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Friday, 22 November, 2024
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नक्सलियों के गढ़ रहे बस्तर को ‘इको-टूरिज्म’ का केंद्र बनाने का प्रयास

प्रशासन ग्रामीणों को इलाके में पर्यटकों को ठहराने के लिए पारंपरिक घर (होमस्टे)बनाने में भी मदद कर रहा है ताकि पर्यटकों को स्थानीय समुदाय के दैनिक जीवन, उनकी संस्कृति और खानपान का प्रमाणिक अनुभव मिल सके.

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बस्तर (छत्तीसगढ़):  दक्षिण छत्तीसगढ़ में विंध्य की पहाड़ियों और घने जंगलों में स्थित चित्रकूट जलप्रपात जिसे भारत का नियाग्रा फॉल भी कहा जाता है, मानसून के मौसम में पूर शबाब पर है और करीब एक किलोमीटर दूर से ही उसकी गर्जना सुनी जा सकती है.

यह शानदार जलप्रपात छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मौजूद 25 मनमोहक स्थानों में से है. इस इलाके को आज भी कई लोग नक्सलियों का गढ़ मानते हैं जिसकी वजह से यह इलाका पर्यटकों की प्राथमिकता से दूर है. लेकिन अब प्रशासन इस क्षेत्र की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए कार्य कर रहा है जहां पर खूबसूरत पहाड़ियां,घाटियां, झरने, गुफाएं, राष्ट्रीय उद्यान और स्मारक हैं.

प्राकृतिक सुंदरता से संपन्न होने और ‘इको-टूरिज्म’ (प्राकृतिक पर्यटन) की असीम संभावना होने के बावजूद स्थानीय लोग दूसरे राज्यों में काम की तलाश में पलायन कर रहे हैं.  इन हालात ने प्रशासन को यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या इलाके में स्व स्थायी आर्थिक मॉडल इको-टूरिज्म के आधार पर नहीं बनाया जा सकता, जहां स्थानीय लोग मालिक हों, रोजगार के अवसर पैदा हों, पलायन रुके और नक्सलवाद का इससे मुकाबला हो सके?

गत डेढ़ साल से बस्तर का प्रशासन इस दिशा में काम कर रहा है और गांव के स्तर पर समितियों का गठन कर रहा है जिसके पास इलाके में पर्यटन संबंधी गतिविधियों के संचालन का अधिकार होता है.

परियोजना के तहत बस्तर जिला प्रशासन के साथ टूर ऑपरेटर का काम करने वाले जीत सिंह बताते हैं, ‘ यह इलाका पंचायत (अधिसूचित क्षेत्र के विस्तार) अधिनियम या पीईएसए अधिनियम के अंतर्गत आता है, जिसमें ग्राम सभा के जरिये अधिसूचित इलाके में स्वशासन का प्रावधान है और केवल समिति ही अपने इलाके में पर्यटन संबंधी गतिविधियों पर फैसला कर सकती हैं.’

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बस्तर जिले में कुल आबादी में अनुसूचित जनजाति का हिस्सा 65.9 प्रतिशत है. केवल स्थानीय समुदाय के पास किसी पर्यटन स्थल के प्रबंधन का अधिकार है और कोई निजी खिलाड़ी रिजार्ट या शिविर स्थानीय लोगों की अनुमति के बिना नहीं बना सकता है.

निजी टूर ऑपरेटरों की भूमिका विशेष कौशल वाली गतिविधियों में होती है जैसे ट्रेकिंग, रैप्पलिंकिंग, पैरामोटरिंग, कैम्पिंग आदि. जिला प्रशासन के साथ काम कर रहे सलाहकार ने कहा, ‘इसके पीछे समुदाय के लोगों के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर सृजित करने का विचार है. वे पार्किंग सुविधा का परिचालन कर सकते हैं,पर्यटन मार्गदर्शक का काम कर सकते हैं और प्राकृतिक शिविर आदि का आयोजन कर सकते हैं.’

कोविड-19 महामारी ने भी स्थानीय स्तर पर रोजगार के सृजन की जरूरत पर बल दिया.

संत कुमार (19) बताते हैं कि उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वह कारखाने में काम करने के लिए हैदराबाद चले गए थे लेकिन कोविड-19 की वजह से उन्हें वापस लौटने पर मजबूर होना पड़ा. अब वह 16 सदस्यीय बीजाकासा पर्यटन समिति के सदस्य हैं और हाल में खोजे गए बीजाकासा जलप्रपात पर टूर गाइड का काम करते हैं. यह जलप्रपात बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर से 20 किलोमीटर दूर है.

कुमार ने बताया कि वह टूर गाइड के तौर पर हर महीने 15 हजार रुपये तक कमा लेते हैं जबकि फैक्टरी में काम करने के दौरान उन्हें महज 12 हजार रुपये मिलते थे.

सलाहकार ने बताया कि काफी संख्या में युवाओं को जिले के अन्य पर्यटन स्थलों जैसे ताम्डा घूमर जलप्रपात, कैलाश गुफा और मिचनार रॉक के लिए बनी समितियों के जरिये रोजगार मिला है.

बस्तर के जिलाधिकारी रजत बंसल ने बताया कि इस मॉडल को सबसे पहले रायपुर से 90 किलोमीटर दूर धमतरी जिले में अपनाया गया. उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री इस मॉडल को बस्तर में अपनाने को इच्छुक है ताकि इसकी छवि सुधारी जा सके.’

बंसल ने कहा, ‘वन भूमि स्थानीय समुदायों की है. हमारी भूमिका पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने भर की है. हमारे साथ काम कर रहे टूर ऑपरेटरों को केवल कमीशन (10 से 20 प्रतिशत के बीच) मिलेगा और मालिकाना हक और अधिकार ग्रामीणों के हाथ में होंगे.’

प्रशासन ग्रामीणों को इलाके में पर्यटकों को ठहराने के लिए पारंपरिक घर (होमस्टे)बनाने में भी मदद कर रहा है ताकि पर्यटकों को स्थानीय समुदाय के दैनिक जीवन, उनकी संस्कृति और खानपान का प्रमाणिक अनुभव मिल सके.

प्रशासन ने बताया कि ग्राम पंचायत तय करेगी कि कहां पर पर्यटकों के लिए आवास बनाए जांएगे और इनका निर्माण तभी होगा जब भूमि का मालिक सहमत होगा. एक घर (होमस्टे) बनाने के लिए एक लाख से तीन लाख का खर्च आता है, जिसमें से 90 प्रतिशत खर्च प्रशासन वहन करता है जबकि शेष राशि स्थानीय मालिक को व्यय करनी पड़ती है.


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