घनौर/राजपुरा: पंजाब सरकार ने आख़िरकार किसानों को अनाज ख़रीद के बदले सीधे भुगतान की मंज़ूरी दे दी है, लेकिन आशंका व्यक्त की जा रही है कि केंद्र सरकार के विचाराधीन, एक और कृषि विपणन सुधार, भू-अभिलेख एकीकरण की वजह से इसका प्रभाव कम हो सकता है.
सुधार के तहत, अनाज का भुगतान किए जाने से पहले, किसानों को सबूत पेश करना होगा, कि उनके पास उस प्लॉट पर खेती करने का अधिकार है, जिस पर फसल उगाई गई थी. इसका अर्थ भू-अभिलेख से है जो स्वामित्व, पट्टानामा, या उपक्रम को साबित करते हों.
सुधार का आशय ख़रीद प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए, ऐसे व्यवहार पर रोक लगाना है, जैसे कि दूसरे राज्यों के किसान ऊंची क़ीमतों के लालच में, अपना गेहूं और धान पंजाब में लाकर बेचते हैं.
माना जाता है कि पंजाब में 50 प्रतिशत किसान, अपनी ज़मीन को पट्टे पर दे देते हैं, जो मुख्य रूप से मौखिक समझौते पर आधारित होता है.
पंजाब में क़ानूनी प्रावधानों के तहत, पट्टेदारों को अनुमति होती है, कि अगर उन्होंने किसी प्लॉट पर निर्धारित वर्षों तक खेती की है, तो वो उस प्लॉट पर स्थाई पट्टे का दावा कर सकता है, या नाममात्र दर पर मालिकाना हक़ की मांग कर सकता है. इसके साथ ही कुछ भू-स्वामी, पट्टे से हुई आय पर टैक्स भी बचाना चाहते हैं, जिसकी वजह से बहुत कम लोग, इन समझौतों को कागज़ पर लाना चाहते हैं.
इसके नतीजे में किसानों को डर है कि नए सुधार, उन्हें ज़मीन मालिकों की दया के सहारे छोड़ देंगे. अपनी ओर से ज़मीन मालिक, औपचारिक समझौते न होने की बात स्वीकारते हैं, लेकिन वो इसका बचाव करते हैं. उनका कहना है कि वो इसी तरह सुनिश्चित कर सकते हैं, कि ज़मीन के किसी हिस्से पर उनके अधिकारों को, उल्लंघन या चुनौती का सामना न करना पड़े.
केंद्र सरकार चाहती थी कि ये सुधार, चल रहे रबी ख़रीद सीज़न के साथ शुरू हो जाएं, लेकिन पंजाब सरकार की अपील पर, किसानों को छह महीने की मोहलत मिल गई है.
दिप्रिंट से बात करते हुए, पंजाब के खाद्य मंत्री भरत भूषण आशु ने कहा, कि राज्य सरकार इस मामले से अवगत है, और वो सुनिश्चित करेगी कि कोई भी किसान, इस नए सिस्टम से बाहर न रह जाए.
इस बीच किसानों की चिंताओं से, आढ़तिए और कमीशन एजेंट्स भी सहमत हैं, जो डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर शुरू होने से पहले, ख़रीद भुगतान की अदाएगी में बिचौलियों का काम करते थे.
उनका कहना है कि इस प्रावधान से किसान, आढ़तियों के ज़रिए भुगतान की अपेक्षा ज़्यादा नुक़सान में रहेंगे, जिसे इसलिए ख़त्म कर दिया गया, ताकि जोतदारों को शोषित होने से बचाया जा सके. उनका ये भी कहना है कि इससे ज़मीन मालिकों के लिए भी, कुछ समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
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अनेक समस्याएं
राजपुरा स्थित एक किसान गुरमैल सिंह ने, दिप्रिंट को अपनी चिंताओं से अवगत कराया, जब वो दो ट्रॉली गेहूं बेंचने के लिए, अपनी स्थानीय मंडी में आए हुए थे. उन्होंने ये गेहूं 10 एकड़ ज़मीन में उगाए थे, जिसमें से सात एकड़ पट्टे पर है.
उन्होंने कहा, ‘किसान छह महीने तक कड़ी मेहनत करके, पट्टे की ज़मीन पर फसल उगाता है, लेकिन भुगतान के नए सिस्टम में, पैसा ज़मीन के मालिक को चला जाता है. अभी तक, जैसे ही सरकार से पैसा मिलता था, आढ़तिए हमें भुगतान कर देते थे, लेकिन ज़मीन मालिकों के लिए हम ऐसा नहीं कह सकते’.
मंडी में अपना गेहूं बेंचने आए, भेदवाल गांव के शमशेर सिंह ने भी कहा, कि जो मालिक अपनी ज़मीन पट्टेदार किसानों को देते हैं, उन्हें डर रहता है कि अगर वो ज़मीन से जुड़े दस्तावेज़ दे देते हैं, जिन्हें अकसर फर्द या जमाबंदी कहा जाता है, तो जोतदार उनकी ज़मीन के एवज़ में क़र्ज़ ले सकते हैं’.
‘इससे आगे चलकर संपत्ति को लेकर विवाद पैदा हो सकता है. फिर ये भी हो सकता है, कि उन कागज़ों की मदद से किसान, ज़मीन के स्थाई पट्टे की मांग कर सकता है. इसलिए ज़मीन मालिक हमें किसी भी सूरत में, ज़मीन के लिए ऐसे कोई कागज़ नहीं देंगे, जिनमें हमारा नाम होगा’.
चंडीगढ़ स्थित एक स्वायत्त शोध संस्थान, सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट के, प्रोफेसर सूचा सिंह ने कहा कि पंजाब के क़ानून के तहत, ‘अगर किसी का ज़मीन के किसी हिस्से पर, छह साल से अधिक समय तक क़ब्ज़ा या पट्टा है, तो उन्हें स्थायी पट्टे का अधिकार मिल जाता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए कोई ज़मीन मालिक लिखकर नहीं देगा, कि उसकी ज़मीन कोई दूसरा जोत रहा है’.
पंजाब भूमि राजस्व अधिनियम के अनुसार, ज़मीन के टुकड़े के मालिक को ख़ुद काश्तकार कहा गया है, चाहे वो ख़ुद जोत रहा हो या नहीं. कुछ लोगों का कहना है कि इस फैक्टर की वजह से भी, ज़मीन मालिक समझौतों को लिखित रूप देने से बचते हैं.
फिर, 2020 में पंजाब सरकार एक और क़ानून ले आई, जिसके तहत छोटे और सीमांत किसानों का, अगर ज़मीन के किसी टुकड़े पर 12 साल से अधिक समय से क़ब्ज़ा है, और वो उसपर खेती कर रहे हैं, तो पहले से निर्धारित उचित मूल्य पर, वो उन्हें आवंटित कर दिया जाएगा.
पंजाब मंडी बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा, कि ‘राज्य में ज़्यादातर लीज़ समझौते, आमतौर पर मौखिक होते हैं, ये कागज़ पर नहीं होते, चूंकि ज़मीन मालिक इन्हें रिकॉर्ड पर नहीं लाना चाहते, क्योंकि इससे वो पट्टे की ज़मीन के किराए पर, टैक्स देने से बच जाते हैं’.
अधिकारी ने नाम न बताते हुए आगे कहा, ‘सबसे अहम बात ये है, कि बहुत से किराया क़ानूनों के तहत, पट्टेदार इन रिकॉर्ड्स को दिखा सकता है और फिर कुछ साल के बाद, इनकी मदद से ज़मीन के मालिक़ाना हक़ का दावा कर सकता है.’
अनिल नंदा, जो राजपुरा में अपनी 25 एकड़ ज़मीन में से 17 एकड़ पट्टे पर देते हैं, ने कहा कि उनके जैसे ज़मीन मालिकों के लिए, ये डर बहुत वास्तविक है.
उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे दो बेटे कनाडा में रहते हैं, और तीन बेटियां ऑस्ट्रेलिया में हैं. अपनी क्षमता के हिसाब से, मैं आठ एकड़ पर ख़ुद खेती करता हूं, और बाक़ी पट्टे पर देता हूं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अगर मैं पट्टे का लिखित सबूत, या ज़मीन का रिकॉर्ड पट्टेदार को देता हूं, तो वो उसे अपनी मिल्कियत दिखाकर, उसके एवज़ में बहुत से लोन ले सकता है. अगर मेरी मौत हो जाती है, और पट्टेदार ज़मीने के स्वामित्व या स्थाई पट्टे दावा कर देता है, तो विदेशों में बैठे मेरे बेटे और बेटियां, ज़मीन पर अपना अधिकार कैसे हासिल करेंगे?’
पंजाब खाद्य मंत्री आशु ने बताया कि एक और मुद्दा है, जो नए सुधारों के तहत पेचीदगियां पैदा कर सकता है. उन्होंने कहा, ‘कभी कभी एक किसान कई मालिकों से ज़मीन पट्टे पर लेता है, जिससे मामला और जटिल हो जाएगा, और एमएसपी के भुगतान के लिए, उन्हें ज़मीन के मालिकों पर निर्भर रहना होगा’.
इस बीच, आढ़तियों का मानना है कि नया सिस्टम, ख़रीद तंत्र के कामकाज को चोट पहुंचाता है, जिसे वो एक ‘स्वतंत्र’ पक्ष के तौर पर सुगम बनाते थे.
घनौर मंडी के एक आढ़तिए परमजीत सिंह ने कहा, ‘मेरे गांव में खेती की जाने वाली 20-25 प्रतिशत ज़मीन पट्टे की है.
उन्होंने कहा, ‘ज़मीन के रिकॉर्ड्स के कागज़ात पट्टेदार को देना, बहुत दूर की बात है’. उन्होंने आगे कहा कि ज़मीन के बहुत से कागज़ात पीढियों पुराने हैं. उन्होंने ये भी कहा कि ‘मालिकाना हक़ रखने वाले बहुत से लोग (जैसे दादा) गुज़र चुके हैं, लेकिन उनका नाम अभी भी चला आ रहा है’.
परमजीत सिंह ने कहा, ‘नए नियम के तहत, भुगतान मालिक के पास जाएगा, और उनमें बहुत से एनआरआई हैं, इसलिए छोटे किसान अपने भुगतान के लिए उनके पीछे कैसे जाएंगे? कभी कभी हम ज़मीन को पट्टे पर देने में भी सहायता करते हैं, इसलिए किसान और ज़मीन मालिक दोनों, अपना पैसा हम से लेते हैं’.
‘अगर किसान के खाते में सीधे भुगतान आता है, और वो इसे आगे देने से मना कर देता है, तो मालिक के लिए आगे से ज़मीन को लीज़ पर देना मुश्किल हो जाएगा. अगर भुगतान मालिक को चला जाता है, तो उपज भुगतान के अपने हिस्से के लिए, किसान को उसके पीछे भागना पड़ेगा. लेकिन, हम एक स्वतंत्र इकाई हैं और ज़मीन मालिक तथा किसान दोनों को, रोज़मर्रा की ज़रूरत और क़र्ज़ आदि के लिए, हमारे पास आना होता है, और हम तुरंत उनकी बक़ाया रक़म का भुगतान कर देते हैं.’
आढ़तियों के अनुसार, ज़्यादातर किसान पट्टे की ज़मीन का आंशिक भुगतान पहले कर देते हैं, और बाक़ी तब अदा करते हैं, जब उनकी फसल का पैसा आता है. आढ़तियों ने कहा कि अगर मालिकों को पैसा मिल जाता है, तो वो बक़ाया राशि काट लेंगे, और किसानों के लिए मामूली रक़म ही बचेगी.
पटियाला के छपार गांव के एक आढ़तिए, तरसेम सिंह ने कहा ‘पंजाब में ज़मीन की ज़्यादातर काश्तकारी जटिल है, क्योंकि पट्टे के तहत की जा रही ज़मीन की खेती पंजीकृत नहीं है’.
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‘सुधार की ज़रूरत’
विशेषज्ञ सूचा सिंह गिल ने कहा, ‘अगर फसल बिक्री के लिए ज़मीन के रिकॉर्ड्स दिखाना अनिवार्य कर दिया गया, तो एक चौथाई से अधिक खेती की ज़मीन पर संकट आ जाएगा’. उन्होंने आगे कहा कि राज्य में, भूमि के मौजूदा रिकॉर्ड सिस्टम को सुधारने की ज़रूरत है.
उन्होंने आगे कहा, ‘अगर वो इस नए सुधार को लागू करना चाहते हैं, तो राज्य सरकार को एक नया टेनेंसी अधिनियम पारित करना होगा’.
उनका कहना था कि राज्य सरकार के पास भी, पट्टे पर दी गई ज़मीन का रिकॉर्ड नहीं है, सिर्फ ज़मीन के स्वामित्व का रिकॉर्ड है. उन्होंने ये भी कहा, ‘अगर नए सुधारों को लागू किया जाना है, तो इसमें तुरंत बदलाव किए जाने की ज़रूरत है’.
आशु ने कहा कि उन्होंने ‘केंद्र सरकार के साथ इस मामले को उठाया है’. उन्होंने ये भी कहा, ‘उन्होंने हमारी चिंता को समझा है, और इसीलिए उन्होंने हमारे लिए मियाद बढ़ाई है. हम उचित प्रक्रिया से सिस्टम को अपडेट करेंगे, जिससे सुनिश्चित हो जाए कि कोई भी किसान, मौजूदा ढांचे से बाहर रहकर ख़ुद को अलग थलग महसूस न करे’.
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