नई दिल्ली: सरकारी एक्सपर्ट्स पैनल ने डॉ रेड्डीज़ से कहा है कि रूस की स्पुतनिक वैक्सीन का बड़ा ट्रायल किए जाने पहले उसे भारत में 100 प्रतिभागियों पर परखा जाएगा. डॉ रेड्डीज़ वो दवा कंपनी है, जो ये वैक्सीन भारत में सप्लाई करेगी.
मॉस्को के सॉवरेन वेल्थ फंड, रशियन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट फंड (आरडीआईएफ) ने पिछले महीने भारतीय ड्रग निर्माता के साथ क़रार किया है, जिसके तहत सभी नियामक मंजूरियां लेने के बाद भारत में स्पुतनिक-5 के दस करोड़ डोज़ सप्लाई किए जाएंगे – ये वैक्सीन इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करती है और इसके कोई प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं होते.
शनिवार को, कंपनी ने आरडीआईएफ के साथ मिलकर ऐलान किया कि उन्हें दूसरे और तीसरे दौर के इंसानी क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से मंज़ूरी मिल गई है.
ये मंज़ूरी कोविड-19 वैक्सीन्स और ड्रग्स पर बनी सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी (एसईसी) की सिफारिशों पर आधारित है.
सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑरगनाइज़ेशन (सीडीएससीओ) की वेबसाइट पर पर अपलोड की गईं मिनट्स के अनुसार, 16 अक्तूबर को हुई एक बैठक में एसईसी ने तय किया कि ‘फर्म को दूसरे दौर के क्लीनिकल ट्रायल में 100 लोगों पर सुरक्षा और प्रतिरक्षाजनकता डेटा तैयार करना चाहिए और तीसरे दौर के क्लीनिकल ट्रायल पर जाने से पहले, उसे आंकलन के लिए पेश करना चाहिए.’
सीडीएससीओ स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत वो संस्था है, जो भारत में दवाओं और वैक्सीन्स की गुणवत्ता को नियमित करती है.
ट्रायल का उद्देश्य भारतीय प्रतिभागियों के बीच, वैक्सीन की सुरक्षा को स्थापित करना और साथ ही ‘प्रतिरक्षाजनकता’ को भी स्थापित करना है, जिसका मतलब है कि वैक्सीन प्रतिभागी के शरीर में एक इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करती है.
एसईसी ने अपनी ये मंज़ूरी, वैक्सीन को तीसरे दौर के एक बड़े ट्रायल से गुज़ारने के डॉ रेड्डीज़ के प्रस्ताव को ख़ारिज करने के, दस दिन के बाद दी.
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5 अक्तूबर को हुई एक मीटिंग में पैनल ने, फेज़ 2 ट्रायल के लिए कहा था, जिसे कम प्रतिभागियों पर किया जाता है.
संशोधित प्रस्तावों में दूसरी सिफारिशें
नामंज़ूरी के बाद हैदराबाद स्थित ड्रग निर्माता ने कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक़ दूसरे और तीसरे दौर के क्लीनिकल ट्रायल करने के लिए एक संशोधित प्रोटोकोल पेश किया.
‘विस्तृत विचार-विमर्श’ के बाद एक्सर्ट्स पैनल ने कहा कि ट्रायल में पंजीकरण कराने वाले प्रतिभागियों को पंजीकरण के 72 घंटे के भीतर पहले आरटी-पीसीआर जांच करानी चाहिए- जो कोविड-19 का पता लगाने का गोल्ड स्टैंडर्ड है.
पैनल ने ये भी कहा कि खोजपूर्ण उद्देश्य के तौर पर टीएच1 बनाम टीएच2 अनुकूलन का भी आंकलन किया जा सकता है.
खोजपूर्ण उद्देश्य का मतलब है कि ट्रायल के नतीजे भविष्य के शोध में इस्तेमाल किए जा सकते हैं. कमेटी ने एक ऐसे परिदृश्य पर काम करने का सुझाव दिया है, जहां प्रतिभागी एक संतुलित ‘टीएच1 और टीएच2’ रेस्पॉन्स पैदा कर सकें- ये हार्मोनल संदेशवाहक होते हैं जो इम्यून सिस्टम में हुए, अधिकांश जैविक प्रभावों के लिए ज़िम्मेवार होते हैं.
कंपनी से ये भी कहा गया है कि क्लीनिकल ट्रायल्स की जगहों का चुनाव भौगोलिक रूप से करें. ताकि भारत के अलग अलग प्रांतों की भागीदारी बढ़ जाए.
स्पुतनिक 5- पहली पंजीकृत कोविड वैक्सीन
स्पुतनिक 5 की वेबसाइट के अनुसार, ‘ये वैक्सीन बाज़ार में पहली पंजीकृत कोविड-19 वैक्सीन बन गई है’.
ये वैक्सीन एडिनोवायरस वेक्टर पर आधारित है, जिसमें कोरोनावायरस के एक हिस्से को दूसरे वायरस में घुसाया जाता है, और फिर उसे शरीर में पहुंचाया जाता है, जिसके बाद कोरोनावायरस का घुसाया हुआ हिस्सा, जो आमतौर पर स्पाइक प्रोटीन मॉलीक्यूल होता है, डिस्चार्ज हो जाता है. शरीर फिर इसे पराए रोगाणुओं के तौर पर पहचानकर एक इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करता है.
यहां पर इस्तेमाल वेक्टर इंसानी एडिनोवायरस होता है. ये सांस से जुड़े ऐसे वायरसों का समूह होता है, जो इंसानों और जानवरों में कॉमन कोल्ड और फ्लू जैसी बीमारियां पैदा करता है.
वेबसाइट में दावा किया गया है कि ‘एडिनोवायरल वेक्टर्स बेहद सुरक्षित माने जाते हैं और इन्हें इंजीनियर करना सबसे आसान होता है.’
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