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Friday, 22 November, 2024
होमदेशवैक्सीन की हिचकिचाहट से निपटने में सरकार की कैसे मदद कर रहे इंदौर के ट्रांसजेंडर्स, एक समय पर एक दरवाज़ा

वैक्सीन की हिचकिचाहट से निपटने में सरकार की कैसे मदद कर रहे इंदौर के ट्रांसजेंडर्स, एक समय पर एक दरवाज़ा

इस सब की शुरूआत मई में हुई जब इंदौर स्थित एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्त्ता संध्या घार्वी को लगा, कि उस समय तक समुदाय के ज़्यादा सदस्यों को टीका नहीं लगा था.

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इंदौर: इंदौर में कार्यकर्ताओं के एक समूह ट्रांसजेंडर वेल्फेयर सोसाइटी ने जो काम शुरू किया, वो ये सुनिश्चित करना था कि अपने समुदाय के सदस्यों का कोविड टीकाकरण हो जाए. लेकिन अंत में उन्होंने जो किया वो ये कि उन्होंने एक कहीं बड़े पैमाने पर वैक्सीन हिचकिचाहट से निपटने का एक व्यापक कार्यक्रम स्थापित कर दिया.

इस सब की शुरुआत मई में हुई जब इंदौर स्थित एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता संध्या घार्वी को लगा कि उस समय तक समुदाय के ज़्यादा सदस्यों को टीका नहीं लगा था. पता करने पर इसके दो कारण सामने आए.

एक, घार्वी ने कहा कि सभी टीकाकरण केंद्रों पर पंजीकरण कराने के लिए, प्राप्तकर्ताओं को पहचान प्रमाण लाना पड़ता है, लेकिन ट्रांसजेंडर समुदाय के बहुत से सदस्यों के पास ऐसा कोई पहचान प्रमाण नहीं है.

घार्वी ने आगे कहा, ‘अधिकतर ट्रांसजेंडर लोगों को उनके परिवार वाले, कम उम्र में ही छोड़ देते हैं और उन्हें अपना ख़याल खुद रखना पड़ता है. उनके पास अपने जन्म या पहचान का कोई दस्तावेज़ी सबूत नहीं होता’.

दूसरा कारण था टीकाकरण केंद्रों पर दूसरे लोगों द्वारा परेशान किए जाने या बुरे बर्ताव का डर, जिससे इनमें से वो लोग भी दूर रह रहे थे जिनके पास वैध आईडी प्रूफ मौजूद था.

यही वो समय था जब घार्वी और ट्रांसजेंडर वेल्फेयर सोसाइटी के कुछ साथी कार्यकर्ताओं ने इंदौर ज़िला प्रशासन के पास जाकर अनुरोध किया कि विशेष रूप से उनके समुदाय के लिए अलग टीका केंद्र लगाए जाएं, जहां उनसे कोई आईडी प्रूफ न मांगा जाए.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से निर्धारित टीकाकरण गाइडलाइन्स में, ऐसे कमज़ोर वर्गों के लिए कोविड टीके का प्रावधान है, जिनके पास कोई पहचान प्रमाण नहीं है. गाइडलाइन्स में कहा गया है कि ऐसे समूहों के लिए एक ‘मुख्य सहायक’ होना चाहिए- जिसके पास एक पहचान पत्र हो जिसे बिना पहचान पत्र वालों के बदले में इस्तेमाल किया जा सकता हो- जिसकी पहचान ज़िला अधिकारियों को करनी होगी.

इस मामले में ट्रांसजेंडर वेल्फेयर सोसाइटी के कार्यकर्ता ‘मुख्य सहायक’ बन गए.

प्रशासन ने मंज़ूरी दे दी और समुदाय के लिए शिविर लगवा दिए. इंदौर के मुख्य टीकाकरण अधिकारी तरुण गुप्ता ने कहा, ‘जब हमें पता चला कि ज़िले के ट्रांसजेंडर्स को ये दिक़्क़त आ रही है, तो हमने इस वेल्फेयर ग्रुप के साथ काम करना शुरू कर दिया और फौरन ही ज़िले के अलग अलग हिस्सों में कैंप्स लगवा दिए, जहां ट्रांसजेंडर्स आकर टीके लगवा सकते थे’. उन्होंने आगे कहा, ‘इस काम के लिए सोसाइटी प्रमुखों के पहचान पत्र इस्तेमाल किए गए’

Indore-based transgender activist Sandhya Gharvi stands among other Indore residents at a vaccination camp | Nirmal Poddar | ThePrint
इंदौर की ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता संध्या घार्वी इंदौर के टीकाकरण कैंप में लोगों के बीच खड़ी हुईं | निर्मल पोद्दार | ThePrint

गुप्ता ने कहा कि अभी तक इंदौर के 350 अनुमानित ट्रांसजेंडर्स में से 250 को कोविड टीके की पहली ख़ुराक मिल गई है.

केवल इन ट्रांसजेंडर्स के लिए वैक्सीन शिविरों को बढ़ावा देते समय, घार्वी को एक और बात का अहसास हुआ. उसने कहा, ‘बहुत से ग़ैर-ट्रांसजेंडर भी दिलचस्पी दिखाने लगे, हालांकि वैक्सीन्स की सुरक्षा को लेकर उनके मन में आशंकाएं थीं. लेकिन अब उनमें इच्छा पैदा हो रही थी और वो ज़्यादा जानकारी चाहते थे.

देखते ही देखते ट्रांसजेंडर सोसाइटी के अभियान को जितना उन्होंने सोचा था, उससे कहीं ज़्यादा लोग मिल गए.


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घर-घर जागरूकता अभियान

इंदौरवासियों द्वारा ज़ाहिर की जा रही उत्सुकता के नतीजे में घार्वी और उसकी टीम ने वैक्सीन के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान शुरू कर दिए और आम लोगों के लिए और अधिक टीका शिविर लगवाने में भी सहायता की.

ट्रांसजेंडर वेल्फेयर सोसाइटी की एक सदस्य नूरी ख़ान ने कहा कि टीम के सदस्य पूरे इंदौर में फैल गए और उन्होंने ग़रीबी वाले इलाक़ों को ख़ासतौर से लक्ष्य बनाया. उन्होंने लाउडस्पीकर्स के ज़रिए वैक्सीन्स के बारे में घोषणाएं कीं और लोगों के घर तक भी पहुंच गए.

खान ने कहा, ‘मैं रिक्शा में बैठती थी और गली-गली जाकर लाउडस्पीकर्स के ज़रिए वैक्सीन्स की अहमियत के बारे में ऐलान करती थी’.

खान और दूसरे सदस्यों को डर था कि किसी के घर पहुंच जाने पर लोगों की प्रतिक्रिया कैसी होगी- ट्रांसजेंडर्स अमूमन घरों पर ख़ुशी के मौकों पर पैसा या उपहार लेने ही जाते हैं- लेकिन उन्होंने कहा कि लोगों की प्रतिक्रिया देखकर उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ.

खान ने कहा, ‘ये देखना बहुत दिलचस्प था कि जब हम टीकों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए लोगों के दरवाज़े पर पहुंच जाते थे तो हमें देखकर उनकी कैसी प्रतिक्रिया होती थी. कुछ ने कहा कि उन्होंने त्यौहार के मौक़ों पर पैसा और उपहार मांगने के लिए हमें उनके घरों पर आते देखा है, लेकिन उन्होंने इसकी अपेक्षा नहीं की थी’.

खान ने आगे कहा, ‘आश्चर्यजनक रूप से लोग बहुत स्वागत करते थे और हमने बहुत से लोगों को टीका लगवाने के लिए राज़ी कर लिया’.

अपने जागरूकता अभियान के साथ-साथ सोसाइटी ने ज़िला अधिकारियों के पास जाकर अनुरोध किया कि उन्हें ग़ैर-ट्रांसजेंडर समेत सभी लोगों के लिए टीका कैंप लगवाने की अनुमति दी जाए.

‘उन्होंने टीकों के बारे में हमारी शंकाएं ख़त्म कीं’

ग्रुप ने जून में ज़िला प्रशासन के साथ मिलकर ऐसे वैक्सीन शिविरों का आयोजन करना शुरू कर दिया. 21 जून को इंदौर के खजराना मोहल्ले में ऐसे ही एक शिविर में कई प्राप्तकर्ताओं ने दिप्रिंट से कहा कि हाल तक वो वैक्सीन के खिलाफ थे.

इंदौरवासी बबली खरे ने, जो अपने पति के साथ कैंप में आई थीं, कहा, ‘मैंने टीकों के बारे में बहुत डरावनी बातें सुनीं थीं कि इससे कैसे मौत हो जाती है. मैं बहुत झिझक रही थी लेकिन जब इस ग्रुप के सदस्य मेरे घर आए तो उन्होंने वैक्सीन के बारे बेहतर ढंग से समझने में हमारी मदद की’.

एक ऑटोरिक्शा ड्राइवर साबिर हुसैन ने कहा कि वो ‘वैक्सीन को लेकर बहुत डरा हुआ था जब तक नूरी और संध्या उसके दरवाज़े पर नहीं आ गए’.

उसने कहा, ‘वैक्सीन्स के बारे में मैंने बहुत सारी अफवाहें सुनी थीं. लेकिन शुक्र है कि उन्हें मेरे सारे शक दूर कर दिए. मैं अपने पूरे परिवार को इस कैंप में लाया हूं और मैंने अपने पड़ोसियों तथा दोस्तों को भी टीका लगवाने के लिए प्रोत्साहित किया है’.

Large crowd gathered at the 21 June vaccination camp | Nirmal Poddar | ThePrint
21 जून को टीकाकरण कैंप में बड़ी संख्या में जमा हुए लोग | निर्मल पोद्दार | दिप्रिंट.

21 जून के कैंप में कुल 500 लोग पहुंच गए और अन्य 500 ने ग्रुप द्वारा आयोजित एक दूसरे कैंप में जाकर टीके लगवाए.

गुप्ता ने ज़िले के ट्रांसजेंडर समुदाय की इस पहल की सराहना की. उन्होंने कहा, ‘ट्रांसजेंडर वेल्फेयर ग्रुप बहुत सारे लोगों को टीके के लिए प्रेरित करने में सहायक साबित हुआ है, ख़ासकर उन्हें जो अपेक्षाकृत ग़रीब तबक़े से हैं और जिनमें जागरूकता की कमी है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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