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Thursday, 28 March, 2024
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उत्तर-पूर्व की सभी राजधानियों को रेल से जोड़ना चाहती है मोदी सरकार, फिलहाल कई सूबों में है ऐसा संपर्क

असम, त्रिपुरा, और अरुणाचल प्रदेश जहां पहले ही जुड़े हैं, वहीं मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैण्ड, और मेघालय को भी इसी तरह जोड़ने पर काम चल रहा है.

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नई दिल्ली: भारत के 75वें स्वाधीनता दिवस के मौक़े पर रविवार को लाल क़िले के प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की राजधानियों को जल्द ही रेल से जोड़ दिया जाएगा.

मोदी ने कहा, ‘जहां तक उत्तर-पूर्व को जोड़ने का सवाल है, आज हम एक नया इतिहास लिखने की प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं. ये संपर्क दिलों और इन्फ्रास्ट्रक्चर दोनों के बीच है. बहुत जल्द उत्तर-पूर्वी प्रांतों की राजधानियों को रोल से जोड़ने का कार्य पूरा कर लिया जाएगा’.

सरकार ने इसके लिए 2024 की समय सीमा निर्धारित की है.

फिलहाल, सिक्किम को छोड़कर बाक़ी सभी उत्तर-पूर्वी सूबे रेल के ज़रिए जुड़े हुए हैं. जहां असम, त्रिपुरा, और अरुणाचल प्रदेश की राजधानियां पहले ही जुड़ी हुई हैं, वहीं मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैण्ड और मेघालय को भी इसी तरह जोड़ने पर काम चल रहा है.

लेकिन रेलवे बोर्ड ने पिछली जुलाई में भी इसी तरह की घोषणा की थी- ये पहलक़दमी मोदी सरकार की ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति का हिस्सा रही है, जिसमें इस क्षेत्र के सर्वांगीण विकास पर ज़ोर दिया गया है.

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रेलवे बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अरुणेंद्र कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि इस परियोजना पर लंबे समय से काम चल रहा है. उन्होंने कहा, ‘ये एक कठिन परियोजना है और इंजीनियरिंग की उपलब्धि है. जहां भी रेल जाती है विकास पीछे पीछे चलता है. उद्देश्य ये है कि न केवल प्रांतों के राजधानी शहरों, बल्कि द्वितीय श्रेणी के शहरों को भी जोड़ा जाए’.

परियोजना के लिए तय की गई निर्धारित समय सीमा और संभावित अड़चनों के बारे में बात करते हुए, कुमार ने ज़ोर देकर कहा कि ‘यहां पर सवाल प्रतिबद्धता, तकनीक और धन का है- और इन सब की कोई कमी नहीं है. इस परियोजना को पूरा करने में जो समय लगेगा, उसमें इन सभी चीज़ों का ध्यान रखा गया है’.

कुमार भूमि अधिग्रहण को इस परियोजना के पूरा होने की राह में अड़चन नहीं मानते, लेकिन एक दूसरे पूर्व रेलवे बोर्ड अध्यक्ष वीके यादव की राय इससे अलग है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘अधिकतर परियोजनाएं अच्छी चल रही हैं, लेकिन कुछ राज्यों में ज़मीनी विवाद थे जिन्हें केंद्र और राज्यों के बीच सुलझाया जा रहा था. चूंकि ये एक रेखीय परियोजना है, इसलिए यदि ज़मीन का कोई छोटा सा टुकड़ा भी उपलब्ध नहीं है, तो वो समस्या खड़ी कर सकता है’.

उन्होंने आगे कहा कि 2014 के बाद से, जब मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आई, ‘पैसा कोई समस्या नहीं रहा है’.

इसी साल केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने 14 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर, भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में प्राथमिकता के आधार पर तेज़ी लाने का आग्रह किया. गोयल ने उत्तर-पूर्वी राज्यों में रेल नेटवर्क का विस्तार, केंद्र के लिए प्राथमिकता का क्षेत्र रहा है’.

मसलन, मेघालय के सीएम कॉनरैड संगमा से तेतेलिया-बिर्नीहाट और बिर्नीहाट-शिलॉन्ग परियोजनाओं में तेज़ी लाने का आग्रह किया गया, जो क़ानून व्यवस्था की वजह से उपेक्षा की स्थिति में थीं.


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2014 के बाद से 270 किलोमीटर नई लाइनें बिछाई गईं

2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से, 270 किलोमीटर नई लाइनें, 972 किलोमीटर गेज परिवर्तन और 114 किलोमीटर दोहरीकरण, जो पूर्णत: अथवा आंशिक रूप से उत्तर पूर्वी क्षेत्र (एनईआर) में आते हैं, औसतन 193.71 किलोमीटर प्रति वर्ष के हिसाब से चालू की गईं हैं- जो 2009-14 के बीच की औसत कमीशनिंग से 94 प्रतिशत अधिक हैं. ये ख़ुलासा इस मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में पूछे गए सवालों के लिखित जवाब में किया गया.

इस साल के अप्रैल तक उत्तर-पूर्व क्षेत्र में, 74,485 करोड़ रुपए की लागत से, 2,011 किलोमीटर कवर करने वाली 20 परियोजनाएं, पूरा होने के अलग अलग चरणों में हैं. इन परियोजनाओं में 56,553 करोड़ रुपए की लागत से 14 नई लाइनों की परियोजनाएं शामिल हैं, जिनकी कुल लंबाई 1,181 किलोमीटर है- इनमें 253 किलोमीटर का वो हिस्सा भी शामिल है, जिसे 23,994 करोड़ रुपए की लागत से चालू कर लिया गया है.

20 चालू परियोजनाओं में छह दोहरीकरण परियोजनाएं हैं, जिनकी लंबाई 830 किलोमीटर और कुल लागत 17,932 करोड़ रुपए है- जिनमें से 68 किलोमीटर पूरी की जा चुकी है, और इस साल मार्च तक परियोजना पर 2,880 करोड़ रुपए ख़र्च किया जा चुका है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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