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Thursday, 18 April, 2024
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भायपो का उदय- भतीजे अभिषेक बनर्जी के लिए ममता की हैट्रिक का क्या मतलब हो सकता है

अभिषेक बनर्जी को इस चुनाव में, एक अहम भूमिका निभाते हुए देखा गया है. तृणमूल ने साउथ परगना में 31 में से 29 सीटें जीती हैं, जिसे अभिषेक का गढ़ माना जाता है.

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कोलकाता: ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के, पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने के साथ ही, मुख्यमंत्री की भविष्य की योजनाओं को लेकर, सरसराहट शुरू हो गई है.

पार्टी के भीतर, ये बात चल रही थी कि इस चुनाव से, ममता के भतीजे और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी के लिए, तृणमूल कांग्रेस में और ऊपर उठने का रास्ता साफ हो जाएगा, क्योंकि ममता अब अपना ध्यान, राष्ट्रीय स्तर पर लगा सकती हैं.

अभिषेक को इस चुनाव में, एक अहम भूमिका निभाते हुए देखा गया है. तृणमूल ने साउथ परगना में 31 में से 29 सीटें जीती हैं, जिसे अभिषेक का गढ़ माना जाता है. उन्हें झारग्राम ज़िले का भी ज़िम्मा दिया गया था, जहां सभी चार सीटों पर बीजेपी का सफाया हुआ है.

33 वर्षीय अभिषेक बनर्जी 2014 में सांसद बने थे. एक दशक से भी कम में, इस एमबीए ग्रेजुएट का राज्य में, तेज़ी से क़द बढ़ते हुए देखा गया है. सक्रिय राजनीति में एक दशक से भी कम में, उनकी बढ़ती ताक़त की वजह से, ममता को विपक्ष के ताने सुनने पड़े हैं, कि वो वंशवाद की राजनीति को आगे बढ़ा रही हैं, और उन्हें अपनी पार्टी के अंदर भी, कुछ नाराज़गी झेलनी पड़ी है.

फिर भी, ममता बेफिक्र रही हैं. तृणमूल कांग्रेस सदस्य अब खुलकर, अभिषेक के बंगाल में पार्टी का भविष्य होने की बात कर रहे हैं. ज़्यादा सावधानी के साथ वो ये भी कहते हैं, कि जो लोग उनकी तरक़्क़ी के ख़िलाफ थे, वो भी अब लाइन पर आ गए हैं.

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एक वरिष्ठ तृणमूल नेता ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा कि वो अब ‘अभिषेक को वास्तव में तृणमूल कांग्रेस के, प्रदेश प्रमुख के तौर पर देखते हैं’.

नेता ने आगे कहा, ‘अभी तक अधिकारिक रूप से कोई ऐलान नहीं हुआ है. लेकिन दीदी अब राष्ट्रीय राजनीति पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित करेंगी. हमें राष्ट्रीय विपक्ष के अपने मित्रों की ओर से, बहुत से संदेश हासिल हुए हैं. वो चाहते हैं कि दीदी मोदी-शाह के ख़िलाफ लड़ाई की अगुवाई करें. ऐसे परिदृश्य में अभिषेक को, इस दायित्व को आगे बढ़ाना होगा’.

रविवार की जीत के बाद, ममता ने भी एक संभावित इशारा कर दिया, कि वो अपना ध्यान पश्चिम बंगाल से बाहर लगा सकती हैं.

उन्होंने कहा, ‘बंगाल ने भारत को, इंसानियत को, और लोकतंत्र को बचाया है. हम यहां सभी को मुफ्त टीके लगवाएंगे, और मैं मांग करूंगी कि केंद्र को भारत के 140 करोड़ लोगों का मुफ्त टीकाकरण करना चाहिए’. उन्होंने आगे कहा, ‘अगर ऐसा नहीं होता है, तो मैं गांधी मूर्ति के पास, एक अहिंसात्मक आंदोलन शुरू करूंगी’.


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एक अग्रणी भूमिका अपनाना

पार्टी काडर और लोगों के बीच अभिषेक की ताक़त, उस समय स्पष्ट हो गई थी, जब उन्हें तृणमूल के ढांचे में ममता के बाद, दूसरा महत्वपूर्ण स्टार-प्रचारक बनाया गया.

बंगाल में चुनाव को कवर करते हुए, इस रिपोर्टर ने अलग अलग चुनाव क्षेत्रों में, सैकड़ों बैनर और पोस्टर ऐसे देखे, जिनमें उम्मीदवारों के साथ साथ अभिषेक की तस्वीर भी थी. उनके पोस्टर सड़कों और यहां तक कि पार्टी दफ्तरों में भी देखी जा सकते थे.

ये भी उस बदलाव का संकेत है, जो लाया जा रहा है. 2011 के बाद से, जब ममता पहली बार सत्ता में आईं, तो ये सिर्फ उनके फोटो थे, जो तृणमूल दफ्तरों में प्रमुख रूप से, और अहम रास्तों पर देखे जाते थे.

2016 में, जब तृणमूल कांग्रेस फिर सत्ता में आई, तो अभिषेक को अस्ली ‘मैच विजेता’ के तौर पर उभारा गया. जब ममता और उनकी मंत्री परिषद के 41 सदस्यों ने शपथ ली, तो रेड रोड का वो स्थल डायमंड हार्बर के युवा सांसद के, बैनर्स और पोस्टर्स से भरा हुआ था.

2019 में वो कुछ समय के लिए पृष्ठभूमि में चले गए, चूंकि पुरूलिया, बांकुरा, और पश्चिम मिदनापुर ज़िलों में, जहां के प्रभारी अभिषेक थे, बीजेपी की व्यापक जीत ने ममता को थोड़ा विचलित कर दिया था. एक बड़ी दुर्घटना और कुछ राजनीतिक कारणों ने, अभिषेक को दूर रखने में एक अहम रोल निभाया था, लेकिन उन्होंने पहले से बड़ी भूमिका में वापसी की.

इस चुनाव में, मार्च में ममता कथित रूप से, एक संदिग्ध दुर्घटना में घायल हो गईं थीं (तृणमूल का दावा है कि वो एक हमला था), और 14 मार्च से 26 अप्रैल तक, उन्होंने अपना पूरा प्रचार व्हीलचेयर पर बैठकर किया.

उनकी गतिविधियां सीमित हो जाने के कारण, ये अभिषेक ही थे जो एक चुनाव क्षेत्र से उड़ान भरकर दूसरे में जाते थे, और एक दिन में कम से कम पांच-छह रैलियां करते थे.

एक वरिष्ठ तृणमूल नेता ने कहा, कि चुनाव से जुड़े बहुत से फैसले उन्होंने ही लिए, क्योंकि ममता बनर्जी मोदी-शाह के धुंआधार प्रचार से निपटने में व्यस्त थीं.

रविवार को एक ट्वीट में, तृणमूल सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डेरेक ओब्रायन ने, अभिषेक को एक उत्साही और समर्पित नेता क़रार दिया.

प्रचार के दौरान दीदी के एक सबसे क़रीबी सहयोगी, और राज्य के शहरी विकास मंत्री फरहाद हकीम ने दिप्रिंट से कहा, कि अभिषेक ‘तृणमूल कांग्रेस का भविष्य हैं’. विपक्ष के अभिषेक को ‘वंशवादी’ बताने का जवाब देते हुए, उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि इसे वंशवाद की राजनीति कहना चाहिए. युवा विंग को संभालने के लिए युवा नेता तो सामने आएंगे ही. प्रमुख युवा नेताओं के बीच, सुवेंदु (अधिकारी, जो अब बीजेपी के साथ हैं) के बाद, जो वैसे भी ग़द्दार साबित हुए, अगले नेता अभिषेक ही हैं’..

‘मशाल को आगे बढ़ाना ही है. अगली पीढ़ी से कोई न कोई उभरेगा ही’.

भतीजे का उदय

शीर्ष पार्टी सूत्रों ने कहा, कि टीएमसी के भीतर एक मज़बूत ग्रुप था, जो ‘व्यवस्थित तरीक़े से’ उन्हें लीडर के तौर पर उभार रहा था, और मामलों के शीर्ष पर ला रहा था.

एक अन्य तृणमूल कांग्रेस नेता ने कहा, ‘एक पुराने सांसद जिन्होंने कुछ महीने पहले अभिषेक को, एक ‘हक़दार वंशवादी’ कहा था, अब हर समय उनकी तारीफ करते देखे जा रहे हैं. यही बदलाव है, और उनकी तरक़्क़ी की योजना बन गई है’.

नेता ने आगे कहा, ‘अब, जब दीदी ने अपनी सरकार और अपनी ज़मीन फिर से बचा ली है, तो उन्हें मोदी के खिलाफ, एक अकेले ताक़तवर विपक्षी चेहरे के तौर पर उभारा जाएगा. उनके राष्ट्रीय स्तर के मंसूबे होंगे, और पश्चिम बंगाल तृणमूल कांग्रेस की कमान, अभिषेक के हाथों में सौंप दी जाएगी. ये सिर्फ कुछ समय की बात है’.

कुछ समय पहले अफवाहें थीं, कि अभिषेक को उप-मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, या कैबिनेट में कोई महत्वपूर्ण विभाग दिया जा सकता है. लेकिन, ममता की कोर कमेटी के एक शीर्ष नेता ने, इस ख़बर को ख़ारिज कर दिया, हालांकि साथ ही उन्होंने स्वीकार किया, कि अभिषेक को भविष्य में पार्टी में प्रदेश स्तर पर, नेतृत्व की भूमिका दी जा सकती है.

नेता ने कहा, ‘उन्होंने तो चुनाव भी नहीं लड़ा. उन्हें कैबिनेट में शामिल किए जाने का सवाल ही नहीं है. लेकिन हम अपेक्षा कर रहे हैं, कि वो जल्द ही दायित्व को आगे बढ़ाएंगे. इस बारे में कोई दो राय नहीं हैं’.

‘इससे दल-बदल और बढ़ेगा’

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, अभिषेक के नेतृत्व में आने से, पार्टी में दल-बदल और बढ़ेगा, जिसके बहुत से सदस्य विधान सभा चुनावों से पहले, बीजेपी में शामिल हो गए थे.

एक राजनीतिक विश्लेषक बिश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा, ‘तृणमूल कांग्रेस की स्थापना किसी विचारधारा पर नहीं हुई थी. पार्टी सीपीएम सरकार को बाहर करने के लिए वजूद में आई थी. उसके बाद से ममता बनर्जी ने चुनाव जीते, और लोकप्रिय बनी रहीं. लेकिन उनके भतीजे के साथ ये बात नहीं है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘आठ साल सक्रिय राजनीति में रहने के बाद, अभिषेक का अब पार्टी पर क़ब्ज़ा होने जा रहा है. पार्टी के नेता निजी तौर पर स्वीकार करते हैं, कि अभिषेक का तरीक़ा उनकी बुआ से बिल्कुल अलग है. उन्होंने पहले ही अपने आसपास एक गुट बना लिया है, और कुछ मौक़ापरस्त उन्हें घेरे रहते हैं. लेकिन तृणमूल के पास कुछ वफादार और ईमानदार नेता हैं, जो भविष्य में पार्टी के साथ जुड़े नहीं रह पाएंगे’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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