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Friday, 22 November, 2024
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घोष, रॉय या अधिकारी? बढ़ती चर्चा के बीच BJP नेतृत्व क्यों नहीं करना चाहता CM उम्मीदवार पर कोई बात

पार्टी नेताओं का कहना है, कि टीएमसी बाग़ी सुवेंदु अधिकारी के एक मज़बूत दावेदार के रूप में उभरने के बाद, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के समर्थक, उनका नाम सीएम पद के लिए आगे बढ़ा रहे हैं. इसके अलावा मुकुल रॉय भी हैं.

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नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल विधानसभा के अहम चुनाव बस कुछ महीने दूर हैं, लेकिन बीजेपी हाईकमान ने अभी तक अपने मुख्यमंत्री चेहरे पर फैसला नहीं किया है, जिसकी वजह से पार्टी की प्रदेश इकाई में, इस अहम पद को लेकर सरसराहट शुरू हो गई है.

बीजेपी नेताओं ने दिप्रिंट से कहा, कि चुनावों से पहले मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर, बीजेपी नेतृत्व कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता, चूंकि उससे गुटबाज़ी शुरू हो जाएगी.

फिर भी, कुछ बंगाल बीजेपी नेता अपनी पसंद के सीएम उम्मीदवार के प्रति, खुलकर समर्थन ज़ाहिर कर रहे हैं.

मसलन, प्रदेश पार्टी अध्यक्ष दिलीप घोष के क़रीबी बीजेपी नेता, शीर्ष पद के लिए उनका नाम आगे बढ़ा रहे हैं. इसकी वजह से एक अंदरूनी बैठक में, हाईकमान को इन नेताओं को झिड़कना पड़ा, और इनसे कहा गया कि बीजेपी संसदीय दल के कोई फैसला लेने तक, वो ख़ामोश रहें.

घोष के अलावा, तृणमूल कांग्रेस के दलबदलू सुवेंदु अधिकारी भी सीएम पद के लिए एक ‘मज़बूत दावेदार’ बन कर उभरे हैं, ख़ासकर उनके इस प्रण के बाद, कि वो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को धूल चटाएंगे, जिन्होंने ऐलान किया है कि वो अधिकारी की सीट, नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगी.

दिलीप घोष के लिए खुला समर्थन

पिछले सप्ताह, बीजेपी के बंगाल युवा मोर्चा अध्यक्ष, और बिश्नुपुर सांसद सौमित्र खान ने, मिदनापुर में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, कि दिलीप घोष अगले मुख्यमंत्री होंगे. उन्होंने ये भी दावा किया कि ‘बहुत से लोग उन्हें रोकने की कोशिश कर रहे हैं’.

खान ने कहा था, ‘दिलीप घोष अस्ली नेता हैं. उन्होंने शादी नहीं की है, और उनका कोई परिवार नहीं है. वो कम उम्र से ही संघ के लिए काम करते रहे हैं, और जब उन्हें पश्चिम बंगाल में बीजेपी की ज़िम्मेदारी दी गई थी, तब वहां पार्टी का कोई वजूद नहीं था. उन्होंने दार्जीलिंग से लेकर जंगलमहल तक लड़ाई की है. बहुत से लोग उन्हें रेकने की कोशिश कर रहे हैं. दिलीप घोष एक दिन प्रदेश को चलाएंगे, वो हमारे मुख्यमंत्री होंगे’.

दिप्रिंट से बात करते हुए, ख़ान – जो ख़ुद 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले टीएमसी से बीजेपी में आए- ने कहा, ‘घोष कम से कम दलबदलू नहीं हैं. वो एक ज़मीन से जुड़े हुए नेता हैं, जिन्होंने पार्टी का विस्तार किया है, जबकि दूसरों का सिर्फ एक या दो ज़िलों में प्रभाव है’.

बीजेपी सूत्रों ने बताया का सीएम उम्मीदवार के लिए, खान का घोष के लिए खुला समर्थन, इसलिए भी हो सकता है कि अधिकारी, उनके एक मज़बूत प्रतिद्वंदी के रूप में उभर रहे हैं.

बीजेपी सूत्रों का कहना है, कि ख़ान की टिप्पणियों से पार्टी में बेचैनी पैदा हो गई, और बीजेपी महासचिव तथा बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने, पिछले रविवार एक पार्टी बैठक में, घोष के सामने ही ख़ान को इसके लिए डांट लगाई.

सूत्रों ने आगे कहा कि विजयवर्गीय इसलिए ग़ुस्से में थे, क्योंकि पार्टी नेताओं ने खान के बयान को पसंद नहीं किया, और उन्होंने विजयवर्गीय से इसकी शिकायत की थी.

सूत्रों ने कहा कि बीजेपी के संयुक्त महासचिव शिवप्रकाश, और प्रदेश महासचिव (संगठन) अमिताभ चक्रबर्ती ने भी, एक बैठक में खान को फटकार लगाई. उन्होंने आगे कहा कि ये फटकार इसलिए ज़रूरी थी, कि पार्टी नेताओं के बीच ‘आकांक्षा की लड़ाई’ पर लगाम लगे, चूंकि इससे बंगाल पर क़ब्ज़ा करने के, अमित शाह के लक्ष्य को नुक़सान पहुंच सकता है.

लेकिन, एक बीजेपी नेता ने दिप्रिंट से कहा, कि खान का घोष के नाम को बढ़ावा, अकेले उनके क़दम के तौर पर नहीं देखा जा सकता, और ये घोष के समर्थन के बिना नहीं हो सकता था.

‘हो सकता है कि खान घोष का हिसाब चुका रहे हों,चूंकि कुछ महीने पहले खान ने ख़ुद से ही ज़िला युवा मोर्चा समितियां गठित कर दी थीं, और उनके ज़िला अध्यक्ष भी नियुक्त कर दिए थे.

लीडर ने आगे कहा, ‘लेकिन, घोष ने समितियों को भंग कर दिया, और उनकी लड़ाई दिल्ली पहुंच गई, जिसे फिर विजयवर्गीय ने निपटाया. इसके बाद खान की समझ में आ गया कि घोष अब शक्ति का केंद्र हैं, और उन्होंने घोष का समर्थन करना शुरू कर दिया, हालांकि उन्हें तृणमूल कांग्रेस से बीजेपी में लाने में, मुकुल रॉय का भी हाथ था’.


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‘सीएम उम्मीदवार आगे करने का ‘जोखिम’

बीजेपी सूत्रों ने कहा कि पार्टी इस बात को समझती है, कि अपने चुनाव प्रचार में ममता, ‘सीएम चेहरा’ न होने को मुद्दा बनाएंगी. उन्होंने पहले ही अमित शाह और बीजेपी को बाहरी क़रार दे दिया है, जो ‘बंगाली संस्कृति की रीढ़ तोड़ना चाह रहे हैं’.

लेकिन शाह ने भी ये कहते हुए इसका जवाब दिया था, ‘ममता दीदी, आपको हराने के लिए किसी को दिल्ली से लाने की ज़रूरत नहीं है. आपके सामने, बंगाल का ही बेटा होगा. बंगाल का आदमी ही आपसे मुक़ाबला करेगा, और आने वाले दिनों में हम इसी सूबे से बंगाल को एक मुख्यमंत्री देंगे’.

सूत्रों ने कहा कि 5 नवंबर को बंगाल के अपने दौरे के दौरान, एक बैठक में, जिसमें घोष और मुकुल रॉय भी शामिल थे, शाह ने पार्टी नेताओं से कहा था कि, ‘हर किसी को भूल जाना चाहिए कि मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा, और इसकी बजाय पहले चुनाव जीतने पर ध्यान लगाना चाहिए’.

लेकिन वरिष्ठ बीजेपी नेताओं ने कहा कि बीजेपी आला कमान जानता है, कि चुनाव से पहले मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने में जोखिम है, चूंकि उससे आंतरिक मतभेद बढ़ जाएंगे.

एक सूत्र ने कहा, ‘बीजेपी के लिए ये चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है, और आला कमान कोई जोखिम नहीं उठा सकता’.

प्रदेश उपाध्यक्ष जय प्रकाश मजूमदार ने दिप्रिंट से कहा, ‘बीजेपी ने बहुत से राज्यों में, मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किए बिना चुनाव लड़े हैं, और उनमें जीत भी हासिल की है’.

‘यूपी विधान सभा चुनावों में, पार्टी ने किसी को भी सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया, और बाद में योगी आदित्यनाथ को चुना गया. महाराष्ट्र में भी, 2014 विधानसभा चुनावों में किसी को सीएम उम्मीदवार के तौर पर सामने नहीं किया गया. इसलिए यहां पर भी, हो सकता है कि पार्टी (चुनाव से पहले) किसी को घोषित न करे’.

घोष बनाम रॉय बनाम अधिकारी

एक बीजेपी सांसद ने दिप्रिंट को बताया, कि घोष को बढ़त हासिल है क्योंकि 2015 में बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनकी नियुक्ति के बाद से, बीजेपी ने टीएमसी के गढ़ में अपनी मौजूदगी का विस्तार किया है- जंगलमहल से लेकर बांकुरा, पुरूलिया और बीरभूम तक.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन मुकुल रॉय के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद से, घोष के लिए मनमाने फैसले लेना आसान नहीं रह गया है. और रॉय की (राजनीतिक) क्षमताओं को देखते हुए, विजयवर्गीय भी उनका बहुत सम्मान करते हैं’.

लोकसभा चुनावों से पहले, तृणमूल में बड़े दलबदल के पीछे रॉय की एक प्रमुख भूमिका थी, और अधिकतर दलबदलू चुनाव जीत गए थे, जिससे बीजेपी को 18 सीटें जीतने में मदद मिली थी.

लेकिन इसके बाद भी, रॉय को मंत्रिमंडल या पार्टी संगठन में जगह नहीं दी गई, जिसकी वजह से उन्होंने पार्टी गतिविधियों में हिस्सा लेना बंद कर दिया था.

सूत्रों का कहना है कि अगस्त 2020 में, रॉय घोष से इतने नाराज़ थे, कि शाह और को विजयवर्गीय को, उन्हें तसल्ली के तौर पर उपाध्यक्ष का पद देना पड़ा, और घोष के एक क़रीबी सहयोगी सुब्रत चट्टोपाध्याय को, प्रदेश महासचिव (संगठन) के पद से हटाना पड़ा.

इस बीच, अधिकारी भी सीएम पद के दावेदार के रूप में उभरे हैं. 40 से अधिक सीटों पर वो बीजेपी की संभावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं, ख़ासकर दक्षिण बंगाल में, जहां बीजेपी कमज़ोर मानी जा रही है.

एक बीजेपी महासचिव ने दिप्रिंट से कहा, कि अगर अधिकारी नंदीग्राम में ममता के खिलाफ लड़ते हैं, तो सारा कथानक ममता बनाम अधिकारी के इर्द गिर्द घूमेगा.

उन्होंने आगे कहा, ‘(सीएम उम्मीदवार के नाते) वो और ताक़तवर बनकर उभर सकते हैं, हालांकि फिलहाल घोष और सुवेंदु बहुत सी जगहों पर साझा रैलियां कर रहे हैं. हो सकता है कि ऊंचे दांव के इस चुनाव में, मुकुल रॉय को घेरने के लिए, दोनों ने हाथ मिला लिए हों’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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