की तरफ इशारा करता है कि वही एक ‘मास्टर माइंड’ है जिसने इसमें शामिल दूसरे लोगों को ‘प्रभावित’ किया है. रशीद और उसकी पत्नी सोनिया सिबेस्टियन, जिसने ख़ुद भी धर्म बदला हुआ था, उन लोगों में थे जो 2016 में अफगानिस्तान चले गए थे. लेकिन रशीद, बाद में किसी हमले में मारा गया था.

अगस्त में, सोनिया के पिता वीजे सिबेस्टियन फ्रांसिस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके, सोनिया और अब सात साल की हो चुकी उसकी बेटी के प्रत्यर्पण की गुज़ारिश की.

2020 की वीडियो पूछताछ में सोनिया (जिसने अपना नाम बदलकर आएशा रख लिया था) को बातें करते देखा जा सकता है कि वो और उसका पति कैसे ‘खिलाफत के तहत रहने के लिए’ अफगानिस्तान आए, लेकिन ‘चीज़ें उम्मीद के मुताबिक़ नहीं रहीं’.

वीडियो में वो कहती है, ‘हम यहां एक इस्लामी ज़िंदगी की उम्मीद में आए थे; इस्लामी क़ानूनों के तहत रहने के लिए. लेकिन बहुत सी चीज़ें हमारी उम्मीद के मुताबिक़ नहीं रहीं, जैसे मस्जिद में सलात (नमाज़) वग़ैरह’.

वो आगे कहती है, ‘मैं भारत वापस जाना चाहती हूं, जो कुछ हुआ उस हर चीज़ से नाता तोड़कर, अपने पति के परिवार के साथ रहना चाहती हूं’.

वो आगे कहती हैं कि ‘केवल परपीड़क लोग ही आईएसआईएस की हत्याओं से प्रेरित हो सकते हैं, लेकिन वो उनके पास इसलिए गई थी कि वो एक ‘इस्लामी ज़िंदगी जीना चाहती थी’.

Some of the families that left Kerala to join ISIS | Illustration: Manisha Yadav/ThePrint
कुछ परिवार जो कि आईएसआईएस को ज्वाइन करने के लिए केरला को छोड़ा | चित्रण: मनीषा यादव/दिप्रिंट.

हम सह-अस्तित्व और धर्मनिर्पेक्षता के साथ हैं: केरल के सलाफी

केरल से निकलकर आईएसआईएस में शामिल होने वाले ज़्यादातर लोग सलाफी विचारधारा को मानने वाले थे- जो इस्लाम के अंदर एक सुधारवादी आंदोलन है.

केरल विश्वविद्यालय में इस्लामी इतिहास और पश्चिम एशिया के प्रोफेसर अशरफ कडक्कल का कहना है कि केरल में सलाफी आंदोलन की जड़ें 1920 के दशक तक जाती हैं, जब इसे एक प्रगतिशील ताक़त के तौर पर देखा जाता था.

Ashraf Kadakkal, professor of Islamic History and West Asia in Kerala University | Photo: Suraj Singh/ThePrint
केरल विश्वविद्यालय में इस्लामिक इतिहास और वेस्ट एशिया के प्रोफेशर अशरफ कडक्कल | फोटो: सूरज सिंह/दिप्रिंट.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘उस समय सलाफी आंदोलन शिक्षा तथा अन्य चीज़ों के अलावा, अंधविश्वास को छोड़ने पर बल देता था. लेकिन आहिस्ता आहिस्ता सलाफी विद्वानों के बीच दरारें पड़ीं और बंटवारे हो गए और कुछ ने धार्मिक ग्रंथों की एक ज़्यादा शाब्दिक व्याख्या को अपना लिया.

उन्होंने आगे कहा, ‘अब सलाफियों की एक नई पीढ़ी सामने आ गई है, जिनका इस अंदरूनी कलह के चलते आंदोलन से मोहभंग हो गया है, और जिन्होंने पारंपरिक सलाफी आंदोलन से नाता तोड़कर, स्वयं अध्ययन शुरू कर दिया है. इस सेल्फ-स्टडी के लिए वो पूरी तरह ऑनलाइन स्रोतों पर भरोसा करते हैं, और बेहतर समझ के लिए स्कॉलर्स के पास नहीं जा रहे हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘बल्कि वो तो अब पारंपरिक सलाफियों को अच्छा मुसलमान ही नहीं मानते, ठीक वैसे ही जैसे आईएसआईएस के निशाने पर आने वाले भी ज़्यादातर मुसलमान ही हैं, जो उनके हिसाब से भटक गए हैं’.

कडक्कल का कहना कि आईएसआईएस का ऑनलाइन प्रचार और आउटरीच ही, केरल में सलाफियों की मोहभंग हो चुकी पीढ़ी को लुभाने के लिए काफी हद तक ज़िम्मेदार है.

उनका कहना है, ‘वो ज़्यादातर भोले-भाले और शांत लोग थे. उनके आईएसआईएस में शामिल होने के पीछे सबसे बड़ी वजह, इस्लामी दुनिया में रहनी की उनकी इच्छा थी, एक ऐसी चीज़ जो उन्हें केरल में नहीं मिली’.

लेकिन कडक्कल ‘लव जिहाद’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल के खिलाफ सचेत करते हैं- जिन्हें दक्षिणपंथी समूहों ने गढ़ा है, ये जताने के लिए कि मुस्लिम पुरुष, ग़ैर-मुस्लिम महिलाओं का ब्रेनवॉश करके, उनका धर्मांतरण करा रहे हैं.

दिप्रिंट ने पहले ख़बर दी थी कि कैसे केरल में ईसाइयों के एक समूह, ख़ासकर साइरो-मालाबार चर्च के पादरियों ने, ऐसे बयान जारी करने शुरू किए थे, जिनमें उनके अनुयाइयों को ‘लव जिहाद’ से सतर्क रहने की चेतावनी दी जाती थी.

कडक्कल कहते हैं कि ‘अगर आप इसमें शामिल तमाम ग़ैर-मुस्लिमों को सुनें, तो वो सब विचारधारा से पूरी तरह संतुष्ट लगते हैं, और इस्लाम के जिस मत में भी वो आस्था रखते हैं, उससे पूरी तरह वाक़िफ हैं. उन्होंने प्यार या शादी के लिए धर्म नहीं बदला. इसलिए इसे ब्रेनवॉशिंग या लव-जिहाद नहीं कहा जा सकता’.

केरल का कालीकट या कोझिकोड ज़िला वो जगह है, जहां पूरे केरल में मशहूर सलाफी संगठन, ‘केरल नदवतुल मुजाहिदीन’ का मुख्यालय स्थित है.

इसके उपाध्यक्ष हुसैन मदावूर ने दिप्रिंट से कहा कि उनकी इकाई केरल में जो काम करती है, उसका उन लोगों की विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है, जो आतंकी गुटों में शामिल होते हैं.

मदावूर ने कहा, ‘हम पूरे केरल में कई स्कूल चलाते हैं- वो सब सेक्युलर और सह शिक्षा वाले हैं. हमारे स्कूलों में हिंदू और मुसलमान बराबर संख्या में आते हैं और लड़कों तथा लड़कियों की संख्या भी बराबर होती है. हम नियमित विषय पढ़ाते हैं, जैसे साइंस, अंग्रेज़ी, गणित, मलयालम आदि’.

‘छात्र एक वैकल्पिक भाषा का विषय ले सकते हैं, और वो अरबी, उर्दू तथा संस्कृत के बीच चयन कर सकते हैं. हमारा ज़ोर हमेशा से सांप्रदायिक और सामाजिक सद्भाव पर रहा है’.

उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें इस बात से नफरत है कि कैसे, लोग सलाफी विचारधारा को मानने का दावा करते हैं, लेकिन बाद में आतंकी संगठनों में शामिल हो जाते हैं और इस तरह ‘सलाफिज़्म’ को बदनाम करते हैं.

उन्होंने कहा, ‘सलाफी शब्द का मतलब है मुसलमानों की पहली पीढ़ी, यानी पैग़ंबर मोहम्मद के पहले अनुयायी. कोई भी आदमी बुरे काम कर सकता है और सलाफी होने का दावा कर सकता है, लेकिन ये सही नहीं है’. उन्होंने आगे कहा, ‘हम सह-अस्तित्व और धर्मनिर्पेक्षता के साथ हैं. ये इस्लाम का एक अहम पहलू है’.

Hussain Madavoor, vice-president of the pan-Kerala Salafi organisation, the ‘Kerala Nadvathul Mujahideen’ | Photo: Suraj Singh Bisht/ThePrint
हुसैन मदवूर, अखिल केरल सलफ़ी संगठन, ‘केरल नदवथुल मुजाहिदीन’ के उपाध्यक्ष | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: ISI प्रमुख फैज हमीद की काबुल यात्रा का तालिबान की नई सरकार से क्या लेना-देना है


‘26 प्रतिशत मुसलमानों में कोई 20 लोग बहुत बड़ी संख्या नहीं है’

एनआईए ने 2017 में एक आरोप पत्र दाखिल किया था, जब केरल से 21 मर्द और औरतें, आईएसआईएस में शामिल होने के लिए अफगानिस्तान रवाना हो गए थे.

केरल पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, तब से ये संख्या ‘20 से कुछ अधिक’ बनी हुई है.

नाम न बताने की शर्त पर अधिकारी ने कहा, ‘जो लोग गए उनमें बहुत से मर चुके हैं. जो जीवित हैं उनकी संख्या 20 से कुछ ऊपर है’.

अधिकारी ने ये भी कहा कि केरल के संदर्भ में इस ‘चिंता को बढ़ा-चढ़ाकर’ पेश किया जाता है, और इससे पिछले कुछ वर्षों में केरल की छवि धूमिल हुई है.

अधिकारी ने कहा, ‘इसके अलावा, अगर इन लोगों को वापस लाया जाता है, तो उन्हें आतंकियों की तरह लाया जाएगा, और सीधे जेल में डाल दिया जाएगा’.

दि आईएसआईएस कैलिफेट: फ्रॉम सीरिया टु द डोर स्टेप्स ऑफ इंडिया के लेखक स्टेनली जॉनी ने भी कहा कि केरल में, ‘आतंक की समस्या’ को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है.

जॉनी ने दिप्रिंट से कहा, ‘जिस सूबे में मुसलमानों की आबादी 26 प्रतिशत है, वहां क़रीब 20 लोगों का आईएसआईएस में चले जाना कोई बड़ी संख्या नहीं है. इस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित किया गया, क्योंकि लोग केरल को एक शिक्षित और प्रगतिशील राज्य के तैर पर देखते हैं’.

इस विषय पर चर्चा के दौरान केरल पर ख़ास ज़ोर दिए जाने का, शायद एक और कारण ये भी है कि इस सूबे से आईएसआईएस में जाने वाला तक़रीबन हर व्यक्ति, एक शिक्षित और ख़ुशहाल पृष्ठभूमि से ताल्लुक़ रखता है.

उन्होंने कहा, ‘ये एक मिथक है कि कट्टरता एक ग़रीब आदमी की समस्या है. कट्टर और आतंकी प्रचार किसी को भी प्रभावित कर सकता है, शिक्षित और अमीरों को भी, जैसा कि अब हम जानते हैं. ये एक वैश्विक समस्या है. फ्रांस से भी सैकड़ों लोग जाकर आईएसआईएस में शामिल हो गए थे. हम केरल को अलग करके नहीं देख सकते, क्योंकि ये एक वैश्विक घटना है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: JNU के आतंकवाद विरोधी कोर्स को ‘सांप्रदायिक’ नज़र से न देखें, भारतीय इंजीनियरों को इसकी जरूरत


 

share & View comments