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Friday, 15 November, 2024
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बंगाल चुनाव में तृणमूल के दल-बदलुओं ने डुबोई BJP की नैय्या, सिर्फ शुभेंदु और मुकुल रॉय ने बचाई लाज

तृणमूल कांग्रेस के 148 दल बदलुओं में से, जिन्हें बीजेपी से टिकट मिले थे, और जिनमें एक दर्जन से अधिक सिटिंग विधायक थे, सिर्फ छह जीत हासिल कर पाए हैं, जिससे भगवा पार्टी के भीतर भी असंतोष बढ़ गया है.

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कोलकाता : रविवार को आए पश्चिम बंगाल चुनावों के नतीजों ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सभी दल-बदलुओं को धूल चटा दी है, सिवाय दो बड़े नामों को छोड़कर- शुभेंदु अधिकारी, जो ममता बनर्जी के पूर्व क़रीबी सहयोगी कार्यवाहक मुख्यमंत्री रहे हैं और पूर्व टीएमसी महासचिव मुकुल रॉय- जो किसी तरह जीत गए.

मार्च-अप्रैल के चुनावों से पहले के कुछ महीनों में, 25 विधायक और वरिष्ठ टीएमसी नेता दल-बदल कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में पहुंच गए. बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस के 148 दल-बदलुओं को टिकट दिए गए थे, जिनमें एक दर्जन से अधिक सिटिंग विधायक थे. सिर्फ छह उम्मीदवार (4 प्रतिशत) जीत हासिल कर पाए हैं.

पूर्व मंत्री राजीब बनर्जी, पूर्व हावड़ा मेयर रतींद्रनाथ चक्रबर्ती और पूर्व अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) प्रमुख जगमोहन डालमिया की बेटी बैशाली डालमिया, उन लोगों में से हैं, जिनका पाला बदलना काम नहीं आया.

बनर्जी की पराजय सबसे बड़ी दिखाई देती है, क्योंकि वो न सिर्फ हावड़ा में दोमजुर की अपनी ख़ुद की सीट, 42,512 वोटों से हार गए, बल्कि ज़िले की सभी 16 सीटें टीएमसी के हाथों गवां बैठे, जिन्हें वो संभाल रहे थे.

पूर्व टीएमसी विधायक और बिधान नगर (साल्ट लेक) नगर निगम के मेयर सब्यासाची दत्ता, टीएमसी मंत्री सुजीत बोस से, 7,758 मतों से मात खा गए.

डायमंड हार्बर के पूर्व विधायक दीपक हलदर, जो दिसंबर में बीजेपी में शामिल हो गए थे, टीएमसी के पन्नालाल हलदर से, 16,996 वोटों से परास्त हो गए. डायमंड हार्बर अभिषेक बनर्जी का लोकसभा चुनाव क्षेत्र है, जो सीएम के भतीजे हैं.

लेकिन, कुछ दल-बदलू अपनी चाल में कामयाब भी हुए हैं, जिनमें ‘जायंट किलर’ शुभेंदु अधिकारी भी शामिल हैं, जिन्होंने नंदीग्राम में एक रोमांचक मुक़ाबले में ममता बनर्जी को हरा दिया.

मुकुल रॉय, जिन्होंने दो दशकों के बाद कोई चुनाव लड़ा, नादिया की कृष्णानगर नॉर्थ सीट से, 35,809 वोटों से जीत गए. लेकिन उनके बेटे सुभ्रांशु रॉय को, जो उनके गृह क्षेत्र बीजपुर से, बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर लड़े थे, हार का मुंह देखना पड़ा.

कुछ दूसरे दल-बदलू जैसे मिहिर गोस्वामी और बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह के बेटे पवन सिंह भी, चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

गोस्वामी ने कूच बिहार के नाताबाड़ी में बड़ी जीत दर्ज की, जहां उन्होंने ज़िला प्रभारी और राज्य के उत्तरी बंगाल विकास मंत्री, रबींद्र नाथ घोष को परास्त किया.


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दल-बदलुओं को ‘ग़द्दार’ के तौर पर देखा गया

एक वरिष्ठ टीएमसी नेता ने कहा कि लोगों ने, दल-बदलुओं को ‘ग़द्दारों’ के रूप में देखा है.

नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘2016 में वो विधायक बन गए, क्योंकि उनके पोस्टरों पर दीदी (ममता बनर्जी) का चेहरा था. लेकिन उन्होंने ऐसे समय दीदी का साथ छोड़ा, जब उन्हें अपने सहयोगियों के एकजुट रहने और मज़बूती से खड़े रहने की ज़रूरत थी. लोगों ने उनके साथ इंसाफ कर दिया है’.

नाम न बताने की शर्त पर, एक सीनियर बीजेपी नेता ने कहा कि ममता बनर्जी का ‘ग़द्दार’ प्रचार, उनकी पार्टी के पक्ष में और उनके दल-बदलुओं के खिलाफ काम कर गया, जो नवंबर-दिसंबर के बाद से बीजेपी में गए थे.

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कोलकाता में पत्रकारों से कहा, ‘दल-बदलुओं के चुनाव हारने पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. उनमें से कुछ जीते भी हैं. हमने उन्हें लिया था जिनमें कुछ संभावनाएं दिखीं थीं. लेकिन हम नतीजों की समीक्षा करेंगे’.

बीजेपी में नाराज़गी

एक-दूसरे बीजेपी नेता ने बताया कि पार्टी के अंदर भी इन दल-बदलुओं को, पार्टी में शामिल किए जाने पर नाराज़गी है.

उन्होंने कहा, ‘कम से कम 95 प्रतिशत दल-बदलू हार गए. इसी वजह से हमने दल-बदलुओं को लिए जाने का विरोध किया था. पार्टी तृणमूल की बी टीम नज़र आने लगी थी’. उन्होंने आगे कहा, ‘बहुत से पुराने बीजेपी नेताओं को टिकट नहीं मिले, जबकि दल-बदलुओं को जगह दी गई. पार्टी ने अपने काडर की बात नहीं सुनी. ये तो होना ही था’.

महत्वपूर्ण ये है कि केंद्री मंत्री अमित शाह ने, दल-बदलुओं को ख़ूब आगे बढ़ाया था, जिसे पार्टी काडर्स के बीच बहुत पसंद नहीं किया गया.

तीन सीनियर टीएमसी दल-बदलू- मुकुल रॉय, शुभेंदु अधिकारी और सोवन चटर्जी- जिन पर शारदा चिट फंड घोटाले, और नारद स्टिंग केस में शामिल होने का आरोप लगाया जाता है- बीजेपी में महत्वपूर्ण पदों से नवाज़े गए हैं.

जहां रॉय को कुछ महीने पहले, बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद दिया गया था, पूर्व मंत्री और पूर्व कोलकाता मेयर चटर्जी को कोलकाता ज़ोन में पार्टी पर्यवेक्षक बनाया गया था.

अधिकारी को, जो दिसंबर में बीजेपी में शामिल हुए थे, अहम असेम्बली चुनावों से पहले पार्टी के स्टार प्रचारक के तौर पर आगे बढ़ाया गया था.

बीजेपी के एक शीर्ष नेता ने, नाम छिपाने की शर्त पर कहा, ‘अमित शाह पार्टी के पुराने लोगों पर नहीं, बल्कि सभी दल-बदलुओं पर निर्भर कर रहे थे. वो हमेशा कुछ-एक दल-बदलुओं को, मीटिंग के लिए दिल्ली बुलाते थे और चुनावी रणनीति तय करते थे, जबकि हमें नज़रंदाज़ किया जाता था. इन दल-बदलुओं ने पार्टी के भीतर, अपने अलग गुट बना लिए थे, जैसा बीजेपी में कभी होता नहीं है. उन्होंने हमारे प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष की भी उपेक्षा की’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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