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Thursday, 21 November, 2024
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भाषाई मैपिंग, दो-भाषा पद्धति- मातृभाषा में पढ़ाई शुरू कराने की कैसे योजना बना रही है सरकार

शिक्षा मंत्रालय ने एक दस्तावेज एसएआरटीएचएक्यू (SARTHAQ) जारी किया जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने को लेकर एक पूरा दिशानिर्देश सामने रखता है.

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नई दिल्ली: भाषा के आधार पर मैपिंग कराना, विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करना और दो-भाषा पद्धति को अपनाना- ये कुछ ऐसे तरीके हैं, जिनके जरिये शिक्षा मंत्रालय (एमओई) छात्रों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाई कराने संबंधी अपनी योजना को आगे बढ़ाने की तैयार कर रहा है.

पिछले साल जारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक छात्रों के लिए मातृभाषा में शिक्षा संबंधी प्रस्ताव पर जोर दिए जाने के बाद छात्रों और अभिभावकों दोनों की ओर से इसमें काफी रुचि दिखाई गई थी.

हालांकि, इस विचार को लेकर यह सवाल भी उठे थे कि व्यापक महानगरीय आबादी वाले स्कूलों में शिक्षा का माध्यम क्या होगा. कुछ माता-पिता ने इस बारे में चिंता जताई कि क्या यह कदम अंग्रेजी सीखने को हतोत्साहित करेगा.

ऐसी सभी शंकाएं दूर करने के लिए शिक्षा मंत्रालय योजना पर अमल के संबंध में और अधिक जानकारियों के साथ सामने आया है. मंत्रालय ने गुरुवार को एक दस्तावेज एसएआरटीएचएक्यू (SARTHAQ) जारी किया जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने को लेकर एक पूरा दिशानिर्देश सामने रखता है.

इस दस्वावेज में शामिल एक अहम बिंदु यही है कि छात्रों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा कैसे प्रदान की जाएगी.


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भाषाई आधार पर मैपिंग

दस्तावेज संस्थानों को निर्देशित करता है कि वे भाषाई मैपिंग के साथ शुरुआत करें ताकि यह पता लगाया जा सके कि किस क्षेत्र में व्यापक स्तर पर कौन-सी भाषा बोली जाती है और जिसे छात्र समझते हैं.

दस्तावेज में सुझाया गया है, ‘चयनित क्षेत्रों में भाषा के आधार पर मैपिंग एकदम आसान फॉर्मेट में की जा सकती है जैसे (यह पता लगाना) उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों द्वारा कितनी भाषाएं बोली जाती हैं, छात्रों के लिहाज से इनमें कौन-सी भाषा सबसे ज्यादा उपयोगी है, कितने छात्र इनमें से एक से ज्यादा भाषाएं बोल लेते हैं, उस क्षेत्र के शिक्षकों द्वारा बोली जाने वाली भाषा/भाषाएं कौन-सी हैं आदि.’

अंतर-राज्यीय सीमा क्षेत्र, जहां बड़ी संख्या प्रवासी आबादी की होती है और दूरदराज के जनजातीय इलाकों में इस तरह की मैंपिंग पहले कराई जानी चाहिए.

दस्तावेज में कहा गया है, ‘इन क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षा का माध्यम बच्चों द्वारा बोली जाने वाली स्थानीय/क्षेत्रीय भाषा हो सकती है. उदाहरण के तौर पर आंध्र प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में कुछ-कुछ जगहों पर तमाम ओडिया-भाषी लोग, महाराष्ट्र के सीमावर्ती क्षेत्रों में कोंकणी भाषी और राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में गुजराती भाषी लोगों की आबादी मिलेगी.’

इसमें कहा गया है, एक बार भाषाओं की पहचान हो जाए तो फिर इनमें पाठ्यक्रम विकसित किया जाना चाहिए. फिर राज्यों को ऐसे प्रशिक्षित शिक्षक खोजने होंगे जो कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को क्षेत्र की स्थानीय भाषा में पढ़ा सकें. एक बार ऐसे शिक्षक ढूंढ़ लिए जाने के बाद छात्रों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने की पहल की जा सकती है.


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दो-भाषा सिद्धांत

एक बार प्राथमिकता वाले क्षेत्र तय हो जाने पर अन्य स्कूलों में भी मातृभाषा में पढ़ाई की व्यवस्था को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा सकता है.

सरकार ने इसके लिए दो-भाषा वाली पद्धति अपनाने का सुझाव दिया है.

दस्तावेज में कहा गया है, ‘क्षेत्रीय/राज्य भाषा शिक्षा का माध्यम बनी रह सकती है. हालांकि, शिक्षक बच्चों द्वारा घर पर बोली जाने वाली भाषा का इस्तेमाल प्री-स्कूल के बाद से कक्षा के दौरान मौखिक माध्यम के तौर पर कर सकते हैं.’

इसमें शिक्षकों को मातृभाषा और शिक्षण माध्यम के बीच तालमेल स्थापित करने का दिशानिर्देश भी दिया गया है.

इसमें कहा गया है, ‘जहां भी संभव हो शुरुआती सालों में मातृभाषा को पढ़ाई का माध्यम के रूप में अपनाया जा सकता है, जबकि तीसरी कक्षा से धीरे-धीरे राज्य की भाषा कक्षा में शुरुआत की जा सकती है.’

राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से कहा गया है कि जल्द से जल्द नोटिस जारी करके शिक्षकों को बताएं कि वे कक्षा एक से पांच तक के छात्रों को सभी विषय, चाहे भाषा से संबंधित हों या नहीं जैसे कि गणित आदि, दो-भाषा पद्धति के आधार पर पढ़ाना शुरू करें.

दस्तावेज के मुताबिक, ‘इसका मतलब यह होगा कि छत्तीसगढ़ या बुंदेलखंड क्षेत्र में हिंदी की पाठ्यपुस्तकों को लिंक लैंग्वेज के तौर पर छत्तीसगढ़ी या बुंदेलखंडी में मौखिक तौर पर पढ़ाया जा सकता है और धीरे-धीरे कक्षा एक से पांच के बीच बच्चों को हिंदी समझने और बोलना सिखाया जा सकता है. खासकर आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इन क्षेत्रों से ही संबंध रखने वाले शिक्षकों को यह सुनिश्चित करने के लिए चुना जाना चाहिए कि बच्चों की पढ़ाई के लिए उनकी मातृभाषा को साधन बनाया जा सके.’

दस्तावेज में राज्यों को दो-भाषा वाले इस विचार पर अमल के लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करने को भी कहा गया है.

इसके मुताबिक, ‘स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च ट्रेनिंग (एससीईआरटी) विभिन्न क्षेत्रों में मातृभाषा में पढ़ाई के संबंध में छात्रों की जरूरतों का पता लगाने के बाद 2021-22 में इस तरह के प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित करने की शुरुआत करेगा.’

हालांकि, पूर्व में तमाम विशेषज्ञों ने इस पर संदेह जताया है कि मातृभाषा में पढ़ाई की व्यवस्था करना किसी भी तरह से बुद्धिमत्ता पूर्ण विचार है. उनका तर्क है कि ग्लोबल सोसाइटी में जब लोग तेजी से एक-दूसरे से जुड़ रहे हैं तो छात्रों की पढ़ाई के लिए अंग्रेजी की जगह मातृभाषा को तरजीह देना, उन्हें वास्तविक दुनिया की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम नहीं बनाएंगी.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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