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Thursday, 25 April, 2024
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क्या देश की राजधानी की सूरत बदलने वाला है ‘दिल्ली मास्टर प्लान 2041’, कितनी बदलेगी दिल्ली

क्या नई दिल्ली अपने नए लुक में आने वाली है. इसके लिए ड्राफ्ट में जनता से सलाह मांगी गई है जिसे निश्चित ही माना नहीं जाएगा.

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दिल्ली मास्टर प्लान 2041 का ड्राफ्ट सामने आ गया है. ड्राफ्ट पेश करने वाली एजेंसी दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) है जो केंद्र सरकार के मातहत काम करती है. पिछले कई ड्राफ्ट और प्लान की तरह ही इसमें भी सपने बेचे गए हैं. अब दिल्ली 24 घंटे जगने वाला शहर होगा यानी रातभर बाजार खुले रहेंगे जिसमें विश्वस्तरीय परिवहन सुविधाएं होंगी. दिल्ली में अब पर्यावरणीय गतिविधियां बढ़ेंगी और ग्रीन फ्यूल का इस्तेमाल होगा.

इस ड्राफ्ट में यह भी कहा गया है कि बीस साल बाद दिल्ली में जनसंख्या का दबाव तकरीबन तीन करोड़ लोगों का होगा जिसके लिए प्रतिव्यक्ति पानी उपलब्धता 60 गैलन प्रतिदिन से कम होकर 50 गैलन प्रतिदिन की जा सकती है.  इस तथ्य यह मतलब कतई नहीं है कि आज दिल्ली के हर नागरिक को 60 गैलन पानी मिलता है. यह औसत है जिसमें कृषि, औद्योगिक और निजी स्वीमिंग पूल में उपयोग किया जाने वाला पानी शामिल है. दिल्ली में लाखों लोगों का काम प्रतिदिन एक बाल्टी पानी से चलता है, गैलन के गणित की बात इन सबसे परे है.

जो बात इस ड्राफ्ट में नहीं कही गई वह यह है कि पानी पर दिल्ली की बाहरी निर्भरता कब और कैसे खत्म होगी. लेकिन यमुना सफाई और मृतप्राय तालाबों और वॉटर बॉडीज को पुनर्जीवित करने का दावा किया गया है. इसे यूं समझिए – डीडीए एक्ट 1957 में लागू हुआ था और दिल्ली का पहला मास्टर प्लान 1962 में सामने आया. तब से लेकर आज तक एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है कि दिल्ली ने अपने किसी पुराने तालाब या धारा को पुनर्जीवित किया हो.

तुगलक कालीन या मुगल कालीन नजफगढ़ और बारापुला जैसी बड़ी नहरें अब सिर्फ एक सीवेज ले जाने वाला नाला है. दिल्ली की कॉलोनियों के नीचे कई तालाब दबे हुए हैं, उन्हें बाहर निकालने के लिए लाखों को बेघर करना होगा जो किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है.


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दिल्ली का जल संकट

दिल्ली में पीने का पानी मोटे तौर पर तीन स्रोतों से आता है.

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पहला है, अपर गंगा नहर जिसका पानी पूर्वी दिल्ली को सप्लाई होता है, दूसरा है पश्चिमी यमुना नहर, जो दिल्ली के बड़े हिस्से को पानी सप्लाई करती है और तीसरा है ग्राउंड वॉटर.

दिल्ली की हजारों सोसाइटियां और बाहरी दिल्ली की बसाहटें लगातार भूमिगत जल चूसती रहती है. पुरानी वॉटर बॉडीज को पुनर्जीवित करना तो दूर दिल्ली अपने ग्राउंड वॉटर को भी नहीं बचा पा रही है. सच तो यह है कि दिल्ली तेजी से दक्षिण अफ्रीकी शहर कैपटाउन में बदल रहा है.

इसी तरह जिस तीन करोड़ आबादी की संभावना बीस साल बाद दर्शायी गई है उनके सीवेज ट्रीटमेंट को लेकर भी वास्तविकता से दूर दावे किए गए हैं। अभी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 750 एमजीडी (million gallons water per day) वेस्ट वाटर पैदा होता है. इसमें से मात्र 520 एमजीडी को हम ट्रीट कर पाते हैं यह भी ध्यान रखें कि दिल्ली के पास देश में सर्वाधिक 34 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (निर्माणाधीन सहित) है. इस 520 ट्रीटेट वाटर में से सिर्फ 90 एमजीडी पानी तलाबों, पार्कों और वैटलैंड एरिया में उपयोग में आता है. लेकिन ड्राफ्ट कहता है कि भविष्य में होने वाला सारा सीवेज रियूज कर लिया जाएगा (भगवान जाने कैसे !)

पिछले कई सालों से पर्यावरण कार्यकर्ता यह मांग कर रहे हैं कि यमुना बाढ़ क्षेत्र में तालाब बनाए जाए और उनमें ट्रीटेड वॉटर को रखा जाए ताकि भूमिगत जल भी रिचार्ज हो सके.

दिल्ली में यमुना उत्तरी दिशा से प्रवेश करती है और पूरब की ओर बहती हुई दक्षिण-पूर्व से निकल जाती है. दिल्ली के कुल 48 किलोमीटर लंबाई क्षेत्र में यमुना बहती है, इसमें से वजीराबाद से ओखला के बीच मात्र 22 किलोमीटर के क्षेत्र में यमुना 80 फीसद प्रदूषित होती है. इस अस्सी फीसद का मतलब है यमनोत्री से लेकर प्रयागराज संगम तक कुल प्रदूषण का 80 फीसद दिल्ली योगदान करती है.


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ड्राफ्ट क्या कहता है

मास्टर प्लान ड्राफ्ट में कहा गया है कि यमुना किनारे बफर जोन बनाया जाएगा और तट से 300 मीटर तक जंगली घास और पौधारोपण किया जाएगा. जबकि डीडीए में बैठे नीति नियंताओं को यह अच्छी तरह मालूम है कि यमुना के किनारे मौजूद बड़ी संख्या में अवैध तरीके से बोई जा रही सब्जियों को सीवेज के पानी से ही सींचा जाता है और सैकड़ों की संख्या में मौजूद अवैध नर्सरियों के मालिक दबंग और राजनीतिक लोग हैं. इन्हे हटाने का कोई भी प्रयास आज तक सफल नहीं हुआ. उलटे इन बस्तियों में रह रहे लोगों के वोटर कार्ड बनाए गए हैं और लाइट के लिए सोलर प्लेट जैसे इंतजाम किए गए हैं. वास्तव में इस ड्राफ्ट में बफर जोन के बहाने निर्माण की संभावनाएं तलाशने की कोशिश की गई है.

वैसे आज की यमुना का सच यही है कि वह अपने ही सीवेज से दृश्यमान है. यदि नजफगढ़ सहित सभी नाले यमुना में डालने बंद कर दिए जाए तो यमुना एक सूखा मैदान बन जाएगी जिसके कुछ हिस्सों में दलदल होगा.


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वायु प्रदूषण

कुछ हिसाब सांसों का भी देख लीजिए.

दिल्ली में कुछ महीने ऐसे होते हैं जब सांस लेना भी मुश्किल होता है. ड्राफ्ट में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए ग्रीन फ्यूल के उपयोग की बात कही गई है जबकि गाड़ियों के प्रदूषण और पराली जैसे कारणों से ज्यादा दिल्ली में निर्माण कार्य से प्रदूषण होता है और सेंट्रल विस्टा जैसे अनिवार्य, अति आवश्यक और ‘महानतम’ निर्माण कार्य इस प्रदूषण को बेताहाशा बढ़ाने वाले हैं.

इस प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम तरीके अजमाए जाएंगे, इसका एक उदाहरण दिल्ली सरकार का स्मॉग टावर है जो अगले एक दो महीनों में साफ हवा देने लगेगा. बीस करोड़ की लागत से बना यह टावर देश का पहला स्मॉग टावर है और यह अपने एक किलोमीटर दायरे की हवा साफ करेगा. भविष्य में ऐसे कई टावर लगाए जाएंगे क्योंकि हवा का प्रदूषित होना विकास की अनिवार्य शर्त है. ऑक्सीजन पार्लर आज की सच्चाई है और तेजी से न्यू नार्मल में शामिल हो रही है.

क्या नई दिल्ली अपने नए लुक में आने वाली है. इसके लिए ड्राफ्ट में जनता से सलाह मांगी गई है जिसे निश्चित ही माना नहीं जाएगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और पर्यावरणविद हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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