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Tuesday, 5 November, 2024
होममत-विमत'चारपाई की चौपाल'- जमीन विवाद सुलझाने में कैसे मील का पत्थर बन सकती है राजस्थान के MLA की मुहिम

‘चारपाई की चौपाल’- जमीन विवाद सुलझाने में कैसे मील का पत्थर बन सकती है राजस्थान के MLA की मुहिम

नागौर जिले के परबतसर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रामनिवास गावड़िया ने ज़मीनी विवादों का आपसी सहमति से निपटारा करने के लिए 'चारपाई की चौपाल' अभियान शुरू किया है.

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जमीन के दाम बढ़ने और जोत का आकार छोटा होने से गांवों में इससे जुड़े विवादों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. देश का शायद ही कोई गांव इस मर्ज़ से अछूता हो. गांव-गांव में ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो ‘न्याय’ के लिए वर्षों से अदालतों के चक्कर काट रहे हैं. इस दुखद स्थिति से भी अधिक भयावह यह है कि जमीनी विवाद में टकराव होना और लाठी-गोली चलना आम बात है. खूनी संघर्ष में मौत की खबरें आए दिन पढ़ने को मिलती हैं. इस स्थिति में यदि कोई दोनों पक्षों की सहमति से जमीन से जुड़े विवाद हल करने का सफल प्रयोग करे तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं है.

राजस्थान के नागौर जिले के परबतसर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक रामनिवास गावड़िया की ओर से शुरू किया गया ‘चारपाई की चौपाल ‘ अभियान जमीनी विवादों को सुलझाने में सुखद परिणाम दे रहा है. पिछले दिनों इसी अभियान में 70 साल पुराने विवाद का निपटारा महज 7 मिनट में हो गया. दरअसल, बरूण गांव के खसरा नंबर 250, 251 व 484 की जमीन राजस्व रिकॉर्ड में भंवरा राम राड़ व परमेश्वर के नाम से दर्ज़ है लेकिन कब्जा जितेंद्र सिंह राजपूत व भंवर लाल लेगा के पास था.

दोनों पक्षों के बीच दो पीढ़ियों से विवाद बना हुआ था. दोनों में साल-दो साल में कहासुनी और झगड़ा होता रहता था. दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ कई मामले दर्ज कराये थे.

‘चारपाई की चौपाल’ में विधायक रामनिवास गावड़िया के अलावा दोनों ओर के प्रबुद्ध लोग और पीलवा थानाधिकारी रिछपाल सिंह साथ बैठे तो चंद मिनटों में विवाद सुलझ गया. दोनों पक्षों के अलावा पूरा गांव इस फैसले से खुश है. आसपास के गांव के लोग भी इसी तरह से विवाद सुलझाने में जुटे हैं. कई अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं और कई विधायक के पास पहुंच रहे हैं.


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भाईचारा बचाने के लिए शुरू की मुहिम

विधायक रामनिवास गावड़िया ने क्षेत्र में ‘चारपाई की चौपाल ‘ अभियान की शुरुआत भाईचारा बचाने के लिए की. दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘मेरे पास जमीन से जुड़े विवादों को लेकर बड़ी संख्या में लोग आते हैं. कई विवाद वर्षों पुराने हैं और कई ताजा. मैंने यह देखा कि इनकी वजह से गांवों में आपसी सौहार्द, प्रेम व भाईचारा समाप्त हो रहा है तो इसे बचाने के लिए चारपाई पर चारपाई की चौपाल शुरू की. विवाद से जुड़े दोनों पक्षों, गांव के प्रबुद्ध लोगों और आवश्यकता होने पर अधिकारियों को साथ बैठाकर विवाद का निपटारा किया.’

गावड़िया आगे कहते हैं, ‘चूंकि मेरे लिए दोनों पक्ष बराबर होते हैं इसलिए मैं किसी की पैरवी नहीं करता. चारपाई की चौपाल में गांव के प्रबुद्ध लोगों की समझाने के बाद दोनों पक्ष यह मान लेते हैं कि सही कौन है और गलत कौन. समझौता पुख्ता रहे और भविष्य में कोई कानूनी पेंच न फंसे इसके लिए नए सिरे से कागजी कार्रवाई की जाती है. यह कोई नया काम नहीं हो रहा है, गांवों में पहले इसी प्रकार से सामाजिक स्तर पर विवादों को सुलझाया जाता था.’


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ज़्यादातर विवादों में समझौता मुमकिन

विशेषज्ञों के अनुसार गांवों में ज़मीन से जुड़े मामले कानूनी रूप से ज़्यादा पेचीदा नहीं होते. अपने सेवा काल में ज़मीन विवाद से जुड़े सैकड़ों प्रकरणों की सुनवाई कर चुके राजस्थान प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी भगवत सिंह देवल कहते हैं, ‘गांवों में जमीन से जुड़े ज़्यादातर विवाद पैतृक संपत्ति के बंटवारे, मेड़बंदी, तारबंदी अथवा आपसी लेनदेन से जुड़े होते हैं. यदि दोनों पक्ष ठंडे दिमाग से साथ बैठ जाएं तो ऐसे मामलों का चुटकियों में समाधान हो जाए.’

‘कोर्ट में जाने से सिवाय पैसे और समय की बर्बादी के कुछ हासिल नहीं होता है. कानूनी प्रक्रिया इतनी पेचीदा है कि न्याय मिलने में देरी होती ही है.’

राजस्थान हाई कोर्ट में वकील तनवीर अहमद भी यह मानते हैं कि गांवों में जमीन से जुड़े अधिकांश विवादों को स्थानीय स्तर पर ही सुलझाया जा सकता है. वे कहते हैं, ‘गांवों में जमीन से जुड़े अधिकांश विवाद ऐसे होते हैं कि इन्हें स्थानीय स्तर पर आपसी सहमति से आसानी से हल किया जा सकता है. आमतौर पर ग्रामीण आवेश में अदालत का रुख कर लेते हैं. कई साल तक मुकदमा लड़ने के बाद उन्हें अपनी भूल का अहसास होता है.’


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राज्य सरकार भी चलाती है अभियान

राजस्थान के राजस्व मंत्री हरीश चौधरी के मुताबिक गांवों में जमीन से संबंधित विवादों को सुलझाने के लिए सरकार की ओर से भी अभियान चलाया जाता है.

वे कहते हैं, ‘प्रशासन गांवों के संग अभियान में पंचायत स्तर पर शिविर लगाकर ग्रामीणों की जमीन से जुड़े विवादों को ही नहीं, अन्य समस्याओं का भी निस्तारण करती है. इसमें अलग-अलग विभागों के अधिकारी और कर्मचारी एक छत के नीचे बैठते हैं. इन शिविरों में राजस्व रिकॉर्ड में नाम संशोधन, सीमा ज्ञान, जमीन पैमाइश के साथ आपसी सहमति से विवादों का निपटारा किया जाता है.’

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा में 1 मई को प्रशासन गांवों के संग अभियान  शुरू करने की घोषणा की थी, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर की वजह से राजस्व विभाग ने इसे स्थगित कर दिया.

राज्य के राजस्व मंत्री हरीश चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘भविष्य में अभियान में जमीन से जुड़े विवादों के निपटारे को विशेष प्राथमिकता दी जाएगी.’

उन्होंने कहा, ‘प्रशासन गांवों के संग अभियान की नई तिथि जल्द ही घोषित की जाएगी. इसमें जमीन विवाद से जुड़े प्रकरणों को सुलझाने को विशेष तवज्जो दी जाएगी.’

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और जयपुर में रहते हैं. उनका ट्विटर हैंडल @avadheshjpr है)


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