मैसूर: मैसूर का चामराजा सर्कल सोमवार को एक शांत और थका हुआ सा मंज़र पेश कर रहा था. कुछ वाहन उन पुलिस बैरिकेड्स से होकर गुज़र रहे थे, जो सर्कल से निकलने वाली वैकल्पिक लेन्स पर लगाए गए थे. इन बैरिकेड्स पर केवल दो पुलिसकर्मी तैनात थे.
लॉकडाउन का ये शांत और नीरस सा नज़ारा, उस अव्यवस्था से बिल्कुल अलग था, जिसने पिछले कुछ दिनों से ज़िला प्रशासन को घेरा हुआ था- जो दो आईएएस अधिकारियों- ज़िला उपायुक्त (डीसी) रोहिणी सिंधूरी और मैसूर नगर निगम आयुक्त (एससीसी) शिल्पा नाग के बीच एक सार्वजनिक झगड़े का नतीजा थी.
ये टकराव पिछले बृहस्पतिवार को अपने चरम पर पहुंच गया, जब नाग ने डीसी पर उन्हें ‘निशाना’ बनाने का आरोप लगाते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इसके जवाब में सिंधूरी ने कई आरोप लगाए और निगम के कोविड प्रबंधन की आलोचना की.
पिछले शनिवार, कर्नाटक सरकार ने दखल देते हुए दोनों अधिकारियों का इस क्षेत्र से बाहर तबादला कर दिया.
ये सब उस समय हो रहा था, जब मैसूर कोविड पॉजिटिविटी रेट के मामले में 32.83 प्रतिशत के साथ राज्य में सबसे आगे था.
ज़िला प्रशासन के अधिकारी और एमसीसी, जिनसे दिप्रिंट ने पिछले हफ्ते मुलाकात की, दोनों ने इस झगड़े को अप्रत्याशित और अभूतपूर्व बताया. उनका कहना था कि उन्होंने दो आईएएस अधिकारियों को इस तरह सार्वजनिक रूप से एक दूसरे से उलझते हुए शायद ही कभी देखा था.
नाग ने डीसी पर उनकी मानसिक शांति भंग करने और निगम स्टाफ को ‘अपमानित’ करने का आरोप लगाया.
अपने इस्तीफे की खबर का ऐलान करते हुए उन्होंने कहा, ‘डीसी की ओर से परेशान और अपमानित किया जा रहा है. मैं अपनी मानसिक शांति खो चुकी हूं, ठीक से सो नहीं पाती और एक हफ्ते से कुछ खाया नहीं है. बस अब बहुत हो गया’.
‘किसी भी ज़िले या शहर में ऐसी अधिकारी नहीं होनी चाहिए. वो एमसीसी स्टाफ को अपमानित करती आ रही हैं और उन्हें सस्पेंड करने की धमकी दी है.’
सिंधूरी ने एक प्रेस नोट जारी कर आरोपों का खंडन किया और साथ में बिंदुवार आरोपों की सूची लगाई कि निगम ने किस तरह कोविड स्थिति को संभालने में गड़बड़ियां कीं.
उनके अनुसार निगम कोविड-19 के नए मामलों, मौतों और एक्टिव संख्या के बिना हस्ताक्षर किए हुए और परस्पर-विरोधी, वॉर्ड वार आंकड़े पेश कर रहा था और हाल ही तक वो कोविड केयर सेंटर्स भी नहीं खोल पाया था.
ज़िला प्रशासन के अधिकारियों ने स्वीकार किया कि इस तकरार की वजह से महामारी से लड़ने के प्रशासन के प्रयास प्रभावित हुए.
ज़िला प्रशासन के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘दोनों अच्छी अधिकारी हैं. जब शिल्पा नाग आयुक्त बनीं, तो मामले कम होने शुरू हो गए थे. डीसी मैडम भी देर रात तक समीक्षा करती रहतीं थीं. अच्छा होता यदि दोनों साथ मिलकर काम करतीं, तब स्थिति अलग होती’.
कैसे हुई शुरुआत
ज़िला प्रशासन के सूत्रों ने इशारा किया कि तकरार की शुरुआत तब हुई, जब मैसूर-कोड़गू सांसद प्रताप सिम्हा ने डीसी से सवाल करने शुरू किए.
बीजेपी नेता ने 22 मई को कहा था कि जहां शहरी इलाकों में मामलों में गिरावट देखी जा रही है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण बढ़ रहे हैं.
निगम की एक अधिकारी ने, जो नाग की करीबी हैं, कहा कि सिंधूरी और ज़िले की राजनीतिक मशीनरी के बीच समस्याएं पैदा हो गईं थीं.
अधिकारी ने कहा, ‘कई बार ऐसा हुआ कि राजनेताओं की ओर से बुलाई गई बैठकों से उन्हें बाहर रखा गया और उनके साथ कोई संचार नहीं हो रहा था’. उन्होंने आगे कहा कि ‘ज़िले के प्रभारी मंत्री (एसटी सोमशेखर) भी जब दौरे पर आते थे, तो एक बार भी उन्होंने अपने किसी आदमी को सिंधूरी के ऑफिस नहीं भेजा’.
उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसा लगता है कि कमिश्नर को इस सब के बीच खींच लिया गया क्योंकि शहर और ग्रामीण इलाकों में कोविड से निपटने के तरीकों की तुलना की जाने लगी’.
स्थिति तब बिगड़ गई जब सिंधूरी ने नाग से मैसूर नगर निगम के कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) फंड्स के बारे में सवाल किया.
ज़िला प्रशासन के अधिकारी के अनुसार, डीसी को बताया गया कि नाग, उन फंड्स को ज़िले को जारी करने की इच्छुक नहीं थीं. ज़िला प्रशासन ने तब एक पत्र जारी कर फंड्स के बारे में स्पष्टीकरण की मांग की.
दिप्रिंट से बात करते हुए सिंधूरी ने कहा कि सीएसआर फंड्स पूरे ज़िले के लिए थे, न कि सिर्फ मैसूर शहर के लिए.
सिंधूरी ने कहा, ‘मैंने उनसे कोविड मामलों का वॉर्ड वार ब्योरा मांगा था. वो समय रहते हुए उसे नहीं दे पाईं’. उन्होंने आगे कहा, ‘ये एक लड़ाई है, ऐसे में आपका सिपाही आपके खिलाफ बगावत नहीं कर सकता और दुश्मन के लिए जनरल का काम नहीं कर सकता’.
उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि उन्हें निशाना बनाने के लिए, नाग कुछ नेताओं के साथ मिली हुई थीं. निवर्तमान डीसी ने कहा, ‘उसके बाद वो किसी समीक्षा के लिए हाज़िर नहीं हुईं, राजनीतिक समर्थन की वजह से उनका हौसला इतना बढ़ गया था कि वो ख़ुद को जवाबदेह नहीं समझती थीं’.
दिप्रिंट ने टेलीफोन कॉल्स के ज़रिए नाग से संपर्क किया, उन्होंने इस मुद्दे पर बात करने से मना कर दिया.
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बढ़ते कोविड मामलों के बीच विवाद
अप्रैल के अंत तक मैसूर में कोविड की स्थिति बिगड़नी शुरू हो गई थी क्योंकि ज़िले के कोविड-19 वॉर रूम बुलेटिन के अनुसार, रोज़ाना के मामले बढ़कर 1,500 से अधिक पहुंच गए थे.
मध्य-मई तक सकारात्मकता दर 55 प्रतिशत के पार हो गई थी. 29 मई तक- जब झगड़े को एक हफ्ता हुआ था- ज़िले में 16,114 एक्टिव मामले थे और उस दिन 1,729 नए मामले और 28 मौतें दर्ज हुईं थीं. 11 जून को एक्टिव मामलों की संख्या 15,148 थी.
लेकिन मृतकों की संख्या में भी विसंगतियां रही हैं.
बुलेटिन के अनुसार, मई में ज़िले में हर रोज़ 5 से 30 के बीच मौतें दर्ज हो रहीं थीं. मैसूर वॉर रूम के डेटा के अनुसार, मई में ज़िले में 470 मौतें दर्ज की गईं थीं.
लेकिन निगम के सांख्यिकी अधिकारी अनिल क्रिस्टी ने, जो शहर में कोविड-19 शवों के निपटारों के प्रभारी हैं, कहा कि मई के महीने में कब्रिस्तानों और श्मशान घरों पर भेजे गए कोविड शवों की संख्या 1,003 थी.
इस सब से सवाल खड़ा होता है कि क्या दो वरिष्ठ अधिकारियों के बीच हुए झगड़े का प्रशासन के कोविड प्रबंधन पर असर पड़ा था.
दिप्रिंट से बात करने वाले कई ज़िला प्रशासन और निगम अधिकारियों की राय इस सवाल पर बटी हुई थी.
ज़िला प्रशासन के एक दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘ज़मीनी स्तर पर हर कोई काम कर रहा है- डॉक्टर्स, कार्यकर्ता और टीमें, सब काम कर रहे हैं’.
‘ये केवल शीर्ष स्तर पर हुआ था…वो (सिंधूरी) बहुत अच्छी थीं, वो महत्वाकांक्षी थीं कि इस महीने के अंत तक हमें मैसूर को कोविड-मुक्त घोषित कर देना चाहिए’.
ज़िला स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि डीसी बेहद मेहनती थीं. अधिकारी ने कहा, ‘वो हर रोज़ इनपुट्स लेती थीं कि हमारे पास कितने मामले हैं, हम उनकी छंटाई कैसे कर रहे हैं, कितने वैक्सीन डोज़ दिए गए हैं, अस्पतालों में कितनी भर्तियां हुईं हैं और कितने मरीज़ों को छुट्टी मिली वगैरह’.
मैसूर के कार्यवाहक मेयर अनवर बेग के अनुसार, मन-मुटाव होने से पहले तक निवर्तमान डीसी और कमिश्नर, कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहीं थीं.
उन्होंने कहा, ‘वो दिन में दो बार मिलतीं थीं- सुबह और फिर शाम के समय. दोनों बहुत मेहनत करतीं थीं और अगर उन्हें किसी मीटिंग या कोविड सेंटर साथ जाना होता था, तो दोनों कभी-कभी एक ही कार में चली जातीं थीं.’
नाग के इस्तीफे के ऐलान के बाद, बेग और दूसरे शहर पार्षदों ने एक प्रदर्शन किया और सरकार से आग्रह किया कि उन्हें कमिश्नर के तौर पर बनाए रखा जाए.
लेकिन मैसूर स्थित पत्रकार टीआर सतीश कुमार ने कहा कि उनकी इस तकरार का ज़िले के कोविड प्रबंधन पर कोई असर नहीं पड़ा.
उन्होंने कहा, ‘दोनों आईएएस अधिकारियों के बीच की तकरार से कोविड प्रबंधन प्रभावित नहीं हुआ है क्योंकि सिस्टम पहले से ही स्थापित हो चुका था. 1 मई से ही कोविड मरीज़ों की छंटाई का काम शुरू हो चुका था’.
उन्होंने कहा, ‘मैसूर शायद वो पहला ज़िला था, जहां ट्रायजिंग का काम शुरू हुआ, चूंकि यहां 1 मई से फिज़िकल ट्रायज सेंटर्स- कोविड मित्र- स्थापित कर दिए गए थे’.
तकरार के राजनीतिक परिणाम
इस तकरार ने मैसूर के राजनीतिक वर्ग को विभाजित कर दिया है.
बीजेपी नेता, सांसद प्रताप सिम्हा और विधायक एसए रामदास ने ज़ोर देकर कहा कि सिंधूरी के ढुलमुल प्रशासन के चलते ही ज़िले में कोविड की स्थिति खराब हुई थी.
सिम्हा ने दिप्रिंट से कहा, ‘सकारात्मकता दर के मामले में हम पूरे राज्य में सबसे ऊपर थे और मौतों के मामले में भी अगर बैंगलुरू को छोड़ दें… पिछले तीन महीने में वो कर क्या रहीं थीं?’
बीजेपी नेताओं ने रेमडिसिविर दवा की कमी के लिए भी निवर्तमान डीसी को ज़िम्मेदार ठहराया.
रामदास ने आरोप लगाया, ‘वो (सिंधूरी) अस्पतालों में जाती ही नहीं थीं. ऑफिस का भी सब काम वो अपने घर से ही चलातीं थीं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘केवल शाम के समय वो मिलने के लिए आती थीं…शिल्पा एक बहुत अच्छी प्रशासक थीं और उन्होंने घर-घर जाकर सर्वेक्षण करने जैसी पहलकदमियां की थीं’.
जेडी(एस) विधायक सारा महेश ने भी कई मौकों पर सिंधूरी की आलोचना की थी, जिनमें मौतों की गलत गिनती का आरोप भी शामिल था.
इसके बाद कर्नाटक सरकार ने जांच के आदेश दिए थे.
ऊपर हवाला दिए गए ज़िला स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ने कहा कि सिंधूरी कई राजनेताओं के बीच चर्चा का मुख्य विषय बन गईं थीं क्योंकि उन्होंने 16 निजी कोविड केयर सेंटर्स को बंद कर दिया था.
अधिकारी ने बताया, ‘उनमें से बहुत से सेंटर सांसदों या विधायकों के थे, जो बहुत पैसा वसूलते थे. लेकिन उनमें ऑक्सीजन या रैंप्स नहीं थे और कुछ बेसमेंट में बने थे, जहां पर्याप्त हवा नहीं आती थी…सिंधूरी ऐसी कोई चीज़ सहन नहीं करतीं थी, जो सामान्य नहीं थी’.
विपक्षी कांग्रेस, जिसके अतीत में सिंधूरी के साथ झगड़े हो चुके थे, इस बार दोनों अधिकारियों की हिमायत में खड़ी थी.
कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने बुधवार को कहा, ‘शुरू में सिम्हा सिंधूरी की तरफदारी किया करते थे लेकिन बाद में वो बदल गए. कुछ हद तक जनता दल (सेक्युलर) विधायक भी, दोनों के बीच की लड़ाई के लिए ज़िम्मेदार हैं’.
‘ज़िला प्रभारी मंत्री एसटी सोमशेखर क्या कर रहे थे, जब लड़ाई चल रही थी? ये पूरी तरह उनकी नाकामी है’.
मैसूर शहर कांग्रेस अध्यक्ष आर मूर्ति ने दिप्रिंट से कहा कि इस झगड़े के लिए बीजेपी नेता ज़िम्मेदार थे.
उन्होंने पूछा, ‘ये सब अप्रत्याशित रूप से करीब 15 दिन पहले हुआ, जब सांसद ने डीसी पर निशाना साधा था. जब सत्ताधारी पार्टी के चुने हुए प्रतिनिधि ऐसा करते हैं, तो अधिकारी अपना काम कैसे करेंगे?’
उन्होंने आगे कहा, ‘शिल्पा नाग बहुत अच्छी अधिकारी हैं और सब जानते हैं कि डीसी भी आईएएस अधिकारियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं’.
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विवादों से पुराना नाता
लेकिन दोनों अधिकारियों का विवादों से पुराना नाता रहा है.
12 वर्षों के अपने कैरियर में रोहिणी सिंधूरी की कई कार्यों के लिए सराहना की गई है, जिनमें 2014 से 2015 के बीच ज़िला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के तौर पर स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत, पूरे माण्डया में एक लाख निजी शौचालयों का निर्माण शामिल था.
लेकिन राजनीतिक मशीनरी के साथ सीधे टकराव की बात हो, तो 2009 बैच की आईएएस अधिकारी पहले भी सुर्खियों में रह चुकी हैं.
अपने तबादले के बाद सिंधूरी ने ये कहकर खलबली पैदा कर दी कि, कुछ नेताओं के ज़मीनों पर कब्ज़ा करने के नतीजे में उनका तबादला किया गया.
और 2018 में भी, हासन डीसी के पद से उनका समय से पहले तबादला कर दिया गया था क्योंकि उन्हें रेत माफिया के खिलाफ कार्रवाई की थी. तब की सिद्धारमैया सरकार ने स्थानीय नेताओं के दबाव में उन्हें ज़िले से बाहर चलता कर दिया था.
सिंधूरी ने अपने तबादले को कर्नाटक हाई कोर्ट में चुनौती और जीत गईं, जिसके बाद एचडी कुमारास्वामी सरकार में उन्हें हासन डीसी के पद पर बहाल कर दिया गया.
2014 बैच की आईएएस अधिकारी नाग भी 2017 में सुर्खियों में आईं थीं, जब उडिपी ज़िले में रेत की अवैध खुदाई पर छापे की कार्रवाई के दौरान उनपर तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारियों पर हमला किया गया था.
खबरों के मुताबिक, नाग और उनकी सहकर्मी प्रियंका फ्रांसिस ने, ये कार्रवाई पुलिस को सूचित किए बिना की थी और जब अवैध खनन माफिया के लोगों ने उनपर हमला किया, तो उन्हें अपनी जान बचाकर वहां से भागना पड़ा.
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