कोलकाता: 65 वर्षीय गीता पाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के गृह क्षेत्र दक्षिण कोलकाता, जिसे छोड़कर वह इस विधानसभा चुनाव में पूर्वी मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम से मैदान में उतरी हैं, के भबानीपुर (पहले भोवानीपोरा कहा जाता था) में रहती हैं.
गीता कुम्हार जाति की है और गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां बनाया करती थीं. हालांकि, बढ़ती उम्र के साथ आई बीमारियों के कारण उसका काम धीमा पड़ गया है. लेकिन उसे अब तक स्वास्थ्य साथी कार्ड नहीं मिला है जिसे ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने 2016 में लॉन्च किया था. इसकी वजह से ही बंगाल ने नरेंद्र मोदी सरकार की आयुष्मान भारत बीमा योजना को लागू नहीं किया है.
वह दावा करती है कि ‘दीदी’ की तरफ से 10 साल के शासनकाल के दौरान महिलाओं के लिए घोषित की गई तमाम योजनाओं का उसे कोई लाभ नहीं मिला है. गीता की ही रिश्तेदार सोनिका पाल ने बताया कि राज्य सरकार की एक योजना के तहत आवास अनुदान के लिए उसने कागजात जमा किए थे लेकिन अभी तक कुछ नहीं मिला है.
भबानीपुर में ही रहने वाली सुनीता पाल ने कहा कि वादे के तहत 10 किलो राशन की जगह उसे पांच किलो राशन ही मिल रहा है.
भबानीपुर बाजार में मछली बेचने वाली 45 वर्षीय महिला संगीता कहती है, ‘35 साल हमने वामपंथियों को देखा. हमने ममता के 10 साल का शासन देखा. मोदी को पांच साल देने में बुरा क्या है? लॉकडाउन के दौरान मैं राशन कार्ड के लिए एक से दूसरे कार्यालय भटकती रही लेकिन मुझे यह नहीं मिला.’
लेकिन संगीता की बात बीच में काटते हुए उसका पति कहता है कि ममता ने उनके लिए ‘सब कुछ’ किया है.
बंगाल के कुल मतदाताओं में करीब 49 फीसदी यानी 3.7 करोड़ महिला वोटर हैं और 2011 और 2016 में ममता बनर्जी की चुनावी सफलता का एक बड़ा श्रेय इनकी तरफ से मिले समर्थन को ही जाता है. इसके बदले में मुख्यमंत्री ने एक-एक करके कन्याश्री और रूपाश्री सहित 200 से अधिक महिला केंद्रित योजनाएं शुरू कीं जिसके तहत शिक्षा और विवाह के लिए धन मुहैया कराना, छात्राओं को मुफ्त साइकिल देना, शिक्षा ऋण और बहुत कुछ शामिल है.
लेकिन बंगाल के गांवों और कस्बों की महिलाएं इस ओर इशारा करती है कि योजनाओं पर ठीक से अमल नहीं किया गया और साथ ही योजनाओं का लाभ उपलब्ध कराए जाने के दौरान तृणमूल कांग्रेस के कैडरों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप भी लगाती हैं. उनके मुताबिक इसकी वजह से महिला सशक्तिकरण के मूल विचार को क्षति पहुंची है.
अब, भाजपा महिलाओं पर केंद्रित अपने घोषणापत्र के जरिये लुभाकर ममता की इन ‘मूक मतदाताओं’ को अपने खेमे में लाने की हरसंभव कोशिश कर रही है.
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महिलाएं ममता से छिटक रहीं लेकिन चिंता की वजह नहीं
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के आंकड़े बताते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनावों में बंगाल में 42 फीसदी महिला वोटर ने तृणमूल कांग्रेस को वोट दिया, जो कि 2009 की तुलना में 12 प्रतिशत अधिक था.
2016 के विधानसभा चुनावों में महिलाओं के बीच टीएमसी का वोट शेयर बढ़कर 48 प्रतिशत तक पहुंच गया, जब पार्टी ने सत्ता में शानदार ढंग से वापसी की. जबकि भाजपा केवल तीन सीटें ही जीत पाई. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में महिलाओं के बीच भाजपा का वोट-शेयर बढ़कर 40 प्रतिशत तक पहुंच गया, जब उसने 42 में से 18 सीटें जीतीं, जबकि टीएमसी को 22 सीटों पर जीत हासिल हुई.
दिप्रिंट ने पूर्वी मेदिनीपुर, हावड़ा, हुगली और दक्षिणी 24 परगना आदि जिलों के विभिन्न गांवों और कस्बों और कोलकाता में करीब 100 महिलाओं से बात की. इनमें से लगभग 40 प्रतिशत ने महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर ममता के प्रदर्शन पर नाखुशी जताई. इसका एक बड़ा कारण था योजनाओं पर ठीक से अमल न होना या फिर इनके लाभ के बीच में पार्टी कैडर की संलिप्तता.
लेकिन बाकी 60 प्रतिशत अब भी दो वजहों से ममता के साथ खड़ी नज़र आईं- एक तो वह एक महिला मुख्यमंत्री हैं, और यह भी स्पष्ट है कि उन्होंने इस बार अपनी ‘बंगाल की बेटी’ की पहचान बनाई है, जो इस बात का संकेत है कि उनकी नज़र में भाजपा ‘बाहरी लोगों’ से भरी पार्टी है.
राजनीतिक रूप से ममता बड़ी संख्या में महिला उम्मीदवारों को टिकट देकर अपना महिला वोट बैंक मजबूत करती रही हैं, खासकर 2019 के लोकसभा चुनावों में, जब उनकी पार्टी के उम्मीदवारों में 41 प्रतिशत महिलाएं थीं. इस बार, विधानसभा चुनाव में तृणमूल के कुल 294 उम्मीदवारों में से 50 महिलाएं (17 प्रतिशत) हैं और यही नहीं पार्टी ने मुफ्त राशन घर पहुंचाने और 1.6 करोड़ परिवारों को मासिक नकद प्रोत्साहन का वादा भी कर रखा है.
हालांकि, राज्य में पहली बार सत्ता का स्वाद चखने के लिए ममता को चुनौती दे रही भाजपा ने इन ‘मूक मतदाताओं’ को साधने के लिए मुफ्त बस यात्रा से लेकर मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक कई योजनाओं की घोषणा की है और तृणमूल की तुलना में अधिक नकद प्रोत्साहन का भी वादा कर रही है. उदाहरण के तौर पर हायर सेकेंडरी तक शिक्षा पूरी करने वाली अविवाहित युवतियों को 2 लाख रुपये नकद प्रोत्साहन का वादा किया गया है, जो कि ममता के 25,000 रुपये के वादे से आठ गुना अधिक है.
प्रतिद्वंदी पार्टी की तरफ से महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा भी उठाया गया है और इन मतदाताओं को लुभाने के लिए केंद्र की उज्ज्वला एलपीजी योजना पर भी जोर दिया गया है.
रबीन्द्र भारती यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर बिस्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, ‘ममता ने सरकारी योजनाओं पर अमल में किसी तरह का प्रशासनिक भ्रष्टाचार रोकने के लिए अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को इसमें शामिल किया था. लेकिन जल्द ही वे खुद इस भ्रष्टाचार का हिस्सा बन गए. इसे लेकर लोगों में एक आक्रोश है, हालांकि, ममता के प्रति उनका लगाव अभी भी कम नहीं हुआ है. लेकिन महिलाओं ने भाजपा के घोषणापत्र को गंभीरता से लिया है और यह बदलाव महसूस किया जा सकता है. वे चुपचाप भाजपा को वोट दे सकती हैं, जिसका नुकसान टीएमसी को उठाना पड़ सकता है.’
फैशन डिजाइनर और राज्य भाजपा महिला मोर्चा की प्रमुख अग्निमित्रा पॉल, जो आसनसोल दक्षिण से विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं, ने कहा, ‘महिलाएं अब ममता की बंधुआ वोट बैंक नहीं हैं. वे भाजपा को आजमाना चाहती हैं.’
हालांकि, उलुबेरिया से टीएमसी की सांसद सजदा अहमद ने दिप्रिंट से कहा कि महिला वोट बैंक ममता से छिटक रहा है, यह सब बातें उनके खिलाफ एक ‘दुष्प्रचार’ का हिस्सा हैं.
उन्होंने कहा, ‘दीदी ने महिलाओं के लिए वो काम किए हैं जो आज तक किसी भी नेता ने नहीं किए. वे टीएमसी का चिह्न देखती हैं और दीदी को वोट देती हैं, उन्हें उम्मीदवार को देखने की जरूरत ही नहीं होती है. उनका पूरा समर्थन बरकरार है.’
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वोट अपने पक्ष में कैसे करेंगे
ग्रामीण क्षेत्रों की तमाम महिलाएं कहती हैं कि वे भाजपा को वोट देंगी लेकिन चिंता यह है कि जमीनी स्तर पर पार्टी का कमजोर नेटवर्क शायद इन वोटों को अपने पक्ष में लाने में सक्षम न हो पाए.
जानी-मानी पत्रकार और राजनीतिक पर्यवेक्षक शिखा मुखर्जी ने कहा, ‘भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती इन वोटों को अपने पक्ष में बदलने की है.’
हालांकि, महिला मतदाताओं के बीच असंतोष और निराशा साफ झलकती है. ममता के प्रभावशाली भतीजे अभिषेक बनर्जी के लोकसभा क्षेत्र डायमंड हार्बर में महिला मतदाताओं की शिकायत है कि साइकिल और राशन को छोड़ दें तो महिलाओं के लिए घोषित अन्य योजनाएं धरातल पर उतरी ही नहीं हैं और यहां भी भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है.
पोरोलिया दक्खिन गांव की निवासी 48 वर्षीय रेखा तपस कहती हैं, ‘हमें दीदी से कुछ नहीं मिला…हमारा घर कच्चा है, मैंने आवास योजना के तहत आवेदन किया था लेकिन कोई फंड नहीं मिला और न ही मुझे स्वास्थ कार्ड ही मिला है.’
उसने कहा, ‘सरकार ने सिर्फ सड़कें बनाईं और बत्तियां लगाई हैं. कोई काम नहीं हुआ है; हमारी बेटी को ‘कन्याश्री’ योजना के तहत पैसा नहीं मिला और उसकी शादी भी ‘रूपाश्री’ के पैसे के बिना ही हुई. हमने दीदी को कई बार वोट दिया है, अब हमें मोदी को भी आजमाना चाहिए.’
अपना नाम न बताते वाली एक विधवा महिला ने भी कुछ इसी तरह की राय जाहिर की. वह कहती है कि वादे के उलट उसे विधवा महिलाओं को दी जाने वाली पेंशन का लाभ नहीं मिला है.
उसी गांव में ही रहने वाली सुखी पासी ने राशन और लड़कियों के लिए साइकिल योजना के लिए ममता बनर्जी की प्रशंसा की. इसके साथ ही कहा कि सरकार को अब रोजगार और आवास योजना के तहत अनुदान प्रदान करने को प्राथमिकता देनी चाहिए.
(श्रेयस शर्मा द्वारा संपादित)
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