रायपुर: कोविड की दूसरी लहर ने देश भर को चपेट में लिया हुआ है और छत्तीसगढ़ जो उन पांच राज्यों में है, जिनका देश भर के एक्टिव मामलों में 65 प्रतिशत योगदान है, फिलहाल अस्पतालों में बिस्तरों की कमी से दोचार है और सूबे की राजधानी रायपुर भी इससे जूझ रही है.
छत्तीसगढ़ सरकार के आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक महीने में प्रदेश में मौतों की संख्या 17 गुना बढ़ गई है. रोज़ाना मौतों की संख्या जो 16 मार्च को 8 थी, 16 अप्रैल को बढ़कर 138 पहुंच गई. अकेले अप्रैल में मौतों की संख्या पांच गुना बढ़ गई है- 1 अप्रैल को 25 मौतों से, 16 अप्रैल तक ये 138 हो गई.
छत्तीसगढ़ की कोविड संख्या एक भयावह तस्वीर पेश करती है, उधर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव का कहना है कि ऊंची मृत्यु दर का कारण देर से अस्पताल में भर्ती कराना है. देव ने दिप्रिंट से कहा, ‘30 प्रतिशत मौतें अस्पताल में भर्ती के 24 घंटे के भीतर हो रही हैं और अन्य 10 प्रतिशत 72 घंटे के अंदर हो रही हैं’.
उन्होंने कहा, ‘ये लगातार देखा जा रहा है. लोग होम आइसोलेशन पसंद करते हैं और उन्हें लगता है कि वो अस्पतालों से बेहतर है. वो ये नहीं समझ पाते कि जब ऑक्सीजन लेवल गिरता है तो वो बहुत तेज़ी से गिरता है और अस्पताल में देर से जाना जानलेवा साबित होता है. 30 प्रतिशत मौतें अस्पताल पहुंचने के 24 घंटे के भीतर हो रही हैं और अन्य 10 प्रतिशत अस्पताल पहुंचने के 72 घंटे के अंदर हो रही हैं. ऐसा निश्चित ही देर से अस्पताल पहुंचने के कारण हो रहा है’.
‘सभी डॉक्टरों का विचार है कि ये एक अलग म्यूटेंट है, जो पिछली लहर वाले वायरस जैसा नहीं है. इस बार युवा और बच्चे भी प्रभावित हो रहे हैं, जो पिछली बार प्रभावित नहीं थे. 45 वर्ष से कम आयु वर्ग में, इस बार मृत्यु दर 25 प्रतिशत है’.
देव ने इस बात से इनकार किया कि सरकार लोगों को बीमारी की घातकता के बारे में ठीक तरह से अवगत कराने में नाकाम रही है.
उन्होंने कहा, ‘लोगों के बीच बीमारी की गंभीरता के बारे में जानकारी फैलाने में कोई कोताही नहीं रही है. सरकारी एजेंसियों और मीडिया ने बार-बार ये बताने की कोशिश की है कि इसे हल्के में न लें. लेकिन समस्या ये है कि बहुत से मामले बिना लक्षण वाले हैं. इसलिए ये अहसास रहता है कि चिंता की कोई बात नहीं है. हो सकता है कि लोगों के मन में ये धारणा बन गई हो कि ये जीवन के लिए इतना हानिकारक नहीं है’.
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‘बाद में समझ आई ढिलाई’
छत्तीसगढ़ सरकार की इस बात को लेकर भी आलोचना हुई है कि उसने रोड सेफ्टी सीरीज़ को हरी झंडी दी- मार्च में हुई एक क्रिकेट सीरीज़, जिसमें सचिन तेंदुलकर और ब्रायन लारा जैसे दिग्गज़ों ने हिस्सा लिया था.
ये पूछे जाने पर कि क्या सरकार की तरफ से ढिलाई बरती गई क्योंकि उसने महामारी के दौरान क्रिकेट मैच आयोजित कराने का फैसला किया, मंत्री ने कहा कि पीछे मुड़कर देखने पर लग सकता है कि सरकार की ओर से कुछ ढिलाई रही होगी लेकिन ये कहना मुश्किल है कि टूर्नामेंट की वजह से मामलों की संख्या में इज़ाफा हुआ.
उन्होंने कहा, ‘ये कहना मुश्किल है कि एक क्रिकेट मैच से मामलों में उछाल आया. उस समय सकारात्मकता दर 1 से नीचे थी, इसलिए लोगों तथा सरकार को लग रहा था कि मामलों में कमी आ रही है. और अगर हम इस टूर्नामेंट को एक खास तरह से आयोजित कर सकें, तो उससे लोगों का उत्साह बढ़ेगा. लेकिन ये उछाल टूर्नामेंट के साथ आई है और कुछ खिलाड़ी भी इससे संक्रमित हुए. इसलिए ये साथ-साथ हुआ है’.
लेकिन, उन्होंने ये भी कहा कि अकेले क्रिकेट मैचों को दोष नहीं दिया जा सकता. उन्होंने कहा, ‘हम कुंभ आयोजित कर रहे हैं, चुनावी रैलियां कर रहे हैं और दूसरे धार्मिक आयोजन कर रहे हैं, जहां लाखों लोग हिस्सा ले रहे हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि ये आयोजन सुपर स्प्रैडर घटनाएं बन सकते हैं. लेकिन अगर आप सिर्फ क्रिकेट मैच देखते हैं, तो आपको ये भी देखना होगा कि दिल्ली, महाराष्ट्र या उत्तर प्रदेश में कोई क्रिकेट मैंच नहीं था. वहां भी मामलों में उछाल देखा जा रहा है. लेकिन पीछे मुड़कर देखने पर, यकीनन हम कह सकते हैं कि ढिलाई हुई है और कोई इसकी अपेक्षा नहीं कर रहा था, हालांकि हमने कहा था कि दूसरी लहर के लिए तैयार रहना चाहिए’.
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आईसीयू बेड्स की कमी
देव ने इस बात को माना कि सूबे में आईसीयू बेड्स की कमी है, जिससे संकट और बढ़ रहा है.
उन्होंने कहा, ‘मुख्य कमी आईसीयू बेड्स की है और हमारे पास तत्काल रूप से कुछ करने की गुंजाइश भी नहीं है. संकट का एक कारण ये भी है कि मरीज़ कुछ विशेष अस्पतालों में जाना चाहते हैं, चाहे वो रायपुर का एम्स हो या ब्रैम (भीमराव आंबेडकर मेमोरियल) अस्पताल’.
उन्होंने आगे कहा, ‘राज्य के आधे आईसीयू बेड्स अकेले रायपुर में हैं. वो एक बड़ी समस्या है और हम 1,000 अतिरिक्त आईसीयू बेड्स की मंज़ूरी लेने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन आज जो ज़रूरत है, हम उससे 20-30 दिन पीछे हैं’.
हालांकि राज्य में अभी ऑक्सीजन की कमी नहीं हुई है, लेकिन उसे जम्बो सिलिंडर्स की कमी का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा, ‘हम तरल ऑक्सीजन के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक हैं. हमारे यहां अस्पतालों में ऑक्सीजन बनाने वाले प्लांट्स हैं, जो अब काम आ रहे हैं. कमी दरअसल ऑक्सीजन के बड़े सिलिंडरों की है और यूनिट्स भी नए सिलिंडर्स सप्लाई नहीं कर पा रही हैं. संकट दरअसल सप्लाई पाइपलाइन का है, चाहे वो जम्बो सिलिंडर्स हों या वैक्सीन्स हों’.
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‘केंद्र को वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत’
कोविड के बढ़ते मामलों के बीच, राज्य सरकार टीकाकरण को लेकर, केंद्र के साथ तकरार में उलझी हुई है. देव ने कहा कि समय की ज़रूरत ये है कि राजनीति को किनारे रखा जाए और केंद्र की ओर से वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाया जाए.
उन्होंने कहा, ‘हमें कहना चाहिए कि हम पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं और हम उत्पादन को बढ़ा रहे हैं’.
उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने ये कभी नहीं कहा कि केंद्र की ओर से, छत्तीसगढ़ को दी जा रही वैक्सीन्स की सप्लाई में कमी है. मैं केवल ये कह रहा हूं कि योजना ऐसी होनी चाहिए कि वैक्सीन उन राज्यों को दी जाए जिन्हें उसकी ज़रूरत है. आबादी के हिसाब से उसे बराबर बांटा जाए और उन राज्यों को थोड़ी अतिरिक्त दिया जाए जो बुरी तरह प्रभावित हैं.’
उन्होंने ये भी कहा कि केंद्र को, वैक्सीन उत्पादन की सीमित क्षमता पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. उनका ये भी कहना था कि ‘सच्चाई ये है कि उत्पादन क्षमता सीमित है और जो उत्पादन हो रहा है, उसी को केंद्र सप्लाई पाइपलाइन के ज़रिए आगे बढ़ा रहा है. लेकिन वो हमें वही दे सकते हैं जो उपलब्ध है, इसलिए हमें चर्चा इस बात पर करनी चाहिए कि देश में वैक्सीन्स के उत्पादन को कैसे बढ़ाया जाए’.
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