नई दिल्ली: कोरोनावायरस पर मौजूदा अध्ययनों की समीक्षा करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड-19 के बाद इसके 55 ऐसे प्रभाव होते हैं जो लंबे समय तक शारीरिक कष्ट का कारण बनते हैं. बीमारी से उबरे लोगों में थकावट महसूस होना एक प्रमुख लक्षण है.
जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित होने वाले एक अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने करीब 18,251 पब्लिकेशन को खंगाला और इनमें से 15 अध्ययनों को अंतिम विश्लेषण के लिए चुना गया.
शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने 9 अगस्त को प्रकाशित इस अध्ययन में यूरोप और ब्रिटेन के आठ अध्ययन, अमेरिका के तीन और ऑस्ट्रेलिया, चीन, मिस्र और मैक्सिको के एक-एक अध्ययन को शामिल किया था.
अध्ययन में ठीक हो चुके जिन मरीजों की स्थिति पर नज़र रखी गई, उनकी संख्या 102 से 44,799 तक थी. उनमें 17 से 87 वर्ष की आयु के वयस्क शामिल थे और मरीजों की स्थिति के आकलन की समयावधि 14 से 110 दिनों तक थी.
दस अध्ययनों में जानकारी जुटाने के लिए मरीजों के सेल्फ रिपोर्टेड सर्वे का इस्तेमाल किया गया था. दो अध्ययनों ने मेडिकल रिकॉर्ड से डेटा हासिल किया और तीन में क्लीनिकल मूल्यांकन किया गया था. 15 अध्ययनों में से छह में कोविड-19 के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों को ही शामिल किया गया था, जबकि बाकी अध्ययनों में हल्के, मध्यम और गंभीर कोविड-19 मरीजों का मिला-जुला डेटा इस्तेमाल किया गया था.
कुल मिलाकर, इस अध्ययन में कोविड-19 से जुड़े 55 दीर्घकालिक प्रभावों की पहचान की गई और उनमें से अधिकांश लक्षण थकान, सिरदर्द, पूरी तरह या आंशिक तौर पर सूंघने की शक्ति चली जाना (एनोस्मिया) और जोड़ों के दर्द आदि हैं.
हालांकि, इनके साथ-साथ स्ट्रोक और डायबिटीज मेलिटस- मेटाबॉलिज्म में गड़बड़ी जो हाई ब्लड शुगर का कारण बनती है- जैसी कुछ अन्य बीमारियों का भी पता चला.
यह भी पढ़ें: अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा कोविड और पोलियो के खिलाफ वैश्विक लड़ाई के लिए क्यों है बुरी खबर
58% मरीजों को बाद में थकावट और 44% को सिरदर्द की समस्या हुई
शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोविड से उबरे लोगों में थकावट महसूस होना लंबे समय तक दिक्कत देने वाली एक आम समस्या रही है और 58% मरीजों ने इसकी शिकायत की.
वहीं, 44 फीसदी मरीज ठीक होने के बाद काफी समय तक सिरदर्द से पीड़ित रहे. कोविड पीड़ित एक चौथाई से अधिक लोगों ने बताया कि उन्हें अटैंशन डिसऑर्डर और बालों के झड़ने की समस्या झेलनी पड़ी.
अन्य दीर्घकालिक लक्षण फेफड़ों की बीमारी से संबंधित थे जैसे खांसी, बेचैनी, फेफड़ों की क्षमता घटना, स्लीप एपनिया (जब सोते समय अचानक सांस लेने में दिक्कत हो जाती है) और पल्मोनरी फाइब्रोसिस, जिसमें श्वसन प्रणाली प्रभावित हो जाती है.
मरीजों में एरीद्मीज (अनियमित दिल की धड़कन) और मायोकार्डिटिस (हृदय ऊतक सूजन, जैसा आमतौर पर वायरल संक्रमण में होता है) जैसे हृदय संबंधी रोगों के लक्षण भी नज़र आए.
डिमेंशिया, अवसाद, बेचैनी और ऑब्सेसिव-कम्पलसिव डिसऑर्डर जैसे न्यूरोलॉजिकल लक्षण भी कुछ ऐसे दीर्घकालिक प्रभाव थे जो कोविड से उबरे मरीजों में नज़र आए.
अध्ययन में पाया गया कि 15 प्रतिशत मरीजों ने सुनाई देना घटने या टिनिटस- जिसमें एक या दोनों कानों में शोर गूंजने जैसी समस्या होती है- का अनुभव किया.
अनुसंधान में आगे बताया गया है कि कोविड-19 की पुष्टि वाले 80 प्रतिशत मामलों में गहरे संक्रमण से उबरने के दो सप्ताह बाद तक भी कम से कम कोई एक प्रभाव बना रहा.
कुल मिलाकर, 55 प्रभावों- जिनमें लक्षण, संकेत और प्रयोगशाला पैरामीटर शामिल थे- की पहचान की गई. इनमें थकावट होना, एनोस्मिया (सूंघने की क्षमता घटना), फेफड़े कमजोर होना, सीने का असामान्य एक्स-रे या सीटी और तंत्रिका संबंधी विकार सबसे आम हैं.
शोधकर्ताओं ने यह भी बात कही कि अन्य प्रभावों की पहचान अभी तक नहीं की जा सकी है. उन्होंने कहा कि हर लक्षण को अलग-अलग और अन्य लक्षणों के साथ मिलाकर समझने के लिए आगे अध्ययन की आवश्यकता है. हालांकि, इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कोविड-19 के बाद कुछ मरीजों को लंबे समय तक इसके प्रभाव का सामना क्यों करना पड़ता है.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: कोविड के कारण नियमित टीकाकरण में 5% की गिरावट, लेकिन राज्यों से मिले चौंकाने वाले रुझान