कुंडा, नीलगिरी (तमिलनाडु): ग्रामीण हेल्थ नर्स मैरी जॉयस और डेटा एंट्री ऑपरेटर कस्तूरी नीलगिरी के कुंडा इलाके में खड़ी चढ़ाई चढ़कर एक घर में पहुंचती हैं, जो ऊटी से करीब एक घंटे की दूरी पर है. जिले के स्वास्थ्य कर्मचारी अप्रैल-मई से जिले के हर सेक्टर में टीकाकरण अभियान में लगे हुए हैं.
जब वो अपनी भारी वैक्सीन किट कंधे पर रखकर चढ़ाई चढ़ती हैं, तो बिना फीते के उनके जूते कोई घर्षण पैदा नहीं करते. जमीन फिसलन और कीचड़ से भरी है और तेज़ बारिश ने उनकी परेशानी बढ़ा दी है क्योंकि ऐसे में ऊपर चढ़ना ज़्यादा मुश्किल और मशक्कत भरा हो गया है. वो बारी-बारी से बड़ी वैक्सीन किट को ढोती हैं और एक दूसरे को सहारा देते हुए पहाड़ी के ऊपर बने एक अकेले घर तक पहुंचने की कोशिश करती हैं, जहां एक दिव्यांग व्यक्ति को कोविड-19 की अपनी पहली खुराक का इंतज़ार है.
अप्रैल से फील्ड पर निकली जॉयस, कस्तूरी और अन्य टीका लगाने वाले जिले में चाय मज़दूरों की पूरी आबादी और विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजीज़) को कोविशील्ड का पहला डोज़ देने में कामयाब हो गए हैं.
सफल टीकाकरण अभियान के लिए जिला कलेक्टर जे इनोसेंट दिव्या को कठिन इलाके और वैक्सीन के प्रति झिझक के बावजूद, चाय बागान मज़दूरों तथा जनजातियों के बीच 100 प्रतिशत लक्ष्य पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा सम्मानित किया गया. नीलगिरि इस उपलब्धि को हासिल करने वाला तमिलनाडु का पहला ज़िला था.
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घंटों पैदल चलना, वैक्सीन की झिझक से जूझना
जैसा कि अनुमान था, ये सफर आसान नहीं रहा है.
अप्रैल महीने से कस्तूरी, जॉयस और दूसरे तमाम टीका लगाने वाले, सप्ताह में छह दिन हर रोज़ करीब 12 घंटे पैदल चले हैं. इनका काम केवल टीका लगाना ही नहीं रहा, बल्कि इन्हें स्थानीय निवासियों को टीका लगवाने के लिए राज़ी भी करना पड़ा है.
जिले के कठिन क्षेत्रों ने इनके काम को और ज़्यादा जटिल बना दिया, चूंकि ये इलाका ऊंची चढ़ाइयों, घने जंगलों तथा झीलों से भरा है.
कस्तूरी ने कहा, ‘हमारे सामने बहुत मुश्किलें थीं. इतनी सारी जगहों पर पहुंचना कठिन था, टीके के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट से निपटने के लिए हमें दूसरे ऐसे लोगों को सामने लाना पड़ा जिन्हें टीके लग चुके थे. मौसम भी बहुत खराब था और भारी बारिश के बीच भी हमें काम करना पड़ा’.
उनसे सहमति जताते हुए जॉयस ने कहा, ‘बहुत सी जगहों पर कोई बस सुविधा नहीं है, इसलिए हमें पैदल चलना पड़ता है…इलाके में तेंदुए भी हैं और इन चढ़ाइयों पर चढ़ते हुए मैं कई बार गिरी भी हूं’.
जॉयस ने कहा कि पिछले चार महीने में, कठिन रास्तों पर लंबे समय तक पैदल चलने से उनका वज़न 24 किलोग्राम घट गया है, और पहले के 85 किलो से कम होकर 61 किलो रह गया है.
इन सब कठिनाइयों के बावजूद वैक्सीन टीम करीब 40 दिन के भीतर लगभग 38,000 चाय बागान मज़दूरों की पूरी आबादी और साथ ही पीवीटीजीज़ के अन्य 21,000 लोगों को वैक्सीन की पहली खुराक देने में सफल हो गई.
दूसरी लहर की चेतावनी
नीलगिरी में जहां दक्षिण भारत की अधिकांश चाय पैदा की जाती है, तकरीबन हर मोड़ पर चाय की संपत्ति या जमीन के किसी टुकड़े पर चाय की खेती मिल जाएगी. अंग्रेज़ों ने यहां 1845 में सबसे पहले चाय की खेती शुरू की थी.
कलेक्टर दिव्या के अनुसार, यहां करीब 38,000 चाय बागान मज़दूर रहते हैं, जिनमें बहुत से पीवीटीजीज़ से ताल्लुक रखते हैं, जैसे तोड़ा, कोटा, इरुला, काटनायक, कुरुंबा और पानिया.
जिले में कोविड की पहली लहर में ज़्यादा मामले देखने में नहीं आए लेकिन दूसरी लहर में इनमें काफी बढ़ोतरी देखी गई. यही कारण है कि टीकाकरण के मामले में जिला प्रशासन तुरंत हरकत में आया, ताकि स्थिति बिगड़ने न पाए चूंकि चाय बागान आवश्यक सेवाओं के अंतर्गत आते हैं. इस पेशे में श्रमिकों को अपेक्षाकृत एक दूसरे के करीब रहना होता है, इसलिए कोई एक मामला भी आबादी के एक बड़े हिस्से को संक्रमित कर सकता था.
दिव्या ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने ये नियम बना दिया कि चाय बागानों में मज़दूर तभी काम कर सकते हैं, जब उनके टीके लगे हुए हों, चूंकि मामले बढ़ने लगे थे और ये ध्यान रखना जरूरी है कि चाय एक आवश्यक सेवा है’.
उन्होंने ये भी कहा कि इलाके के आदिवासी समूहों की अपेक्षा चाय मज़दूरों में टीके के प्रति हिचकिचाहट कम थी.
युनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन ऑफ सदर्न इंडिया (यूपीएएसआई) के सचिव संजीत नायर ने समझाया कि चाय बागान उन गिने-चुने क्षेत्रों में से हैं, जहां सामाजिक दूरी बनाना संभव है. लेकिन, दूसरी लहर खतरनाक साबित हुई और चाय संपत्ति मालिकों ने जिला प्रशासन की सहायता से सुनिश्चित कराया कि मज़दूरों को टीके लग जाएं.
नायर ने कहा, ‘दूसरी लहर में जिले में काफी संख्या में मामले सामने आए. यही वो समय था जब बागान क्षेत्र ने स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर टीकाकरण अभियान चलवाए. मार्च-अप्रैल के शुरूआत में कुछ झिझक देखने में आई लेकिन, स्थानीय प्रशासन की सहायता से उसपर आसानी से काबू पा लिया गया’.
दिव्या ने समझाया कि हर पीवीटीजी के लिए टीका अभियान को उनके घरों और गांवों तक ले जाना पड़ा क्योंकि वो एक दिन की मज़दूरी भी नहीं छोड़ सकते थे.
उन्होंने कहा, ‘टीका अभियान काम से पहले या काम के बाद चलाया जाता था. हमने बहुत से गैर सरकारी संगठनों की सहायता ली और वैक्सीन झिझक पर काबू पाने के लिए स्थानीय भाषा में गीत भी गाए, चूंकि शुरू में वो एक समस्या थी’.
एक चाय संपत्ति पर काम करने वाले 55 वर्षीय श्रमिक मुरुगन ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि उसे टीका लगवाने का डर नहीं था, हालांकि उसके दूसरे बहुत से साथी डरे हुए थे.
उसने कहा, ‘जिस दिन मैंने टीका लगवाया उससे अगले दिन थोड़ा खराब था, चूंकि मेरे हाथों में थोड़ी कपकपी थी और मुझे बुखार था. लेकिन दो दिन में मैं ठीक हो गया. अब मैं बहुत सुरक्षित महसूस करता हूं’.
उसके साथ काम करने वाले मज़दूर 46 वर्षीय कारिकाझल ने कहा, ‘जिस दिन मुझे टीका लगा उस रात मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, लेकिन अगले दिन मैं बिल्कुल ठीक हो गया’.
अब जिले की पूरी आबादी को अगस्त-सितंबर में टीके की दूसरी खुराक दी जानी है. स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि ये सुनिश्चित करना भी एक मुश्किल काम होगा कि दूसरी खुराक समयबद्ध तरीके से दे दी जाए.
नायर ने कहा, ‘टीके की दूसरी खुराक का समय नज़दीक आ रहा है, इसलिए हम उम्मीद कर रहे हैं कि प्रशासन जिले के चाय बागान मज़दूरों के टीकाकरण का काम पूरा करने में सहायता करेगा’.
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