लखनऊ: ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के आरोप में दो और विधायकों को पार्टी से निष्कासित किये जाने के साथ ही बहुजन समाज पार्टी में कलह बदस्तूर जारी है. पिछले 18 महीनों के अंतराल में बसपा ने अपने 19 में से 11 विधायकों को खो दिया है.
विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही यह और अधिक रफ्तार पकड़ रहा है. ताजा घटनाक्रम के तहत, बसपा सुप्रीमो मायावती ने गुरुवार को विधायक दल के नेता लालजी वर्मा और एक अन्य वरिष्ठ विधायक राम अचल राजभर को पार्टी से बर्खास्त कर दिया, जिससे कई लोग हैरान रह गए.
उत्तर प्रदेश विधानसभा में बसपा के अब केवल सात विधायक बचे हैं.
ये दोनों ही दिग्गज नेता, लालजी वर्मा और राम अचल राजभर, बसपा सुप्रीमो मायावती के वफादार माने जाते थे.
बसपा की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि इन दोनों वरिष्ठ विधायकों को हाल के पंचायत चुनावों में उनकी कथित ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के कारण निष्कासित कर दिया गया है. उन्हें अब न तो पार्टी का टिकट मिलेगा और न ही उन्हें किसी पार्टी कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाएगा.
पार्टी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘लालजी वर्मा की सपा के साथ बातचीत चल रही है और राम अचल राजभर बीजेपी में शामिल होने के लिए प्रयास कर रहे है. ऐसे में हमें पार्टी में उनकी क्या आवश्यकता है?’ उन्होंने आगे कहा, ‘पंचायत चुनाव में उन्होंने अन्य दलों की मदद की. हमें पार्टी में केवल वफादार कार्यकर्ता चाहिए.’
हालांकि निष्कासित किये गए दोनों नेताओं ने इन आरोपों से पूरी तरह से इनकार किया है.
दिप्रिंट से बात करते हुए लालजी वर्मा ने कहा, ‘फिलहाल मैं किसी भी अन्य पार्टी में शामिल नहीं हो रहा हूं. मैं पार्टी के इस फैसले से स्तब्ध हूं. मैं पिछले 25 सालों से इस पार्टी का वफादार कार्यकर्ता रहा हूं. मैं पार्टी द्वारा दी गई सभी जिम्मेदारियों के प्रति पूरी तरह से समर्पित हूं. कुछ लोगों ने बहन जी को मेरे बारे में गलत फीडबैक दिया है.’
उन्होंने कहा कि कटेहरी विधानसभा में पार्टी की हार के लिए वो जिम्मेदार नहीं हैं. वर्मा ने कहा, ‘पंचायत चुनाव के दौरान, जोनल कोऑर्डिनेटर के द्वारा लिए गए निर्णयों के कारण हम अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके. इस तरह के परिणामों के लिए मैं नहीं बल्कि वे जिम्मेदार थे.’
एक अन्य विधायक राम अचल राजभर ने भी पंचायत चुनाव के दौरान किसी तरह की ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ और किसी अन्य पार्टी में शामिल होने का इरादे रखने जैसे आरोपों से इनकार किया.
दिप्रिंट ने बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर से बात करने की हरसंभव कोशिश की लेकिन उन्होंने हमारे कॉल का कोई जवाब नहीं दिया.
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अन्य नेताओं में बढ़ती अनिश्चितता
मायावती द्वारा पिछले 18 महीनों में 11 विधायकों को पार्टी से बाहर निकालने के फैसलों ने पार्टी कैडर में अनिश्चितता बढ़ा दी है.
बसपा के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘हालांकि मैं ‘बागी ‘ श्रेणी में नहीं हूं, लेकिन हमारे बीच भी अनिश्चितता है. किसको कब हटा दिया जाये क्या पता?’ उन्होंने किसी अन्य पार्टी में शामिल होने की संभावना से इनकार किया है.
पार्टी के एक पदाधिकारी ने भी इस अनिश्चितता संबंधी कारक को तो स्वीकार किया लेकिन उन्होंने इस बात से इनकार किया कि इससे पार्टी के चुनावी प्रदर्शन पर कोई असर पड़ेगा. उनके अनुसार, ‘हमारी पार्टी हमारी पहचान है. हालांकि इस वक्त हम कठिन दौर से गुजर रहे हैं, आगे चीजें बेहतर होंगी.’
बसपा के एक पूर्व लोकसभा उम्मीदवार ने दिप्रिंट को बताया, ‘बीजेपी के प्रति मायावती का सॉफ्ट कॉर्नर (नर्म रवैया) और पार्टी नेताओं के साथ संवादहीनता (कम्युनिकेशन गैप) ने यह अनिश्चितता पैदा कर दी है.’
उन्होंने कहा, ‘हालांकि पार्टी काडर अभी भी बहन जी के प्रति काफी वफादार है, लेकिन उन्हें अपने वरिष्ठ नेताओं पर भी भरोसा नहीं है. अल्पसंख्यक नेता भाजपा के प्रति उनके नरम रुख से नाराज हैं. ओबीसी के लिए सपा और भाजपा एक बेहतर विकल्प है.’
‘इसलिए अब उनके पास दलित नेता और सतीश मिश्रा, रितेश पांडे, नकुल दुबे आदि जैसे ब्राह्मण नेताओं का एक निश्चित वर्ग ही बचा है. सबसे अधिक संभावना है कि ब्राह्मणों का वोट चार दलों- भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस में विभाजित हो जाएगा, तो बसपा को इससे क्या फायदा होगा?’
पिछले साल नवंबर में बहुजन समाज पार्टी ने भीम राजभर को अपनी उत्तर प्रदेश इकाई का नया अध्यक्ष नियुक्त किया था. भीम राजभर ऐसे चौथे व्यक्ति थे जिन्हें 2017 के विधानसभा चुनावों के बाद से बसपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है. मुनाकद अली, आर.एस. कुशवाहा और राम अचल राजभर उनके पूर्ववर्ती हैं.
इसी तरह पिछले साल जनवरी में मायावती ने अंबेडकर नगर लोकसभा सीट से सांसद रितेश पांडे को दानिश अली की जगह बसपा संसदीय दल का नया नेता नियुक्त किया था. इस तरह बसपा संसदीय दल को आठ महीने में चौथा नेता मिला है. लोकसभा में पार्टी के 10 सदस्य हैं.
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बसपा का नुकसान, सपा का फायदा
लालजी वर्मा और राम अचल राजभर के अलावा अब तक बसपा ने असलम रैनी, असलम अली, हरगोविंद भार्गव, मुजतबा सिद्दीकी, हकीम लाल बिंद, सुषमा पटेल, वंदना सिंह, अनिल सिंह और रामवीर उपाध्याय समेत 11 विधायकों को निलंबित कर दिया है.
बसपा के एक पार्टी पदाधिकारी के अनुसार, उनमें से 8 सपा के संपर्क में हैं और 3 भाजपा के साथ हैं. उन्होंने कहा कि रामवीर उपाध्याय, अनिल सिंह और राम अचल भाजपा के संपर्क में हैं, जबकि अन्य सपा के संपर्क में हैं.
2017 में कुल 19 बसपा विधायक जीते थे. 2019 में जब रितेश पांडे सांसद बने तो उनकी सीट खाली हो गईं और फिर उपचुनाव में बसपा यह सीट हार गई. अब 11 विधायकों के बसपा के निलंबन के बाद राज्य विधानसभा में पार्टी के 7 विधायक रह गए हैं.
पिछले साल अक्टूबर में बसपा के 7 विधायकों ने लखनऊ में समाजवादी पार्टी के मुख्यालय में पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की थी.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बसपा के अंदर के कलह का सबसे ज्यादा फायदा सपा को होगा.
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कविराज, जो उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति पर करीबी नज़र रखते हैं, के अनुसार, ‘अब यह स्पष्ट है कि बसपा नेताओं और समर्थकों के बीच भारी अनिश्चितता फैली हुई है. लगभग हर महीने हमें सुनने को मिलता है कि बसपा ने फलां को पार्टी से निकाल दिया है.’
‘बसपा आलाकमान संवादहीनता को दूर करने की बजाय नेताओं को बाहर करने में लगा है. इस तरह की कार्रवाइयों से पार्टी को कोई खास मदद नहीं मिलेगी. दूसरी ओर यह सब समाजवादी पार्टी को ही मदद पहुंचा रहा है क्योंकि अधिकांश ‘बागी’ नेता भाजपा में शामिल होने के प्रति अनिच्छुक हैं.’
उन्होंने कहा, ‘अगर लालजी वर्मा, सुषमा पटेल और हकीम लाल बिंद जैसे नेता इसमें शामिल होते हैं तो सपा को गैर-यादव ओबीसी और दलितों के एक खास वर्ग के बीच अपनी पहुंच बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. निश्चित रूप से अखिलेश विधानसभा चुनाव से पहले जातिगत समीकरणों को और पुख्ता करना चाहते हैं. एक और अहम बात यह है कि लालजी वर्मा जैसे नेता पार्टी में अनुभव भी लेकर आए हैं. वह पांच बार के विधायक हैं और कुर्मी जति से आते हैं, जो यूपी में एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है.’
दिप्रिंट से बात करते हुए समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, ‘हम सब जानते हैं कि बसपा में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है. (पार्टी में) आलाकमान के प्रति काफी आक्रोश है. उनके कई विधायक हमारे संपर्क में हैं, कुछ पहले ही अखिलेश जी से मिल चुके हैं.’
‘लेकिन अंतिम फैसला वे (अखिलेश) ही लेंगे. इसलिए मैं आधिकारिक तौर पर यह नहीं कह सकता कि वे (विधायक) समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहे हैं.’
पिछले दो वर्षों में बसपा के दो दर्जन से अधिक वरिष्ठ नेता समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं. इनमें सांसद त्रिभुवन दत्त और राम प्रसाद चौधरी, पूर्व विधायक बब्बू खान और सी.एल. वर्मा, जो कभी मायावती के काफी करीबी माने जाते थे और पूर्व मंत्री रघुनाथ प्रसाद सांखवार आदि शामिल हैं.
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